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म्यांमार में और कितना खून बहेगा?

साभार सोशल मीडिया

डाॅ.बचन सिंह सिकरवार

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पड़ोसी देश म्यांमार में गत 1 फरवरी को हुए सेनाध्यक्ष मिन आंग हलाइंग द्वारा किये गए सैन्य तख्ता पलट के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों का सिलसिला सेना और पुलिस के कठोर दमन चक्र के बाद भी थमे- थम नहीं रहा है। सैन्य तख्ता पलट के बाद से शायद ही कोई दिन ऐसा गुजरा हो,जिस दिन लोकतंत्र समर्थक सैन्य सत्ता के खिलाफ अपने विरोध व्यक्त करते हुए लोकतंत्र बहाली के नारे लगाते सड़कों पर न उतरे हों, जहाँ निहत्थे आन्दोलनकारियों को रोकने और उनके दमन के लिए पानी की तेज बौझार से लेकर आँसू गैस के गोले, लाठियाँ और गोलियाँ न बरसायी गई हों,पर इससे उनका हौसला पस्त नहीं हुआ है।यह तथ्य एक युवा प्रदर्शनकारी के कथन से स्पष्ट है,‘‘ वे हमें धकेलेंगे, तो हम और जुटेंगे। यदि वे हमला करेंगे,तो हम बचाव करेंगे।लेकिन फौजी बूटों के सामने नहीं घुटने नहीं टेकेंगे।’’ कुछ ऐसा ही दूसरे प्रदर्शनकारियों ने गोली और ग्रिनेड चलाये जाने को लेकर कहा,‘ हम सब सह लेंगे,लेकिन हर कीमत पर हमें लोकतंत्र चाहिए। खूंखार सैन्य सत्ता की गोलीबारी से लोकतंत्र समर्थक हर दिन लहूलुहान हो रहे हैं और उनके खून से म्यांमार की सड़कें रंगी हुई हैं। इससे विश्वभर के लोकतंत्र समर्थक बहुत दुःखी हैं और म्यांमार को सैनिक सत्ता के पंजे से छुड़ाना भी चाहते हैं, जहाँ की जनता हर हाल में उससे मुक्ति पाने को बेखौफ होकर अपनी जान की बाजी लगा रही है। यह देखकर ही अब जहाँ दुनिया भर के लोकतांत्रिक देश विशेष रूप से अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन, फ्रान्स आादि म्यांमार के सैन्य शासन की निन्दा करते हुए उसका पुरजोर विरोध कर रहे हैं और उस पर कठोर से कठोर आर्थिक प्रतिबन्ध लगाने की धमकी भी दे रहे हैं, वहीं साम्यवादी रूस और चीन सैन्य सरकार को समर्थन देते हुए उसे हर तरह की मदद का भरोसा दिला रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र के प्रवक्ता स्टीफेन दुजारिक ने कहा, ‘‘संयुक्त राष्ट्र ने म्यांमार की सैन्य शासन को मान्यता नहीं दी है। म्यांमार में

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संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत क्रिस्टीन स्कार्नर बर्गनर ने 193 सदस्य देशों को अगाह किया है कि कोई म्यांमार की सैन्य सरकार को मान्यता न दें। इसी दौरान जहाँ 2 मार्च को आसियान देशों ने म्यांमार की सेना से विवाद को शान्तिपूर्ण समाधान निकालने का की अपील की थी,वहीं 5 मार्च को म्यांमार में संयुक्त राष्ट्र की राजदूत ने सुरक्षा परिषद् से सेना द्वारा किये जा रहे बल प्रयोग पर रोक लगाने के की माँग की है। अब जहाँ तक भारत और उसके दूसरे