स्वास्थ्य

सूक्तियों में लिपटी जिंदगी

 

-डॉ. श्रीधर द्विवेदी
(वरिष्ठ हृदय रोग विशेषज्ञ)

1. शिक्षक जीवन देते हैं और डाक्टर जीवन देते हैं :
माँ गर्भधारण से लेकर आजीवन अपनी संतति का पालन – पोषण करती है। जीवन देती है।सिखाती रहती है। इस कोटि में दूसरे नंबर पर चिकित्सक है जो चिकित्सा के साथ साथ अध्यापन ,अनुशीलन और शोध का काम भी करते हैं।
2. कहैं कबीर यह अकथ कथा है
कहा कहै न जाई :
सिगरेट की लत धनी लोगो को और बीड़ी गरीब लोगों की आदत होती है।इसी प्रकार शराब की लत दोनो का दूषण है। धूम्रपान और शराब दोनो ही स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं। किसी गरीब व्यक्ति को यदि बीड़ी और शराब दोनो की लत लग जाए तो समझिए उसकी विपत्तियों का कोई अंत नहीं होता । एक के बाद एक् बीमारियां उसे सताती रहती हैं।बीड़ी के कारण सांस – खांसी और शराब की वजह से जिगर की बीमारी। जिगर सिकुड़ जाता है। चिकनाई का भंडार जमा होकर अवांछनीय तंतुओं का बाहुल्य और फिर सिरोसिस की अवस्था। जिगर की वजह से शरीर में अन्य चयापचय (मेटाबोलिक दोष)। शरीर की प्रतिरक्षा अत्यंत कमजोर हो जाती है। सारा पैसा शराब और बीड़ी से उत्पन्न बीमारियों में खतम हो जाता है । ऐसी अवस्था में भगवान न करे यदि कोई अन्य बीमारी जैसे टी बी या डायबिटीज लग जाए तो उस व्यक्ति की दशा बहुत नाजुक हो जाती है । उसके साथ उसका पूरा परिवार एक विषम दुष्चक्र में फँस जाता है ।
दृष्टांत : एक साठ वर्षीय गरीब तबके से संबंधित व्यक्ति को जिसको काफी वर्षों से बीड़ी और शराब पीने की लत लग गई थी । बीड़ी की तलब ऐसी की हर् समय यहाँ तक की अस्पताल में भी बीड़ी लेकर चलता था । विगत कुछ महीनों से खांसी और कमजोरी थी । वजन घट कर मात्र 41 किलो रह गया था । अब उसे डायबिटीज की भी शिकायत हो गई थी । भूख बिल्कुल गायब हो गई थी । देखने मात्र से उसके हाड़ -मांस की क्षीणता स्पष्ट परिलक्षित हो रही थी । वजन -ऊंचाई गणना करने पर बी एम आई 15.1 निकला । सामान्यतया बी एम आई 18 तो होना ही चाहिए । त्वचा , मुखाकृति , सर के बाल और वर्ण सब उसके अत्यंत कृषित होने की मूक गवाही दे रहे थे । जांच हुई तो फेफड़े के एक्स -रे में टी बी के निशान , पेट के अल्ट्रासाउन्ड में जिगर के अंदर चिकनाई का प्रकोप , बलगम में तो बी के कीटाणु , खून में शक्कर की अधिकता और जिगर के दुष्प्रभावित होने के साक्ष्य । यह सब कुछ उसके बीड़ी पीने और शराब के अंधाधुंध सेवन का कुफल था । गनीमत यह थी कि उसके साथ आया उसका युवा पुत्र स्थिति की गंभीरता को समझ गया था और इलाज तथा परहेज के लिए तत्पर था । रोगी ने स्वयं भी अपने रोग की भयंकरता और बीड़ी -शराब न पीने का ईमानदारी से वादा तो किया था । ‘ कहै कबीर यह अकथ कथा है , कहतां कहै न जाई’।
3. पथ्य ही औषधि है ।
दवा , दुआ और परहेज ,
