श्रद्धांजली

हरफन मौला थीं गायिका शारदा

श्रद्धांजलि-
डॉ.बचन सिंह सिकरवार
फिल्म पार्श्व गायिका शारदा ने बॉलीवुड में उस दौर की दूसरी गायिका से एकदम अलग, खनकदार और मधुर आवाज से अपनी अलग पहचान बनायी, जब प्रख्यात पार्श्व गायिका लता मंगेशकर और उनकी बहनों का डंका बजता था। उस समय उनकी सहमति के बगैर किसी और गायिका को फिल्मों में गाने का अवसर देने के माने संगीतकारों के लिए स्वयं के फिल्मी दुनिया से बाहर हो जाना था। लेकिन उस समय के दिग्गज संगीतकार शंकर जयकिशन ने यह जोखिम शारदा को गायन का अवसर देकर उठाया। यह भी जाने माने फिल्म निर्माता, निर्देशक, अभिनेता राजकपूर के कहने पर, जो उनके परम मित्र थे। वह संगीत की गहन समझ तथा इसके पारखी भी थे। उस समय उनकी अपनी फिल्मों में यह संगीतकार जोड़ी ही संगीत दिया करती थी,उन फिल्मों की लोकप्रियता में गीतकार हसरत जयपुरी और शैलेन्द्र द्वारा लिखे गीतों तथा उन्हें संगीत से सजाने में शंकर जयकिशन का बहुत बड़ा योगदान था। राजकूपर ने गायिका शारदा को ईरान की राजधानी तेहरान में हिन्दी फिल्मों के प्रमुख वितरक श्रीचन्द आहूजा के आवास पर आयोजित कार्यक्रम में गाते हुए सुना था, जहाँ उन्हें इनकी आवाज बहुत पसन्द आयी। राजकपूर ने शारदा को स्वर परीक्षण के लिए अपने शहर बम्बई आने को आमंत्रित किया। बम्बई आने पर राजकपूर ने अपने पूरे परिवार के साथ बैठकर शारदा से कई गीत सुने। उनकी आवाज सभी को अच्छी लगी। इसके बाद उन्होंने शारदा को संगीतकार शंकर जयकिशन से मिलवाया और अपने फिल्मों में गीत गवाने का अवसर देने का आश्वासन भी दिया। इनकी आवाज संगीतकार शंकर जयकिशन को भी पसन्द आ गई। लेकिन फिल्मों में गाने से पहले उन्होंने एक साल तक उन्हें राग-रागिनी,सही दिशा, माक्रफोन के सामने गाने का अभ्यास कराया,गाते समय साँस रोकना आदि का प्रशिक्षण दिलाया। सन् 1966 में उन्होंने फिल्म ‘सूरज’ में शारदा से ‘तितली उड़ी’ गीत गवाया, जो बहुत अधिक लोकप्रिय हुआ। इसका एक बड़ा कारण श्रोताओं को उनकी आवाज का लता मंगेशकर और उनकी बहनों से भिन्न लगना भी था। बॉलीवुड में इस गीत से शारदा को पहला बड़ा ब्रेक मिला। उस समय फिल्म फेयर अवार्ड सिर्फ एक गायक या गायिका को दिया जाता था। इस वजह से उस वर्ष इसी फिल्म के मोहम्मद रफी द्वारा गाए गीत‘ बहारों फूल बरसाओ मेरा महबूब आया है’ को मिला। इसके बाद से यह पुरस्कार गायक और गायिका को अलग-अलग दिया जाने लगा। फिर सन् 1967 में इसी संगीतकार जोड़ी के संगीत से सजी फिल्म ‘एन इवनिंग इन पेरिस’ तथा ‘एराउण्ड द वर्ल्ड’ आयीं। इन फिल्मों में शारदा के गाए गीतों ने धूम मचा दी। इनमें फिल्म ‘एराउण्ड द वर्ल्ड’ का गीत ‘दुनिया की सैर कर लो, एराउण्ड द वर्ल्ड इन ऐट डॉलर’ मुकेश के साथ, ‘ये मुँह मसूर की दाल’ मुबारक बेगम के साथ और ‘चले जाना जरा ठहरो’ मुकेश के साथ श्रोताओं द्वारा बहुत पसन्द किये गए। इसके बाद फिल्म ‘दुनिया‘का शारदा का गाया यह गीत ‘ दुनिया इसी का नाम है, दुनिया इसी को कहते हैं’ बहुत चर्चित हुआ। फिर फिल्म ‘पहचान’ का गाना ‘वह दुल्हन कहाँ से लाऊँ, जिसे दुल्हन तेरी बनाऊँ’ मुकेश तथा सुमन कल्याणपुर के साथ ने लोकप्रियता से सभी प्रतिमान भंग कर दिया। सन् में फिल्म ‘गुनाहों के देवता’ का गीत ‘हमको तो बदनाम किया है और किसे बदनाम करोगी’ मोहम्मद रफी के साथ, सन् 1968 में प्रदर्शित फिल्म ‘प्यार मुहब्बत’का गीत सुन-सुन रे बालाम,दिल तुमको पुकारे भी, स्न 1969में फिल्म ‘चन्दा और बिजली’का गीत ‘तेरे अंग का रंग है अंगूरी’फिल्म ‘दिल दौलत और दुनिया’का गीत ‘मस्ती और जवानी हो,उमर बड़ी मस्तानी’ किशोर कुमार और आशा भोंसले के साथ,फिल्म ‘सपनों का सौदागर’ यह गीत ‘तुम प्यार से देखो’ मुकेश के साथ गाया।
