श्रद्धांजली

बेखौफ,बेबाक,इन्साफ पसन्द, दरियादिल इन्सान थे तारिक फतह

श्रद्धांजलि-
डॉ.बचन सिंह सिकरवार

पाकिस्तानी मूल के कनाडा के मशहूर पत्रकार,लेखक, विचारक, चिन्तक, प्रस्तोता, स्तम्भकार,बेखौफ, बेवाक प्रखर-मुखर वक्ता तारिक फतह का 73साल की अवस्था में इसी 24अप्रैल को अचानक दुनिया छोड़ कर चले जाना, भारत और भारतीयता की अपूरणीय क्षति है,जिसकी निकट भविष्य में भरपाई हो पाना असम्भव है। दुनिया भर में तारिक फतह की विभिन्न मुद्दों पर साफगोई और हाजिर-जवाबी के के चलते जितनी बड़ी तादाद में उनके मुरीद थे, उतनी संख्या में उनसे नफरत करने वाले नहीं थे। भले तारिक फतह दुनिया की निगाह में पाकिस्तानी थे, पर हकीकत यह है कि उन्होंने कभी भी खुद को पाकिस्तानी नहीं, बल्कि सीना ठोक कर खुद को ‘पाकिस्तान में पैदा हुआ भारतीय’, ‘भारत का बेटा‘,‘पंजाब का शेर’ कहा। यही वजह है कि जहाँ पाकिस्तानी मुसलमान उन्हें न पाकिस्तानी मानते थे और न ही मुसलमान। वैसे ही भारत के ज्यादातर लोग उन्हें अपना ही नहीं, उनसे दिल से प्यार और उनकी बहुत इज्जत भी करते थे। लेकिन अफसोस की बात यह है कि जब भी देश के टी.वी.चैनलों पर विभिन्न मुद्दों पर बहस होती थी,तब उनके विचार/राय भारतीय मुसलमानों से कहीं ज्यादा भारतीय होती थी। उनके हममजहबी कट्टरपंथी उन्हें देखकर नफरत से अपना मुँह फेर लेते थे और हिकारत भरी नजरों से उन्हें ‘गद्दार’ जैसे अल्फाजों से नवाज थे, गोया उन्होंने हिन्दुस्तान और उन्हें किसी खास मुद्दे/मौके पर धोखा दिया हो। ऐसे लोगों को उनके खुद को मुसलमान कहने तक पर भारी ऐतराज था। टी.वी.बहस के दौरान कुछ इस्लामिक कट्टरपंथी तारिक फतह से यह कहते हुए उन पर इल्जाम लगाते थे कि तुम भारत और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की झूठी तारीफ भारत की नागरिकता हासिल करने के लिए करते हो,इस उनका जवाब होता,कि मैं तो खुद को हिन्दुस्तानी मानता हूँ। वैसे अब जिन्दगी कितनी बची है,जो बेवजह झूठ बोलूँगा? हकीकत यह है कि भारत से दूर कर रह कर भी तारिक फतह सच्चे-अच्छे हिन्दुस्तानी थे। उन्हें खुद के हिन्दुस्तानी होने पर फर्ख था। उनका कहना था कि उनके पूर्वज हिन्दू राजपूत थे, जिन्होंने किन्हीं वजहों के चलते सन् 1840 में इस्लाम कुबूल किया था। वे भारतीय मुसलमानों से भी यही कहते थे कि उनके पुरखे अरब, ईरानी, तुर्रानी/तुर्की नहीं, हिन्दू हैं। उन्हें ही वे अपना समझें। काश, ऐसा होता,तो देश में आए-दिन साम्प्रदायिक विवाद न होता। पाकिस्तान और भारत में जंग की कोई वजह न होती। जब कोई उन्हें पाकिस्तानी कहता था,तो वह सिन्ध और हिन्द कनेक्शन जोड़ते थे। वह कहते थे सिन्ध के बगैर हिन्द कहाँ हैं? चूँकि वह कराची (सिन्ध) में पैदा हुए थे। इसलिए हिन्दुस्तानी हैं। वह भारत के विभाजन के सख्त खिलाफ थे।