पड़ोसी देशों को प्रश्न है, तो वे म्यांमार की वास्तविक स्थिति को देखते हुए उसके शासकों को पूरी तरह से अपने खिलाफ नहीं करना चाहता। इससे म्यांमार की चीन पर निर्भरता बढ़ेगी। उस दशा में चीन का इस मुल्क में दखल बढ़ेगा। यह स्थिति उनके हित में नहीं है। इसीलिए भारत समेत दूसरे देश उसे पूरी तरह मुल्क चीन के रहमो-करम पर छोड़ना नहीं चाहते है, क्योंकि इसमें चीन का ही फायदा है, वह खुद ऐसा ही चाहता है। भारत शुरू से ही म्यांमार से अपने सम्बन्धों को लेकर बेहद सर्तक-सावधान रहा है। उसने सदैव म्यांमार के शासन-सत्ता के साथ सन्तुलित व्यवहार रखा है। वह अपनी ओर से उसे यथा सम्भव सहयोग-सहायता देता आया है। भारत ने भी म्यांमार काफी निवेश किया हुआ है और कई परियोजनाओं पर कार्य कर रहा है। उसने म्यांमार की सेना को आइ.एन.एस.सिन्धु भेंट की हुई है। भारत म्यांमार में होकर बंगाल की खाड़ी तक सड़क मार्ग बनाने में लगा है, ताकि अपने पूर्वोत्तर राज्यों से दुनिया के दूसरे देशों से सीधे व्यापार से जोड़ सके। फिर म्यांमार की सीमा में रह रहे पूर्वोत्तर के अतिवादियों पर नियंत्रण रख सके, जिन्हें चीन हथियारों और आर्थिक संसाधनों से पोषित करता आया है। भारत कई बार म्यांमार की सरहद में घुसकर उनका खत्मा कर चुका है।
अब चीन जहाँ एक ओर पाकिस्तान में चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (सीपैक) में अरबों के निवेश के बाद वहाँ के हालात से परेशान है, वहीं पूर्वी लद्दाख में सैन्य टकराव में भारत से मुँह की खानी पड़ी है। इससे भारत से होने वाले व्यापार से उसे बहुत नुकसान झेलना पड़ रहा है। इसलिए वह म्यांमार में अपने रह-बचे अरमान पूरा करना चाहता है, जिससे उसकी जो परियोजना म्यांमार में आंग सान सू की पार्टी के सत्ता में आने के बाद अटकी पड़ी हैं, उन्हें किसी भी तरह पूरा किया जा सके। कोरोना काल और इस महामारी को फैलाने को लेकर हुई अपनी बदनामी के कारण चीन को विश्व व्यापार में जो क्षति हुई है,उसकी भरपाई वह म्यांमार में व्यापार के माध्यम से पूरा करना चाहता है। सूत्रों का तो यहाँ तक कहना है कि म्यांमार में सैन्य सत्ता पलट के पीछे चीन का ही हाथ है। यहाँ गत 1 फरवरी को सैन्य तख्ता पलट से पहले चीन के विदेशमंत्री वांग यी यहाँ के दौरे पर आए थे और सेनाध्यक्ष मिन आंग हलाइंग से भंेट भी की थी। उसके बाद म्यांमार की लोकतांत्रिक सरकार को चुनाव में गड़बड़ी किये जाने के आरोप में अपदस्थ कर दिया गया।
