वानस्पतिक औषधियाँ

बड़े काम की है तुलसी

डाॅ.अनुज कुमार सिंह सिकरवार


अपने देश में तुलसी की पूजा केवल धार्मिक आस्था के कारण नहीं होती है, इसके पूज्य बनाने के पृष्ठभूमि में इस पवित्र पौधे के औषधीय गुण हैं। मानव शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में यह इस धरा किसी दैवीय वरदान से कम नहीं है। ये कई रोगों से लड़ने के लिए सुरक्षा कवच है। अपने देश में तुलसी का पौधा घर के आँगन या फिर द्वार पर लगाया जाता है, जहाँ उसकी दीप जला कर पूजा की जाती है। तुलसी का पौधा द्विबीजपत्री शाकीय होता है, जो क्षुप/झाड़ी के रूप में उगता है, जो 1 से 3 फीट ऊँचा होता है। इसकी पत्तियाँँँ बैंगनी आभा वाले हल्के रोयों से ढकी होती हैं। इसकी पत्तियाँ 1से 3 इंच लम्बी संुगन्धित तथा अण्डाकार या फिर आयताकार होती हैं। अपने देश में तुलसी की कई प्रजातियाँ मिलती हैं। सामान्यतः हम अपने घरों जिस प्रजाति की तुलसी रोपते हैं और उसकी पूजा करते हैं,वह आॅसिमम टैन्यूफोरम( वबपउनउ जमदनपवितनउ), आॅसिमम सैक्टम( वबपउनउ ेंबजनउं ) कहलाती हैं, जो ‘लैमिएसी’( स्ंउपंबमंम ) कुल की है। आॅसीमम सैक्टम को अत्यन्त पवित्र माना गया है। इसमें भी दो प्रधान प्रजातियाँ हैं- श्री तुलसी ,जिसकी पत्तियाँ हरी होती हैं तथा कृष्णा तुलसी या श्यामा तुलसी जिसकी पत्तियाँ नीलाभ कुछ बैंगनी रंग लिए होती हैं। तुलसी के पत्र तथा शाखाएँ -श्वेताभ होते हैं, जबकि कृष्णा तुलसी के पत्रादि कृष्ण रंग के होते हैं। गुण धर्म की दृष्टि से काली तुलसी को ही श्रेष्ठ माना गया है। लेकिन अधिकांश विद्वानों का मत है कि दोनों के गुण समान हैं। रासायनिक संरचना की दृष्टि से तुलसी में अनेक जैव सक्रिय होते हैं, जिनमें टैनिन, सैवोनिन, ग्लाइकोसाइड और एल्केलाइड्स प्रमुख हैं।अभी तक इनका पूरी तरह विश्लेषण नहीं हो पाया है। इसमें प्रमुख सक्रिय तत्त्व होते हैं। एक प्रकार का उड़नशील तेल है जिसकी मात्रा, संगठन, स्थान और समय के अनुसार बदलते रहते हैं। 01से 03प्रतिशत तेल पाया जाना सामान्य बात है। ‘वेल्थ आॅफ इण्डिया’ के अनुसार इस तेल की लगभग 71 प्रति यूजीनाॅल, 20 प्रतिशत यूजीनाॅल मिथाइल ईथर तथा 3प्रतिशत कार्वाकोल होता है। श्री तुलसी में श्यामा की अपेक्षा कुछ तेल अधिक होता है। इस तेल का सापेक्षिक घनत्व भी कुछ अधिक होता है। तेल के अतिरिक्त पत्रों में करीब 83 मिलीग्राम प्रतिशत विटामिन सी तथा 2.5मिलीग्राम प्रतिशत कैरोटीन होता है। तुलसी के बीजों के हरे पीले रंग का तेल लगभग 17.8 प्रतिशत की मात्रा में पाया जाता है। इसके घटक हैं कुछ सीटोस्टेराॅल, अनेक वसा अम्ल मुख्यतः पामिटिक,स्टीयरिक, ओलिक, लिनोलक और लिनोलिक अम्ल । तेल के अलावा बीजों में श्लेष्मक प्रचुर मात्रा में होता है। इस म्युसिलेज के प्रमुख घटक है,पेन्टोस, हेक्सा यूरोनिक अम्ल और राख लगभग 0.2प्रतिशत होती है। तुलसी की सामान्यतः निम्न प्रजातियों में पायी जाती है।-1.आॅक्सीमम सैक्टम 2.आॅसीमम वेसिलिक्स (मरुआ तुलसी)मंुजारिका या मुरसा। 3.आॅॅसीमम वेसिलिक्स मिनिमम 4. आॅसीमम ग्रेटिसिकम (राम तुलसी,वन तुलसी/अरण्य तुलसी) 5. आॅसीमम किलिमण्डचेरिकम(कर्पूर तुलसी) 6.आॅसीमम अमेरिकम (काली तुलसी)गम्भीर या मामरी 7. आॅसीमम विरिडी। तुलसी माला- तुलसी माला में 108 गुरियों की होती है। एक गुरिया अतिरिक्त माला के जोड़ पर होती है इसे गुरु की गुरिया कहते हैं। तुलसी माला धारण करने से हृदय को शान्ति प्राप्त होती है।
जो तुलसी कुछ गहरी हरी,या थोड़ा काली-महावर के रंग की पत्तियों वाली होती है,उसे ‘श्याम तुलसी’ कहते हैं, जो हरी पत्तियों की होती है,उसे ‘रामा तुलसी’कहते हैं।इसके अलावा ‘वनतुलसी’आदि भी बहुलता में मिलती हैं। भारतीय संस्कृति के सबसे प्राचीन ग्रन्थ वेदों में भी तुलसी के औषधीय गुणों और उनके उपयोग का विस्तार से उल्लेख प्राप्त होता है। तुलसी के पुष्प मंजरी अति कोमल ओर 8इंच तक लम्बी और बहुरंगी छटा वाली होती है, जिस पर बैंगनी और गुलाबी आभा वाले बहुत छोटे फूल लगते हैं। पुष्पों चक्र में लगते हैं। बीज चपटे,पीत वर्ण के छोटे काले चिह्नों से युक्त अण्डाकार होते हैं। नए पौधे मुख्य रूप से वर्षा ऋतु में उगते हैं और शीतकाल में फूलते हैं। पौधा सामान्य रूप में दो-तीन वर्षों तक हरा बना रहता है। इसके उपरान्त वृद्धावस्था आ जाती है। पत्ते कम और छोटे हो जाते हैं। इसकी शाखाएँ सूखी दिखायी देती हैं। इस प्रकार उसे हटाकर नया पौधा रोप दिया जाता है।

