डॉ.बचन सिंह सिकरवार

जब से सुरभि ने टी.वी. पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा देश में ‘लॉकडाउन’ करने की घोषणा का समाचार सुना, तभी से अचानक बगैर बुलाए मेहमान की तरह आ गई, इस भयावह विकट समस्या के बारे में सोच-सोच कर वह विचलित और बेचैन हो गई। उसे लगातार यह डर सता रहा था कि अब उसकी पहले जैसी दिनचर्या कैसे चलेगी ? चन्दा नहीं आएगी, तो घर के काम कैसे होंगे ? उसकी इस मनोदशा को पास में बैठे उसके पति हेमन्त ने तत्काल भांप लिया। फिर वह गौर से सुरभि के चेहरे पर आ रहे भावों को पढ़ने लगे। जब उन्होंने उसे बहुत अधिक विचलित और व्यथित होते देखा, तब हेमन्त से रहा न गया। उसने सुरभि से पूछा,‘‘ क्या बात है,जो इतनी आकुल-व्याकुल-सी दिखायी दे रही हो?’’
‘‘अब हम लोग ऐसे कैसे रहेंगे?’’ सुरभि ने व्यथित स्वर में कहा
हेमन्त ने सुरभि का हाथ अपने हाथ में लेकर कह कर ढांढस बँधाते हुए कहा ,‘‘डोण्ट वरी, हम जैसे रह रहे थे, वैसे ही रहेंगे।’’
फिर उसने देर तक सुरभि के सिर पर धीरे -धीरे हाथ फेरते हुए उसकी कई बार पीठ थपथायी।
फिर भी सुरभि की उद्विग्नता में कोई विशेष कमी नहीं आयी।
हेमन्त ने फिर से उसे समझाते हुए कहा, ‘‘सुरभि ! लॉकडाउन की घोषणा सरकार ने मजबूरी में की है, तुम्हें तो मालूम है कि चीन के वुहान शहर पैदा हुए और फैले कोरोना विषाणु से उत्पन्न इस महामारी ने देखते-देखते अब पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले लिया है।’’
‘‘मुझे मालूम है, फिर भी सरकार ने ऐसा क्यों किया? सरकार को सभी लोगों का ख्याल रहना चाहिए था।’’ सुरभि ने गुस्से में हेमन्त का हाथ झटकाते हुए कहा।
हेमन्त ने फिर उसे शान्त करने की कोशिश करते हुए,‘‘ देखो, सुरभि! इस महामारी से अपने लोगों के जीवन को बचाने के लिए वैसे तो भारत ने बहुत पहले से ही सर्तकता-सावधानी बरतनी शुरु कर दी थी। लेकिन दूसरे देशो से कोरोना संक्रमित लोगों के लौटने से यह महामारी किस तरह से देश के विभिन्न राज्यों में अपने पाँव पसारने लगी है, यह भी तुम्हें पता है ?’’
सुरभि ने सहमति में अपना सिर हिलाया।
लेकिन अगले पल फिर तमकते हुए कहा,‘‘पर हेमन्त ! सरकार को हम जैसे लोगों को ख्याल तो हर हाल में रखना चाहिए था, जिनके बच्चे उनके पास में नहीं रहते हैं,जो अपने काम भी खुद नहीं कर सकते ?’’
‘‘कैसा ख्याल ?’’ हेमन्त ने चौंकते हुए कहा।
इस पर सुरभि ने अपनी नाराजगी जताते हुए कहा‘‘यही है कि हम अब कैसे रहेंगे ?’ तब हेमन्त ने गुस्से में तेज आवाज में सुरभि से प्रति प्रश्न करते हुए कहा, ‘‘ तुम्हारे जैसे लोगों के ख्याल के लिए, क्या सरकार अपने लोगों को मरने के लिए यों ही छोड़ देती ?’’
