राजनीति

नगालैण्ड के गोलीबारी काण्ड पर ओछी राजनीति

डाॅ.बचनसिंह सिकरवार
गत दिनों नगालैण्ड में उग्रवादी होने के धोखे में सुरक्षा बलों की गोलीबारी में 6 श्रमिकों और बाद में श्रमिकों परिजनों और दूसरे ग्रामीणों द्वारा सुरक्षा बलों के वाहनों के जलाने,उन पर हमला करने पर सुरक्षा बलों द्वारा आत्मरक्षा में रक्षा में चलायी गोलियों में 7 लोगों के मारे जाने तथा 11 अन्य के घायल होने के साथ-साथ एक जवान के शहीद होने तथा कुछ दूसरे जवानों गम्भीर रूप से आहत होने की घटना अत्यन्त गम्भीर और दुःखद है। गोलीबारी और इसके बाद घटनाओं पर खेद जताते हुए कोर्ट आॅफ इन्क्वारी का आदेश दे दिया। इस घटना पर प्रधानमंत्री ,गृहमंत्री, रक्षामंत्री सहित गहन शोक व्यक्त किया है और घटना की जाँच के आदेश पारित किये हैं। नगालैण्ड के मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो ने दुःख जताते हुए उच्च स्तरीय जाँच कराने का वादा किया है। नगालैण्ड सरकार ने भी भड़काऊ गतिविधियों को रोकने लिए राज्य में शान्ति इण्टरनेट सेवा पर प्रतिबन्ध लगा दिया। लेकिन इस घटना पर मुख्य विपक्षी राजनीतिक दल काँग्रेस समेत दूसरे राजनीतिक दलों ने जिस तरह की ओछी राजनीति की वह बहुत ही शर्मनाक है,जबकि ये सभी इस तथ्य और सत्य से भली भाँति परिचित हैं कि नगालैण्ड सुरक्षा की दृष्टि से कितना संवेदनशील राज्य है? यह राज्य सालों से अशान्त हैं और उग्रवादियों की गतिविधियों का केन्द्र बना हुआ है। इस कारण सन्1958 से ‘सशस्त्र विशेष सुरक्षा अधिनियम(अफस्पा) लागू है,ताकि उग्रवादियों की देश विरोधी गतिविधियों को नियंत्रित किया जा सके। फिर भी काँग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गाँधी उक्त दुःखद और भ्रमवश हुई घटना पर राजनीतिक करने से बाज नहीं आए।उन्होंने से सरकार से पूछा कि अब नागरिक और यहाँ तक कि सुरक्षा कर्मी भी अपने देश में सुरक्षित नहीं हैं तो गृहमंत्रालय क्या कर रहा है? ऐसे में भला देश विरोधी एजेण्डा चलाने वाली सियासी पार्टियों कैसे चुप रहतीं। मजहबी और विभाजनकारी सियासत करने वाले असददुदीन ओवैसी की पार्टी ‘आल इण्डिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन(एआइएमआइएम) और पाक परस्त, इस्लामिक कट्टरपन्थी जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री और पीडीपी की अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती ने परोक्ष रूप से नगालैण्ड से अफस्पा हटाने की माँग करते हुए सुरक्षा बलों पर जानबूझकर हत्या करने इल्जाम लगाते हुए उन्हें बदनाम करने की कोशिश की है। केन्द्र सरकार द्वारा लोकसभा में केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह द्वारा घटना की पूरी जानकारी दिये जाने का भरोसा दिलाने के बाद भी विरोधी सियासी पार्टियों ने जैसा उत्पात मचायाा उसे भी किसी भी दृष्टि सही नहीं माना जा सकता।
इधर नगालैण्ड के मंत्रिमण्डल ने केन्द्र से ‘सशस्त्र बल विशेषाधिकार सुरक्षा अधिनियम(अफस्पा) को निरस्त करने की माँग करने को लेकर बैठक की। इस अधिनियम निरस्त करने की माँग संसद में भी उठायी गई। नेशनल पीपुल्स पार्टी(एनपीपी) की सांसद एवं संयुक्त प्रगतिशील गठबन्धन (संप्रग) सरकार में मंत्री रह चुकीं अगाथा संगमा ने कहा कि यह एक ऐसा बड़ा मुद्दा है,जिससे हर कोई अवगत है,लेकिन इसकी अनदेखी की जा रही। है।इस मुद्दे पर हर कोई चर्चा करने में असहज अनुभव करता है।उन्होंने कहा कि इसका समाधान करने की आवश्कता है। एनपीपी की नेता ने पूर्वोत्तर में पहलीे की कुछ घटनाओं का उल्लेख किया और कहा कि कई नेताओं ने यह मुद्दा उठाया है। अब समय आ गया है कि अफस्पा को हटाया जाए। नगालैण्ड में उग्रवाद शुरू होने के बाद सशस्त्र बलों को को गिरफ्तारी और हिरासत में लेने की शक्तियाँ देने के लिए अफस्पा सन् 1958 में लागू किया गया था। आलोचकों का यह कहना रहा है कि यह विवादास्पद कानून उग्रवाद को नियंत्रित करने में विफल रहा है, सशस्त्र बलों को पूरी छूट दी गई है,कभी-कभी मानवाधिकारों का हनन तक किया जाता है। संगमा ने कहा कि नगालैण्ड में 14आम नागरिकों की हत्या ने ‘मालोम नरसंहार’ की याद दिला दी,जिसमें इम्फाल/मणिपुर में 10से अधिक आम नागरिकों की गोली मार कर हत्या कर दी गई थी तथा इस वजह से 28वर्षीय इरोम शर्मिला को 16साल लम्बे अनशन पर रहना पड़ा। लेकिन यहाँ यह भी बताना जरूरी है कि सन् 2015 में नगा उग्रवादियों ने घात लगाकर मणिपुर में भारतीय सेना के 18सैनिकों को मार दिया ,तब पूरा देश स्तब्ध रहा गया था। उस समय तत्कालीन लेफ्टिनेण्ट जनरल विपिन रावत की नेतृत्व में रणनीति बना कर पड़ोसी देश म्यांमार की सीमा में घुसकर सर्जीकल स्ट्राइक कर वहाँ स्थित उनके शिविर का ध्वस्त कर दिया, जिसमें 60नगा उग्रवादी मारे गए थे। अब नगालैण्ड मंत्रिमण्डल ने मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो के नेतृत्व में मंगलवार 7दिसम्बर को आपात बैठक की और हत्याकाण्ड के विरोध में हाॅर्नबिल उत्सव को समाप्त करने का निर्णय किया।

