डॉ.बचन सिंह सिकरवार
हाल में पैगम्बर मुहम्मद साहब के 1500वें जन्म दिवस ‘ईद ए-मिलाद उन नबी‘ के अवसर पर जम्मू-कश्मीर समेत देश के कई राज्यों के शहरों में इस्लामिक कट्टरपंथियों द्वारा जुलूस-ए-मुहम्मदी में जिस तरह के राष्ट्रीय प्रतीक चिन्ह सिंह अशोक लाट को तोड़ने, फलस्तीनी झण्डे फहराने और हमें चाहिए निजाम-ए-मुस्ताफा’, ’गुस्ताख-ए-रसूल एक सजा सर तन की सजा’ मजहबी भड़काऊ नारे लगाए हैं वह अत्यन्त चिन्ता का विषय है। उनके इन कृत्यों से यह नहीं लगता इन लोगों को देश के संविधान और कानून का भय है। इनके विचार से उनके मजहबी उसूलों की तुलना में राष्ट्रीय प्रतीक का कोई मूल्य नहीं है। इतना ही नहीं, इन्होंने जुम्मे की नमाज से लेकर अपने पर्व-त्योहारां को भी सरकार और दूसरे धर्म के लोगों से नफरत तथा प्रतिशोध लेने का मौका बना दिया है।इस बीच दहशतगर्द संगठन ‘द रजिस्टेट फोर्स’(टीआरएस)ने द्रख्शां अंद्राबी के हजरतबल दरगाह में अशोक चिन्ह लगी पट्टिका को अनुचित और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ समर्थक नेता बताते हुए उन्हें और उनके परिजनों की जान लेने की धमकी दी है। क्षोभ की बात यह है कि इतने सब के बाद भी कथित पंथनिरपेक्ष और अभिव्यक्ति स्वतंत्रता के पैरोकार बुद्धिजीवी, लेखक, पत्रकार,साहित्यकार, अभिनेता और राजनीतिक दलों के नेता खामोश हैं।इनमें से किसी ने भी न राष्ट्रीय प्रतीक को तोड़ने और द्रख्शा अंद्राबी को धमकी दिये जाने तक विरोध नहीं किया है।
अब सबसे पहले चर्चा जम्मू-कश्मीर की राजधानी श्रीनगर स्थित हजरत बल दरगाह की कर लेते हैं, जहाँ 5सितम्बर, शुक्रवार को दरगाह में नमाज-ए-जुम्मा के लिए पूरे कश्मीर से हजारों लोगों जमा हुए थे। इसी दौरान कुछ लोगों की नजर वहाँ लगी पट्टिका पर पड़ी,जिस पर अंकित राष्ट्रीय चिन्ह अशोक की लाट सिंह के मूर्ति पर गई। इस पर यह कहते हुए आपत्ति की कि यह इस्लाम/शरिया के उसूल के खिलाफ है,इसे नहीं लगाया जाना चाहिए। इस बीच इस्लामी कट्टरपंथियों ने नारे लगाए,‘‘हमें चाहिए क्या? निजाम-ए-मुस्तफा -निजाम-ए-मुस्तफा’। यह पट्टिका इसी 3सितम्बर को हजरत बल दरगाह के सुन्दरीकरण के बाद जम्मू-कश्मीर की मुस्लिम वक्फ बोर्ड की चेयरमैन द्रख्शां अंद्राबी ने उद्घाटन कर लगायी थी। इसके तुरन्त बाद पहले पुरुषों ने इस पट्टिका तोड़ने की कोशिश की। जब पुलिसकर्मियों ने उसे बचाने का प्रयास किया,तो उन्होंने पुलिसकर्मियों के हस्तक्षेप से बचने के लिए महिलाओं को आगे कर उनसे तुड़वाया। वैसे सवाल यह है कि अगर बात इतनी ही होती,तो हमें चाहिए क्या, निजाम-ए-मुस्तफा’ जैसे नारे क्यों लगे? दरअसल, 5 अगस्त,2019 को केन्द्र सरकार ने इस सूबे को खास दर्जे देने वाले अनुच्छेद 370 और 35ए जरूर निरस्त कर दिया है, पर यहाँ के इस्लामी कट्टरपन्थियों का जम्मू-कश्मीर को इस्लामिक देश या पाकिस्तान में मिलने का ख्वाब अभी पूरी तरह टूटा नहीं है। इस पर मुस्लिम वक्फ बोर्ड की चेयरमैन ने कड़ा विरोध किया है। उन्होंने अशोक चिन्ह के अपमान बताते हुए इसे आतंकवादी घटना जैसा भी कहा है। उनका कहना था कि दहशतगर्द/आतंकवादी जंगल में नहीं,यहाँ भी हैं। इनका इशारा नेशनल कान्फ्रेंस और उनके नेताओं की ओर है। उन्होंने हंगामा करने वालों का एक सियासी दल से जुड़े गुण्डे बताया । चेयरमैन अंद्राबी ने परिसर में भीतर अशोक चिन्ह को सही ठहराते हुए कहा कि राष्ट्रीय प्रतीक को नुकसान पहुँचाने वालों के खिलाफ गैर पब्लिक सेफ्टी एक्ट(पीएसए)के तहत कार्रवाई की जाए, नहीं है तो वह भूख हड़ताल करेंगी। उनका कहना है कि अशोक चिन्ह को तोड़ना राष्ट्र और संविधान का अपमान है। वह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह से अपील करती हूँ कि इस मामले में लिप्त तत्त्वों के विरुद्ध कठोर कार्रवाई करें,जिन्होंने राष्ट्रीय चिन्ह का अपमान किया। द्रख्शां अंद्राबी ने यह सही कहा है कि अगर इस्लामिक कट्टरपंथियों की नजर में अशोक चिन्ह इस्लामी उसूलों के खिलाफ है तो वे अंकित पासपोर्ट या छोटे -बड़े नोटों और सिक्कों का इस्तेमाल क्यों करते हैं?यहाँ तक कि जकात करते वक्त नोटों को सिर से क्यों लगाते हैं?
