अजब-गजब

जहाँ साठ-सत्तर साल के होते हैं जवान और जीते हैं सौ-सवा सौ साल

डॉ.बचन सिंह सिकरवार

साभार सोशल मीडिया

‘साठ-सत्तर साल के होते हैं जवान और जीते है-सौ-सवा सौ साल’ सुनकर आप चौंके जरूर होंगे और चौंकना भी चाहिए। लेकिन यह सच्चाई है, हकीकत है। यहाँ तक कि साठ-पैसठ साल की अवस्था में महिलाएँ पैदा करती हैं – बच्चे। आप यह जानकार ताजुब्ब होगा, यह भी अपने देश के पड़ोसी पाकिस्तान के गैरकानूनी तौर पर धोखे और जबरिया कब्जाए जम्मू-कश्मीर के पी.ओ.के में।
पाकिस्तान अधिकृत जम्मू-कश्मीर (पी.ओ.के.) का एक इलाका गिलगिट-बल्टिस्तान की पहाड़ियों में स्थित ‘हुंजा घाटी‘ है, जिसे पाकिस्तान ने देश के विभाजन के पश्चात् जम्मू-कश्मीर पर हमला कर हथिया लिया था। यह राजनीतिक-आर्थिक कारणों से विश्वभर के देशों के अधिक चर्चित न हो, लेकिन अपने अलौकिक जलवायु के लिए पर्यावरणविदों तथा चिकित्सकों के लिए जिज्ञासा तथा आकर्षण का केन्द्र बना हुआ है, क्यों कि यहाँ कि लोग रक्तचाप (ब्लड प्रेशर), मधुमेह (डायबिटीज), मोटापा, कैंसर, आदि असाध्य रोगों से ग्रस्त होना तो दूर, उनके नाम तक नहीं जानते। इसकी वजह से दुनियाभर के चिकित्सकों की जिज्ञासा यहाँ लोगों की जीवन शैली और उनके दीघायु के रहस्य को जानने की रही है, जिसके कारण वे अन्दर -बाहर से हमेशा तन्दुरूस्त रहते हैं और कभी बीमार नहीं पड़ते। जब कोई किसी विशेष कारण से थोड़ा-बहुत बीमारी होता भी है, तो वह अपने आसपास उग रही जड़ी-बूटियाँ खोजकर उनसे अपना सहजता से उपचार कर लेता है।
धरती के स्वर्ग के यह भाग अपनी जलवायु और वातारण दूसरे शब्दों में दूसरों से अब भी बेजोड़ है।इसके अत्यन्त स्वच्छ जल और वायु समेत पूरे अनुपम वातावरण,सरल जीवन शैली के कारण लोग अब भी न केवल निरोगी जीवन जीते हैं,वरन् दीर्घायु भी होते हैं। यहाँ के अधिकांश लोग सौ से सवा साल तक जीते है और वह भी रोगमुक्त रहते हुए। इनके यहाँ शेष दुनिया के देशों की तरह न वायु प्रदूषण की समस्या है और न जल प्रदूषण की। ऐसे में ध्वनि प्रदूषण या मृदा प्रदूषण का तो प्रश्न ही नहीं उठता है। यह कैसे सम्भव हुआ,तो उत्तर है कि उन्होंने वर्तमान कथित सुख-सुविधा,भोग-विलास की जिन्दगी की कोई लालसा नहीं पायी है।
हुंजा घाटी के लोग के बारे में सर्वप्रथम डॉ.रार्बट मैक्करिसन ‘ पब्लिकेशन स्टडीज डेफिशिएन्सी डिजीज’ में लिखा था।इसके बाद ‘जर्नल ऑफ अमेरिकी मेडिकल एसोसियेशन में एक लेख प्रकाशित हुआ,जिसमें इस प्रजाति के जीवन काल और इतने लम्बे समय स्वस्थ रहने के सम्बन्ध में जानकारी दी गई। उसके अनुसार ये कम खाते और ज्यादा टहलते हैं।
फिर हुंजा घाटी के विषय में जानकारी हेतु डॉ.जे. मिल्टन हॉफमैन ने हुंजा के लोगों की लम्बी आयु का राज ज्ञात करने केे लिए यहाँ आए और घूम-फिर कर उन्होंने अपने अनुभवों के निष्कर्षो बारे में सन् 1968 में हंुजा सीक्रिएट ऑफ द वल्डस हैल्थियस एण्ड ओलडेस्ट लिविंग पीपल’ नामक पुस्तक प्रकाशित की। इसमें उ ’हुंजा के लोगों की जीवन शैली के रहस्यों का उद्घाटन करने की यथा सम्भव प्रयास किया। इस कारण यह पुस्तक अत्यन्त महŸवपूर्ण मानी जाती है।
हंुजा घाटी में बसने वाली जनजाति के लोग स्वयं को मैसीडोनिया के राजा सिकन्दर को वंशज बताते है,जो कई माने में औरों से हैं भी अलग।इनका रूप-रंग और रीति-रिवाज भी शेष स्थानीय लोग से भिन्न हैं। सम्भव है कि 327 ई.पू. में उत्तरी भारत पर मैसीडोनिया के शासक सिकन्दर के आक्रमण और उसके वापस जाने के बाद उसके कुछ सैनिक और दूसरे लोग यहीं बस गए हों, ये उनके ही वंशज हो सकते हैं। इनकी जनसंख्या 87हजार से अधिक है। ये लोग अल्पाहारी हैं और खूब पैदल घूमते हैं। ये लोग वही खाते है, जो स्वयं उगाते हैं। आमतौर पर ये अंजीर, अखरोट, खूबानी खूब खाते है। इस क्षेत्र में अनाज में जौ, बाजरा कुटू, हैं, जो इनका मुख्य भोजन है।ं इनके भोजन में मेवे, सब्जियाँ, दूसरे मोटे अनाज हैं। इनमें तन्तु/फाइबर प्रोटीन के साथ सभी आवश्यक खनिज (मिनिरल्स) भी पाए जाते हैं। धूप में अखरोटों को सुखाते हैं जिनमें बी-17 घटक/ कम्पाउण्ड होते हैं। कुछ महीने तो ये लोग सिर्फ खूबानी ही खाते हैं। ये शून्य से कम तापक्रम में ठण्डे पानी से नहाते हैं। उसके बाद बहुत कम खाते और बहुत अधिक टहलते/घूमते है। अब तो आप समझ गए होंगे,इनके शतायु होने का जीवन का रहस्य।

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