इस सप्ताह में यानी 1 मार्च से लेकर 6मार्च के दौरान सेना की कार्रवाई में 50 प्रदर्शनकारियों की मौतें हुई हैं। शनिवार को देश के सबसे बड़े शहर यंगून में विरोध प्रदर्शन हुए। इससे पहले 3मार्च को की गई कार्रवाई संकेत है कि सेना विरोध-प्रदर्शनों को दबाने के लिए किसी भी हद तक जा सकती है। 4मार्च को म्यांमार के पुलिस के जवान तख्ता पलट करने वाली सेना के आदेशों से बचने के लिए सीमा पार भारत की सीमा में घुस कर शरण की माँग कर रहे हैं। सन् 1980 से 2011 तक प्रतिबन्धों के कारण दुनिया से अलग-थलग रहा है। उस दौरान सैन्य शासकों की चीन ने भरपूर सहायता की थी। उसने म्यांमार में विभिन्न परियोजनाओं में करोड़ों डाॅलर निवेश किये हुए हैं। उसकी चीन-म्यांमार आर्थिक गलियारा(सी.एम.इ.सी.) अत्यन्त महत्त्वाकांक्षी परियोजना है, जिसके जरिए वह मोतियों की माला (स्ट्रीइंग आॅफ पल्र्स)बनाना चाहता है। बेल्ट एण्ड रोड परियोजना आदि हैं। म्यांमार की आसपास ही इन राज्यों के विद्रोही अपने शिविर लगा कर चीन की हथियारों और आर्थिक सहायता के बल जंग लड़ते आए हैं। म्यांमार में सैन्य तख्ता पलट से पहले चीन के विदेश मंत्री वांग यी यहाँ आए थे और सेनाध्यक्ष मिन आंग हलाइंग से भेंट की थीं। उसके बाद भी लोकतांत्रिक सरकार को बेदखल कर सेना से सत्ता सम्हाली ली थी। गत 25 फरवरी को म्यांमार में सेना के साथ-साथ उसके समर्थकों ने गत 25फरवरी को गुलेल, लौहे की राॅड और चाकुओं से लोकतंत्र समर्थकों पर धावा बोल दिया।। इनके हमले में कई प्रदर्शनकारी घायल हो गए।लेकिन पुलिस मूक दर्शक बनी रही। नेशनल डेमोक्रेटिक लीग की अपदस्थ सर्वोच्च नेता आंग सान सू की समेत देश के तमाम नेता जेलों में कैद किये गए हैं। आन्दोलन कारी आंग सान सू की और दूसरे नेताओं की रिहाई की माँग कर रहे हैं म्यांमार की सीमा के पश्चिम-उत्तर में चीन म्यांमार की राजधानी नेपिता और सबसे बड़े शहर यंगून में सैन्य शासन के विरुद्ध लोकतंत्र समर्थक लगातार आन्दोलनरत है,जिन्हें हर वर्ग का समर्थन प्राप्त हैं।यहाँ तक कि उनके साथ सरकारी कर्मचारियों और पुलिस के कुछ जवानों का समर्थन और सहानुभूति मिली हुई हैै। म्यांमार की सीमा के पश्चिम-उत्तर में चीन, पश्चिम में भारत,दक्षिण में बंगाल की खाड़ी पूर्व में थाईलैण्ड है। भारत के पूर्वोत्तर राज्य अरुणाचल, मिजोरम, नगालैण्ड, मणिपुर की सीमाएँ म्यांमार से लगी हुई हैं। इसका क्षेत्रफल- 6,76,553 वर्ग किलोमीटर और राजधानी नेपिता है,इसे पाइनमाना भी कहा जाता है। जनसंख्या-5,04,96000से अधिक है,जो बौद्ध तथा कुछ इस्लाम को मानती हैं तथा बर्मी और कबीलाई भाषाएँ बोलती हैं। म्यांमार की मुद्रा क्यात है। म्यांनमार पूर्व नाम बर्मा एशियाई देश है, जिसकी सीमा भारत, बांग्लादेश, चीन, थाईलैण्ड से जुड़ी है। इसके प्रसिद्ध शहर मांडले, मालमीन, बैसीन है। यह देश यह छोटे राज्यों का सैकड़ों वर्ष तक संग्राम क्षेत्र रहा है। दूसरे महायुद्ध में इस पर जापानियों ने अधिकार कर लिया। 14 अगस्त, 1945 को जापान ने आत्मसमर्पण किया। 