कई रोग की औषधि है पुनर्नवा
डाॅ.अनुज कुमार सिंह सिकरवार
‘पुनर्नवा’ या ‘शोथहीन’ या ’गदहपूरना’ (वानस्पतिक नामःबोआराविया डिफ्ूजा- ठवमतींअपं कपििनें) एक आयुर्वेदिक औषधीय पौधा है। पुनर्नवा का शाब्दिक अर्थ ‘पुनः नया जीवन प्राप्त करना।’ इस विशेषणात्मक नामकरण की पृष्ठभूमि पूर्णतः वैज्ञानिक है। पुनर्नवा का पौधा जब सूख जाता है, तो वर्षा ऋतु आने पर इन से शाखाएँ पुनः फूट पड़ती हैं। पौधा अपनी मृत जीर्ण-शीर्णावस्था से दुबारा नया जीवन प्राप्त कर लेता है। इस विलक्षणता के कारण ही इसे ऋषिगणों ने ‘पुनर्नवा‘ नाम दिया है। इसे ‘शोथहीन’ और ‘गदहपूरना’ भी कहते हैं। पुनर्नवा के नामों को लेकर विद्वजन एकमत नहीं हंै। भारत के अलग-अलग प्रान्तों में तीन अलग-अलग प्रकार के पौधे ‘पुनर्नवा’ नाम से जाने जाते हैं। ये हैं- बोअरहेविया डिफ्यूजा, इरेक्टा तथा रीपेण्डा। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद्/ इण्डियन कौंसिल आॅफ मेडिकल रिसर्च’( आइ.सी.एम.आर.)के वैज्ञानिकों ने वानस्पतिकी के क्षेत्र में शोधकर ‘मेडीसिनल प्लाण्ट्स ऑफ इण्डिया‘ नामक ग्रन्थ में इस विषय पर लेखन कर काफी कुछ भ्रम का निवारण किया है। उनके अनुसार ‘बोअरहेविया डिफ्यूजा’ औषधीय गुणों वाली है, जिसके ‘पुष्प श्वेत’ होते हैं। बाजार में उपलब्ध पुनर्नवा में बहुधा एक अन्य मिलती-जुलती वनस्पति ट्रांएन्थीला पाँरचूली क्रास्ट्रम की मिलावट की जाती है। ‘रक्त पुनर्नवा’ (लाल पुनर्नवा) एक सामान्य रूप से पायी जाने वाली लता सरीखी वनस्पति है, जो सभी जगहों पर सड़कों के किनारे उगी फैली हुई मिलती है। ‘श्वेत पुनर्नवा’ रक्त वाली प्रजाति से बहुत कम सुलभ है इसलिए श्वेत औषधीय प्रजाति में ‘रक्त पुनर्नवा’ की अक्सर मिलावट कर दी जाती है।
‘श्वेत पुनर्नवा’ का पौधा बहुवर्षीय और प्रसरणशील होता है। क्षुप 2 से 3 मीटर लम्बे होते हैं। ये हर साल वर्षा ऋतु में नए निकलते हैं। फिर ग्रीष्म ऋतु में सूख जाते हैं। इस क्षुप के काण्ड प्रायः गोलाई लिए कड़े, पतले और गोल होते हैं। पर्व सन्धि पर ये मोटे हो जाते हैं। इसकी अनेक शाखाएँ लम्बी, पतली तथा लालवर्ण की होती हैं। श्र्वत पुनर्नवा के पत्ते छोटे तथा बड़े दोनों प्रकार के होते हैं। लम्बाई 25 से 27 मिलीमीटर होती है। निचला तल श्वेताभ होता है और छूने पर चिकना प्रतीत होता है।
पुष्प पत्रकोण से निकलते हैं, छतरी के आकार के छोटे-छोटे सफेद 5 से 15 की संख्या में होते हैं। फल छोटे होते हैं तथा चिपचिपे बीजों से युक्त होते हैं ये शीतकाल में फलते हैं। पुनर्नवा की जड़ प्रायः 1 फुट तक लम्बी, ताजी स्थिति में उँगली के बराबर मोटी गूदेदार और उपमूलों सहित होती है। यह सहज ही बीच से टूट जाती है। गन्ध उग्र एवं स्वाद तीखा होती है। उल्टी लाने वाला तिक्त गाढ़ा दूध समान द्रव्य इसमें से तोड़ने पर निकलता है। उपरोक्त गुणों द्वारा सही पौधे की पहचान कर ही प्रयुक्त किया जाता है।
विशेषता और उपयोग -ः पुनर्नवा उष्णवीर्य, तिक्त, रुखा और कफ नाशक होता है। इससे सूजन, पाण्डुरोग, हर्द्रोग, खाँसी, उरःक्षत(सीने का घाव) और पीड़ा का विनाशक होता है।
इस औषधि का मुख्य औषधीय घटक एक प्रकार का एल्केलायड है, जिसे ‘पुनर्नवा’ कहा गया है। इसकी मात्रा जड़ में लगभग 0.04 प्रतिशत होती है। अन्य एल्केलायड्स की मात्रा लगभग 6.5 प्रतिशत होती है। पुनर्नवा के जल में न घुल पाने वाले भाग में स्टेरॉन पाए गए हैं, जिनमें बीटा-साइटोस्टीराल और एल्फा-टू साईटोस्टीराल प्रमुख है। इसके निष्कर्ष में एक ओषजन युक्त पदार्थ ऐसेण्टाइन भी मिला है। इसके अतिरिक्त कुछ महत्त्वपूर्ण् कार्बनिक अम्ल तथा लवण भी पाए जाते हैं। अम्लों में स्टायरिक तथा पामिटिक अम्ल एवं लवणों में पोटेशियम नाइट्रेट, सोडियम सल्फेट एवं क्लोराइड प्रमुख हैं। इन्हीं के कारण सूक्ष्म स्तर पर कार्य करने की सामथ्र्य बढ़ती है।
कई रोग की औषधि है पुनर्नवा

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