सुरभि हेमन्त के उग्र रूप और ऊँचे स्वर का सुनकर घबरा गई। उसकी बोलती बन्द हो गई।
लेकिन हेमन्त ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा,‘‘ सरकार को जो सेवाएँ जरूरी लगीं, उनमें में छूट दी गई है। यही कारण है कि इस दौरान केवल चिकित्सको, चिकित्सा, पुलिस, सफाई कर्मियों आदि को छोड़कर सभी लोगों के अपने घरों से बाहर निकलने पर रोक लगा दी है। प्रधानमंत्री मोदी के इस फैसले से हमें खुश होना चाहिए, जिन्हें हम सभी के प्राणों का बचाने की इतनी चिन्ता है। यह कह कर हेमन्त ने फिर सुरभि को छेड़ते हुए माहौल बदलने की कोशिश की।
इतना सुनने के बाद भी सुरभि के चेहरे पर छाई निराशा और हताशा कम होने का नाम नहीं ले रही थी। लेकिन हेमन्त ने उसे दिलासा देने की कोशिश जारी रखते हुए फिर कहा,‘‘फिर जीवन में आयी हर मुसीबत हमें उससे जूझने और पार पाने का तरीका भी सिखाती है। वह हमारे धैर्य, साहस और उससे सामना करने की क्षमता भी परखती है।’’
लेकिन इससे सुरभि पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता दिखायी नहीं दे रहा था। वह हेमन्त की बातों पर गौर करने के बजाय खिड़की से बाहर खाली सड़क को निहार रही थी, जहाँ कल तक लोगों और वाहनों के आवागमन के कारण होने वाले शोर से परेशान होकर उसे न चाहते हुए अक्सर खिड़की बन्द करनी पड़ती थी।
जब घर में दो लोग हों,उनमें से भी एक उदासी ओढ़कर बैठ जाए,तो दूसरा की चिन्ता बढ़ जाना स्वाभाविक था। इसलिए हेमन्त बराबर सुरभि को उसकी हिम्मत बढ़ाने और समझाने में जुटा रहा।
उसने फिर कहा,‘‘तुम देखना ,सुरभि! जिस तरह से जीवन में अब तक आयीं विभिन्न कठिनाइयों से जूझकर हम लोग यहाँ तक पहुँेचे हैं, उसी तरह से इस मुसीबत पर भी पार पा करके दिखायेंगे। अब बस तुम हौसला बनाए रखो। मेरा विश्वास करो, जो होगा, वह अच्छा ही होगा।’’
लेकिन हेमन्त के इतने सारी बातें कहने के बाद भी सुरभि पूरी तरह से आश्वस्त नहीं हुई।
इस बीच उसके मन में रह-रह कर तरह-तरह के विचार आते-जाते रहे। फिर न जाने कब उसकी आँख लगी गई, यह बात उसे ही नहीं, हेमन्त को भी पता नहीं चली, जो उसके पास बिस्तर पर लेटे रूसी लेखक डी.जी.जातूला एस.ए.मामेदेवा की पुस्तक ‘वायरस-फ्रेण्ड और एनमि‘( विषाणु-मित्र या शत्रु ) का हिन्दी अनुवाद पढ़ रहे थे, ताकि विषाणुओं के बारे में विस्तार से जान सकें।
वैसे भी जब से कोरोना विषाणु से महामारी फैली है, तब से ही हेमन्त विषाणुओं के बारे में जानने की जिज्ञासा बढ़ गई थी। हालाँकि हेमन्त ने वनस्पति शास्त्र में एम.एससी.की थी, पर तब उसकी इस विनाशकारी शक्ति के बारे में इतनी गहरी से जानकारी नहीं थी। उसके मस्तिष्क मंे यह विचार बार-बार कौंध रहा था कि जो देश आज अपनी वैज्ञानिक और तकनीकी उपलब्धियों के माध्यम से प्राकृतिक पर विजय पाने का अहंकार कर रहे थे, आज उसी प्रकृति ने नंगी आँखें, तो क्या सामान्य सूक्ष्मदर्शी से भी दिखायी न पड़ने वाले एक विषाणु ने चीन, अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रान्स, इटली, स्पेन आदि विकसित देशों को अपने आगे घुटने टेकने को मजबूर कर दिया है। अपने दुश्मन से लड़ने के लिए इन्होंने बड़े-बड़े परमाणु बम, अन्तरमहाद्वीपीय प्रक्षेपास्त्र और न जाने कौन-कौन से हथियार बनाए हुए हैं, पर कोरोना के इलाज का न इनके पास कोई टीका और न दवा ही। फिर भी ये कैसे स्वयं को विश्व का भाग्य विधाता और सर्वशक्तिमान समझ बैठे है? धिक्कार इन्हें।
