डाॅ.बचन सिंह सिकरवार
हाल में भारतीय सेना द्वारा अपने सैनिकों के गलवन घाटी में तिरंगा लहराते हुए जो चित्र प्रसारित किया है, उसने चीन के झूठ की पोल खोल दी है,जो उसने इस घाटी में अपना कब्जा दिखाने के इरादे से जा रही किया था। इससे अब चीन को किसी तरह शर्मिन्दगी होगी, ऐसा सोचना ही फिजूल है, कुछ ऐसी स्थिति अपने देश की कुछ राजनीतिक पार्टियों और उनके नेताओं के साथ-साथ स्वयंभू रक्षा विशेषज्ञों की है। ये लोग अब चीन के बहाने और उसके सहारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को सत्ताच्युत करने का सपना देख रहे हैं।
हालाँकि अब चीन ने गलवन घाटी का वीडियो बनाने में कई चूकें कर दीं, जिससे उसका झूठ खुद ब खुद सामने आ गया, क्योंकि चीन के वीडियो में बहुत ही कम बर्फ नजर आ रही है, जबकि इस समय गलवन घाटी बर्फ से आच्छादित है,जैसा कि भारतीय सैनिको के वीडियो में दिखायी दे रहा है। अब भारतीय सेना ने अपने इस वीडियो के माध्यम से दुनिया भर के लोगों को भरमाने को चीन के द्वारा समय-समय पर जारी किये जाने वाले कई तरह की सैन्य गतिविधियों के वीडियो और उसके भोंपू /मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स की रिर्पोटों की असलियत को एक बार फिर से उजागर कर दिया है। चीन के इन वीडियों में उसकी सैन्य क्षमता को बहुत ज्यादा बढ़चढ़कर दर्शाया जाता है,ताकि पड़ोसी मुल्कों को भयभीत किया जा सके। उसके समाचार पत्रों में प्रकाशित समाचारों की विश्वसनीय भी संदिग्ध होती है। इस हकीकत से चीन के शासक भी अनजान नहीं हैं,फिर भी वे दुनिया को झूठ परोसने से बाज नहीं आते हैं, क्योंकि यह उनकी फितरत का अहम हिस्सा है। यह जानते-बूझते हुए भी अपने देश के विपक्षी राजनीतिक दलों विशेष रूप काँग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गाँधी और स्वयंभू रक्षा विशेषज्ञ भी चीन के फर्जी वीडियो का सच मानते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर चीन के खिलाफ बोलने से डरने का आरोप लगाने से बाज नहीं आए,पर अच्छी बात यह रही कि उनकी पार्टी के वरिष्ठ नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने चीनी वीडियो को चीन दुष्प्रचार बताते हुए उससे गुमराह होने से बचने का आग्रह किया।
वस्तुतः चीन इस वीडियो के माध्यम से दूसरे देशों समेत भारतीयों को भ्रमित करना चाहता है, जो भारत और उसकी सैन्य क्षमता पर यह विश्वास करते हैं कि वह अपने देश की रक्षा विशेष रूप से चीन से लगी सरहद की सुरक्षा और चीन की हर तरह की चुनौतियों का सामना करने मंे सक्षम है। ये सभी धारणाएँ चीन के प्रतिकूल हैं। चीन अपनी अति महत्त्वाकांक्षी ‘बेल्ट एण्ड रोड परियोजना’ के जरिए पूरी दुनिया में अपना आर्थिक साम्राज्य स्थापित करना चाहता, भारत उसमें बाधक बना हुआ है। भारत ने धीरे-धीरे उसकी भूमि हड़पने की नीति को देखते हुए सरहदों की लगातार निगरानी और वहाँ तक अपनी सैन्य पहुँच भी बढ़ा रहा है। गलवन में उसने अपनी सैन्य शक्ति का अहसास भी करा दिया है।
चीन ने अपनी इस धृष्टता/दुष्टता के तहत पहले गत 30 दिसम्बर को चीन सरकार के नागरिक मामलों के मंत्रालय ने एक नक्शा जारी किया, उसमें अरुणाचल प्रदेश के 15 स्थानों गाँवों, नदियों,पहाड़ों आदि के नए चीनी नामकरण की घोषणा की है। नए नामों की घोषणा को लेकर चीन ने दावा किया है कि उसने यह कदम चीनी इलाकों के नामों का मानकीकरण करने के लिए उठाया है। इससे पहले सन् 2017 में उसने अरुणाचल के सात स्थानों के चीनी नामों की घोषणा की। लेकिन इस बार की घोषणा का सीधा सम्बन्ध चीन के नए सीमा कानून से है, जो इसी 1 जनवरी से लागू हो गया है। अब से चीन वास्तविक नियंत्रण रेखा पर वर्तमान विवादित स्थानों को लेकर और अधिक अड़ियल अपना सकता है। वह सीमा पर और अधिक माडल गाँवों को बसाने का काम कर सकता है। चीन इन गाँवों को इस्तेमाल सैन्य और नागरिक उद्देश्यों के लिए करेगा। चीन सीमा मुद्दे के सैन्यीकृत समाधान के लिए स्थितियाँ पैदा की है। यह एक तरह से हाइब्रिड अपराम्परागत युद्ध पद्धति है। इसे दूसरे देशों के सम्प्रभु क्षेत्र को अवैध नियंत्रण में लेने के लिए लागू किया जाता है। इस रणनीति से राष्ट्रनिर्माण की कथित प्रक्रिया को एक कानूनी जामा मिल जाता है और इसका कोई विरोध नहीं कर पाता। भारत सहित 14 देशों के साथ चीन अपनी 22,457 किलोमीटर की भूमि सीमा लगती है। मंगोलिया,रूस के बाद भारत के साथ उसकी सीमाएँ सबसे लम्बी है।इन देशों समेत कई दूसरे पड़ोसी मुल्कों के साथ चीन का थल और जल सीमा विवाद बना हुआ है।भारत को भी इसके प्रत्युत्तर में ऐसा कानून बनाने से परहेज नहीं करना चाहिए।
