9मई जन्म दिवस पर विशेष- डॉ.बचन सिंह सिकरवार भारत और विश्व के इतिहास में महाराणा प्रताप की गणना उन बिरले परमवीर योद्धा में होती है, जिन्होंने जीवन...
स्वतंत्रता ही सर्वोपरि थी महाराणा प्रताप के लिए

9मई जन्म दिवस पर विशेष- डॉ.बचन सिंह सिकरवार भारत और विश्व के इतिहास में महाराणा प्रताप की गणना उन बिरले परमवीर योद्धा में होती है, जिन्होंने जीवन...
— डॉ. राधाकांत शर्मा वृन्दावन के प्रख्यात साहित्यकार व लब्ध-प्रतिष्ठ पत्रकार डॉ. गोपाल चतुर्वेदी का नाम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ब्रज से...
— डॉ. राधाकांत शर्मा भारतीय वैदिक सनातन संस्कृति में कार्तिक मास को बहुत ही पवित्र और पुण्य दायी महीना माना जाता है।पुराणों के अनुसार...
हिन्दी दिवस पर विशेष डाॅ.अनुज कुमार सिंह सिकरवार ‘मेरा नम्र ,लेकिन दृढ़ अभिप्राय है कि जब तक हम हिन्दी को राष्ट्रीय भाषा दर्जा और अपनी -अपनी प्रान्तीय भाषाओं...
रचयिता – प्राग सिंह बैस सिर-दाढ़ी के खिचड़ी बार, स्कूटर पर सदा सवार, धुँआधार बेधड़क विचार, आत्मीयता अतुल्यागार । असहमत और भिन्न विचार वाक् भिड़न्त को सदैव...
30 मई हिन्दी पत्रकारिता दिवस पर विशेष डॉ.बचन सिंह सिकरवार दुनियाभर में अखबार भले ही खबरों के लिए निकाले गए हों,पर अपने देश में विशेष रूप से हिन्दी पत्रकारिता...
ज्येष्ठ सुदी तीज 25मई पर विशेष- डॉ.बचन सिंह सिकरवार देश को स्वतंत्र हुए कोई 74साल हो गए, लेकिन अब तक हमने अपने इतिहास को न भारतीय दृष्टि स लेखन का प्रयास किया...
===== हुआ”तमाशा”पूर्ण,चूर्ण और जीर्ण हुईं प्रत्याशा. जस के तस हालात,लोक में शंसय और निराशा. शंसय और निराशा का दुर्योग छद्म छल कारी . जनता के...
परिवेश घात-प्रतिघात बगावत को पुनिआतुर ! कूटनीति निष्णात चचा-पापा सब चातुर ! चातुर-आतुर व्यस्त न्यस्त संकीर्ण तृषातुर ! हुआ कोष्ठ काठिन्य त्रिदोषज पथ्य भयातुर ...
????????????? कुटिल’कुचाली’ढीठता’लड़ी परस्पर जंग, जीत हार तय करेगी लोकतंत्र का ढंग. लोक तंत्र का ढंग छद्म छल लालच व्यापक, मानवीय हीनता वोध के...
अवसाद लिए एकांतवास, व्याकुलता जीवन की संध्या. सहचर सानिध्य विकर्षण से, नश्वर कल्पना वोध वंध्या. * प्रियतम का वोध हृदय से है, स्थूल जगत की क्या सत्ता ? अदृश्य...
पवन शर्मा हर महीने की पहली तारीख को घर भर की आँखों में सुनहरी चमक उभर आती है मेरी आँखों में भी साथ ही कई प्रकार की इच्छाएँ घर भर की आँखों में देखता हूँ अम्मा...
जब फागुन रंग झमकते हों तब देख बहारें होली की। और दफ़ के शोर खड़कते हों तब देख बहारें होली की। परियों के रंग दमकते हों तब देख बहारें होली की। ख़ूम शीश-ए-जाम...
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