वैसे तारिक फतह इस्लाम के इतिहास और उसके हर पहलू के बहुत बड़े जानकार/प्रकाण्ड विद्वान थे। इसकी वजह उनका इस्लाम,सिन्ध,पंजाब के इतिहास का गहन अध्ययन था। अपने तर्कां और तथ्यों से बड़े-बड़े मुल्ला-मौलवियों और इस्लामिक विद्वानों को निरुत्तर कर देते थे। जहाँ एक ओर वह इस्लाम के अतिवाद की खुलकर मुखालफत/आलोचना करते थे, वही वे इस्लाम के उदारवादी पक्ष के हिमायती भी थे। पाकिस्तानी और भारतीय मुसलमानों के हर तरह से अरबों के अन्धानुकरण के वह घोर विरोधी थे। उनका कहना था कि उनके जैसे अरबी-फारसी में अपने नाम रखने, उन जैसा रहन-सहन,खान-पान अपनाने की कोई जरूरत नहीं है। हमें अपने नाम अपने देश की भाषा-संस्कृति के अनुसार रखने के साथ-साथ यहाँ की जलवायु/मौसम के मुताबिक खानपान,वेशभूषा रखनी चाहिए। वह अपना नाम ‘तारिक’ भी हिन्दी के ‘तारक’ से उत्पन्न बताया करते थे। इसके साथ वह पाकिस्तान की मौजूद शासन-सत्ता के विरोधी होने के साथ-साथ इस्लामिक कट्टरपंथ और उसके दहशतगर्दी/दहशतगर्दों से मुहब्बत की खुलकर मुखालफत करते थे। तारिक फतह का जन्म 20 नवम्बर, सन् 1949 को एक पंजाबी परिवार में पाकिस्तान के सिन्ध प्रान्त व्यावसायिक राजधानी कराची में हुआ था। उनके माता-पिता भारत की स्वतंत्रता के एक महीने बाद ही मुम्बई से कराची गए थे। इसी कारण तारिक स्वयं को ‘मिड नाइट चिल्ड्रन’ या फिर ‘पाकिस्तान में पैदा एक भारतीय’ बताया करते थे। कराची विश्वविद्यालय से बायोकैमिस्ट्री में स्नातक किया। इसी दौरान उन पर साम्यवादी विचाराधारा का गहरा प्रभाव पड़ा और कट्टर साम्यवादी के कार्यकर्ता जरूर बन गए,लेकिन अध्ययनशील होने के चलते उन्होंने इस्लाम का भी गहरी से अध्ययन किया। बाद में उनका रुझान पत्रकारिता की ओर हो गया। फिर उन्होंने इस क्षेत्र में पदापर्ण किया। इनकी पत्रकारिता की शुरुआत ‘कराची सन’ में संवाददाता के रूप में हुई। फिर वह खोजी पत्रकारिता से जुड़ गए। इसके पश्चात् पाकिस्तानी टेलीविजन में कार्य करने लगे। यहाँ अपनी पत्रिकारिता से अपने स्वतंत्र पहचान बनायी और मजहबी कट्टरपंथियों की आँखों की किरकिरी बन गए। पाकिस्तानी सेना एक औद्योगिक माफिया है जिसका अपने मुल्क के अनाज, ट्रकों,सभी तरह के कारोबार,मिसायलों से लेकर बैंकों तक कब्जा है। यह सुनकर पाकिस्तान के हुक्मरानों के बदन में आग लग जाती थी। सन् 1977में पाकिस्तान में जनरल जिया उल हक के शासन में तारिक फतह पर राजद्रोह आरोप लगा। इसके बाद ये सऊदी अरब पहुँच गए। अन्ततः सन् 1987 में तारिक फतह कनाडा में जाकर बस गए। वह उन्होंने टोरेण्ट रेडियो स्टेशन ‘सीएफआरबी न्यू स्टाक’ में प्रस्तोता बन गए। कालान्तर में ‘टोरेण्ट सन’ में स्तम्भकार के रूप में जुड़ गए। तारिक फतह भारत के विभाजन को गलत मानते थे। वह पाकिस्तान सरकार पर सेना के प्रभाव तथा इस्लामिक कट्टरता के खिलाफ मुखर थे। उन्होंने अफगानिस्तान युद्ध के समय अमेरिका द्वारा सऊदी अरब के दहशतगर्द गुटों को आर्थिक सहायता दिये जाने की खुलकर आलोचना की,जबकि सन् 2016में राष्ट्रपति के चुनाव के दौरान इन्होंने डोनाल्ड ट्रम्प और बेरिटी सेनड्रेस की तरफदारी की। तारिक फतह ने कुछ देशों द्वारा इस्लामिक दहशतगर्दों को अपने मुल्क में पनाह देने का मुखर विरोध किया। इन्होंने कई बार टवीट्र पर मिथ्या समाचार फैलाने का आरोप भी लगाया था। उनका निकाह/विवाह नर्गिस तपाल से हुआ। उनकी दो बेटियाँ हैं-नताशा फतह और नाजिया फतह। तारिक फतह का कई बार भारत आगमन हुआ,जहाँ उन्हें बेपनाह प्यार/मुहब्बत, अपनापन और मान-सम्मान मिला। उन्होंने एक साक्षात्कार में कहा था,‘‘ पाकिस्तान को भूल जाइए। इसको एक न एक दिन कई टुकड़ों में टूटना ही है। वो दिन दूर नहीं, जब बलूचिस्तान और सिन्ध उससे अलग हो जाएँगे।’’ तारिक फतेह बलूच आन्दोलनों के हिमायती रहे। बलूचिस्तान में मानवाधिकारों के हनन तथा पाकिस्तान द्वारा बलूचों पर की जा रही ज्यादातियों के बारे में वे लगातार बोलते और लिखते रहते थे।
