वानस्पतिक औषधियाँ

विषाक्त, पर कई रोगों की रामबाण औषधि है-धतूरा

डाॅ.अनुज कुमार सिंह सिकरवार
धतूरा एक शाकीय पौधा है।। यह लगभग 1 मीटर तक ऊँचा होता है। इसका पौधा काला-सफेद दो रंग का होता है। इनमें काले का फूल नीली चित्तियों वाला होता है। हिन्दू धतूरे के फल, फूल और पत्ते भगवान शंकर जी पूजा करते हुए उन पर चढ़ाते हैं। जहाँ चिकित्सा विज्ञान के प्राचीन ‘चरक संहिता’ के रचयिता ‘आचार्य चरक’ ने धतूरे को ‘कनक‘ के नाम से सम्बोधित किया है तो, वहीं ‘सुश्रुत’ ने ‘उन्मत्त‘ नाम से। आयुर्वेद के ग्रथों में धतूरे को ‘विष वर्ग’ में रखा गया है। विषयुक्त /विषाक्त होते हुए भी यह अनेक रोगों की रामबाण औषधि है।अल्प मात्रा में इसके विभिन्न भागों के उपयोग से कई रोगों का उपचार किया जाता है।
अपने देश में ‘धतूरे’ को अलग-अलग भाषाओं में पृथक-पृथक नामों से जाना जाता है। संस्कृत में जहाँ इसके धतूर, मदन, उन्मत्त, मातुल आदि नाम हंै, वहीं हिन्दी में ‘धतूरा’ , बंगला में ‘धुतुरा’ मराठी में ‘धोत्रा’ तथा ‘धोधरा’ और गुजराती में ‘धंतर्रा’ कहते हंै। धतूरे को अँग्रेजी में ‘धोर्न एप्पल स्ट्रामोनियम’ कहा जाता है।यह ‘एसक्लपीडेसी’ कुल का पौधा है।
आक के पौधे शुष्क, उसर, बंजर और ऊँची भूमि में प्रायः सभी पाए जाते हंै। आक गर्मियों में रेतीली भूमि पर उगता है।इसके पश्चात् वर्षा ऋतु यानी चैमासे में पानी बरसने पर सूख जाता है। आक का पौधा छोटा और छत्तादार होता है। इसके पत्ते बरगद के पत्तों के समान मोटे होते हैं। इसके हरे सफेदी लिए पत्ते पकने के बाद पीले हो जाते हैं। इसका फूल सफेद छोटा छत्तादार होता है। आक के फूल पर रंगीन चित्तियाँ पायी जती हैं। इसके फल देखने में आम के फल जैसे दिखायी देते हँैं जिनमें रूई और इसके बीज होते हंै। आक की शाखाओं में दूध निकलता है। यह दूध विष का कार्य करता है।
मदार (वानस्पतिक नामः केलोट्रोपीस जिगेनटिक ,ब्ंसवजतवचपे हपहंदजमं) एक औषधीय पौधा है। इसे मंदार‘, आक, ‘अर्क‘ और अकौआ भी कहते हैं। अर्क इसकी तीन जातियाँ पाई जाती है-जो निम्न प्रकार हैः
ऽ (१) रक्तार्क (ब्ंसवजतवचपे हपहंदजमंद)- आक की इस प्रजाति के पुष्प बाहर से श्वेत रंग के छोटे कटोरीनुमा और भीतर लाल और बैंगनी रंग की चित्ती वाले होते हैं। इसमें दूध कम होता है।
ऽ (२) श्वेतार्क – आक की इस प्रजाति का फूल लाल आक से कुछ बड़ा, हल्की पीली आभा लिये श्वेत करबीर पुष्प सदृश होता है। इसकी केशर भी बिल्कुल सफेद होती है। इसे ‘मंदार‘ भी कहते हैं। यह प्रायः मन्दिरों में लगाया जाता है। इसमें दूध अधिक होता है।
