वानस्पतिक औषधियाँ

पागलपन जैसे रोगों की दवा है-पारसीक अजवायन

डॉ. अनुज कुमार सिंह सिकरवार

साभार सोशल मीडिया

यह अजवायन के गंध की परन्तु अजवायन से भिन्न पौधा हैं। इसका नामकरण ठीक नहीं है। फिर भी यह औषधीय गुण रखने के कारण चिकित्सा जगत में प्रचलित है। अपने लैटिन नाम के अनुरूप भी यह है या नहीं इसमें भी संदेह है, किन्तु व्यवहार में आने के कारण नाम चाहे जो भी है। यह उपयोगी औषधि बन जाती है। इसकी पूर्ण पहचान अभी नहीं है। लेकिन जिस अजवायन की चर्चा मैं कर रहा हूँ उसमें वे सारे गुण हैं, जो पारसीक अजवायन में है। यह कई प्रकार की होती है। पर यह जाति बिहार, बंगाल, मध्य प्रदेश में यत्र-तत्र मिलती है। अतः इसका गुण वर्णन नीचे दिया जा रहा है।
औषधीय उपयोगी/गुण प्रभाव – यह अजवायन थोडी़ विषैली है तथा मदकताकारक है। इसे गरम औषधियाँ में गिना गया है। नींद में चलना, मन की कमजोरी, पागलपन या पागलन जैसी क्रिया, मनोविश्रांति, स्वप्न अधिक देखना, डरना, चिल्लाना इत्यादि मन के रोगों में इसका व्यवहार अति सफलता पूर्वक होता है। इसके लिए सर्पगन्धा 10 ग्राम खुरासानी अजवायन, 10 ग्राम जटामशी, 10 ग्राम, वच 10 ग्राम एवं भाँगरा सत्व 40 ग्राम तीनों को कूट कर चूर्ण बनाकर भाँगरा के रस से आधी ग्राम की गोली बना लें। इसे सुबह और सायं दें। मन के लगभग सभी रोगों पर यह अति उत्तम कार्य करता है। सर दर्द तथा स्नायविक आक्षेप अन्य बीमारी भी इससे मिटती है। मात्रा 1 ग्राम प्रतिदिन चूर्ण बनाकर व्यावसायिक दृष्टि से इसका उत्पादन बहुत अनिवार्य है। यह विदेश से आता है। इसकी माँग अन्य औषधि तथा क्षाराभ बनाने वाली कम्पनियाँ करती है। इसको बेच कर अच्छी आमदनी की जा सकती है।

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