पिच्हत्तर वर्ष की आयु में, वो है करता अचरज। आंसू भरी आंखों को , शांत करता फिर ध्वज। कभी उठता,कभी उड़ता, कभी वायु में लहराता है। फिर बीते दिनों...
ध्वज की पीड़ा

पिच्हत्तर वर्ष की आयु में, वो है करता अचरज। आंसू भरी आंखों को , शांत करता फिर ध्वज। कभी उठता,कभी उड़ता, कभी वायु में लहराता है। फिर बीते दिनों...
कच्चे धागे से, रिश्ते पक्के हो जाते हैं। मिली इन्द्र को जिन धागों से शक्ति, धागे विष्णु के आशिर्वाद हर भाई को दे जाते हैं। इंद्राणी के धागों से ...
अपने पिताजी को समर्पित हर इक बात मेरे पापा की बड़ी निराली होती थी, आँसू पीकर सदा एक्टिंग हँसने वाली होती थी। गहरे से गहरे संकट में पापा कभी न डरते...
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