वानस्पतिक औषधियाँ

वीर्यवर्द्धक है- सफेद मसूली

डॉ. अनुज कुमार सिंह सिकरवार

साभार सोशल मीडिया

यह अति प्राचीन काल से आयुर्वेद की दिव्य औषधियों के रूप में ख्याति प्राप्त जड़ी-बुटी है। यह लगभग पूरे भारत में उगता है। इसका पत्ता चौड़ा, थोड़ा लम्बा होता है। इसके जड़ में कन्द बैठता है, जिसे मूसली कहते हैं। इसमें बीज भी होता है। आजकल इसकी खेती होती है।
गुण- इसका जड़ बहुत अधिक पौष्टिक है। इसका प्रयोग वीर्य की कमी तथा वीर्य क्षय में किया जाता है। इसके प्रयोग से मज्जा तन्तु की वृद्धि होती है। परन्तु मेद नहीं बढ़ता है। यह लगभग सभी प्रकार की कमजोरी में लाभदायक है। यह स्नायविक दुर्बलता में भी लाभदायक है। पौष्टिक पदार्थ के रूप में सामान्य लोग भी इसका सेवन करते हैं। यह सन्तुलित भोजन का विकल्प है। जिस रोग में प्रोटीन हानिकारक होता है उस रोग में इसका प्रोटीन लाभदायी तथारोग निवारक होता है।
मात्रा रू 5 से 10 ग्राम प्रतिदिन दुध या पानी से व्यवसायिक दृष्टि से इसकी खेती काफी लाभप्रद है। बाजार में 400 से 1000 रुपये किलो तक यह बिक जाती है। इसकी माँग सम्पूर्ण विश्व में है।

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