डाॅ.अनुज कुमार सिंह सिकरवार
कटहल या फनस को अँग्रेजी में ‘जैकफ्रूट’ कहते है। इसका वानस्पति नाम ‘औनतिआरिस टोक्सिकारी’ है। यह बहुवर्षीय वृक्ष शाखायुक्त और सपुष्पक है। कटहल दक्षिण एशिया और दक्षिण-दक्षिण-एशिया का देशज वृक्ष है। वृक्ष लगने वाला यह फल विश्व में सबसे बड़ा होता हैै । इसके फल पर बाहरी सतह पर छोटे-छोटे काँटे पाये जाते हैं। इस तरह के संग्रन्थित फल सोरोसिस है। कटहल श्रीलंका तथा बांग्लादेश का राष्ट्रीय फल है।अपने देश के केरल तथा तमिलनाडु में इसे ‘राज्यफल’ घोषित किया हुआ है। कटहल की मूल उपज है। विशेष रूप से महाराष्ट्र,केरल, कर्नाटक राज्यों के उद्यानों में कटहल 3000से 6000 वर्ष पहले से लगाया जाता रहा है।कटहल के पत्ते 10सेमी.से लेकर 20लम्बे,कुछ चैड़े कुछ-कुछ अण्डाकार तथा गहरे हरे रंग के होते हैं। कटहल के पुष्प मुख्य स्तम्भ तथा सुदृढ़ मोटी शाखाओं पर लगते हैं। ये पुष्प 5सेमी.से लेकर15 सेमी.तक लम्बे, 2.5सेमी.चैड़े ,गोल अण्डाकार तथा पीले रंग के होते हैं। कटहल के फल बहुत बड़े -बड़े लम्बाई युक्त गोल होते हैं। इसके ऊपर कोमल काँटे होते हैं। ये फल लगभग 4किलो से लेकर 20किलोग्राम वजन तक के होते हैं।और श्री
कटहल केवल सब्जी के रूप में खाने में ही अत्यन्त स्वादिष्ट नहीं है,वरन् शारीरिक प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाला भी है। इसमें रेशे (फाइबर), विटामिन ए,सी,बी-6,कैल्शियम, पोटेशियम तथा एण्टी आॅक्सीडेण्ट मिलते हैं।इसके बीज भी बहुत पौष्टिक और कई औषधीय गुणों से युक्त होते हैं। दक्षिण भारत में पके कटहल के फल खाने का चलन है।कटहल के बीज की मींगी वीर्यवर्द्धक,वात,पित्त और कफ नाशक होती है। मन्दाग्नि रोग से पीड़ितों को कटहल का सेवन नहीं करना चाहिए,क्योंकि यह गरिष्ठ होता है।
कटहल में उपलब्ध कैल्शियम , पोटेशियम के कारण माँसपेशियों का सुदृढ़ता मिलती है। मैग्नीशियम हड्डियों के लिए अच्छा होता है। आयुर्वेद चिकित्सक कहते हैं कि कोरोना के कठिन समय में बीमारी से बचने के लिए कटहल को भोजन का हिस्सा बनाए रखें। इसमें उपस्थित विटामिन सी तथा ए शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाते हैं। इसे खाने से रक्त संचार में वृद्धि होती है और रक्त अल्पता(एनीमिया) से बचाया जा सकता है।
हृदय रोग में भी कटहल लाभदायक होता है और उच्च रक्तचाप काम करता है।
प्रतिरोधक क्षमता बढ़ता है कटहल

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