डॉ. अनुज कुमार सिंह सिकरवार

यह सर्वत्र उपलब्ध है। झारखण्ड एवं बिहार, उत्तरप्रदेश में यह बहुतायत से प्राप्त होता है। इसके पत्ते सनायु से मिलते जुलते तथा फली भी मेथी के फली से मिलता जुलता होता है। इस पौधा को लगभग सभी लोग पहचानते हैं।
औषधीय उपयोग/गुण प्रयोग – इसका बीज वात नाशक, खुजली, खाँसी, दमा, दाद और चर्म रोगां में बहुत उपयोगी है। इसकी पत्तियाँ सनायु के जैसा दस्तावर होती है। कासमर्द के जैसा खाँसी, श्वास में लाभदायी है। यह कुष्ठ नाशक भी है। इसकी पत्तियों का काढ़ा देने से श्वांस नलिका के जमे हुए कफ को निकालकर दमा में काफी आराम पहुँचाती है। मुँह के रास्ते एवं पाखाने के रास्ते कफ छंट जाता है। इसका सबसे अच्छा प्रयोग दाद एक्जीमा में होता हैं। इसके लिए इसकी पत्तियों को नीम के पत्तियों के साथ पिसकर छापते हैं। इसके पत्तों का रस सर्प विष में भी उपयोगी माना जाता है तथा असम के लोग इसका व्यवहार करते हैं। इसके पत्तों के काढ़े से कुल्ला करने से मुँह के छाले मिटते हैं। इसके और अडुसे के पत्तों को चुसने से सूखी खाँसी ठीक हो जाती है। इसके पत्तों के चूर्ण 2 ग्राम खाने से दस्त साफ आता है।
मात्रा – इसके बीज चूर्ण 1 से 2 ग्राम प्रतिदिन देना चाहिए। इसके पत्तांे के चूर्ण 2 से 3 ग्राम प्रतिदिन देना चाहिए। व्यावसायिक दृष्टि से इसकी खेती उपयुक्त है। इसके पत्ते सनाय के पत्तां का विकल्प है। इसके बीज की माँग चर्म रोग की दवा बनाने वाली कम्पनियाँ करती है।
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