2अप्रैल जन्म दिवस पर विशेश-
डॉ. बचन सिंह सिकरवार
यूँ तो अपने देश के इतिहास में एक से एक वीर, महावीर, परमवीर योद्धा हुए हैं, लेकिन महाराणा संग्राम सिंह/राणा साँगा उन बिरले योद्धाओं में से एक हैं, जो एक हाथ, एक पाँव ,एक आँख और अस्सी/अनगिनत घावों/जख्मों की परवाह न करते हुए मैदान-ए-जंग में पूरे जोश-खरोशे और ताकत से दुश्मने से जूझते रहे। उनकी देशभक्ति, संगठन क्षमता और उदारता भी बेमिसाल थी। जहाँ राणा साँगा ने विदेशी हमलावर बाबर के खिलाफ राजपूताना के सभी राजाओं के साथ अफगान सरदारों को भी संगठित किया, वहीं उन्होंने सुल्तान मोहम्मद शाह को माण्डु युद्ध में बुरी तरह हराने और बन्दी बनाने के बाद उसका राज्य उसे वापस कर दिया। मुगल हमलावर बाबर से फतेहपुर सीकरी के युद्ध में बारूद और तोपों के इस्तेमाल की वजह से मिली हार से पहले सभी लड़ाइयाँ जीती थीं। सोलहवीं शताब्दी के सबसे शक्तिशाली शासक थे। इनको हिन्दुपत की उपाधि दी गयी थी। इस प्रकार राणा साँगा ने भारतीय इतिहास पर एक अमिट छाप छोड़ दी।
महाराणा संग्राम सिंह कुम्भा के बाद सबसे प्रसिद्ध महाराजा थे और मेवाड़ में सबसे महŸवपूर्ण शासक हैं।उनका जन्म 12अप्रैल,1482 को हुआ था। इन्हांने अपनी शक्ति के बल पर मेवाड़ साम्राज्य का विस्तार किया। राणा रायमल की मृत्यु के पश्चात् 1509 में राणा साँगा मेवाड़ के महाराणा बन गए। राणा साँगा ने मेवाड़ सन् 1509 से 1528 तक शासन किया, जो आज भारत के राजस्थान में स्थित है। राणा साँगा ने विदेशी आक्रमणकारियों के विरुद्ध सभी राजपूतों को एकजुट किया। राणा साँगा सही माने में एक वीर योद्धा और शासक थे, जो अपनी वीरता और उदारता के लिए प्रसिद्ध हुए। इन्होने दिल्ली, गुजरात, मालवा मुगल बादशाहो के आक्रमणो से अपने राज्यो की रक्षा की। उस समय के वह सबसे शक्तिशाली राजा थे। फरवरी, 1527 ईस्वी में ‘खानवा युद्ध‘ से पूर्व ‘बयाना के युद्ध‘ में राणा साँगा ने मुगल सम्राट बाबर की सेना को परास्त कर बयाना का किला जीता। खानवा की लड़ाई में हसन खाँ मेवाती राणा जी के सेनापति थे। युद्ध में राणा साँगा के कहने पर राजपूत राजाओं ने पाली पेरेयन परम्परा का निर्वहन किया।
बयाना के युद्ध के पश्चात् 16मार्च, 1527 ईस्वी में खानवा के मैदान में राणा साँगा घायल हो गए। ऐसी अवस्था में राणा साँगा जी को युद्ध के मैदान से बाहर निकलना पड़ा। उनकी उनके परम मित्र राज राणा अजजा झाला ने ली। उन्होने अपनी वीरता से दूसरों को प्रेरित किया। इनके शासनकाल में मेवाड़ समृद्धि की सर्वोच्च ऊँच्चाई पर था। एक धर्मपरायण राजा की तरह इन्होने अपने राज्य की रक्षा तथा उन्नति की।