तारिक फतह की पुस्तकें ‘ चेजिंग अ मिराज, ए क्रिटिक ऑफ मार्डन इस्लाम एण्ड द जूइश नाट माई एनीमी, ए हिस्ट्री ऑफ रिलेशनशिप बिटविन द मुस्लिम एण्ड जूइश कम्युनिटी‘ तथा ‘चेजिंग अ मिराज द ट्रेजिक इल्युशन ऑफ एन इस्लमिक स्टेट’।उनकी एक और पुस्तक है-‘‘ यहूदी मेरे दुश्मन नहीं हैं’’ । तारिक फतह को उनके बेबाक ख्यालात की वजह से ताजिन्दगी इस्लामिक कट्टरपंथियों से जान का खतरा बना रहा। फिर भी उन्होंने अपने विचारों और सिद्धान्तों से कभी समझौता नहीं किया। उन्हें कई बार ‘सर तन से जुदा’ करने की धमकियाँ भी मिली,लेकिन उनसे तनिक भी भयभीत नहीं हुए।
भारत में ‘नागरिकता संशोधन अधिनियम’(सी.ए.ए.)और एन.आर.सी. के आन्दोलन के दौरान टी.वी.चैनलों पर उसे उचित ठहराते हुए और आन्दोलनकारी भारतीय मुसलमानों को समझाने की कोशिश की। उनका कहना था कि भारत में मुसलमान जिस आजादी से रहते और अपना काम करते हैं,वैसी किसी दूसरे मुल्क में नहीं है। तारिक फतह की नेक ख्यालों से नाखुश फर्जी प्रगतिशील वामपंथी और इस्लामिक कट्टरपंथी अब उनके इन्तकाल पर भी अपनी खुशी का इजहार करने से बाज नहीं आए। इसका सुबूत सोशल मीडिया पर मौजूद है।
इधर प्रसिद्ध अभिनेता अनुपम खेर ने कहा,‘‘ मैं अपने मित्र तारिक फतह के निधन की खबर सुनकर गहरे सदमे में हूँ, जो हृदय से सच्चे भारतीय, बहुत निर्भीक और उनके दिल से दया से सरोबर था। बहुत साहसी थे।’’ उधर प्रख्यात फिल्म निर्माता विवेक अग्निहोत्री ने कहा,‘‘ उन्हें तारिक फतह की मृत्यु से गहन आघात लगा है। वह अपनी तरह के हँसमुख व्यक्तित्व के अत्यन्त साहसी और ज्ञानी, श्रेष्ठ निर्भीक वक्ता थे। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ(आर.एस.एस.)के सहकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले ने उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि साहित्य और मीडिया की दुनिया में तारिक फतह के योगदान को हमेशा याद किया जाएगा। तारिक फतह एक प्रख्यात विचारक, लेखक और टिप्पणीकार थे। वह अपने सिद्धान्तों पर जिन्दगी भर अडिग रहे और उनके साहस और प्रतिबद्धता के लिए उनका सम्मान होता था। उन्होंने तारिक फतह की आत्मा की सद्गति के लिए प्रार्थना की।तारिक फतह की बेटी नताशा फतह ने लिखा है कि उन सभी के साथ उनकी क्रान्ति जारी रहेगी,जो उन्हें जानते थे और प्यार करते थे। ‘पंजाब का शेर’, ’भारत का बेटा’, ‘कनाडा से प्यार करने वाला’,सच्चा वक्ता न्याय के लिए लड़ने वाला और दलित,शोषितों की आवाज उन सभी के लोगों के साथ क्रान्ति जारी रहेगी।
उनके सही तथा नेक विचारों से नाखुश और उन्हें पसन्द तथा मुहब्बत करने अब कुछ भी कहते रहें, पर अब तारिक फतह जैसा दरियादिल,हर दिल अजीज इन्सान इस जमीन पर लोगों का सही रास्ता,इल्म तथा इन्सानियत का सबक सिखाने वाला कोई बन्दा कब आएगा,कहना मुश्किल है।
सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार 63 ब,गाँधी नगर, आगरा -282003 मो.नम्बर-9411684054

 

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