हेमन्त ने अपने मस्तिष्क में उमड़-घुमड़ रहे इन विचारों से छुटकारा पाने को आँखें बन्द कर ली,पर उनका सिलसिला पहले जैसा ही बना रहा। वह सोचा रहा था कि यह किसी विडम्बना है कि इन विकसित देशों के धनी लोग जो अपनी धन-सम्पत्ति से दुनिया की हर चीज खरीदने की हैसियत रखते हैं, पर उस दौलत से खुद और अपनों की जिन्दगियाँ भी नहीं बचा पा रहे हैं। अपने देश समेत दुनिया के दूसरे देशों के धनी लोग उनके यहाँ अपनी लाइलाज बीमारियों का इलाज कराने जाते हैं, वे मुल्क आज कोरोना से बीमार हुए लोगों का इलाज नहीं कर पा रहे हैं। ऐसे में यह कहें, तो कुछ गलत न होगा कि कोरोना महामारी के जरिए प्रकृति ने आदमी को उसकी हैसियत समझा दी है, जो खुद को इस दुनिया का खुदा समझने की भूल कर रहा था।
सुबह हुई तो सुरभि ने हर रोज की तरह चाय बनायी। फिर पलंग पर लेटे-लेटे अखबार पढ़ रहे अपने पति हेमन्त को एक कप चाय देकर स्वयं बालकनी में पड़ी कुर्सी पर बैठकर चाय पीने लगी। कुछ देर बाद वह चाय के दोनों कप उठाकर वॉश बेसिन में रख आयी। कुछ देर बाद जब हेमन्त अपनी चाय समाप्त करने के बाद शौच को चले गए, तो उसने भी देश और दुनिया भर में फैली कोरोना महामारी से सम्बन्धित खबरें जानने के लिए हेमन्त की मेज पर रखे अखबार को उठा कर पढ़ने लगी। उसमें देश के लगभग सभी राज्यों में कोरोना से संक्रमित होने और उससे तमाम लोगों के मरने की खबरों से भरी पड़ी थीं। अखबार में मुम्बई, अहमदाबाद, सूरत, दिल्ली, कोलकाता जैसे बड़े शहरों से हजारों की संख्या मंे मजदूरों के भूखे-प्यासे पैदल ही अपने गाँवों को लौटने की खबरें तथा तस्वीरों देखकर उसका मन दुःख और विषाद से भर गया।
सुरभि ने मन ही मन कहा , ‘‘देश में लोग कितने परेशान हैं ? फिर भी उनके चेहरों से नाउम्मीदी नजर नहीं आ रही है, उनकी तुलना में हमारी समस्या तो कुछ भी नहीं है।’’
फिर उसकी नजर कोरोना महामारी से बचाव को लेकर सरकार द्वारा प्रकाशित विज्ञापन पड़ी, जिसमें इस महामारी से बचने से जुड़ी सावधानियों और उससे बचाव के तरीके लिखे थे। इनमें शारीरिक दूरी यानी फिजीकल डिस्टेंसिंग पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता बतायी गयी थी। सुरभि को अचानक ख्याल आया कि आज तो चन्दा काम करने नहीं आएगी, वह कल ही कह गयी थी कि मेम साहब! पुलिस वाले उसके मुहल्लें में कल से अपने घरों से निकलने नहीं देने की हिदायत दे गए हैं।
सुरभि के सामने चन्दा का बेबसी भर चेहरा बार-बार सामने आ रहा था। जब उसने लाचारी भरे लहजे में कहा,‘‘ फिर मेम साहब ! मैं जिस इलाकों में रहती हूँ, वह तो लोग इस बीमारी से बचने के लिए अब जो बातें बतायी जा रही हैं, वैसा वहाँ कुछ कर नहीं रहे हैं।’’
इस सुरभि ने कहा,‘फिर लोगों को बचाव के लिए कुछ तो करना ही चाहिए?’’
‘‘क्या करना चाहिए ? मेम साहब! चन्दा ने प्रति प्रश्न करते हुए कहा
इस पर सुरभि ने सवाल किया, ‘‘अपनी जान बचाना तो बहुत जरूरी होता?’’
‘‘हाँ’’,सही कहा अपने, मेम साहब! चन्दा ने आवेश में आकर कहा
सुरभि कुछ जवाब देती। उससे पहले चन्दा फिर बोल पड़ी। ‘‘मेम साहब! आप हम जैसे लोगों की मजबूरियाँ नहीं समझतीं।इसलिए कह रही हैं।’’
इस सुरभि ने कहा ,‘‘तुम्हारा यह कहना ठीक है कि मैं तुम लोगों की परेशानी के बारे कुछ ज्यादा नहीं जानती। बस ,मेरी समझ में जो आया ,वह तुमसे कह दिया।’’
तब चन्दा ने दर्द भरी आवाज में कहा,‘‘नहीं, मेम साहब! हर आदमी को अपनी जिन्दगी प्यारी है,लेकिन सच्चाई यह है कि यह सब करने की हम लोग हालत में ही नहीं है‘ं’।
तब सुरभि ने चन्दा से कहा,‘‘मेरा इरादा तुम्हारा दिल दुखाने का नहीं था, बस अपना समझ कर ,जो दिल में आया वह कह दिया।’’
‘‘मेम साहब! सरकार ने हम लोगों से घर न निकलने को तो कह दिया है,पर क्या हम अपने घरों में सुरक्षित रह पाएँगे?फिर बगैर काम के क्या खाएँगे?’’
तब सुरभि ने कहा, ‘‘क्यों? फिर सरकार ने तो कुछ सोच-विचार कर ही यह आदेश जारी किया होगा?’’