इब्राहिम लोदी ने अपने क्षेत्र का संघ द्वारा अतिक्रमण की खबरें सुनने के बाद एक सेना तैयार की और 1517 में मेवाड़ के खिलाफ मार्च किया। राणा साँगा अपनी सेना के साथ राणा लोदी की सीमाओं पर खतौली मे लोदी से मिले और खतौली में आगामी लड़ाई में लोदी सेना को गम्भीर चोट लगी। लोदी सेना बुरी तरह हार कर भाग गई। एक लोदी शाहजादे दिलावर खान को पकड़ लिया और उसकी कैद कर लिया। युद्ध में राण स्वयं घायल हो गए थे। इब्राहिम लोदी ने हार का बदला लेने के लिए अपने सेनापति मियां माखन की तहत एक सेना साँगा के खिलाफ भेजी। राणा साँगा ने फिर बाड़ी धौलपुर के पास बाड़ी युद्ध 1518 को लोदी सेना को परास्त किया और लोदी को बयाना तक पीछा किया।
सन् 1519 में गुजरात और मालवा की संयुक्त मुस्लिम सेनाओं के बीच राजस्थान में गागरोन के निकट राणा साँगा के नेतृत्व मे गागरोन की लड़ाइी गई थी। राजपूत संघ की जीत ने उन्हें चन्देरी किले के साथ-साथ मालवा के अधिकांश हिस्सों पर अधिकार कर लिया। सिलवाडी और मेदिन राय जैसे शक्तिशाली राजपूत नेताओं के समर्थन के कारण मालवा की विजय राणा साँगा के लिए आसान हो गई। मेदिन राय ने चन्देरी को अपनी राजधानी बनाया और राणा सांगा का एक विश्वसनीय जागीदार बन गया। राणा साँगा चित्तौड़ से एक बड़ी सेना के साथ राय मेडमदेव के अधीन राठौर राजपूतो द्वारा प्रबलित तथा महमूद खिलजी द्वितीय से गुजरात असफिलियों के साथ आसफ खान से मिला जैसे ही लड़ाई शुरू हुई,राजपूत अश्वारोही सेना ने गुजरात कैवेलरी माध्यम से एक भयंकर हमला किया। राजपूत घुड़सवार गुजरात के सुदृढ़ीकरण के बाद मालवा सेना की ओर बढ़े। सुल्तान की सेनाएँ राजपूत अश्वारोही सेना का सामना करने में असमर्थ थीं और बुरी हार का सामना करना पड़ा। उनके अधिकांश अधिकारी मारे गए और सेना का पूरी तरह विनाश हो गया। आसफ के बेटे का मार दिया गया। खुद आसफ खान ने सुरक्षा की माँग की थी। सुल्तान महमूद को घायल हालत में बन्दी बना लिया गया। मालवा में जीत और हिन्दू शासन को बहाल करने के बाद राणा साँगा ने शाह के क्षेत्र के हिन्दुओं से जाजिया हटाने का आदेश दिया। महाराणा साँगा ने अपना साम्राज्य उŸार में पंजाब सतलुज नदी से लेकर दक्षिण में मालवा को जीत नर्मदा नदी तक कर दिया। पश्चिम में सिन्धु नदी से लेकर पूर्व में बयाना भरतपुर ग्वालियर तक अपना राज्य विस्तार किया। इस प्रकार मुस्लिम सुल्तानों की डेढ़ सौ वर्श की सŸा के पश्चात् इतने बढ़े क्षेत्रफल हिन्दू साम्राज्य स्थापित हुआ। इतने बड़े क्षेत्र वाला हिन्दू साम्राज्य दक्षिण विजयनगर साम्राज्य ही था। दिल्ली सुल्तान इब्राहिम लोदी को खतौली और बाड़ी के युद्ध में दो बार परास्त किया। उन्होंने गुजरात के सुल्तान को भी हराया और उसे मेवाड़ की तरफ बढ़ने से रोक दिया। बाबर को खानवा के युद्ध में पूरी तरह से राणा साँगा ने परास्त किया और बाबर से बयाना का दुर्ग जीत लिया।
