देश-दुनिया

यह तो बहुत पहले कहा जाना था

डॉ.बचन सिंह सिकरवार
गत दिनों केन्द्रीय विदेश मंत्री एस.जयशंकर द्वारा कनाडा की सरकार पर स्पष्ट शब्दों में खालिस्तान समर्थकों को मनमानी करने की खुली छूट देकर अपरोक्ष रूप से उन्हें समर्थन देने और उसके पीछे उनकी वोट बैंक की राजनीति होने का जो आरोप लगाया है, वह सर्वथा उचित, सामयिक और सराहनीय है। वैसे उन्हें ऐसी सख्त चेतावनी बहुत पहले दे देनी चाहिए थी। अब भले ही कनाडा सरकार के खालिस्तानियों को लेकर उसके मौजूदा रुख-रवैये में ही तब्दीली न आए, पर भारत ने कनाडा, ब्रिटेन और आस्ट्रेलिया की सरकारों की खालिस्तानियों को लेकर बरती जा रही उनकी नरमी और भारतीय हितों की अनदेखी की उनकी राजनीति/फरेब की असलियत दुनिया के सामने जगजाहिर जरूर कर दी है। विदेशी मंत्री एस.जयशंकर ने यह ठीक ही कहा कि जिस तरह कनाडा भारत विरोधी गतिविधियाँ चलायी जा रही हैं, वे न तो द्विपक्षीय रिश्तों के हित में हैं और न ही कनाडा के हित में हैं। उनका यह सन्देश केवल कनाडा को ही नहीं, वरन् ब्रिटेन और आस्ट्रेलिया को भी है, जहाँ खालिस्तानी भारत विरोधी गतिविधियों में संलिप्त हैं, वे भारतीय उच्चायोग, भारतीयों और हिन्दू मन्दिरों पर हमले के समेत कई दूसरे ऐसे कार्य कर रहे हैं, जो भारत के खिलाफ हैं।
वस्तुतः विदेश मंत्री एस.जयशंकर को यह सब कहने की नौबत आने की कारण पिछले दिनों कनाडा के बै्रम्पटन शहर में खालिस्तानियों द्वारा प्रधानमंत्री इन्दिरा गाँधी की हत्या का जश्न मनाना रहा है। इसके लिए खालिस्तानियों द्वारा इन्दिरा गाँधी की हत्या का महिमामण्डन करते हुए जिस तरह पाँच किलो मीटर लम्बी परेड निकाली गई, उससे स्पष्ट हैं कि इन खालिस्तानियों को कहीं न कहीं कनाडा सरकार का समर्थन मिला हुआ, क्योंकि इस दौरान हमेशा की तरह पुलिस निष्क्रिय/मूकदर्शक बनी रही है। इसके बाद भारत में कनाडा के उच्चायुक्त ने बड़ी बेशर्मी से अपनी सरकार का बचाव करते हुए कहा कि इस शर्मनाक प्रकरण से वह हैरान-परेशान हैं कि उनके देश में घृणा के महिमामण्डन के लिए कोई जगह नहीं है। इतना ही नहीं, कनाडा सरकार की धृष्टता देखिए जब उसके राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एन.एस.ए.)जोडी थामस ने भारत पर ही उसके आन्तरिक मामले में हस्तक्षेप करने के आरोप लगाया, तब विदेशमंत्री एस. जयशंकर ने कहा,‘‘यह उल्टा चोर कोतवाल को डांटे वाली बात हो गई। कनाडा की ओर से भारत के आन्तरिक मामलों में दखल दिया जा रहा है। उनके इस बयान से पहले कनाडा स्थित भारतीय उच्चायोग ने भी इन्दिरा गाँधी की हत्या को सही ठहराने वाले प्रदर्शन पर कड़ी आपत्ति व्यक्त की। एस. जयशंकर ने कहा,‘‘हम पहले ही कह चुके हैं कि भारत के विरुद्ध प्रदर्शन करने वालों को कनाडा में जगह दी गई है। वह बहुत बड़ा मुद्दा है। हम सही माने में यह नहीं समझ पा रहे हैं कि वोट बैंक राजनीति के अलावा और दूसरी कोई क्या वजह है जिसके लिए इसका समर्थन किया जाएगा? इनके इतिहास(कनाडा) को देखा जाए तो उम्मीद की जाती है कि वे उससे सबक सीखेंगे और उसे दोहराने की कोशिश नहीं करेंगे।

