डॉ. अनुज कुमार सिंह सिकरवार

यह हल्दी से मिलता-जुलता पौधा होता है। इसके पत्ते लम्बे, कुछ चौड़े तथा भालाकार होते हैं। इसका जड़ हल्दी या अदरख के समान होता है तथा सुगन्धी युक्त होता है। इसके जड़ को उखाड़कर थोड़ा उबाल कर सुखाकर रखने से कीड़े नहीं लगते। यह हिमालय की तराई में मिलता है। झारखण्ड में भी यह कहीं-कहीं पाया जाता हैं, पर यह दुर्लभ हो गया है। इसकी खेती झारखण्ड सहित समस्त भारतवर्ष में किया जा सकता है। इसका फुल बहुत ही सुन्दर तथा सुगन्धित होता है। इसका प्रयोग उत्तर पूर्वीय भारत के वनवासी भी करते रहे हैं।
गुण – यह गर्म औषधि है। लेकिन प्रभाव से यह शीत वीर्य है। यह अग्निवर्द्धक है। रस में यह तिक्त, कड़वी तथा कसैली है। इसलिए यह पचने में हल्की है तथा अग्निवर्द्धक गुण होने के कारण पाचक संस्थान को मजबूत बनाती है। इसका प्रयोग खाँसी, श्वांस, ज्वर, दर्द, हिचकी, वायुगोला, रक्त विकार, दुर्गन्ध, वमन इत्यादि रोगों में लाभदायक है। यह दिल, दिमाग एवं शरीर को बल प्रदान करती है। शान्तिदायक है। यह पुरुषार्थ की वृद्धि करती है। स्त्रियों के मासिक धर्म की गड़बड़ी को मिटा देती है। पेट के वायु को निकालती है। वमन और जी मिचलाना जैसे लक्षण के लिए भी उपयोगी है। कुछ आदिवासी लोग सर्प के काटने पर अन्य दवाओं के साथ इसका भी प्रयोग करते हैं।
व्यवहार विधि – सूखे हुए कन्द का चूर्ण एक ग्राम की मात्रा में पानी के साथ लिया जाता है। इसको अन्य औषधियों में भी मिलाया जा सकता है, जिस औषधि का स्वाद कटु एवं काषाय हो उसके साथ यदि मिलाया जाए, तो उसका गुण बढ़ जाएगा। सुन्दर बनने के लिए तथा मुँह के कील मुहाँसे इत्यादि से छुटकारा के लिए इसके चूर्ण का उबटन लगाया जाता है। मन के अनेक रोगों जैसे मिर्गी, उदासी, तनाव मिटाने के लिए इसके दो तीन फूल प्रतिदिन सुखा या ताजा पानी के साथ पीसकर पिलाने से लाभ होता है। दो ग्राम का काढ़ा बनाकर पीने से भी लाभदायी होता है।
अन्य उपयोग – इसके फूल से सुगन्धि ;इत्र निकाल कर उससे भी अनेक मानसिक, शारीरिक बीमारियाँ को मिटाया जा सकता है। इसके सुगन्ध से मन प्रसन्न तथा रोगरहित हो जाता है।
बाजार – अर्थापार्जन का यह अति उत्तम स्त्रोत बन सकता है। यदि इसकी खेती की जाए। इसके सुगन्धित इत्र की भी बिक्री काफी होगी।
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