हजरतबल दरगाह के उत्पात के समय नेशनल कान्फ्रेंस के अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री डॉ.फारूक अब्दुल्ला ने लोगों को शान्त कराने के लिए यह जरूर कहा,‘‘आज इबादत का दिन है। हम सभी को इबादत करनी चाहिए,किन्तु में द्रख्शां अंद्राबी के मुताबिक इस उपद्रव के पीछे नेशनल कान्फ्रेंस और मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला हैं। तब भी इसी पार्टी के प्रवक्ता और विधायक तनवीर अहमद सादिक ने कहा,‘‘मैं इस्लाम का जानकार नहीं हूँ, पर जहाँ तक मैं समझता हूँ कि इस्लाम में सिर सिर्फ खुदा के सामने झुकता है। अशोक चिन्ह मूर्ति के रूप में है,जो मूल इस्लामी मान्यता के विपरीत है। उनके इस कथन से भी स्पष्ट है। इधर कुछ ऐसा ही मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला का कहना रहा है। उनका कथन है कि हजरत बल दरगाह को उनके पितामह शेख अब्दुल्ला ने बनवाया था,पर उन्होंने तो अपने नाम की पट्टिका नहीं लगवायी थी। ऐसे में वक्फ बोर्ड की चेयरमैन द्रख्शां अंद्राबी को अपने नाम की पट्टिका लगवाने की क्या जरूरत थी? ऐसे में उनकी राजनीतिक प्रतिद्वन्द्वी पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती तथा अन्य नेता खुद को इस्लामिक कट्टरपंथी और अलगाववादी दिखाने की होड़ कैसे पीछे रहते?इन सभी ने भी दरगाह में राष्ट्रीय प्रतीक लगाने की आलोचना की है यानी ये भी इस्लामिक कट्टरपंथियों किये का सही ठहरा रहे हैं। इससे जाहिर है कि हजरतबल दरगाह में राष्ट्रीय प्रतीक के अपमान के पीछे सिर्फ मजहबी नहीं, सियासी कारण भी रहे हैं। मजहबी उसूलों के टूटने के बहाने नेशनल कान्फ्रेंस के नेता भाजपा/राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ समर्थक द्रख्शां अंद्राबी को नीचा/अपमानित करना चाहते हैं। यदि ऐसा भी है तो सियासत के लिए राष्ट्रीय प्रतीकों का अपमान किया जाना चाहिए,जो किसी भी स्थिति में क्षमा/माफी नहीं योग्य नहीं है। इसके गुनाहगारों को सख्त से सख्त दिलायी जानी चाहिए,ताकि फिर कोई इस सूबे को इस्लामी स्टेट बनाने ख्वाब देखने की जुर्रत न करें। अफसोस की बात यह है कि हजरतबल दरगाह में उपद्रव की पीछे सत्तारूढ़ पार्टी और उसके नेताओं हैं जिन्होंने संविधान की शपथ ली है,जिन्हें संविधान और राष्ट्रीय प्रतीकों के सम्मान की कतई परवाह नहीं।ऐसे सियासती नेताओं के रहते इस सूबे को पूर्ण राज्य का दर्जा देना और उनकी कमान अलगाववादी और धर्मान्ध राजनीतिक नेताओं को सौंपना कितना सुरक्षित होगा? यह विचारणीय प्रश्न है। इस सवाल को कथित पंथनिरपेक्ष राजनीतिक दलों के नेताओं,उन जैसे बुद्धिजीवियों से जरूर पूछा जाना चाहिए,क्या राष्ट्रीय प्रतीकों में भी मजहबी नजरिये से देखा जाना चाहिए?अगर उन्हें मजहब देश के संविधान के ऊपर खायी देता है,तो खुद को संविधान का मानने वाला कहना बन्द कर देना चाहिए,ताकि उनके नजरिए को लेकर लोग गुमराह न हों।
अब हजरतबल दरगाह में लगे शिलापट पर अंकित राष्ट्रीय प्रतीक अशोक चिन्ह को तोड़ने की घटना पुलिस-प्रशासन ने गम्भीरता से लिया है। अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ राष्ट्रीय प्रतीक चिन्ह अपमान, धार्मिक समारोह में जानबूझकर अशान्ति फैलाने और हथियारों से चोट पहुँचाने का मामला दर्ज कर जाँच शुरू कर दी। इस मामले में 26लोगों को हिरासत में लेकर पूछताछ भी की जा रही है।इस मामले में भारतीय न्याय संहिता की जो धाराएँ लगाई गई है,उनमें गैर जमानती और दोष साबित होने पर छह माह से लेकर तीन साल तक के कारावास का प्रावधान भी है।