इस पर चन्दा गुस्से में जो कुछ कहा था। सुरभि को उसकी पीड़ा दिल में गहरे तक उतर गई।
उसके शब्द सुरभि के कानों में अब तक गूँज रहे थे, ‘‘मेम साहब! हम जैसे लोगों के बारे में न आप कुछ जानती है और न सरकार ही। क्या उसे नहीं पता कि हम जैसे लोग छोटे-छोटे घरों के बहुत ही छोटे-छोटे कमरों में कई -कई लोग एक साथ रहते हैं। बस्ती और उसके आसपास का माहौल भी अच्छा नहीं है।’’
सुरभि कुछ कहती। उसे पहले चन्दा बोल पड़ी,‘‘ मेम साहब!मेरा छोटा बेटा शानू बता रहा था कि उसके स्कूल मास्टर साहब बता रहे थे कि कोरोना छूत की बीमारी है, जो किसी को दिखायी भी नहीं देती। ऊपर से उसका न कोई टीका और न दवा ही।’’
मेम साहब! शानू कह रहा था कि इस बीमारी से तो दुनिया के सबसे बड़े देश अमेरिका भी अपने लोगों को नहीं बचा पा रहा है। इसलिए मेम साहब! मेरी वजह से किसी को यह बीमारी लग जाए, ऐसा मैं नहीं चाहती। कोरोना विषाणु से फैली इस महामारी के बारे में इतनी जानकारी चन्दा होगी, यह सुरभि के कल्पना के बाहर की बात थी। लेकिन यहाँ जीवन-मरण का प्रश्न था। इसलिए चन्दा के कल से काम पर न आने के बात कहने पर उसने चुप रहने में भलाई समझी। लेकिन अब उसे ही घर के झाडू-पोंछे, बर्तन साफ करने समेत नाश्ता, खाना सभी कुछ बनाना है, जो उसने बचपन से कभी किये़ ही नहीं थे। हालाँकि उसकी माँ सावित्री अक्सर कहा करती थीं कि साधन सम्पन्न होने के ये माने नहीं हैं, हम अपने सारे कार्य दूसरों से करायें और स्वयं अकर्मण्य बने रहे। पता नहीं, कब कैसा वक्त आ जाए ? सीता,कुन्ती द्रौपदी, तारामती, दमयन्ती सभी राजकुमारियाँ थीं, पर समय आने उन्हें न केवल वन-वन भटकना पड़ा, बल्कि स्वयं दूसरों के यहाँ सेवक बनने को भी विवश होना पड़ा, लेकिन माँ की इस सीख की मैं अनसुनी ही करती रही। आज उसे बचपन में माँ की कहीं ये सारी बातें एक-एक याद आ रही थीं।
कुछ देर बाद सुरभि ने झाडू उठायी और बालकनी और ड्राइंग रूम में जैसे-तैसे झाड़ू लगायी, इतने से ही उसके हाथ और कमर में दर्द होने लगा और पसीने से नहा गई। उसने रसोईघर, दूसरे कमरों की सफाई का विचार ही त्याग दिया। इसके बाद सुरभि नाश्ता बनाने पर विचार करने लगी। लेकिन उसे तो कुछ पकाना ही नहीं आता था। फिर उसने सोचा आज तो ब्रेड सेक लेते है, उस पर थोड़ा मक्खन लगाकर नमक ही तो छिड़कना होता, इतना तो वह कर ही लेगी ? उसने गैस जलाई। फिर टोस्टर मंे ब्रेड फसाकर उन्हें सेकने लगी, पर वह भी कुछ जल गईं। आज उसे अपने पर शर्म आ रही थी कि ऐसी जली हुई ब्रेड क्या हेमन्त खा पाएँगे ? लेकिन अब विकल्प ही क्या था ? तब तक हेमन्त भी आ गए। उन्होंने प्लेट में रखी ब्रेडों पर नजर डालते हुए सुरभि से कहा, परेशान होने की जरूरत नहीं, लॉकडाउन की वजह से सही तुम्हारी कुछ पकाने की शुरुआत तो हुई। उसके बाद हेमन्त ने खुशी-खुशी से उन जली हुई ब्रेडों को चाय के साथ खा लिया। यह देखकर सुरभि को सन्तोष हुआ। इसके बाद सुरभि नहाने चली गई और पूजा करने बैठ गई। उसके बाद सुरभि को ध्यान आया कि उसने कपड़े तो बाथरूम में बिना धोए ही छोड़ दिये है। अब उन्हें कौन धोएगा ? तब तक हेमन्त आ गए। उन्होंने सुरभि को देखते हुए कहा, ‘‘अब किस दुविधा में पड़ गईं?
