देश-दुनिया

महिलाओं की आजादी का दुश्मन तालिबान

डॉ.बचन सिंह सिकरवार
अफगानिस्तान में तालिबान सरकार द्वारा अपने के विश्वविद्यालयों में छात्राओं का प्रवेश प्रतिबन्धित करने के जो आदेश दिया है,उससे यही लगता है कि तालिबान अपनी महिलाओं की आजादी विरोधी मानसिकता/नीति को बदलने को नहीं तैयार है। तालिबान सरकार महिलाओं के पर्दे में रहने, घर के बाहर कामकाज करने, यहाँ तक कि समाज सेवा, पहले छात्रा-छात्राओं के साथ-साथ न पढ़ने या कक्षा में पर्दे लगाकर पढ़ने फिर स्कूल, कॉलेज अब विश्वविद्यालय में दाखिला लेने पर पाबन्दी लगायी है। इससे तालिबान सरकार के महिला विरोधी मानसिकता का पता चलता है। अफसोस की बात यह है कि जो इस्लामिक विद्वान/जानकार इस्लाम में महिलाओं को पूरी इज्जत बख्शी गई है। माँ के पाँवों के नीचे जन्नत बसती है। लेकिन ईरान से लेकर अफगानिस्तान में पर्दे को लेकर वर्तमान में जैसे जुल्मों-सितम ढहाये जा रहे हैं,उस पर वे पूरी तरह खामोश बने हुए हैं। इस्लामिक कट्टरपंथियों के हिमायती सेक्युलर और वामपंथी भी चुप्पी साधे हुए हैं, जो हमेशा खुद को बोलने और महिलाओं की आजादी के सबसे बड़े पैरोकार साबित करते आए हैं। इधर अफगानिस्तान के शिक्षा मंत्री मोहम्मद नदीम ने सार्वजनिक रूप से कहा कि इस्लाम लड़कियों की तालीम के खिलाफ है। उन्होंने यह भी कहा कि अफगानिस्तान में जो पाठ्यक्रम लागू है, वह इस्लामी कानून और मुल्क के गौरव के खिलाफ है। इस वजह से महिलाओं की तालीम पर रोक लगायी है। इतना ही नहीं, शिक्षा मंत्री मोहम्मद नदीम ने कहा कि हमारे लड़ाके की काबलियत उसकी तालीम से नहीं आंकी जा सकती, बल्कि इस बात से आंकी जाएगी कि उसने कितने बम गिराये हैं ? हद तो यह है कि बम और खून-खराबे की जुबान बोलने वालों के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र संघ को भी संज्ञान लेना चाहिए।
अब अफगानिस्तान सरकार की महिलाओं की आजादी विरोधी नीति पर भारत ने भी चिन्ता व्यक्त की है। उसका कहना है कि वह हमेशा से अफगानिस्तान की महिलाओं को तालीम दिये जाने की हिमायत करता आया है। वैसे भी अफगानिस्तान की तालिबान सरकार के गठन के वक्त भारत ने उसे समाज के हर वर्ग को प्रतिनिधित्व देने की माँग की थी। इसमें महिलाओं को हक देने की बात भी शामिल थी, पर अब तालिबान अपने पुराने ढर्रे पर चलते हुए महिलाओं के हकों पर एक-एक कर खत्म करता जा रहा है। वह महिलाओं के बगैर पर्दे के घर से बाहर निकलने पर रोक लगाने के साथ उनके नौकरी करने पर भी पाबन्दी लगा चुका है।ऐसे में उनकी कमाई पर जिन्दा परिवार कैसे गुजर बसर करेगा?इसका तालिबान सरकार ने कोई बन्दोबस्त नहीं किया है।
अब तालिबान सरकार के विश्वविद्यालय में छात्राओं के दाखिले पर रोक के फरमान की अमेरिका, ब्रिटेन, सऊदी, तुर्किये, फ्रान्स, जर्मनी, जापान, आस्टेªलिया समेत कई देशों ने कड़ी निन्दा की है।
