वानस्पतिक औषधियाँ

मूत्रेन्द्रिय रोगों के उपचार में अति उपयोगी हैः भूमि आँवला

 

साभार सोशल मीडिया

यह अति उपयोगी औषधि है। यह सम्पूर्ण भारत में उत्पन्न होता है। इसका पौधा 6 इंच से लेकर 2 से 3 फीट तक देखने में आती है। इसका शक्ल आँवला से मिलती-जुलती है। अन्तर/फर्क यह है कि आँवला का पेड़ बड़ा होता है, यह छोटा होता है। इसकी एक और प्रजाति होती है, जिसकी पहचान अभी नहीं हुई है। वह औषधिय कार्य में व्यवहृत नहीं होती। फर्क इतना होता है कि भूमि आँवला तिक्त रस की है अन्य काषाय रस की होती है। भूमि आँवला आज दुर्लभ होती जा रही है। भारत सरकार इसकी खेती के लिए आज के दिन प्रोत्साहन देने की घोषणा की है। यह सर्व परिचित पौधा है।
औषधीय गुण प्रयोग – यह मूत्रल है। इसका व्यवहार सुरक्षित मूत्रल औषधि के रूप में किया जा सकता है। मूत्रल औषधियाँ संकोचक होती है। यह वैसा लक्षण नहीं पैदा करती। यह धातु परिवर्तक एवं यकृत की विनिमय क्रिया को सुधारने वाली होने के नाते पौष्टिक भी है तथा सभी अंग-प्रत्यंगों को मजबूती देती है। यह जनन-इन्द्रिय एवं मूत्रेन्द्रिय सम्बन्धी सभी रोगों को मिटाने की क्षमता रखता है। यह सड़न को मिटाता है तथा घाव को भरता है। इसके ताजे पौधों का काढ़ा पुरानी पेचिश के लिए बहुत उपयोगी है। यह जीर्ण ज्वर जो अक्सर उदर व्याधि के कारण होता है को दूर कर देता है। यह पाचन संस्थान के प्रत्येक अंग-प्रत्यंग को नवीनता प्रदान करती है। इसके जड़ को पीसकर पिलाने से पीलिया दूर होता है। इसका अधिक प्रयोग दक्षिण भारतीय वैद्य करते हैं। स्त्रियों की जननेन्द्रिय सम्बन्धित सभी रोगों पर इसका व्यवहार किया जाता है। प्रदर चाहे वह उजला, पीला, लाल कुछ भी हो यह ठीक करता है।
मात्रा रूप में – 2 से 3 ग्राम दो बार। इसके एक पौधा को पीसकर शर्बत के रूप में तैयार कर प्रतिदिन पीलिया के रोगी को दें। इसका काढ़ा बनाकर जीर्ण ज्वर पर दें। अन्य सभी कार्य के लिए इसका चूर्ण व्यवहार करें। व्यापारिक दृष्टि से यह पौधा बहुत उपयोगी है। इसका खरीदार भारत सरकार है। विश्व के बाजार में इसकी माँग है। हिपेटाइटीस एवं एड्स पर इसका व्यापक प्रयोग चल रहा है तथा सफलताओं की उम्मीद बढ़ रही है।

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