तब सुरभि ने झेंपते हुए कहा,‘कुछ भी तो नहीं’।
‘कुछ तो हैं?’ हेमन्त ने पूछा
फिर हेमन्त ने कहा, ‘तुम तो नहा लीं, मैं भी नहा आऊँ।’
उसके बाद वह नहाने चले गए।
बाथरूम में हेमन्त ने सुरभि के वस्त्र बिना धुले देखकर उसकी परेशानी समझ आ गई।
हेमन्त ने नहाने के बाद अपने और सुरभि के कपड़े भी बाल्टी में थोड़ा साबुन का पाउडर डालकर रख दिये।
जब हेमन्त नहाकर निकल आया, तो सुरभि को हेमन्त ने कपड़े धोए या नहीं, यह देखने की इच्छा प्रबल हो गई।
जब वह बाथरूम में गई, तो यह देखकर खुश हुई कि हेमन्त ने कपड़े साफ करने का रास्ता निकाल लिया है।
उसके बाद सुरभि विचार करने लगी कि वह दोपहर में ऐसा क्या खाने को बनाया जाए, जो थोड़ा इधर-उधर से पूछ कर बनाया जा सके। इस बीच उसे ध्यान आया कि अब बेटी इंजीनियर ऐश्वर्या से बात कर ली जाए। उसकी बेटी ऐश्वर्या एम.सी.ए.करने बाद पिछले तीन साल से बैंगलूरु की एक मल्टीनेशनल आइ.टी.कम्पनी में कार्यरत है।
सुरभि ने ऐश्वर्या से सामान्य हालचाल पूछे। वैसे इसके पीछे असल इरादा तो उससे खाने की व्यवस्था के बारे में पता करना था, क्यों कि उसे भी खाना बनाने की सीखने की आवश्कता नहीं थी। इसके कारण ही सुरभि अब स्वयं परेशान है। लेकिन जब ऐश्वर्या ने यह बताया,‘‘ मम्मी! मेरे साथ रहने वाली राधिका ने मेरे लिए खाना बनाने की जिम्मेदारी ले ली है, इसलिए आपको मेरी चिन्ता करने की आवश्यकता नहीं है।’’ यह जानकार सुरभि को संतोष की सांस ली। सुरभि स्वयं से बात करते हुए कहने लगी,‘‘ चलो, राधिका तमिलनाडु के कोयम्बटूर की रहने वाली होने के कारण वह उत्तर भारतीयों की रोटियाँ भले ही न बनना जानती हो, पर कम से कम वह ऐश्वर्या को भूखा नहीं रहने देगी।’’
इस बीच सुरभि को ख्याल आया कि क्यों न खाने की रेसपीज जानने के लिए इण्टरनेट की मदद ली जाए ?
इसके बाद वह मोबाइल लेकर रेसपियाँ देखने लगी, पर भारी भरकम प्रक्रियाएँ देखकर उन्हें बनाने की हिम्मत नहीं जुटा पायी। आखिर में उसने विचार किया कि विनीता जिस किसी दिन ऑफिस से देर से आती थी, तो खिचड़ी बना लेती थी। उसका कहना होता था कि इसमें न ज्यादा मेहनत लगती है न ही कुछ सोचना ही पड़ता। इसके बाद सुरभि ने फिर इण्टरनेट खंगलना शुरू किया, ताकि वह खिचड़ी बना सके।
इसके बाद उसने रसोई में चावल, मंूग की छिलका दाल और नमक तलाशा, क्यों कि ये सभी कहाँ रखे होते हैं, यह जानने की उसे जीवनभर कभी जरूरत ही नहीं पड़ी थी और उसने भी जानने की जरूरत ही समझी?