इधर संयुक्त राष्ट्र संघ मानवाधिकार उच्चायुक्त वोल्कर तुर्क ने कहा कि कोई भी देश अपनी आधी आबादी को बाहर कर सामाजिक और आर्थिक रूप से विकास सकता। महिला और लड़कियों पर प्रतिबन्ध से न केवल सभी अफगानों पर पड़ा है,बल्कि मुझे डर है कि अफगानिस्तान की सीमाओं पर एक जोखिम पैदा होगा। तालिबान शासन ने महिलाओं को काम करने से प्रतिबन्धित कर दिया। उन्हें बाहर निकलने पर सिर से पैर तक कपड़े पहनने का आदेश दिया। उन्होंने कहा कि प्रतिबन्ध से इन गैर सरकारी संगठन(एन.जी.ओ.)संगठनों को अवश्यक सेवाएँ प्रदान करने की क्षमता कम हो जाएगी,जिन पर अनेक अफगान लोग निर्भर हैं। महिलाओं के गैर सरकारी संगठनों में काम करने से प्रतिबन्धित कर उन्हें देश के विकास में सकारात्मक योगदान करने से वंचित करना है।
उन्होंने मिडिल स्कूल,हाई स्कूल में पढ़ने पर प्रतिबन्ध लगा दिया। तालिबान शरिया कानून बहुत सख्ती से लागू किया और महिलआओं पर अनेक प्रतिबन्ध लगा दिये हैं। शुरू में तालिबान महिलाओं और अल्पसंख्यकों को सम्मान करने का वादा किया था। अब जी-7 देशों के विदेश मंत्रियों ने तालिबान के फैसले का पुरजोर मुखालफत की है। इन मंत्रियों का कहना है कि तालिबान सरकार महिलाओं की आजादी खत्म कर रही है। अगर यही रवैया रहा,तो हम अफगानिस्तान को किसी किस्म की मदद नहीं कर पाएँगे। हकीकत यह है कि ईरान की तरह अफगानिस्तान की तालिबान सरकार ने महिलाओं पर हर तरह की पाबन्दी लगा रही है।इस तरह की पाबन्दी उनके मानवाधिकारों का सरासर उल्लंघन है। ईरान में हिजाब से सही तरीके से न लगाने पर मोरल पुलिस की हिरासत में माहीसा अमीन की मौत के बाद शुरू हुआ आन्दोलन जारी है। वहाँ फुटबॉल खिलाड़ी, तीरन्दाज, पर्वतारोही,शतरंज खिलाड़ी,अभिनेत्रियाँ हिजाब,बुर्के जलाकर और बाल काटकर विरोध जता रही हैं। इसमें कोई चार सौ से अधिक लोगों की जानें जा चुकी हैं। वैसे अफगानिस्तान हमेशा से ऐसा नहीं था। कुछ दशकों पहले तक अफगान स्वयं को प्राचीन आर्य सभ्यता का संवाहक मानते-समझते थे। इस देश में आसामईं मन्दिर, बामियान की बुद्ध प्रतिमा, जलालाबाद की बौद्ध गुफाओं, जैन प्रतिमाओं-मन्दिरों के अवशेषों का संरक्षण भी करते थे। 55वर्ष पहले बादशाहजहीर शाह के शासन में भी काबुल के विश्वविद्यालय में बड़ी संख्या में छात्राएँ छात्राओं के साथ्-साथ पढ़ती थीं और महिला प्रोफेसर पढ़ाती थीं। सरकारी कार्यालयों में हिन्दू, सिख, शिया महिलाएँ और पुरुष कार्य करते थे। कुछ महिलाएँ स्कर्ट,ब्लूज पहनती थीं। बादशाह अमानुल्ला(1909)में आधुनिकता का दौर शुरू हुआ,जो यूरोपीय देशों के समाज के समकक्ष था। यहाँ के रहन-सहन में बदलाव तालिबान के शासन के बाद आया है।
अब देखना यह है कि दुनियाभर के मुल्क और राष्ट्र संघ अफगानिस्तान की तालिबानी सरकार को किसी तरह से उसे अपनी आधी आबादी के दमन से छुटकारा दिलाने को कदम उठाते हैं? सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003मो.नम्बर-9411684054

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