अब जहाँ तक इस घटना की बात है तो गत 4दिसम्बर,शाम को पहली घटना ओटिंग और तिरु गाँवों के बीच हुई। सुरक्षा बलों को गुप्तचरों से सूचना मिली थी कि इस मार्ग से एक पिकअप वैन से प्रतिबन्धित उग्रवादी संगठन ‘नेशनल सोशलिस्ट काउसिंल आॅफ नगालैण्ड-के (एनएससीएन-के) उग्रवादियों के दल के सदस्य गजरेंगे। संयोग से उसी तरह की पिकअप वैन में दिहाड़ी मजदूर कोयला खदान से अपने घरों को लौट रहे थे। सुरक्षा बलों ने उन्हें गलती से उग्रवादी समझ लिया,क्योंकि उनकी वैन को जब उन्होंने रोकने के संकेत दिये, तब उस वैन के चालक ने रुकने के बजाय उसे तेजी से भगाया। इस कारण सुरक्षा बलों ने उस पर गोलीबारी कर दी। इसमें 6श्रमिक मारे गए। जब ये श्रमिक अपने घरों पर नहीं पहुँचे,तो उन्हें खोजने निकले ग्रामीणों ने सुरक्षा बलों पर हमला कर दिया। उनके वाहनों में आग लगा दी। तब उन्हें आत्मरक्षा में गोली चलानी पड़ी। इसके बाद 5दिसम्बर को दोपहर बाद क्रुद्ध भीड़ ने कोन्यक यूनियन के कार्यालय और असम राइफल्स के शिविर पर हमला कर दिया। तोड़फोड़ के बाद आग लगा दी।सुरक्षा बलों को एक बार फिर आत्मरक्षा में गोली चलानी पड़ी। इसमें एक व्यक्ति मारा गया।
14श्रमिकों की मौत के बाद बड़ा सवाल उठ रहा है कि इस घटना का कारण क्या रहा है कि जिस मोन जिले में यह घटना हुई ,वह इतना संवेदनशील क्यों हैं। ऐसा क्या है कि मोन में कि सुरक्षाबल और एजेन्सियाँ अतिरिक्त सतर्कता के साथ यहाँ करती हैं। देश के पूर्वोत्तर में स्थित नगालैण्ड लम्बे समय से उग्रवादी गतिविधियों से प्रभावित रहा है। राज्य के सबसे उत्तरी इलाके में स्थित मोन जिला अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण काफी संवेदनशील माना जाता है। मोन जिला प्रतिबन्धित संगठन ‘नेशनल सोशलिस्ट काउसिंल आॅफ नगालैण्ड-के (एनएससीएन-के)का गढ़ माना जाता है। इस क्षेत्र में युनाइटेड लिबरेशन फ्रण्ट आॅफ असम (उल्फा)का भी असर है। ये उग्रवादी अपनी समानान्तर सरकार चलाते हुए अवैध धन वसूलते हैं और देश की सुरक्षा व्यवस्था को खतरा पैदा करते हैं। इन्हें अपना संगठन चलाने के लिए चीन,पाकिस्तान समेत दूसरे देशों से धन,हथियार, प्रशिक्षण, बुरे समय आसरा मिलता है। दक्षिण-पूर्व में मोन जिला पड़ोसी देश म्यांमार(बर्मा) से सटा हुआ है। इसी कारण यह उग्रवादी गतिविधियों और मूवमेण्ट के दृष्टि से अति संवेदनशील क्षेत्र माना जाता है। उत्तर में इसी सीमा असम और उत्तर-पूर्व में अरुणाचल प्रदेश से लगती हैं। असम भी बहुत समय तक हिंसक गतिविधियों से प्रभावित रहा है। रविवार 5 दिसम्बर, 2021 की घटना के पीछे कारण बताया जा रहा है कि प्रतिबन्धित संगठन के सदस्यों के गुजरने की सूचना सुरक्षा बलों को मिली थी। क्षेत्रफल के नजरिये से मोन, नगालैण्ड का तीसरा सबसे बड़ा जिला है। इसकी आबादी करीब ढाई लाख है जिसमें अधिकांश आदिवासी हैं।