सुरभि ने जैसे-तैसे खिचड़ी बना ली, पर नमक का सही अन्दाज न होने की वजह से अधिक पड़ गया, पर जब इस बार भी हेमन्त ने उसे खुशी-खुशी खा लिया। तब अपनी इस सफलता पर सुरभि मन ही मन खुश भी हुई । इसके बाद उसे अपने पर यह भरोसा तो होने लगा कि किसी न किसी तरह वह कुछ न कुछ तो खाने को बना ही लेगी। फिर सुरभि सोचने लगी कि चन्दा से सब्जी या दाल में जब कभी जरा भी कमी हो जाती थी, तब वह उसे कितना सुनाती थी, जबकि उसके खाने की सभी मेहमान बहुत तारीफ ही करके जाते थे। चन्दा सुबह से रात हर काम बगैर कुछ कहे, अपने मन से करती रहती थी और कभी आलस नहीं दिखाती थी, यह सोच कर सुरभि को अब चन्दा की अहमियत समझ आ रही थी। फिर अचानक हेमन्त के बदले बर्ताव के बारे में विचार करने लगी, क्यों कि उसने न तो नाश्ते में जली ब्रेडों को लेकर कुछ कहा और न खिचड़ी में नमक ज्यादा होने पर। हेमन्त में आए इस बदलाव को लेकर सुरभि म नही मन बहुत खुश था,पर उसने हेमन्त पर जाहिर नहीं होने दी।
लेकिन उसकी यह खुशी ज्यादा देर बनी न रह सकी। यकायक एसी बन्द हो गया। उसने सोचा शायद एसी में कोई खराब आ गयी होगी। इसके बाद उसने कई बार एसी, टयूब लाइट, बल्व, पंखे समेत दूसरे बिजली के सभी उपकरण देख डाले, पर इनमें से कोई न चला। अब तो यह निश्चित हो गया कि बिजली ही चली है। मई माह में वैसे भी दोपहर को गर्मी अधिक पड़ती है और कल से गर्म हवा वाली लू भी चलने लगी है। ऐसे में बगैर एसी के वह और हेमन्त कैसे रह पाएँगे? लॉकडाउन से एक दिन पहले इनवर्टरें खराब हो गया था, इसलिए उसे तत्काल ठीक कराने की तब जरूरत महसूस नहीं हुई,क्योंकि वैसे भी आगरा में बिजली भी बहुत कम जाती है । वह बहुत बेचैन होकर इधर-उधर टहलने लगी, तभी हेमन्त आ गए। उन्होंने उसे सांत्वना देते हुए कहा, ‘‘क्यों खामखां में परेशान हो रही हो? शायद कुछ देर के लिए चली गई होगी, जल्दी आ जाएगी।’’
तभी सुरभि की नजर वर्मा जी के बरामदे में चल गई, जहाँ उसे पंखा चल रहा है। फिर उन्होंने देखा गुप्ता जी के कमरे से टी.वी.की भी आवाज आ रही है। यह देख कर उसने अन्दाज लगाया कि जरूर हमारी कोठी का बिजली का फ्यूज उड़ गया है। अब प्रश्न यह है कि उसे ठीक किससे करायें ? उसे और हेमन्त को तो आता नहीं था। जब कभी ऐसा हुआ, तब किसी नौकर या बिजली वाले को बुलवा कर लिया जाता था। अब लॉक डाउन में तो यह सम्भव नहीं था। तभी सुरभि की निगाह एक किशोर पर पड़ी, जो अक्सर उसकी कोठी के पास के खाली प्लाट में क्रिकेट खेलते रहते थे, जब कभी उनकी गेंद उसकी कोठी में आ जाती थी, तब उन्हें बगैर उनकी गेंद दिये डॉट कर भगा देती थी। उस समय हेमन्त सुरभि के स्वभाव को देखते हुए उन लड़कों थोड़ा डॉट कर उनकी गेंद लौटा देते थे। सुरभि को लगा कि यह लड़का जरूर बिजली का फ्यूज जोड़ना जानता होगा। अगर नहीं भी जनता होगा, तो पूछने में क्या जाता है? लेकिन सुरभि की उससे लड़के से अपने बर्ताव की वजह से यह पूछने की हिम्मत नहीं पड़ी। तभी उसे ख्याल आया कि यह काम हेमन्त उससे जरूर करा लेंगे।
सुरभि ने कुछ दूर खड़े हेमन्त से कहा ,‘‘ इस लड़के से पूछ लो, शायद यह बिजली का फ्यूज जोड़ना जानता हो ?’’ इस पर हेमन्त ने उस लड़के को इशारा कर पास बुलाया, तब वह लड़का सुरभि को देख डरते-डरते पास आकर बोला,‘‘बाबू जी! कोई गलती हो गई ?’’
‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं हैै। क्या तुम बिजली का फ्यूज जोड़ना जानते हो ?’’
इस पर उस लड़के ने कहा,‘‘ साहब! मैं तो नहीं जानता, पर मेरा दोस्त लालू जरूर जानता होगा ,क्योंकि उसके पिता जी बिजली का ही काम करते हैं।’’
फिर वह बोला,‘‘मैं अभी लालू या फिर उसके पिता जी को लेकर आता हूँ,साहब जी!’’
