
यह शाकीय पौधा है। यह लगभग 50-70 सेमी ऊँचाई तक पहुँच जाता है, इसका वानस्पतिक नाम‘ सिसिम्ब्रिम इरियो’ है। पौधा सरसों के पौधे से मिलता-जुलता है। यह जंगली अवस्था में खरपतवार के रूप में उगता है। पत्तियों रॉकेट आकार की, किनारे से कटी होती हैं। यह शीत ऋतु के अन्त में पुष्पित होता है। पुष्प छोटे, पीले रंग के और चतुर्दली होते हैं। पौधे में गन्धक के यौगिकों की उपस्थिति के कारण तीक्ष्ण गन्ध होती है। इसकी पत्तियाँ पौष्टिक और खाने योग्य होती हैं। बीज छोटे, नारंगी-भूरे रंग के, सरसों जैसे होते हैं।
औषधीय उपयोग- बीज औषधीय महत्त्व के हैं। इनमें फ्लेनोनॉइड, लिनोलिक और ऑलिक अम्ल भी पाये जाते हैं। इसके बीजों का उपयोग इनकी उष्ण प्रकृति के कारण कफ और अस्थमा में किया जाता है। बुखार को कम करने और टाइफाइड ज्वर में भी इनका उपयोग किया जाता है। शरीर में लम्बे समय तक बने रहने वाले जीर्ण ज्वर में इसके बीजों को मुनक्का और पीपल के साथ पीसकर दिया जाता है।
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