डॉ. अनुज कुमार सिंह सिकरवार

यह कम्पोजिटी/गेन्दा कुल का एक शाकीय पौधा है, इसे ‘भाँगरा’ भी कहते हैं। इसके पौधे बरसात में सभी जगह पैदा होते हैं। नमी वाले जमीन में यह बारह मास रहता है। आधी से दो फीट तक जमीन पर फैला या कुछ उठा हुआ पौधा होता है। इसकी शाखाएँ हरी, कुछ कालिमा लिए होती है। पत्ते एक से तीन इंच तक लम्बे होते हैं। इसके सम्बन्ध में अनेक लोग जानते हैं। इसकी सफेद, पीली तथा काली जातियाँ है। तीनों में से सफेद एवं पीली जाति का पौधा गुण में लगभग बराबर होता है। काली जाति के भाँगरा भी गुणवान है, किन्तु इसके मिलने में दुर्लभता है तथा रसायण बनाने के काम में आता है।
औषधीय उपयोग/गुण-दोष प्रभाव – यह कडव़ा तथा गरम औषधि है। धातु परिवर्तक गुण इसमें पाया जाता है। अतएव यह बहुत उपयोगी, सर्व रोग नाशक औषधि बन जाता है। अनेक प्रकार के विष, जो या तो पर्यावरणीय हो या किसी तरह के आहार-विहार से सम्बद्ध हो, उसे यह शरीर से बाहर करता है। यह बालों के सौंदर्य को बढ़ा देता है। आँख, नाक, कान, मुँह के रोगों को मिटा देता है। नेत्रों की ज्योति बढ़ाने तथा बल, पुरुषार्थ एवं सभी रोगों से मुक्ति के लिए इसके बराबर आंवला एवं काला तिल एक साथ चूर्ण कर प्रतिदिन पाँच से दस ग्राम सेवन करने से गले के ऊपर के सभी अवयव तथा सभी इन्द्रियाँ मजबूत बनी रहती है। लगातार सेवन से कई रोगों को यह मिटा देता है। यह आँतों की सूजन जिसे हर्निया कहते हैं। उसके लिए भी उपयोगी दवा है। खाँसी, दमा को ठीक करता है। हृदय रोग, खुजली, चर्म रोग को मिटाता है। गर्भिणी के गर्भाशय में दर्द हो या गर्भपात होने की प्रवृति हो, तो गर्भपात रोक देता है। बच्चा होने के बाद गर्भाशय की किसी भी प्रकार की विकृति में इसका प्रयोग लाभकारी है। यह अग्निवर्द्धक तथा ज्वर नाशक है। यकृत प्लीहा के रोगों को यह मिटा देता है। इसके सेवन से सिर में होने वाले चक्कर घुमड़ी आराम हो जाता है। इसके रस में तेल पकाकर बालों के जड़ में लगाने से बाल मजबूत तथा काले होते हैं। इसके रस का भी लेप इस कार्य के लिए किया जा सकता है। यह शरीर के अग्नि को नियमित करता है। बालों को बढ़ाता है तथा दीर्घ आयु प्रदान करता है। जीवनीय शक्ति वर्द्धक होने के नाते सभी रोगों से रक्षा करता है। छोटे बच्चों के जुकाम को ठीक करने के लिए ग्रामीण लोग इसका व्यवहार करते हैं। इसके लिए इसके 2 से 4 बूँद रस एवं रस के दुगना मधु मिलाकर चटाया जाता है। जिससे बच्चों की सर्दी जुकाम ठीक हो जाती है तथा तन्दुरुस्ती भी बढ़ती है। बवासीर, उदर के रोग, यकृत की बीमारी को यह ठीक कर समस्त शरीर के लिए उपयोगी बन जाती है। भाँगरा को पीस कर बिच्छू के डंक पर लगाने से आराम आता है। दो चम्मच रस यदि पिला भी दिया जाए, तो और जल्दी आराम आता है। अग्नि से जले हुए व्रण के ऊपर मेंहदी एवं भाँगरा को पीस कर लेप करने से जलन शान्त होता है तथा घाव ठीक होता है। चर्म का रंग प्राकृतिक हो जाता है। भाँगरे के रस में काली मिर्च मिलाकर लेने से कामला पाण्डु ; पीलिया/जौण्डीस रोग मिट जाता है। हब्बा-डब्बा जो एक प्रकार का निमोनिया है। उसमें इसके रस को मधु के साथ देने से लाभ होता है।
व्यवहार विधि – इसको संग्रहण कर अच्छी तरह से सुखाकर कूटकर कर लेना चाहिए। इसके चूर्ण को 2 ग्राम के लगभग देना चाहिए। इसको कूटकर निकाला गया रस 2 से 5 ग्राम गोलकी या मधु के साथ दिया जाता है। इसका सर्वरोग नाशक योग इस प्रकार है रू भांगरा 500 ग्राम, तिल 500 ग्राम, मुण्डी 500 ग्राम, आँवला 500 ग्राम, मुलहठी 500 ग्राम, निर्गुन्डी का छाल या पत्ता 500 ग्राम, सबको कूट पीस कर चूर्ण बनाकर 5 ग्राम प्रतिदिन इसका सर्व रोग नाशक योग के रूप में प्रयोग किया जाता है। व्यावसायिक स्तर पर यह काफी उपयोगी पौधा है। इसकी खेती से होने वाला लाभ अन्नादि के खेती से 4 गुना अधिक होता है। इसका बाजार व्यापक है।
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