यह सुनकर सुरभि सन्तोष की गहरी सांस ली।
थोड़ी ही देर में वह लालू को लेकर आ गया। कोराना विषाणु महामारी की वजह से लॉक डाउन को देखते हुए उन दोनों अपने मुँह पर अंगोछा बाँधा हुआ था। लालू ने आते ही पूछा, ‘‘आपका बिजली का मीटर कहाँ है,साहब जी ?’’ हेमन्त उसे इशारा करते हुए जगह दिखाने के साथ ही फ्यूज वायर और प्लास भी दे दिया। उसके बाद वे दोनों उसे जोड़ने में जुट गए।
फ्यूज जुड़ते ही घर में बिजली आ गई। सुरभि और हेमन्त ने राहत की सांस ली। इसके बाद वे दोनों किशोर जाने लगे,तब हेमन्त ने कहा,‘रुको’। फिर पचास रुपए का नोट जेब से निकाल कर देते हुए हेमन्त ने कहा,‘‘अपना मेहनताना तो लेते जाओ।’’ इस पर लालू ने चौंकते हुए कहा, ‘‘कैसा मेहनताना,साहब जी।’’
अरे भाई! तुम लोगों ने बिजली ठीक है,उसका मेहनताना तो बनता’’ हेमन्त ने समझाते हुए जोर देकर कहा।
‘‘अरे साहब जी! ऐसी बात है तो अपने न जाने कितनी बार हमारी गेंद वापसी की। क्या आपने हमसे मेहनताना लिया? फिर अपने पड़ोसियों से मदद के बदले भले कोई मेहनताना लेता। ’’
लल्लू की ये बातें सुनकर सुरभि अचम्भित रह गई। उसे समझ न आ रहा था कि जो लड़के दस रुपए की गेंद वापस लेने के लिए कितनी मिन्नतें करते थे,वे आज पचास रुपए लेने से मना कर रहे हैं।
हेमन्त न फिर उन्हें समझाने के अन्दाज में कहा,‘‘नहीं बेटे! मैं अपनी खुशी से दे रहा हूँ, इन्हें लेने में संकोच मत करो।’’
‘हरगिज नहीं, साहब जी! आप हमें अपना पड़ोसी माने या न माने, पर हम अपने को आपका पड़ोसी जरूर समझते हैं। ऐसे में आप से मेहनताना लेने का कोई सवाल ही नहीं हैं। यह कहते हुए लल्लू का गला भरा आया फिर वे दोनों किशोर अपनी आँखों में आए आँसू पोंछते हुए बगैर मेहनताना लिए घर लौट गए।
यह देखकर सुरभि और हेमन्त हैरान रह गए। ।
उनके जाने बाद बहुत देर तक सुरभि उन दोनों के बारे में सोचती रही। उन दोनों के शब्द उसके कानों में गूँज रहे थे। उसकी गरीब लोगों को लेकर अब तकमन-मस्तिष्क बनी धारणाएँ ध्वस्त होती लगीं।
इसके बाद हेमन्त और सुरभि अपने कमरे में जाकर टी.वी.पर समाचार देखने लगे, क्योंकि कोरोना के संकट ने उनकी आराम से कट रही जिन्दगी में ऐसा भारी व्यवधान डाल दिया था, जिसकी उन दोनों ने कभी कल्पना नहीं की थी। ऊँचे सरकारी औहदों पर रहते हमेशा नौकरों की कभी कोई कमी नहीं रही। रिटायरमेण्ट के बाद भी हजारों रुपए की पेंशन के मिलते थे, उसमें भी नौकर रखे जा सकते थे और वह रख भी रहे थे। लेकिन इस महामारी ने तो उनसे नौकर भी छुड़ा दिये या उन्हें स्वयं अपने प्राणों की रक्षा के लिए उन्हें छोड़ने को विवश होना पड़ा।
शाम 5बजे सुरभि की नींद खुली, तो देखा टी.वी.अब भी चल रहा था। देश में संक्रमितों और मृतकों संख्या लगातार बढ़ रही थी। यहाँ तक अमेरिका, ब्रिटेन, स्पेन, इटली, जर्मनी आदि देशों में मृतकों को दफनाने को ताबूतों की कमी हो गई। कई देशों कब्रिस्तान में जगह कम पड़ रही थी। इस कारण दफनाने को नई जगहें तलाशी जा रही थीं। यह देख-सुन सुरभि बहुत घबरा गई। उसके बाद उसने अमेरिका के न्यूयार्क में रह रहे अपने डॉक्टर बेटे राहुल को फोन किया, जिससे वहाँ के हालचाल पता लगेंगे। राहुल ने सुरभि का बताया,‘‘ मम्मा! मुझे सामान्य दिनों की अपेक्षा आजकल कई-कई घण्टे अस्पताल में ही रहना पड़ रहा है।’’
फिर सुरभि ने बेटी ऐश्वर्या की तरह राहुल से भी खाने की समस्या जानना जरूरी समझा। ‘‘बेटे! खाने की आज का आजकल क्या चल रहा है?’’ सुरभि ने प्रश्न किया।