परहेज से मत कर गुरेज :
रोगमुक्त होने के लिए तीन चीजों का रोगी के लिए बहुत जरूरी होता है – पहली बात सटीक निदान और अच्छी दवाई , दूसरी मरीज द्वारा परहेज का पालन और तीसरा ईश्वर की कृपा । मरीज यदि परहेज न करें और आशा करें की वह दवा के बल पर ठीक हो जाएगा तो यह असंभव सी बात है । हृदय रोग , डायबिटीज , सांस -खांसी और कैंसर आदि लंबे समय तक चलने वाले रोगों में परहेज दावा सएअधिक महत्वपूर्ण होता है । परहेज ही औषधि है ऐसा ‘वैद्य जीवन’ नामक ग्रंथ में १७ वीं शताब्दी में लिखा हुआ है ।
4. शराब और रफ्तार ,
मौत करती उनका इंतजार :
ऐसे अनेक उदाहरण प्रायः नित्य प्रति अखबार में प्रकाशित होते रहते हैं की शराब के नशे में अमुक युवा छात्रों के दल ने अंधाधुंध गाड़ी चलाई और दुर्घटनाग्रस्त होकर अपने प्राणों को गवन बैठे। अभी हाल में अमरोहा मेडिकल कालेज के छात्रों का दल और कुछ वर्षों पूर्व एम्स दिल्ली के रेजिडेंट डाक्टरों का समूह भी तेज रफ्तार और मद्यपान के चलते दुर्घटनाग्रस्त होकर अपनी जान गवां बैठे थे । कहना न होगा की प्रसिद्ध क्रिकेट खिलाड़ी भि तेज रफ्तार गाड़ी चलाने के कारण हरिद्वार राजमार्ग पर सांघातिक रूप से हताहत हुए थे और बड़ी मुश्किल और सघन चिकित्सा के बाद ठीक हो पाए थे । पर सब इतने सौभाग्यशाली और साधन सपन्न नहीं होते । इसलिए सावधानी दुर्घटना से भली । शराब पीकर गाड़ी चलाना अपनी मौत स्वयं बुलाना है ।
5. ज्यादा मिठाई में कीड़े पड़ते हैं :
यह बहुत पुराना मुहावरा है परंतु आज जब डायबिटीज ( शक्कर की बीमारी ) इतनी व्यापक हो गई है और खून में शक्कर अक्सर अनियंत्रित रहती हैं तथा मरीज के मूत्र में शक्कर प्रवाहित होती रहती है तब उसे अक्सर मूत्र संक्रमण ( इन्फेक्शन ) की शिकायत बनी रहती है । यह बड़ी ही दिक्कत तलब शिकायत है जो अत्यंत सूक्ष्म जीवाणुओं द्वारा उत्पन्न रोग है । इसी प्रकार डायबिटीज में एक और जीवाणु संक्रमण जो बहुत पाया जाता है वह है टी बी जीवाणुओं का संक्रमण । कहने का तात्पर्य यह है की यदि आपको डायबिटीज की बीमारी है तो आप अपने खून में शक्कर को नियंत्रित रक्खे अन्यथा कीटाणुओं से ग्रसित होने के लिए तैय्यार रहें ।
6. खैर खून खांसी खुशी वैर प्रीति मदपान ,
लाख छिपाए न छिपे जाने सकल जहान :
वैसे तो यह मुहावरा विशुद्ध रूप से कत्था चूना से उत्पन्न ओठों की लाली से संबंधित है परंतु मैंने चिकित्सक की दृष्टि से उन सभी व्यक्तियों को जो गुटखा , पान मसाला और पान तंबाकू खाते हैं और पूछने पर इन्कार करते हैं उनके विषय में लिखा है । आप कितना भी इन्कार करिये पर आपके दांत और मुंह के अंदर की दशा साफ बता देगी की आप अभी भी गुटखा ,पान मसाला खा रहें हैं और अपना स्वास्थ्य चौपट कर रहे हैं ।
7. सुंदर मोती जैसे दांत ,
