वृन्दावन। राधानिवास क्षेत्र स्थित श्री ब्रज विलास धाम में “सनातन संस्कृति मंच” के द्वारा ऑनलाइन धार्मिक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। जिसमें अखिल भारत वर्ष के लगभग 25 अध्यात्मविद एवं प्राचीन संस्कृति के विद्वानों व जानकारों ने भाग लिया। जिसकी अध्यक्षता व श्रीधाम वृन्दावन का प्रतिनिधित्व करते हुए युवा वार्ताकार एवं साहित्यकार राधाकांत शर्मा ने आगामी श्री गंगा दशहरा पर प्रकाश डालते हुए उसका धार्मिक महत्व एवं और उसकी जुड़ी परम्पराओं के बारे में बताया।
राधाकांत शर्मा ने बताया कि धार्मिक मान्यताओं के अनुसार ज्येष्ठ शुक्ल की दशमी तिथि को मां गंगा पहाड़ों से उतरकर हरिद्वार ब्रह्मकुंड में आयीं थीं। और तभी से इस दिन को गंगा दशहरा के रूप में मनाया जाने लगा।मान्यता है कि गंगावतरण की इस पावन तिथि के दिन गंगा जी में स्नान करना बहुत ही कल्याणकारी,पुण्यदायी और फलदायी होता है।
ज्येष्ठ माह में शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को गंगा दशहरा के रूप में मनाया जाता है।
वैसे तो हर दिन पूजन और स्नान के लिए मां गंगा के घाट पर भक्तों की भीड़ लगी रहती है।लेकिन मां गंगा की आराधना की लिए एक विशेष दिन भी होता है।वह दिन है ज्येष्ठ शुक्ल दशमी(गंगा दशहरा)।
ज्येष्ठ शुक्ल दशमी तिथि को सम्वत्सर का मुख(संवत्सरमुखी) भी कहा जाता है। इसी तिथि को मां गंगा पहाड़ों से बहती हुई हरिद्वार के ब्रह्मकुंड में आईं थीं। इस दिन दान और स्नान का भी अधिक महत्व बताया गया है। इस दिन मां गंगा के जल में स्नान एवं उनका ध्यान करने से प्राणी काम,क्रोध,लोभ,मोह,मत्सर ईर्ष्या, ब्रह्महत्या,छल, कपट और परनिंदा जैसे पापों से मुक्त हो जाता है। गंगा दशहरा के दिन भक्तों को मां गंगा की पूजा अर्चना के साथ दान पुण्य भी करना चाहिए। गंगा दशहरा के दिन सत्तू, मटका, हाथ का पंखा,फल और मिष्ठान का दान करने से हजारों गुना ज्यादा फल की प्राप्ति होती है। उत्तर भारत में इस दिन सनातन धर्म प्रेमी गंगा एवं अन्य नदियों में स्नान व पूजन-अर्चन करते हैं। साथ ही तरबूज एवं खरबूज फलों का दान व सेवन करते हैं।इस दिन बच्चे जमकर पतंग बाजी भी करते हैं। यह दिन सनातन हिन्दू धर्म का एक विशेष पर्व के रूप में मनाया जाता है
उन्होंने बताया कि पौराणिक कथाओं के अनुसार गंगा स्नान से करीब दस हजार पापों से मुक्ति मिलती है।इस दिन विष्णुपदी, पुण्यसलिला माँ गंगा का पृथ्वी पर अवतरण हुआ। अतः यह दिन ज्येष्ठ शुक्ल दशमी(गंगा दशहरा) या लोकभाषा में जेठ का दशहरा के नाम से भी जाना जाता है।इस दिन मां गंगा के जल के स्पर्श मात्र से हजारों पापों से मुक्ति मिल जाती है,जिनमें 3 प्रकार के दैहिक पाप, 4 प्रकार के वाणी के द्वारा किये गए पाप, और 3 मानसिक पाप। ये सभी पाप गंगा दशहरा के दिन पतितपावनी माँ गंगा के स्नान से धूल जाते हैं। मां गंगा के स्नान के समय भगवान नारायण के द्वारा बताए मन्त्र- ” ॐ नमो गंगायै विश्वरूपिण्यै नारायण्यै नमो नमः” का स्मरण करने से मनुष्य को परम् सुख एवं स्वर्ग की प्राप्ति होती है। इस ऑनलाइन संगोष्ठी में उत्तराखंड के अध्यात्मविद व भागवतकिंकर कमलनयन आचार्य, राजस्थान के सीकर से संस्कृत के विद्वान पण्डित हरदयाल तिवारी, जोधपुर जिले से ठाकुर श्याम सुंदर शेखावत, ओडिशा से वेदाचार्य जितेंद्र मिश्रा, आचार्य ज्ञानेन्द्र किशोर “रमणीक” आदि विभिन्न प्रान्तों से धार्मिक क्षेत्र के विद्वानों व संस्कृति के जानकारों ने भाग लिया।
राधाकांत शर्मा
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