उत्तर में राहुल कहा,‘‘ममा! यहाँ के कैफेटेरिया और होटल बन्द हो गए। बहुत मुश्किल से पैक्ड फूड मिल रहा है, वह भी कभी अपनी पसन्द का नहीं होता। पहले तो भारतीयों द्वारा चलाए जा रहे होटलों में उसे भारतीय खाना ही नहीं, उसका मनपसन्द खाना मिला जाता था। यहाँ तक कभी भी तो वह ऑर्डर देकर अपनी पसन्द की दाल, सब्जी भी बनवा लेता, पर अब ऐसा नहीं है। ’’
‘‘फिर तो बहुत मुश्किल हो रही होगी,बेटे’’ सुरभि ने पूछा
इस पर राहुल ने कहा,‘‘ ममा! थोड़ी परेशानी तो है,लेकिन संकट भी तो ऐसा है,जिससे निपटना आसान नहीं है। वैसे मैं ब्रेड और पेक्ड सब्जियाँ गर्म कर खा कऱ रहा हूँ ।’’
यह सुनकर सुरभि बहुत दुखी हो गई। अब उसे अपनी माँ का यह कहना बार-बार याद आ रहा है कि आदमी कितना ही धनी हो जाए, उसे भोजन बनाने से लेकर आम जीवन की चीजें ठीक करना जरूर आना चाहिए, पता नहीं कब कैसी हालत का सामना करना पड़ जाए। आदमी को अपनी सामर्थ्य के अनुसार दूसरों का सहयोग-सहायता करनी चाहिए। परिवार और समाज में रहने के माने भी ये ही हैं। अगर ऐसा न होता,तो न परिवार की जरूरत पड़ती और न ही समाज की। जिन्हें हम सभी छोटा, गरीब, अनपढ़, गंवार आदमी समझते हैं, उन्होंने ही हमारी यह दुनिया बनायी है, हमारे लिए खाने-पीने का अन्न, पानी, फल, सब्जियाँ पैदा करने से लेकर भोग-विलास की सारी वस्तुएँ उन्होंने अपने अथक परिश्रम से बनायी है। यह घर, पलंग, गलीचा, बिस्तर, चादर, कपड़े ,जूते, मोजे, कुर्सी, मेज, लिखने को कापी, पेन्सिल, कागज, पेन, कार-मोटर सब कुछ, पर क्या हम उन्हें उनके यह सब करने के लिए उनका वांछित सम्मान करते हैं ?कितने कृतघ्न है, हम सभी ?
एक बार हमारी नौकरानी अपने खेत में उगी कुछ सब्जियाँ लेकर आयी, तब मेरी ताई जी उन्हें लौटते हुए कहा था,‘‘ हम लोग इन सब्जियों को नहीं खाते , इन्हें तो गरीब-गुर्बे खाते हैं।’’ इस पर मेरी माँ ने कहा,‘‘ हर चीज को उसके महँगे-सस्ते की तुला पर नहीं, उसके पीछे की भावना को देखना चाहिए, बहन जी!। किसी की प्यार से दी गई चीज को लौटाना उसका अपमान करना है।’’
तब मेरी ताई जी ने मुँह बनाते हुए अहंकारपूर्ण स्वर में कहा,‘‘गरीबों और दूसरों की चाकरी करने वालों का कैसा मान-अपमान?
इस मेरी माँ ने कहा,‘‘नहीं,बहन जी! जे देने या किसी के लिए कुछ करने का भाव रखता हो,वह भला गरीब कैसे हो सकता है?’’
इस पर ताई जी कुछ कहतीं। इससे पहले मेरी माँ ने कहा,‘‘ बुरा मत समझना,बहनजी, अपने विचारों से आदमी छोटा-बड़ा होता है,सिर्फ धन-दौलत से नहीं।’’
इस बार ताई जी चुप नहीं रहीं। तुनक कर बोली,‘‘दूसरों के यहाँ चाकरी करने वालों को क्या रईस कहें?’’
पलट कर जवाब देते हुए माँ ने कहा,‘‘ चाकरी करना, कोई भीख माँगना नहीं होता। दुनिया में ऐसा कोई नहीं, जिसे कभी किसी की सहायता की जरूरत न पड़ी हो। ’’
फिर सुरभि ने हेमन्त से कहा,‘‘मेरी माँ करती थीं कि जीवन में आयीं मुसीबतों को देखकर हमें डर कर घर में दुबक कर नहीं बैठ जाना चाहिए, बल्कि पूरी शक्ति और सामर्थ्य से उसका डटकर मुकाबला करना चाहिए। ’’
सुरभि को आँखें बन्द कर मुस्कराते देख हेमन्त चौंका। फिर उसने सुरभि से पूछा,‘‘क्या सोच कर मुस्करा रही थीं। पहले तो सुरभि हेमन्त को बताने से बचती रही। अन्त में उसने अपनी माँ की सीख उसे भी बता दीं। तब हेमन्त ने कहा,‘‘अब क्या सोचा है ?’’
इस पर सुरभि ने तपाक से कहा ,‘‘कुछ नहीं, अब तो हम दोनों को मिलकर इस कोरोना को हराना है।’’
‘‘अगर ऐसा है,तो मुझे भी घर और रसोई की कुछ जिम्मेदारियाँ दे दो।’’यह कह दोनों हँसते हुए एक-दूसरे से लिपट गए।
-समाप्त
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