इससे पहले चीनी दूतावास के राजनीतिक काउंसर झाऊ योंगशेंग ने कुछ भारतीय सांसदों को व्यक्तिगत स्तर पर चिट्ठी लिख कर धमकाया है कि उन्हें भारत में रहने वाले तिब्बती सांसदों से मिलने का अधिकार नहीं है, क्योंकि भारत ने स्वयं तिब्बत को चीन का हिस्सा है। ये मंत्री तथा सांसद ‘आॅल पार्टी इण्डियन पार्लिमेण्ट्री फोरम फार तिब्बत’के सदस्य हैं, इन्हें 22 दिसम्बर को धर्मशाला से दिल्ली पधारे तिब्बती निर्वाचित सांसदों के एक प्रतिनिधि मण्डल के साथ रात्रिभोज में सम्मिलित हुए थे। इनमें भारत सरकार के दो मंत्री राजीव चन्द्रशेखर और रामदास अठावले के अलावा भाजपा सांसद मेनका गाँधी, काँग्रेस के सांसद मनीष तिवारी, जयराम रमेश, केसी रामामूर्ति, जनार्दन सिंह सिग्रीवाल, स्वप्नदास गुप्ता, रानी प्रतिभा सिंह ,फोरम के अध्यक्ष ओर बीजद सांसद सुजीत कुमार भी शामिल थे। भारत और चीन से सीमा विवाद का मूल कारण उसका तिब्बत पर चीन के आधिपत्य को मान्यता दिया जाना है। इसे अब नकारना होगा। चीन जम्मू-कश्मीर और अरुणाचल के रहने वालों को नत्थी वीजा देता आया है, क्योंकि वह इन सूबों को भारत का हिस्सा नहीं मानता।वह अरुणाचल में राजनेताओं के जाने का भी विरोध करता आया है। कायदे भारत को भी ऐसा ही बर्ताव चीन के तिब्बत, शिनजियांग आदि लोगों के साथ करना चाहिए। भारत को एक चीन यानी ‘वन चाइना पालिसी’ छोड़ने की उसे चेतावनी देने को तैयार रहना होगा। भारत को चीन की दुःखती रागों जैसे तिब्बत में तिब्बतियों तथा शिनजियांग में उइगर मुसलमानों के उत्पीड़न और उनके मानवाधिकार, हांगकांग के लोगों के साथ उसकी वायदा खिलाफी, ताइवान , तिब्बत का मुद्दा को दबाना चाहिए। चीन भारत के लद्दाख के अक्षयचीन में 38,000 वर्ग किलोमीटर इलाके पर अवैध कब्जा किया हुआ है। वह पड़ोसी देश भूटान और नेपाल की सीमा में भी अतिक्रमण कर चुका है। चीन भारत को घेरने के लिए नेपाल,म्यांमार,श्रीलंका,मालद्वीप ,पाकिस्तान में सैन्य और नौसैनिक अड्डे बना चुका है। वह भारत के लद्दाख और गुलाम कश्मीर में गैरकानूनी तरीके ढंग से ‘काराकोरम मार्ग’ पहले ही बना चुका है। यद्यपि भारत ने गलवन घाटी पर चीन हमले के बाद अपनी सुरक्षा तैयारियाँ तेज और सुदृढ़ करने के साथ उसे हिन्द-प्रशान्त क्षेत्र में टक्कर देने को अमेरिका, आस्टेªलिया, जापान, भारत ने मिलकर ‘क्वाड’को मजबूत किया है। इसके साथ ही एशियान मुल्कों को भी एकजुट करने का प्रयास कर रहा है। भारत ने चीन के कई ऐप बन्द करने और उसकी कम्पनियों में निवेश सीमित करने के साथ-साथ आयात घटाने में जुटा है।भारत ने ताइवान से व्यापारिक सम्बन्ध स्थापित किये हुए हैं, लेकिन उसके इन कदमों का चीन पर अभी अपेक्षित असर नहीं पड़ा है।वह अब भी भारत को प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष तरीकों से धमकाने/डराने से बाज नहीं आ रहा है।
ऐसे में भारत को चीन के चालों का उसी के तरीकों से प्रत्युत्तर देना अब बहुत जरूरी हो गया। उसे स्वयं को सैन्य और आर्थिक रूप से पहले से मजबूत बनाना होगा। उसके साथ व्यापारिक सम्बन्ध भी अत्यन्त सीमित करने होंगे। भारत को चीन की एक राष्ट्र वाले सिद्धान्त नीति मानने पर पुनर्विचार करने के साथ-साथ विश्वभर में उसे जल,थल,नभ में घेरने की भी आवश्यकता है।
सम्पर्क- डाॅ.बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003 मो.नम्बर-9411684054
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