इस घटनाक्रम को गहना से जानने के लिए नगालैण्ड के बारे में जानना जरूरी है। नगालैण्ड राज्य असम की ब्रह्मपुत्र घाटी और म्यांमार/बर्मा के बीच पहाड़ी इलाके की संकरी पट्टी में बसा हुआ है। इसके पूर्व में म्यांमार की अन्तर्राष्ट्रीय सीमा भारत से मिलती है। इसके दक्षिण में मणिपुर,उत्तर और पश्चिम में असम और पूर्वोत्तर में अरुणाचल प्रदेश है। तराई के कुछ भागों को छोड़कर सारा राज्य पहाड़ी है। सबसे ऊँची चोटी सारामती 3841मीटर ऊँची है और राजधानी कोहिमा समुद्रतल से 1444मीटर की ऊँचाई पर है।इस राज्य में बहने वाली मुख्य नदियाँ धनश्री, दोयांग, विखु और झांजी हैं। नगालैण्ड की लगभग सारी जनसंख्या कबीलाई है। नगाओं के कई अलग-अलग कबीले ओर उप कबीले हैं जिनकी अपनी पृथक-पृथक भाषाएँ और सांस्कृतिक विशेषताएँ हैं। यहाँ के लोगों की जातियाँ उनके पहनावे और गहनों से पहचानी जा सकती हैं। नगालैण्ड राज्य में असम का पूर्व नगा हिल्स जिला और पूर्वाेत्तर सीमान्त एजेन्सी का पूर्व त्वेनसांग सीमान्त डिवीजन सम्मिलित हैं। सन् 1957 में इसे केन्द्र शासित प्रदेश बना दिया गया,जिसका शासन राष्ट्रपति असम के राज्यपाल के माध्यम से करते थे । जनवरी,सन् 1961 में भारत सरकार ने नगालैण्ड का दर्जा प्रदान कर दिया। पहली दिसम्बर , 1963को नगालैण्ड राज्य विधिवत उद्घाटन हुआ। इस राज्य में एक सदन वाला विधानमण्डल है अर्थात् विधानसभा है। वर्तमान में इस राज्य की कुल जनसंख्या 87.93प्रतिशत ईसाई हैं। इसके 11जिले-दीमापुर, कोहिमा, फेके,मोकोकचंुग, मोन, त्वेनसांग,चोखा, जुन्हेबोटो, किफिरे, लांगलेंग, पेरेन। राजधानी -कोहिमा है। इस राज्य का क्षेत्रफल- 16.579वर्ग किलोमीटर है और यहाँ के लोग भअँग्रेजी, आओ,कुकी, कोयक, आंगामी,सेमा और लोथ आदि भाषाएँ बोलते है। नगालैण्ड का राज्य पशु- भैंसा/मिथुन और राज्य का पक्षी-ब्लीच ट्रैगोपान है।
ऐसी विषम स्थिति में केन्द्र सरकार के समक्ष नगालैण्ड की जनता को न्याय दिलाने और क्षतिपूर्ति करने के लिए तत्परता से कदम उठाने होंगे। इसके साथ राज्य सरकार को विश्वास में लेते हुए अफस्पा की उपयोगिता/आवश्यकता की सम्यक् समीक्षा करते हुए उसे लागू रखने या हटाने का निर्णय भी शीघ्र लेना होगा,ताकि राज्य में फिर से शीघ्र शान्ति व्यवस्था स्थापित हो सके और विपक्षी राजनीतिक दलों को भी केन्द्र और राज्य सरकारों के निर्णयों पर प्रश्न उठाने का अवसर न मिले। सम्पर्क-डाॅ.बचनसिंह सिकरवार, 63ब गाँधी नगर,आगरा-282003मो.नम्बर-9411684054

 

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