अफसोस की बात है कि इन सभी देशों ने भारत के मान-सम्मान और भावनाओं की बराबर अनदेखी की है। इसका कारण उनके अपने हित यानी वोट बैंक की राजनीति को देखते हुए खालिस्तानियों के खिलाफ किसी तरह की कानूनी कार्रवाई नहीं की हैं। इसी लिए हाल के आस्ट्रेलिया के दौरे के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने प्रधानमंत्री एन्थोनी अल्बानीज को हिन्दू मन्दिरों पर हमले रोकने और इसके लिए दोषियों को दण्डित करने को कहा है। इससे पहले भी उनके भारत के दौरे पर यही बात कही थी। उसके बाद भी खालिस्तानियों द्वारा हिन्दू मन्दिरों को निशाना बनाया गया और आस्ट्रेलिया की पुलिस शान्त बनी रही। कमोबेश खालिस्तानियों को लेकर ब्रिटिश सरकार का रुख भी ऐसा ही रहा है। कुछ माह पहले लन्दन स्थित भारतीय उच्चायोग पर खालिस्तानियों के हमले किया और तिरंगे का अपमान करने का प्रयास भी किया,तब वहाँ पुलिस तमाशबीन बन कर देखती रही है, अब उस हमले की भारत की ‘राष्ट्रीय जाँच एजेन्सी(एन.आइ.ए.) द्वारा जाँच की जारी है। उस घटना के सी.सी.टी.वी. फुटेज जारी कर उसमें सम्मिलित खालिस्तान समर्थकों की लोगों से पहचान करायी जा रही है, ताकि उनके खिलाफ दण्डात्मक कार्रवाई की जा सके। निश्चय ही भारत सरकार के इस कदम से खालिस्तान के समर्थको को सबक मिलेगा।इन खालिस्तान समर्थकों को चिन्हित कर उनका वीजा रद्द/उसे काली सूची में डाल जाएगा।
भारत में भी खालिस्तानी अपने तरीकों से साम्प्रदायिक सद्भाव बिगाड़ने, मजहबी नफरत फैला कर देश की एकता-अखण्डता के खिलाफ काम कर रहे हैं। इसी 6जून को अमृतसर के स्वर्ण मन्दिर में ‘ऑपरेशन ब्लू स्टार’ की 39 वर्ष पूरे होने पर खालिस्तान समर्थक सिरोमणि अकाली दल (अमृतसर)के सांसद सिमरनजीत सिंह मान और उनके सहयोग पूर्व सांसद ध्यान सिंह मण्ड कट्टरपंथी सिख संगठनों के सैकड़ों समर्थक और कार्यकर्ता अपने हाथों में जनरैल सिंह भिण्डरावाले और ऑपरेशन ब्लू स्टार के दौरान क्षतिग्रस्त अकाल तख्त की तस्वीरों की तख्तियाँ लिए खालिस्तान जिन्दाबाद के नारे लगाए। लोगों को भड़काने के इरादे से ऑपरेशन ब्लू स्टार के समय गोलियों से छलनी गुरुग्रन्थ साहिब को भी प्रदर्शित किया गया। उस दौरान पुलिस और सुरक्षा बल खामोश बने रहे। वैसे यह तमाशा हर साल होता आया है। इस वारदात से पहले खालिस्तान समर्थक ‘वारिस द पंजाब’ का सरगना अमृतपाल सिंह और उसके साथी पंजाब में खालिस्तान का एजेण्डा चला रहे थे। इसे घटना से स्पष्ट हैं कि पंजाब में उन सभी की गिरपतार होने के बाद भी न खालिस्तान समर्थक शान्त बैठें और न ही पाकिस्तान से ड्रोनों के मार्फत मादक पदार्थों और हथियारों आना ही बन्द हुआ है। खालिस्तानियों की कृषि आन्दोलन, फिर 26जनवरी को दिल्ली के लाल किले पर उनके हुड़दंग/उपद्रव/हिंसा के दौरान सक्रियता सभी को साफ दिखायी दे रही थी,पर राजनीतिक नुकसान-फायदे देखते हुए केन्द्र की भाजपा सरकार समेत सभी सियासी पार्टियों खामोश रहीं।फिर पंजाब में आम आदमी पार्टी के बाद उन्हें खुली छूट मिल गई।उन्होंने सार्वजनिक स्थानों पर ‘खालिस्तान जिन्दाबाद’ के नारे लिखने के साथ खालिस्तान दिवस मनाया। उसका शिवसेना द्वारा विरोध करने पर उनके जुलूस पत्थरों और कृपाणों से हमला किया गया।इनके द्वारा हिन्दू नेता समेत कई दूसरे खालिस्तान विरोधियों की हत्या की गई,पर सूबे की सरकारें उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई करने से बचती आयी हैं।