तुलसी के औषधीय गुणों को आयुर्वेद, होम्योपैथी, यूनानी, एलोपैथी सभी में मान्यता दी गई है। इसका उपयोग उक्त पैथियों में तैयार औषधियों में किया जाता है।तुलसी में विटामिन और खनिज भरपूर मात्रा में मिलते हैं। इसकी पत्तियाँ,तना,जड़, पुष्पक्रम/मंजरी का भी औषधीय उपयोग है। तुलसी की पत्तियों में विटामिन-सी, कैल्शियम,जिंक, आयरन के साथ-साथ सिट्रिक-टारटरिक,मैलिक एसिड भी प्राप्त होता है।इनमें एण्टी इंफ्लेमेटरी, एण्टी बैक्टीरियल गुण पाये जाते हैं।ये रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के साथ-साथ शरीर को संक्रमण से भी बचाते हैं।तुलसी पर हुए शोध इसके प्रमाण हैं। तुलसी में प्राप्त पोषक तत्त्व प्रति 100ग्राम इस प्रकार हैं- कार्बोहाइडेªट-2.65,प्रोटीन-3.15ग्राम,मैंगनीज-1.48मिलीग्राम,मैग्निशियम-64मिलीग्राम,वसा-0.64ग्राम, विटामिनसी-18मिलीग्राम, विटामिन के-141.8मिलीग्राम, कैल्शियम-177मिलीग्राम,फाॅस्फोरस-56मिलीग्राम,पोटेशियम-295मिलीग्राम।वर्तमान में तुलसी की पत्तियों का काढ़ा। इसके अलावा ग्रीन टी के रूप में तुलसी का उपयोग भारतीयों की जीवन चर्या का हिस्सा बन गया है।
तुलसी सर्दी, ज्वर,खांसी ,जुकाम,दन्त रोग में लाभकारी है तथा श्वास सम्बन्धी रोग में राहतकारी है। तुलसी अवसाद तथा तनाव कम करती है। मृत्यु के समय तुलसी के पत्तों का बहुत महत्त्व है- वस्तुतः मृत्यु के समय व्यक्ति के गले में कफ आ जाने के कारण श्वसन क्रिया और बोलने में रुकावट आ जाती है। ऐसे में तुलसी के पत्तों का रस कफ हटाने का विशेष गुण रखता है। इसलिए मृत्यु शैया पर लेटे व्यक्ति को यदि एक चम्मच रस पिला दिया जाए,तो व्यक्ति के मुख से आवाज निकल सकती है।

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