1520 मे राणा साँगा ने ईडर सिंहासन पर रायमल की स्थापना की,जिसके साथ मुजफ्फर शाह ने अपने भारमल को स्थापित करने के लिए सेना भेजी। साँगा स्वयं ईडर पहुँचे और अहमदाबाद के रूप में सुल्तान की सेना का पीछा करते हुए गुजरात के अहमदनगर और विसनगर के शहरों को जीत किया।
इन विजयों के बाद, साँगा ने आगरा की लोदी राजधानी के भीतर फतेहपुर सीकरी तक का इलाका खाली कर दिया। मालवा के सभी हिस्सों को जो मालवा सुल्तानों से लोदियों द्वारा कब्जा कर लिया गया था,को चन्देरी सहित संघ द्वारा रद्द कर दिया गया था। उन्होंने चन्देरी को मेदिनी राय को दिया।महाराणा साँगा ने सभी राज्यों को संगठित किया और सभी राजपूत राज्य को एक छत्र के नीचे लाए। उन्होंने सभी राजपूत राज्यों से सन्धि की। इस प्रकार महाराणा साँगा ने अपना साम्राज्य उŸार में पंजाब सतलुज नदी से लेकर दक्षिण में मालवा को जीत नर्मदा नदी तक कर दिया। पश्चिम में सिन्धु नदी से लेकर पूर्व में बयाना भरतपुर ग्वालियर तक अपना राज्य विस्तार किया। इस प्रकार मुस्लिम सुल्तानों की डेढ़ सौ वर्श की सŸा के पश्चित इतने बढ़े क्षेत्रफल हिन्दू साम्राज्य कायम हुआ। इतने बड़े क्षेत्र वाला हिन्दू साम्राज्य दक्षिण विजयनगर साम्राज्य ही था। दिल्ली सुल्तान इब्राहिम लोदी को खतौली और बाड़ी के युद्ध में दो बार परास्त किया और गुजरात के सुल्तान को हराया और मेवाड़ की तरफ बढ़ने से रोक दिया। बाबर को खानवा के युद्ध में पूरी तरह से राणा ने परास्त किया और बाबर से बयाना का दुर्ग जीत लिया। इस प्रकार राणा साँगा ने भारतीय इतिहास पर एक अमिट छाप छोड़ दी। इस महान् राश्ट्रभक्त और परमवीर योद्धा राणा सांगा को लेकर कुछ कथित इतिहासकारों और राजनेताओं द्वारा यह भ्रन्ति फैलायी जा रही है कि उन्होंने ही अपने प्रतिद्वन्द्वी इब्राहिम लोदी को हराने के मुगल हमलावर बाबर को भारत बुलाया था। इस भ्रन्ति का निराकरण आवश्यक है। इस बारे में कुछ तथ्य इस प्रकार है-
ब्रिटिश अधिकारी ए.एस.बेवरज द्वारा अँग्रेजी में अनूदित ‘बाबरनामा’ में लिखा है कि बाबर का इब्राहिम लोदी पर आक्रमण के लिए उसके पंजाब के गवर्नर दौलत खाँ आमंत्रित किया गया था। लाहौर गजेटियर-1884 के पृश्ठ-20पर भी यही मिलता है। ब्रिटिश सरकार के पुराने अभिलेखों में दर्ज है कि बाबर और राणा साँगा के मध्य 11फरवरी, 1527 से 17 मार्च,1527 को अन्तिम निर्णायक युद्ध सीकरी के किले पर लड़ा गया,जिनमें राणा साँगा घायल हो गए थे। फतेहपुर सीकरी के कामारव्या मन्दिर परिसर(जामा मस्जिद) में बनी कब्रें, उन्हीं मुगल सैनिकों की हैं, जो इस युद्ध में मारे गए थे। इसके विपरीत इतिहासकार रवि भट्ट के अनुसार राणा साँगा ने बाबर को बुलाया या नहीं, इसे लेकर मतभेद हैं,राणा सांगा ने बाबर को बुलाया इसका उल्लेख ‘बाबरनामा’ में है,वहीं कुछ इतिहासकार लिखते हैं कि बाबर ने राणा साँगा से सिर्फ सम्पर्क किया था अलग-अलग इतिहासकार लिखते हैं कि दिल्ली के सुल्तान इब्राहिम लोदी के रिश्तेदार ही उसे सŸा से बेदखल करना चाहते थे। इसलिए 1523 में इब्राहिम लोदी के आलम खान, चाचा अलाउद्दीन और पंजाब के दौलत खाँ ने बाबर से सम्पर्क किया था।