4 जनवरी, 1948 को यह ब्रिटेन की पराधीनता से मुक्त हुआ। सन् 1885 से सन् 1937 तक यह भारत का एक प्रान्त था और इसे राष्ट्रमण्डल (काॅमनवेल्थ) का एक राज्य बना दिया गया। सन् 1961 मंे बौद्ध धर्म को राजधर्म घोषित किया गया था। सन् 1962 में जनरल नेविन की क्रान्तिकारी परिषद् सत्ता में आयी। इसका नाम ‘यूनियन आॅफ बर्मा’ रखा गया। सन् 1962 से लेकर 1988 तक जनरल नेविन सत्तासीन रहे। पहले ये सैनिक शासक थे। फिर स्व नियुक्त राष्ट्रपति फिर राजनीतिक तानाशाह बन गये। सन् 1971में बर्मा समाजवाद का कार्यक्रम स्वीकार किया। मई, सन् 1989में इसका नया नाम ‘यूनियन आॅफ म्यांमार’ रखा गया।7नवम्बर, 1990में सेना ने पहली बार स्वतंत्र चुनाव होने दिये, जिसमें ‘नेशनल लीग फाॅर डेमोक्रेसी’ (एन.एल.डी.) ने भारी बहुमत प्राप्त किया,किन्तु सेना सत्ता हस्तान्तरण में संकोच दिखाती रही। 13नवम्बर,सन्1990 को म्यांमर में नोबेल पुरस्कार विजेता तथा लोकतंत्र समर्थक पार्टी अध्यक्ष आंग सान सू को 15साल की नजरबन्दी से रिहा किया गया। सत्ता में सैनिक जुण्टा ने कई बार नये संविधान संशोधन का वादा किया,लेकिन कुछ हुआ नहीं। सू की के समर्थकों पर राजनीतिक बंदिशों लगी रहीं। सत्ता में सैनिक जुण्टा ने कई बार नये संविधान का वादा किया, लेकिन कुछ हुआ नहीं। सू की के समर्थकों पर राजनीतिक प्रतिबन्ध लगाए गए। बर्मी संघ में शान, करेन, काचीन, कयाह और चिन हिल्स जिला एवं अराकन हिल्स जिला हैं। कालान्तर में इन दोनों को मिला मिलाकर चिन डिवीजन का बनाया। 2008 में सेना से संविधान तैयार किया। इसमें देश की आन्तरिक ,रक्षा का दायित्व सेना पर रहेगा। इसके सिवाय संविधान में संशोधन के लिए सेना की सहमति आवश्यक है। 2012में आंग सान सू की पार्टी ‘नेशनल लीग फाॅर डेमाक्रेसी’ ने सत्ता सम्हाली थी। यहाँ के मुुुुुुुुख्य खनिज पेट्रोलियम,सीसा, टिन,जस्ता, टंगस्टन, तांबा,एण्टीमनी, चाँदी तथा रत्न । यहाँ के माणिक्य, नीलम, पहिताश्म विशेष रूप से प्रसिद्ध है। यहाँ से सागौन(टीक) की लकड़ी का निर्यात बड़ी मात्रा में होता है।इसके अलावा चावल, रूई, मक्का, तम्बाकू कृषि उपज का भी निर्यात होता है।यह विश्व का सबसे बड़ा चावल निर्यातक देश भी है।
अब दुनियाभर के देश म्यांमार में सैन्य तख्ता पलट को लेकर चिन्तित होने की वजह उसमें चीन का हाथ होना है, जो अपने मंसूबे पूरे करने के लिए किसी भी मुल्क में कुछ भी कर गुजरने को हमेशा तैयार रहता है। म्यांमार की घटना से पड़ोसी देश नेपाल, पाकिस्तान, थाईलैण्ड आदि मुल्कों के लोग बेहद परेशान हैं। म्यांमार के सत्ता पलट से भारत का चिन्तित होना स्वाभाविक है, क्योंकि वह भी जिस देश में आर्थिक साझीदार बनने को प्रयासरत था, वह मुल्क उसके दुश्मन देश चीन की गिरपत आ गया है। फिलहाल, एक तरह से वह चीनी डैªगन का निवाला बन गया है। अब देखना यह है कि म्यांमार की सैन्य सरकार अपने लोगों के प्रबल विरोध के साथ-साथ संयुक्त राष्ट्र संघ और दुनिया के लोकतांत्रिक देशों के दबाव को कितना और कब तक बर्दाश्त कर पाता है?
सम्पर्क-डाॅ.बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003मो.नम्बर-9411684054

 

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