कार्यक्रम

हमारे सिर पर सदैव छत्र की तरह तना रहता है पिता का वात्सल्य : डॉ. गोपाल चतुर्वेदी

इंटरनेशनल फादर्स डे (16 जून) पर विशेष

 

इंटरनेशनल फादर्स डे मनाने का शुभारंभ सर्वप्रथम 19 जून सन् 1910 में स्पोकेन(वॉशिंगटन) में सौनोरा स्मार्ट डोड के द्वारा किया गया था।यह प्रतिवर्ष जून माह के तीसरे रविवार को मनाया जाता है।इस वर्ष यह 16 जून 2024 को समूचे विश्व में अत्यंत धूमधाम से मनाया जायेगा।
“पिता” शब्द की व्युत्पत्ति “पा” धातु से हुई है।जिसका अर्थ होता है – “रक्षा करना” तथा “पालन करना”।
हमारे देश की संस्कृति अपने मृतक पूर्वजों के श्राद्ध हेतु पूरे एक पखवाड़े तक उनके प्रति श्रृद्धा का भाव रखने की संस्कृति हैं।हमारे प्राचीन धर्म ग्रंथों ने भी “पितृ देवो भव:” का उद्घोष किया है।हमारे पिता न केवल पिता अपितु पितृ रूप देवता हुआ करते हैं, जो कि हमें जन्म देकर और वर्षों तक अपने हृदय से लगा कर अति स्मरणीय आनंद प्रदान करते हैं। वे हमें हमारे शैशव काल में हमारी उंगली पकड़ कर चलना सिखाते हैं।साथ ही वे हमें अपनी पीठ पर बिठा कर मेलों व तमाशों में घुमाते हैं।इसके अलावा वे हमें अपने हाथों से हमारे हाथों में कलम थमाकर शिक्षा ग्रहण करने हेतु स्कूल में भर्ती कराते हैं।हमारे चरित्र निर्माण का संदेश उनके ही संरक्षण में हमको प्राप्त होता हैं।पिता के वात्सल्य का छत्र हमारे सिर पर सदैव तना रहता है।उनका यह ऋण हमें श्रेष्ठ संस्कारों की पूंजी से अलंकृत करता है।साथ ही हमारा मार्गदर्शक बन कर हमें सदैव सद्मार्ग पर आगे बढ़ते रहने के लिए प्रेरित करता है।पिता से ही बच्चों की पहचान होती है।उनका प्रेम अनमोल होता है।उनके आशीर्वाद से दुनिया की बड़ी से बड़ी कामयाबी हासिल की जा सकती है।हमारी प्रत्येक समस्या का समाधान हमारे पिता के पास होता है।हमको अपने पिता की महत्ता का ज्ञान तब होता है,जबकि हम स्वयं पिता बनते हैं।पिता का प्रेम दुनिया में अनमोल है।उनसे बड़ा मार्गदर्शक दुनिया भर में कोई भी नही हो सकता है।प्रत्येक बच्चा अपने पिता से ही तमाम सद्गुण सीखता है और उन्हें जीवन भर परिस्थितियों के अनुसार अपने में ढालने का कार्य करता है।उनके पास हमें देने के लिए ज्ञान का अमूल्य भंडार होता है।जो कि कभी खत्म नहीं होता है। वस्तुत: पिता ज्ञान, ध्यान और आत्म अभिमान के स्रोत हुआ करते हैं।क्योंकि वे त्यागपूर्ण, धैर्यवान, विनम्र, इनामदार, क्षमाशील और निस्वार्थ होते हैं।
पिता के सम्मान में चार पंक्तियां इस प्रकार हैं –
“कभी अभिमान, तो कभी स्वाभिमान हैं पिता।
कभी धरती, तो कभी आसमान हैं पिता।
मेरा साहस, मेरी इज्जत, मेरा सम्मान हैं पिता।
मेरी ताकत, मेरी पूंजी, मेरी पहचान हैं पिता।।”

(लेखक प्रख्यात साहित्यकार हैं)
डॉ. गोपाल चतुर्वेदी
रमणरेती, वृंदावन
मोबाइल – 9412178154

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