ऽ (३) राजार्क -आक की इस प्रजाति पौधे की एक ही टहनी होती है, जिस पर केवल चार पत्ते लगते है। इसके फूल चाँदी के रंग जैसे होते हैं, यह बहुत दुर्लभ जाति है।
इसके अतिरिक्त आक की एक और जाति पाई जाती है, जिसमें पिस्तई रंग के फूल लगते हैं।
साधारण समाज में यह भ्रान्ति व्याप्त है कि आक का पौधा विषाक्त/विषैला होता है,जो मनुष्य के प्राण ले ले सकता है। इसमें थोड़ी सच्चाई अवश्य है, क्योंकि आयुर्वेद संहिताओं में भी इसकी गणना उपविषों में की गई है। अगर आक का सेवन अधिक मात्रा में कर लिया जाए, तो उल्टी, दस्त होने से मनुष्य की मृत्यु हो सम्भव है। इसके विपरीत यदि आक का सेवन उचित मात्रा में तथा सही तरीके से, अनुभवी वैद्य की देखरेख में किया जाए, तो कई रोगों में इससे अच्छा उपचार हो सकता है।
आक के पौधे के सभी अंग जैसे-जड़, पत्ते, तना,फूल आदि औषधि/ दवा है। इस तरह आक का हर भाग उपयोगी है। यह सूर्य के समान तीक्ष्ण तेजस्वी और पारे के समान उत्तम तथा दिव्य रसायनधर्मा है। इसी कारण कहीं-कहीं आक को ‘वानस्पतिक पारद‘ भी कहा गया है। वैसे अपने गाँवों में अधिकतर लोग कम/ज्यादा आक के औषधीय गुणों से परिचित हैं और अवसर आने पर उसका विभिन्न रोगों के उपचार में इसे प्रयुक्त करते हैं।
विभिन्न रोगों के उपयोग के तरीके-1.आक के पीले पत्ते पर घी चुपड कर सेंक कर अर्क निचोड़ कर कान में डालने से आधा सिर का दर्द जाता रहता है। ।
2.आक के कोमल पत्ते मीठे तेल में जला कर अण्डकोश की सूजन पर बाँधने से सूजन दूर हो जाती है।
3.कडुवे तेल में पत्तों को जला कर गरमी के घाव पर लगाने से घाव अच्छा हो जाता है।
4. पत्तों पर कत्था चूना लगा कर पान समान खाने से दमा रोग दूर हो जाता है ।
5.हरा पत्ता पीस कर लेप करने से सूजन पिचक जाती है।
6.कोमल पत्तों के धुँआ से बवासीर शान्त होती है।
7.आक के पत्तों को गरम करके बाँधने से चोट अच्छी हो जाती है। सूजन दूर हो जाती है।
8. आक के फूल को जीरा, काली मिर्च के साथ बालक को देने से बालक की खाँसी दूर हो जाती है।
9.दूध पीते बालक को माता अपनी दूध में दें तथा मदार के फल की रूई रूधिर/खून बहने के स्थान पर रखने से रूधिर बहना बन्द हो जाता है।
10.आक का दूध लेकर उसमें काली मिर्च पीस कर भिगोयें फिर उसको प्रतिदिन प्रातः समय मासे भर खाएँ।
9 दिन में कुत्ते का विष शान्त हो जाता है,किन्तु कुत्ता काटने के दिन से ही खाएँ।
11.आक का दूध पाँव के अँगूठे पर लगाने से दुखती हुई आँख अच्छी हो जाती है।
12.बवासीर के मस्सों पर लगाने से मस्से जाते रहते हैं।