अब बात करते हैं मध्य प्रदेश के नगर सागर की, जहाँ ईद-ए-मिलाद उन नबी के जुलूस में इस्लामिक कट्टरपंथियों ने बगैर किसी उकसावे के ‘नारा-ए-तकवीर, अल्लाह हो अकबर’,के साथ-साथ ‘गुस्ताख-ए-रसूल की एक ही सजा,सर तन से जुदा’के नारे लगाये। क्या इससे यह नहीं लगता कि इनके मन में कहीं न कहीं गैर मुसलमानों को लेकर कितनी नफरत भरी है या फिर ये दूसरों धर्म मानने वालों को भयभीत करना चाहते हैं? स्वाभाविक पुलिस-प्रशासन ने शान्ति-व्यवस्था बनाए को देखते तत्काल कार्रवाई जरूर नहीं की,पर इस नारे को लगाने वालों को चिन्हित कर कार्रवाई जरूरी की जाएगी। इधर इसी दिन उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद नगर में निकले ‘जुलूस-ए-मुहम्मदी‘ में शामिल कुछ युवकों द्वारा फलस्तीनी झण्डा लहराया गया।फिर इसका वीडिया बनाकर इण्टरनेट मीडिया पर प्रसारित कर दिया। क्या इससे यह नहीं लगता कि इन्हें राष्ट्रीय ध्वज से कहीं अधिक फलस्तीन का झण्डा अपना लगता है,क्योंकि वहाँ उनके हममजहबी रहते हैं। अब इस मामले में एसएसपी सतपाल अंतिल ने आवश्यक कार्रवाई किये जाने की बात कही है। रामपुर में जुलूस-ए-मुहम्मदी में कीचड़ गिरने पर गोलीबारी और पत्थरबाजी हुई,जिसमें एक ही समुदाय के कई लोग घायल हो गए।इन घटनाओ से स्पष्ट है कि ये कितने मजहबी और कितने सियासी या सिर्फ दंगाई हैं?
मध्य प्रदेश में उज्जैन में गणेश विर्सजन जुलूस में लव जिहाद से सम्बन्धित झांकी निकाले जाने पर मुसलमानों ने हंगाम खड़ा कर दिया,जो इस झांकी को हटाने के बाद हंगामा शान्त हुआ। इसी सूबे के एक अन्य शहर में ‘द केरल स्टोरी‘ और ‘हिन्दू युवती के टुकड़े किये जाता दर्शाने पर झांकी पर आपत्ति जताते हुए इस्लामिक कट्टरपंथियों ने उत्पाद मचा दिया। अब कुछ समय पहले उत्तर प्रदेश कुछ शहरों में राष्ट्रीय झण्डा उतार कर इस्लामिक झण्डा फहरा दिया गया,एक जगह पर राष्ट्रीय झण्डा से ऊपर इस्लामिक झण्डा लगा दिया। उत्तर प्रदेश में धर्मान्तरण कराये जाने के विरुद्ध सख्त कानून है और ऐसे लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई भी की जा रही है।फिर भी लव जिहाद की घटनाएँ कम नहीं हो रही हैं। अम्बेडर जनपद के 18थानों में विगत एक माह में 56 युवतियों/किशोरियों का अपहरण हुआ है,जिनमें अधिकांश अनुसूचित जाति की हैं और उनके अपहरण करने में कोई एक़ दर्जन से अधिक मामलों में आरोपी मुसलमान युवक हैं। शायद ही कोई दिन ऐसा जाता है जब दैनिक समाचार पत्रों लव जिहाद या धोखे या जबरदस्ती मतान्तरण कराने का समाचार प्रकाशित न होता हो। यह सब देखते हुए नहीं लगता कि वर्तमान कानून से न इस्लामिक कट्टरपंथियों को किसी तरह का भय और न मतान्तरण या लव जिहाद में जुटे गुनाहगारों को। ये सभी राष्ट्रीय समस्याएँ हैं,जिनके लिए कानून की जरूरत है। विडम्बना यह है कि राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम में यह सब अपराध ही नहीं हैं। इन फितरतियों को सबक सिखाने या इनका पक्का इलाज करने को खास कानून बनाना अब जरूरी हो गया है।
सम्पर्क-डॉक्टर बचन सिंह सिकरवार वरिष्ठ पत्रकार, 63ब,गाँधी नगर,आगरा-2820003 मोबाइल नम्बर-9411684054
जरूरी है इस फितरत का पक्का इलाज

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