कहते सेहत तन ,मन, बात : खराब दांत मुंह में सांप पालने के बराबर है।काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के भारत कला भवन के संस्थापक और प्रसिद्ध कलाविद श्री राय कृष्णदास अक्सर कहा करते थे कि खराब दांत मुँह में विषधर सांप के समान होते हैं जो शरीर के समस्त तंत्रों को अपने विष ( पूय ) से चौबीसों घंटे दुष्प्रभावित करते रहते हैं I मसूढ़ों और दांतों से निरंतर रिस रहे विष (पस) का असर हृदय की रक्त वाहिकाओं पर भी पड़ता है और यह हृदयाघात का प्रमुख कारण बन सकता है ।
8. मुंह में दांत , पेट में आंत :
बचपन में हम बड़े बूढ़ों से सुना करते थे कि जिसके मुंह में दांत न हो या जर्जर हो गए हों और जिसके आँतें खाना पचा न पा रहीं हों , मल का निष्कासन ठीक से न हो पा रहा हो तो समझ लीजिए वह व्यक्ति या तो बूढ़ा हो चुका है या बूढ़े होने के कगार पर है । कारण स्पष्ट है । दांत किसके खराब होंगें ? तंबाकू , सुरती , गुटखा , खैनी , बीड़ी , सिगरेट , हुक्का , शराब या हर समय जंक भोजन करने वाले व्यक्ति के । या ऐसा आदमी जो दांतों की उचित देखभाल और सफाई न करता हो उसके । ऐसे व्यक्ति के दांत और मसूड़े सड़ गए होंगें या सड़ने के करीब होंगें और उनसे निकलता मवाद उसके शरीर को विषाक्त कर रहा होगा । इसी प्रकार पेट की तमाम बीमारियों की जड़ में हमारा समय- असमय पर भोजन , जंक भोजन और अनुचित जीवन शैली मुख्य रूप से जिम्मेदार होती हैं । पेट की खराबी से उस व्यक्ति को अपच , गैस , अति अम्लता , कब्ज और जिगर की बीमारियाँ सताएंगी । आजकल पेट के अंदर उपस्थित अति सूक्ष्म जीवाणुओं के समूह ( माइक्रोबायोम ) के हानिकारक और लाभकारी प्रभावों पर गहन चर्चा हो रही है । सूक्ष्मता से विचार करें तो पता चलेगा कि आजकल की अनेक बीमारियों जैसे कम उम्र में मोटापा , ब्लड प्रेशर , डायबिटीज , हार्ट अटैक या लकवा के पीछे भी यही आदतें मुख्य कारण मानी जाती हैं । खराब दांत और पेट में आंतों की गड़बड़ी तो मात्र एक बाहरी लक्षण हैं ।
9. बड़े भाग मानुष तन पावा ,
मानव हो चिकित्सक सा भाग्य ,
सोने में सुहागा सा सौभाग्य :
महान विकासवादी वैज्ञानिक चार्ल्स डार्विन (1809-1882)के बहुत पहले गोस्वामी तुलसीदास (1497-1623) ने बड़े ही स्पष्ट शब्दों में लिखा है की जीव विकास क्रम में मनुष्य होना बड़े सौभाग्य की वस्तु है । इसलिए मनुष्य को हमेशा परोपकार और सकारात्मक कामों ही लगे रहना चाहिए । मनुष्य होकर यदि आपको चिकित्सक बनने का सौभाग्य मिलता है तो यह सोने में सुहागा जैसी स्थिति है जिसका सदुपयोग आप निरंतर दूसरों के दुख निवारण में करें यही श्रेष्ठ है । इसीलिए कहा गया है – चिकित्सतात् पुण्य तमं न किंचित् ’ अर्थात चिकित्सा से बढ़ कर कोई पुण्य कर्म नहीं।

(डाक्टर श्रीधर द्विवेदी, वरिष्ठ हृदय रोग विशेषज्ञ, नेशनल हार्ट इंस्टीट्यूट, नई दिल्ली)

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