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भक्ति में शक्ति की नहीं भाव की प्रधानता होती है : पं. राजेश गावशिंदे

(डॉ. गोपाल चतुर्वेदी)

नैमिषारण्य।भगवान अपने भक्तों से कभी कोई अपेक्षा नहीं रखते। इसलिए कहा गया है कि भगवान भाव के भूखे हैं ।अगर मनुष्य सच्चे मन से प्रभु का सुमिरन करता है तो वह पुकार भगवान तक अवश्य पहुंचती है ।
गजेंद्र मोक्ष के प्रसंग की सुंदर व्याख्या करते हुए श्रीमद्भागवत कथा के यशस्वी प्रवक्ता पंडित राजेश गांवशिंदे महेश्वर (म.प्र.)वालों ने भक्ति की सुंदर व्याख्या करते हुए कहा कि भक्ति सदैव निष्काम भाव से ही की जानी चाहिए।
भक्ति में कामना जीव के शिव से मिलन में बाधा उत्पन्न कर देती है।परमात्मा मनुष्य से केवल उसका मन चाहते हैं।कुछ देर के लिए ही सही, हमारा मन प्रभु चरण में विश्राम पाये तो निश्चित ही हमारा जीवन धन्य हो जाए।
उन्होंने कहा कि गज और ग्राह की कथा हमें यह दिव्य संदेश देती है, कि हम निज बल पर अभिमान न करें और प्रभु के अमित बल का सदैव स्मरण बनाए रखें। जब तक गजराज ने लड़ाई में अपने बल पर भरोसा किया, वह सफल न हो सका। कुटुम्बियों की मदद के बाद भी नदी की गहराई में डूबने लगा। परन्तु जैसे ही आत्म समर्पण कर प्रभु की आर्त भाव से प्रार्थना की, करुणाकर भगवान तत्काल गरुड़ पर सवार होकर आ गए।अत: कहा गया है के भक्ति में शक्ति की नहीं भाव की प्रधानता होती है।

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