13.जहाँ के बाल उड गये हों वहाँ पर आक का दूध लगाने से बाल उग आते हैं।
14. तलुओं पर लगाने से महीने भर में मृगी रोग दूर हो जाता है।
15.आक के दूध का फाहा लगाने से मुँह का लकवा सही हो जाता है।
16.आक की छाल को पीस कर घी में भूने फिर चोट पर बाँधे तो चोट की सूजन दूर हो जाती है।
17. आक की जड को दूध में औटा कर घी निकाले वह घी खाने से नहरूआँ रोग जाता रहता है।

18.आक की जड़ को पानी में घीस कर लगाने से नाखूना रोग अच्छा हो जाता है।
19. आक की जड़ छाया में सुखा कर पीस लें और उसमें गुड मिलाकर खाने से शीत ज्वर शान्त हो जाता है। आक की जड 2 सेर लेकर उसको चार सेर पानी में पकाएँ जब आधा पानी रह जाए, तब जड़ निकाल लें और पानी में 2 सेर गेहूँ छोडे जब जल नहीं रहे, तब सुखा कर उन गेहूँओं का आटा पीसकर पावभर आटा की बाटी या रोटी बनाकर उसमें गुड और घी मिलाकर प्रतिदिन खाने से गठिया बाद दूर होती है। बहुत दिन की गठिया 21 दिन में अच्छी हो जाती है।
20. आक की जड के चूर्ण में काली मिर्च पिस कर मिलाएँ और रत्ती -रत्ती भर की गोलियाँ बनाये इन गोलियों को खाने से खाँसी दूर होती है।
21. आक की जड पानी में घीस कर लगाने से नाखूना रोग जाता रहता है।
22. आक की जड़ के छाल के चूर्ण में अदरक का अर्क और काली मिर्च पीसकर मिलाएँ और 2-2 रत्ती भर की गोलियाँ बनावे इन गोलियों से हैजा रोग दूर होता है।
23.आक की जड़ की राख में कडुआ तेल मिलाकर लगाने से खुजली अच्छी हो जाती है। आक की सूखी डँडी लेकर उसे एक तरफ से जलायें और दूसरी ओर से नाक द्वारा उसका धुँआ जोर से खींचे सिर का दर्द तुरन्त अच्छा हो जाता है।
24.आक का पत्ता और ड्ण्ठल पानी में डाल रखे उसी पानी से आबद्स्त ले, तो बवासीर अच्छी हो जाती है।
25. आक की जड का चूर्ण गरम पानी के साथ सेवन करने से उपदंश (गर्मी) रोग अच्छा हो जाता है। उपदंश के घाव पर भी आक का चूर्ण छिडकना चाहिए। आक ही के काडे़ से घाव धोएँ।
26. आक की जड़ के लेप से बिगडा हुआ फोड़ा अच्छा हो जाता है।
27. आक की जड़ की चूर्ण 1 माशा तक ठण्डे पानी के साथ खाने से प्लेग होने का भय नहीं रहता।
28.आक की जड़ का चूर्ण दही के साथ खाने से स्त्री के प्रदर रोग दूर होता है।
29.आक की जड का चूर्ण 1 तोला, पुराना गुड़ 4 तोला, दोनों की चने की बराबर गोली बनाकर खाने से कफ की खाँसी अच्छी हो जाती है।
30. आक की जड़ पानी में घीस कर पिलाने से सर्प विष दूर होता है।
31. आक की जड का धुँआ पीने से आतशक (सुजाक) रोग ठीक हो जाता है। इसमें बेसन की रोटी और घी खाना चाहिए। और नमक छोड़ देना चाहिये।
32.आक की जड़ और पीपल की छाल का भस्म लगाने से नासूर अच्छा हो जाता है।
33. आक की जड़ का चूर्ण का धुँआ पीकर ऊपर से बाद में दूध गुड़ पीने से श्वास बहुत जल्दी अच्छा हो जाता है।
34.आक का दातून करने से दाँतों के रोग दूर होते हैं।
35. आक की जड़ का चूर्ण 1 माशा तक खाने से शरीर का शोथ (सूजन) अच्छा हो जाता है।
36.आक की जड 5 तोला, असगन्ध 5 तोला, बीजबन्ध 5 तोला, सबका चूर्ण कर गुलाब के जल में खरल कर सुखाएँ। इस प्रकार 3 दिन गुलाब के अर्क में घोटे बाद में इसका 1 माशा चूर्ण शहद के साथ चाट कर ऊपर से दूध पीयें, तो प्रमेह रोग जल्दी अच्छा हो जाता है।
37.आक की जड़ की काडे में सुहागा भिगो कर आग पर फुला लें, मात्रा 1 रत्ती 4 रत्ती तक यह 1 सेर दूध को पचा देता है, जिनको दूध नहीं पचता वे इसे सेवन कर दूध खूब हजम कर सकते हैं।
38.आक की पत्ती और चैथाई सेंधा नमक एक में कूट कर हण्डी में रख कर कपरौटी आग में फूँक दे। बाद में निकाल कर चूर्ण कर शहद या पानी के साथ 1 माशा तक सेवन करने से खाँसी, दमा, प्लीहा रोग शान्त हो जाता है।
39.आक का दूध लगाने से ऊँगलियों का सड़ना दूर होता है।
40 बर्रे काटे में लगाने से दर्द नहीं होता।
41.चोट पर लगाने से चोट शान्त हो जाती है।
42.धतूरे के पत्तों का धुँआ दमा शान्त करता है ।
43. धतूरे के पत्तों का अर्क कान में डालने से आँख का दुखना बन्द हो जाता है।
44.धतूरे की जड सूंघे तो मृगीरोग शान्त हो जाता है।
45.धतूरे की फल को बीच से तरास कर उसमें लौंग रखे फिर कपड़ मिट्टी कर भूमर में भूने जब भून जाए ,तब पीस कर उसका उडद बराबर गोलियाँ बनायंे । फिर साँझ- सबेरे एक -एक गोली खाने से ताप और तिजारी रोग दूर हो जाता है और वीर्य का बंधेज होता है।
46. धतूरे के कोमल पत्तांे पर तेल चुपडे़ और आग पर सेंक कर बालक के पेट पर बाँधें। इससे बालक की सर्दी दूर हो जाती है और इसे फोडा पर बाँधने से फोड़ा अच्छा हो जाता है।
47. बवासीर और भगन्दर पर धतूरे के पत्ते सेंक कर बाँधें।
48. स्त्री के प्रसूती रोग अथवा गठिया रोग होने से धतूरे के बीजों तेल मला जाता है।
49.बहरापन दूर होता है।
50. दाँतों और कान की पीड़ा शाँत हो जाती है।
51.कोमल पत्ते खाएँ तो ताप तिजारी रोग दूर हो जाता है।

आक के दुष्प्रभाव-
1.आक का दूध यदि आँख में चला जाए, तो आँख की रोशनी भी जा सकती है। अतः प्रयोग करते समय अपनी आँखों को बचा के रखें।
2.नाजुक हिस्सो को बचा के रखे।

 

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