डॉ. अनुज कुमार सिंह सिकरवार

इसको मण्डूक पर्णी भी कहते हैं। ब्राह्मी के नाम से एक और पौधा है, जिसे ‘जल नीम कहते हैं। दोनों की आकृति आपस में मिलती नहीं है। दोनों नम स्थान पर होने वाला छोटा पौधा है। जहाँ पानी मिलता है, वहाँ पर सालों यह मिलता है। इसकी पतली-पतली शाखाएँ/ डालियाँ जमीन पर फैलती है और डालियों के प्रत्येक जोड़ मिट्टी के सम्पर्क में आकर जड़युक्त हो जाता है। प्रत्येक जड़ पर पत्ते फल फूल आते हैं। इसके पत्ते अखण्ड गोलाकार, कंगूरेदार तथा एक से डेढ़ इंच तक लम्बे होते हैं। इस वनस्पति को मसलने से तीव्र गन्ध आती है। स्वाद कड़वा और तेज होता है। औषधि में इसका पत्ता जड़ सभी काम आता है।
औषधीय उपयोग/गुण – यह दिव्य गुणकारी औषध है। यह तिक्त कटु मधुर औषध है। यह पौष्टिक तथा धातु परिवर्तक औषध है। इसलिए यह कायाकल्प करने की क्षमता रखती है। यह भूख बढ़ाती है। कण्ठ के स्वर को तथा स्मरण शक्ति को बढ़ाती है। यह सभी तरह के चर्म रोगों का नाश करती है। पाण्डु/ पीलिया/ जौण्डीस अनिच्छित वीर्यस्त्राव, रक्त दोष को मिटाती है। कफ, चेचक, दमा, उन्माद मंम यह लाभदायक है। यह दूध को शुद्ध करती है। ब्राह्मी बल-वर्द्धक तथा रसायन है। इस औषधि के प्रयोग से जीवनी शक्ति आश्चर्यजनक तरीके से बढ़ती है। इसलिए यह किसी अन्य रोग को होने नहीं देती। यह सभी प्रकार के मन के रोगों को मिटाने में सक्षम है। स्मरण शक्ति को मजबूत करती है। यह सरदर्द को भी मिटाती है।
व्यवहार विधि – इसको जड़ सहित या अकेले पत्तांे को लेकर छाया में सुखाना चाहिए। उसके बाद इसका चूर्ण बनाकर 2 ग्राम से 5 ग्राम तक प्रतिदिन व्यवहार करने से ऊपर बताये गए, किसी भी बीमारी को यह शान्त करता है। इसके ताजा पत्तियों का रस 2 से 4 चम्मच मधु मिलाकर खाने से भी लाभ मिलता है। 5 से 10 पत्ता प्रतिदिन चबाकर खाने से बहुत से रोगांे से रक्षा करता है। व्यावसायिक स्तर रू समस्त विश्व के लोग, इसके गुण से परिचित है। सभी जगह यह उत्पन्न नहीं होती। अतः इसकी खेती करके अच्छी कमाई की जा सकती है। इसमें से अनेक तत्त्व एवं क्षाराभ भी निकाले जाते हैं। अतः इसका बाजार है। सम्पूर्ण विश्व के लोग इसके गुण से प्रभावित है।
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