डॉ. अनुज कुमार सिंह सिकरवार

बच के छुप बहुत छोटे-छोटे होते हैं। यह पौधा नमी वाले भूमि में सालों ताजा रहती हैं। यह असम की ओर अधिक होती है, किन्तु समस्त भारत में होता है। इसके पत्ते आधी इंच तक चौड़ी तथा जड़ के पास से ही निकलती है। इसके जड़ की मुटाई मध्यमा ऊँगली की तरह होती है। 1 फीट से 2 मीटर तक लम्बा 1 से 2 सेण्टीमीटर चौड़ा इसका पत्ता होता है। इसकी खेती हिमालय की तराई में लोग करते हैं। अधिकांश लोग इस पौधा से सुपरिचित है। इसकी उजली जाति के कन्द को ‘बच‘ कहतें हैं और काली जाति के कन्द को ‘घोड़बच‘ कहलाता है।
गुण एवं प्रभाव – यह गर्म औषधि है। कटु, तीक्त एवं उग्र गंध वाली औषध है। यह साधारण पाखाना कराने वाली औषधि है। यह मूत्रल होने से सूजन वाली सभी बीमारियों पर उपयोगी है। अपने गन्ध एवं प्रभाव से यह मस्तिष्क रोग में शान्ति प्रदान करती है। यह कृमिनाशक है। यह बुद्धिवर्द्धक और गला के रोगों को दूर करने की क्षमता रखती है। यह पेट की वायु को निकालती है। दर्द को दूर करती है। सूजन को मिटाती है। मिर्गी एवं हिस्टीरिया की दवा है। पागलपन एवं भूत-प्रेत की बीमारी में भी यह सफलतापूर्वक प्रयुक्त होता है। यह वायु के रोग तथा स्नायुशूल का नाशक है। सफेद जाति का बच मन बुद्धि को ठीक करता है। पाचक अग्नि को सुधारता है, जिससे शरीर के अन्दर की विनिमय क्रिया सुधरती है। फलस्वरूप यह आयुवर्द्धक वीर्यजनक बन जाता है। कफ के रोग, भूत बाधा और कृमियों को दूर करता है। आयुर्वेद के अन्दर बच, ब्राह्मी, शंख पुष्पी ये तीन औषध मन मस्तिष्क एवं स्नायु के रोगों की अद्भुत औषधि मानी जाती है। इन तीनों औषधियों का मिलित चूर्ण लेने से मन मस्तिष्क की कमजोरी सहित सभी स्नायविक रोग मिटती है। बच वमन कराने वाली औषध है। इसलिए इसकी मात्रा आधी से एक ग्राम तक ही सीमित रखनी चाहिए। इसलिए जब इन तीनों दवाओं को एक साथ मिलाकर प्रयोग करना हो तो 1 ग्राम बच, 2 ग्राम शंख पुष्पी, 4 ग्राम ब्राह्मी के अनुपात में दवा का निर्माण करना चाहिए तथा 3 ग्राम तक औषधि प्रतिदिन लेना चाहिए। इन तीनों के मिलित योग से सभी अंग-प्रत्यंगों की बीमारी दूर की जा सकती है। यह कामशक्ति वर्द्धक भी हो जाती है। मलेरिया, एड्स जैसी भयावह रोगों की भी यह सिद्ध दवा हो सकती है। यह गुर्दे/किडनी के तकलीफ को भी मिटाती है। बच का 1/8 ग्राम का नियमित प्रयोग कंठ के रोगों को मिटा देता है तथा स्मरणशक्ति को बढ़ा देता है। सर्दी जुकाम खाँसी दूर करने वाली औषधियों में मिलाकर इसका काढ़ा पिलाने से रोग का बढ़ना बन्द हो जाता है। इसका प्रयोग गर्म प्रकृति वालों को नहीं करनी चाहिए। यदि इसके सेवन काल में कोई कठिनाई महसूस हो, तो दवा छोड़ देनी चाहिए और सौंफ एवं मुनक्का का सेवन करना चाहिए। गुड़ के साथ खाने से भी इसके उपद्रव नष्ट होते हैं।
मात्रा – इसकी साधारण मात्रा 1/4 ग्राम से एक ग्राम तक प्रतिदिन हैं इससे अधिक होने पर हानि करती है। यह मात्रा वयस्क के लिए है। बच्चों के लिए 1/8 ग्राम चूर्ण मधु से देनी चाहिए। बच को शोधित करके देने से इसके उपद्रव कारी दोष नष्ट हो जाते हैं तथा लाभकारी गुण पैदा होते हैं।
शोधन विधि – एक किलो बच में 2 किलो पानी तथा 2 किले गाय का दूध मिला कर उबालें, जब पानी जल जाए, तब बच को निकाल कर पानी से धोकर उसे धूप में सुखा लें। तब चूर्ण करें। इससे बच का गुण कुछ कम हो जाता है। परन्तु हानिरहित हो जाता है। सामान्यतः सभी वात कफ के बीमारियों में इसका प्रयोग किया जा सकता है। बच की खेती सभी जगह हो सकती है। इसका फसल अच्छा होता है। बाजार में इसकी अच्छी मांग है। आर्थिक दृष्टि से इसकी खेती काफी लाभदायक है।
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