वर्तमान में देश में जिस तरह कुछ इस्लामी कट्टरपंथी ‘निजाम-ए-मुस्तफा’ कामयाब करने का ख्वाब देख रहे हैं, वैसे ही चन्द कट्टरपंथी ‘खालिस्तान’ बनाने का। यहाँ भी खालिस्तानियों के हौसले बढ़ने की वजह सूबे की विभिन्न राजनीतिक दलों की सरकारों का उनके प्रति नरम रवैया होना है। इसका सुबूत शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी(एसजीपीसी) द्वारा पंजाब के मुख्यमंत्री बेअन्त सिंह के हत्यारे बलवन्त सिंह राजोआणा की फाँसी की सजा माफ कराने की कोशिशें हैं, जिनकी 31अगस्त, 1995 को हत्या कर दी गई।उस समय बेअन्त सिंह समेत 16लोग मारे गए। इससे पहले भी एसजीपीसी उनके दूसरे हत्यारों की मदद और उन्हें रिहा करने में लगी रही है, क्योंकि इन सभी के देश से बड़ी सत्ता/मजहब है।
ये सत्ता लोभी सियासी पार्टियाँ अपनी वोट बैंक की खातिर इस्लामिक कट्टरपंथियों की अलगाववादी, ईसाई मिशनरियों की मतान्तरण, खालिस्तानियों की राष्ट्र विरोधी गतिविधियों की बराबर अनदेखी की जाती रही है। इसका मुल्क को बहुत बड़ा खामियाजा उठाना पड़ा है। बीसवीं सदी के नौवें दशक के दौरान पंजाब में खालिस्तान आन्दोलन के समय हुई हिंसा में 32हजार से अधिक लोगों की जानें गई थीं, इनमें कोई 24 हजार से अधिक हिन्दू और शेष सिख थे। उस दौरान स्वर्ण मन्दिर के अकाल तख्त पर खालिस्तान के समर्थक जनरैल सिंह भिण्डरावाले और उनके समर्थकों ने कब्जा किया हुआ था, वहाँ से उन्हें बाहर करने को 6जून, 1984को ‘ऑपरेशन ब्लू स्टार’ शीर्षक से सैन्य कार्रवाई करने को मजबूर होना पड़ा। इससे सिख समुदाय आहत हुआ।फिर इसके प्रतिशोध स्वरूप तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गाँधी की उनके सिख अंग रक्षकों ने हत्या कर दी। उसके बाद दिल्ली और देश के कई दूसरे शहरों में सिख विरोधी दंगे शुरू हो गए। इनमें कई हजार बेकसूर सिखों की हत्या कर दी गई। कालान्तर में ऑपरेशन ब्लू स्टार का नेतृत्व करने वाले सेनाध्याक्ष ए.एस.वैद्य की खालिस्तानियों की पुणे में हत्या कर दी। खालिस्तान आन्दोलन का खात्मा करने वाले पंजाब के मुख्यमंत्री बेअन्त सिंह की भी नृंशसा हत्या हुई,पर खालिस्तानियों की वजह से कोई उनका पुण्य स्मरण तक नहीं।लेकिन अब केन्द्र को खालिस्तानियों की दहशतगर्दी से लोगों को छुटकारा दिलाने को भी आगे आना चाहिए। इसके साथ ही खालिस्तानियों पर लगाम लगाने के लिए अब भारत सरकार को ब्रिटेन,कनाडा, आस्ट्रेलिया हो या कोई दूसरा मुल्क उसे किसी भी सूरत में बख्श नहीं चाहिए,जो इनके पनाहगाह बने हुए है।इन्हें भारत के हितों और उसकी सुरक्षा,स्वतंत्रता,एकता,अखण्डता की परवाह नहीं है।ऐसे में इनसे दोस्ती के क्या माने हैं?
सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार 63 ब,गाँधी नगर, आगरा- 282003 मो. नम्बर- 9411684054

 

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