इनके बुलावे पर ही बाबर को हराया और दिल्ली की सत्ता पर कब्जा किया।गोरखपुर विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के आचार्य एव ‘भारतीय इतिहास अनुसन्धान परिशद्((आइसीएचआर)के सदस्य प्रोफेसर हिमांशु चतुर्वेदी ने स्पश्ट किया कि मालवा के शासक दौलत खाँ के पुत्र दिलावर खा ने तत्कालीन परिस्थितियों में इब्राहिम लोदी हराने के लिए बाबर को आमंत्रित किया। लगातार मिल रही पराजय से बाबर अपने मूल स्थान मध्य एशिया से भागना चाहता था,इसलिए उसने दिलावर खाँ का आमंत्रण स्वीकार किया,जिसके परिणाम स्वरूप पानीपत का प्रथम युद्ध हुआ और मुगलों को भारत में पाँव जमाने का अवसर मिल गया। इतिहास क इस तथ्य को पुश्ट करते हुए प्रोफेसर.हिमांशु चतुर्वेदी ने बताया कि बाबर के भारत आने के इतिहास की जानकारी का एकमात्र मूल ग्रन्थ ‘बाबरनामा’ है जिसमें इस बात का उल्लेख तो है कि राणा साँगा ने अपना दूत भेजा था, लेकिन वह आमंत्रण के लिए गया था। मूल रूप से चगातिया भाशा में लिखी गई बाबरनामा के कई बार अनुवाद के क्रम में सम्भावनाओं के आधार पर यह तथ्य स्थापित कर दिया गया कि बाबर को आमंत्रित करने वालों में मेवाड़ के तत्कालीन राजा राणा साँगा भी शामिल थे। इतिहास के मानक पर यह तथ्य पूरी तरह गलत है,क्योंकि इतिहास का आधार सम्भावना नहीं,साक्ष्य होता है। प्रोफेसर हिमांशु ने बताया कि राणा सांगा ने बाबर को भारत आमंत्रित नहीं किया था। यह इस आधार पर भी स्थापित होता है कि उन्होंने पानीपत के प्रथम युद्ध से पहले दो बार इब्राहिम लोदी को पराजित किया था और ऐसे में उन्हें इस कार्य के लिए बाबर को आमंत्रित करने की जरूरत पड़ने की बात बेमानी है।ऐसा माना जाता है कि जब राणा साँँगा एक हाथ,एक पैर,एक आँख और अनगिनत घावों के बावजूद बाबर के विरुद्ध एक और युद्ध की तैयारी कर रहे थे,तब उनके कुछ सहयोगियों ने ही राणा साँगा को विश दे दिया,जिससे 30जनवरी, 1528 को उनका निधन हो गया।
इस तरह राणा सांगा के व्यक्तित्त्व और कृतित्त्व को दृश्टिगत रखते यह कहना सर्वथा उचित होगा,कि उनके जैसा परमवीरयोद्धा कोई और नहीं।
डॉ.बचन सिंह सिकरवार वरिश्ठ पत्रकार एवं स्तम्भकार 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003मोबाइल नम्बर-9411684054
राणा साँगा जैसा कोई पराक्रमी योद्धा नहीं

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