शारदा राजन अयंगर का जन्म 24अक्टूबर,1937 को एक मध्यवर्गीय तमिल ब्राह्मण परिवार में मद्रास प्रेसीडेंसी वर्तमान तमिलनाडु में हुआ। उनका संगीत की ओर रुझान/रुचि शुरू से ही था।इसलिए उनकी माँ ने शारदा को सिखाने के लिए कर्नाटक संगीत का शिक्षक लगा दिया। उन्होंने बी.ए.तक शिक्षा प्राप्त की। उस समय इनके घर में रेडियो नहीं था। इसलिए वह पड़ोसी या किसी सहेली के घर जाकर गीत सुना करती थीं। फिर वह स्कल,कॉलेज,पारिवारिक मित्रों और दूसरे आयोजनों में भी गीत गाने लगीं। इसके बाद उनका परिवार ईरान की राजधानी तेहरान में रहने लगा था। हालाँकि फिल्म संगीतकार शंकर जयकिशन ने इन्हें गायन का मौका दिया,पर सही माने में इस संगीतकार जोड़ी में से शंकर का उन पर वरदहस्त था। उन्होंने ने ही शारदा को पदोन्नत किया। शारदा ने अपने समकालीन लगभग प्रमुख फिल्म पार्श्व गायक-गायिका के साथ फिल्मी गीत गाए, इनमें मोहम्मद रफी, आशा भोंसले, किशोर कुमार, मुकेश, मुबारक बेगम, येसुदास, सुमन कल्याणकारी आदि सम्मिलित हैं। उनके गाए गीत उस समय की प्रसिद्ध तथा चर्चित अभिनेत्रियों में से वैजयंती माला, साधना, सायरा बानो, राजश्री, बबीता, हेमा मालिनी, शर्मिला टैगोर,मुमताज, रेखा, हेलेन आदि पर फिल्माए गए। उन्होंने संगीतकार जोड़ी शंकर जयकिशन के अलावा रवि, उषा खन्ना, दत्ताराम, इकबाल कुरैशी के साथ गीत रिकॉर्ड कराए । सन् 1960 में से 1970तक शारदा हिन्दी फिल्म संगीत उद्योग में पूरी तरह से सक्रिय थीं। शारदा ने सन् 1970 में में आई फिल्म‘ जहाँ प्यार मिले’ के कैबरे ट्रैक ‘बात जरा है आपस की’के लिए फिल्म फेयर अवार्ड भी जीता था। यह गाना हेलन पर फिल्माया गया था। वह पहली महिला गायिका थीं, जिन्होंने 1971 में एचएमवी द्वारा जारी ‘सिज्जलर्स’ के साथ भारत में अपना स्वयं का पॉप एल्बम 21 जुलाई, 2007 को जारी किया। गायिका शारदा ने अपना गजल एल्बम ‘अन्दाज-ए-बयान’ भी जारी किया, जो मिर्जा गालिब की गजलों का संकलन था। उनका एल्बम जागृति मुम्बई में अभिनेत्री शबाना आजमी के हाथों जारी किया गया। संगीत निर्देशक खय्याम रिलीज पार्टी में उपस्थित थे, जहाँ शारदा ने एल्बम के कुछ गीत गाकर दर्शकों को रोमांचित कर दिया। उनकी प्रसिद्ध फिल्म ‘गुमनाम’ (1965), ‘प्यार मुहब्बत’(1966),‘हरे कांच की चूड़ियाँ’(1967), ‘चन्दा और बिजली’(1969), ‘एक नारी एक ब्रह्मचारी’(1971), ‘दिल दौलत और दुनिया’(1972), ‘प्यार का रिश्ता’(1973), ‘जमाने से पूछो’(1976), फिल्म‘ऐलान’()आदि हैं।
शारदा ने ‘गरम खून’(1980) नामक फिल्म के लिए ‘एक चेहरा जो दिल के करीब’ गीत की रचना की और इसे लता मंगेशकर द्वारा गाया गया। इसे संगीत से सजाया था संगीतकार-शंकर ने। इसी गीत को
शारदा ने अपने पेन नेम ‘सिंगार’ नाम से लिखा था। इस गीत को अभिनेत्री सुलक्षण पण्डित पर फिल्माया गया। 1970 के दशक के मध्य में शारदा ने ‘माँ,बहन और बीवी’ , ‘तू मेरी मैं तेरा’, ’क्षितिज’, मन्दिर-मस्जिद’ और ‘मैला अंचल’ जैसी फिल्मों के लिए संगीत निर्देशन किया। इस तरह शारदा राजन अयंगर सिर्फ गायिका ही नहीं, गीतकार और संगीतकार भी थीं। फिल्म ‘माँ, बहन और बीवी’(1974)के गीत के एक गीत‘ ‘अच्छा ही हुआ दिल टूट गया’ के लिए मोहम्मद रफी को फिल्मफेयर पुरुष पार्श्व गायक का अवार्ड मिला, जिसका संगीत निर्देशन शारदा जी ने किया था। उन्होंने तेलगु फिल्म-जीविथा चकरम में संगीत निर्देशन भी किया था।
शारदा का बुधवार,14जून,2023 को कैंसर से लड़ते हुए जिन्दगी की जंग हार गईं। 89वर्ष की आयु में उन्होंने मुम्बई स्थित अपने आवास पर अन्तिम सांस ली। उनका छह माह से कैंसर का उपचार चल रहा था। उन्होंने अपने पीछे एक बेटी सुधा मदीरा तथा बेटा शम्मी को छोड़ा है। ऐसी विलक्षण प्रतिभा की धनी के लोग बिरले होते हैं, शारदा भी ऐसी ही थीं,जो इस धरती पर कभी-कभी ही अवतरित होती हैं।

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