त्यौहार

जज्बे-ए-कुर्बानी है- ईद-उल- अजहा या बकरीद

इमरान खान
इस्लाम मजहब में दो ईद हैं। ये दोनों ही ईदें अपनी -अपनी वजहों से मुसलमानों के लिए खास मायने रखती हैं। इन दोनों का ही सम्बन्ध पैगम्बर से जुड़ी तवारीख से है। जिन्होंने दीन के जरिए अपने मजहब को मानने वालों को कुर्बानी और इन्सानियत का सबक सिखाया गया है। इनमें पहली ईद को ‘ईद उल फितर’ या ‘ईद उल-फ़ित्र’ कहा जाता है। ये यक्म शवाल अल-मुकर्रम्म को मनाया जाता है। ईद उल-फ़ित्र इस्लामी कैलेण्डर के दसवें महीने शव्वाल के पहले दिन मनाया जाता है। पहली ईद उल-फ़ितर पैगम्बर मुहम्मद ने सन 624 ईसवी में जंग-ए-बदर के बाद मनायी थी। ईद उल फित्र के अवसर पर पूरे महीने अल्लाह के मोमिन बन्दे अल्लाह की इबादत करते हैं रोज़ा रखते हैं और क़ुआन करीम कुरान की तिलावत करके अपनी आत्मा को शुद्ध करते हैं जिसका अज्र या मजदूरी मिलने का दिन ही ईद का दिन कहलाता है जिसे उत्सव के रूप में पूरी दुनिया के मुसलमान बडे़ हर्ष उल्लास से मनाते हैं। इस्लामी कैलण्डर के सभी महीनों की तरह यह भी नए चाँद के दिखने पर शुरू होता है। चाँद दिखने के बाद उससे अगले दिन ईद मनाई जाती है। सऊदी अरब में चाँद एक दिन पहले और भारत मे चाँद एक दिन बाद दिखने के कारण दो दिनों तक ईद का पर्व मनाया जाता है।
मुसलमानों का त्योहार ईद मूल रूप से भाईचारे को बढ़ावा देने वाला त्योहार है। इस त्योहार को सभी आपस में मिल के मनाते है और खुदा से सुख-शांति और बरक्कत के लिए दुआएँ माँगते हैं। दूसरी ‘ईद-उल-अजहा’ या ‘ बकरीद’ कहलाती है। जो मुसलमानों का दूसरा सालाना त्योहार है, जो इस्लामिक कैलेण्डर के आखिरी महीने ‘जु-अल-हिज्ज’ में मनाया जाता है। दुनिया के अलग-अलग मुल्कों के मुसलमान इस महीने में सऊदी अरब के शहर मक्का में इकट्ठा होते हैं और ‘हज’ करते हैं। मक्का में पैगम्बर मुहम्मद साहब पैदा हुए थे। इसी शहर में एक बहुत ही पाक और मशहूर मस्जिद भी है, जिसमें काबा के बचे हुए हिस्से हिफाजत से रखे हुए हैं। हर अच्छी माली हालत वाले मुसलमान को इस्लाम मजहब की पाक जगह (तीर्थ) ‘हज’ अदा करना लाजमी है। विभिन्न मुल्कों के मुसलमानों का एक समूह मक्का में हज करता है। जो मुसलमान हज पर जाने के लायक नहीं है,वे अपने -अपने मुल्कों में इस दिन ‘ईद-उल-अजहा’ मनाते हैं। इस दिन ‘हज यात्रा’ में अदा किये जाने वाले कई मजहबी कामों में से एक मजहबी काम है ,जिसे ‘कुर्बानी’ कहा जाता है, इसे पूरा किया जाता है। दरअसल, ईद-अल- अजहा’ लपज के माने हैं – त्याग या कुर्बानी वाली ईद। हज यात्रा और उसके साथ जुडी हुई पद्धति पैगम्बर इब्राहिम और उनके परिवार द्वारा किये गए कामों को प्रतीकात्मक तौर पर दोहराने का नाम है। हजरत इब्राहिम की जीवनी पढ़ कर मालूम होता है कि वे हमेशा खुदा के रास्ते पर चले। एक बार उन्हें खुदा की ओर से हुक्म मिला कि वे अपने बेटे हजरत इस्माइल और बीवी हाजरा को लाकर मक्का में बसा दें। उसके बाद खुद को इन्सानों की खिदमत में लगाएँ। मक्का उस समय बहुत बड़ा रेगिस्तान था। वहाँ उसके अलावा कुछ नहीं था। उन्होंने खुदा के इस हुक्म को मंजूर किया। और इराक(फारस) में अपना पुश्तैनी शहर को छोड कऱ मक्का के मुश्किल सफर को पूरा किया। मक्का के रेगिस्तानों में अपने नवजात बेटे इस्माइल और बीवी को लाकर बसा दिया। उनके परिवार ने रेगिस्तान की बहुत-सी मुश्किलों के बीच अपना जिन्दगी को गुजारा, पर कभी शिकायत नहीं की। ईद-उल-अजहा का तवारीखी नुक्ता-ए-नजर(परिप्रेक्ष्य) यह है कि हजरत इब्राहिम ने एक ख्वाब देखा था कि वो अपने बेटे की कुर्बानी दे रही है। हजरत इब्राहिम खुदा में पूरा यकीन रखते थे, उनको इस ख्वाब से लगा कि यह खुदा की ओर से पैगाम है। उन्होंने इस ख्वाब को बामायने तौर पर लिया और अपने 10 साल के बेटे को खुदा की राह पर कुर्बान करने का फैसला कर लिया। हजरत इब्राहिम के इस जज्बे को देखकर खुदा ने उनको बेटे की जगह एक जानवर की कुर्बानी करने का हुक्म दिया। इल्मियों( विद्वानों ) ने इस किस्सों की वजाहत(व्याख्या) में यह लिखा है कि हजरत इब्राहिम का यह कर्म उनके जज्बे को दर्शाता है और व्यक्ति का यही जज्बा खुदा तक पहुँचाता है। न कि किसी जानवर की कुर्बानी । कुरान में आता है कि खुदा तक तुम्हारी कुर्बानी नहीं पहुँचती, बल्कि पहुँचती है। व्यक्ति की परहेजगारी(22ः37)। हज और ईद-उल-अजहा हजरत इब्राहिम ओर उनके परिवार द्वारा दी गई खुद की ख्वाहिशों की कुर्बानी को याद करने का ही दूसरा नाम है। आज कई महीनों से दुनिया भर में कोरोना वायरस से पैदा महामारी फैली हुई है। इस वजह सेे मक्का,मदीना समेत दुनियाभर में मस्जिदें बन्द हैं। ऐसे में ईद को पहले जैसा मनाना मुमकिन नहीं है,क्योंकि आपस में मिलन से बीमार होने का खतरा है। ऐसे में मुसलमान भाइयों को अपने घरों में रहकर ही नमाज पढना बेहतर होगा। जहाँ तक हो सके,कुर्बानी भी अपने-अपने घरों में ही करें। एक-दूसरे को दूर से ही मिलें।

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