राजनीति

तो अब तालिबान की धौंस से डरायेंगी

डॉ. बचन सिंह सिकरवार
गत दिनों जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी(पीडीपी)की अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती द्वारा जम्मू-कश्मीर के हालात की तुलना अफगानिस्तान से करते हुए यह कहना जिस वक्त सब्र का बाँध टूटे जाएगा, तब आप नहीं रहोगो, मिट जाओगो। शायद महबूबा मुफ्ती भी अपने मुल्क के दूसरे इस्लामिक कट्टरपन्थियों की तरह तालिबान में उन्हें इस्लाम का सबसे बड़ा ‘मुजाहिद’ नजर आ रहा है, जो इसके जरिए जल्द ही दुनिया में ‘निजाम-ए-मुस्तफा’ कायम होने के ख्वाब को हकीकत में बदलते देख रहे हैं। ये लोग तालिबानो को उनकी इस कामयाबी के लिए मुबारकबाद देने के के साथ सलाम-ए- मुहब्बत भी पेश कर रहे है। हालाँकि महबूबा मुफ्ती इस्लामिक कट्टरपन्थी तालिबानो के कारनामों को लेकर भी बेहद फिक्रमन्द दिखायी दे रही हैं, क्योंकि इनकी वजह से तालिबान की पहचान मजहबी संगठन से कहीं ज्यादा ‘दहशतगर्द गिरोह’की बनी हुई है,क्यों कि ये तालिबानी बेकसूर गैर इस्लामिक लोगों, अपने विरोधियों ,औरतों और बच्चों को जल्लाद से कम नहीं हैं। नतीजा यह है कि दुनियाभर के मुल्क तालिबान की सरकार को आसानी से तस्लीम(मान्यता) नहीं करेंगे। इस कारण ही महबूबा ने तालिबान से यह अपील करना जरूरी समझा कि वह इस्लाम के नाम पर जुल्म न करें।आश्चर्य की बात यह है कि फिर भी वह तालिबान को अपना आदर्श समझती हैं।
वैसे महबूबा के इस धौंस, धमकी भरे बयान में उनकी नाउम्मीदी और नाराजगी से पैदा खीज ही नजर आती है जिसकी वजह 5 अगस्त, 2019को केन्द्र सरकार द्वारा जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले संविधान के अस्थायी अनुच्छेद 370 और 35ए समाप्त किये जाना है। इसके बाद से उन जैसे सियासत करने वाले नेताओं का हमेशा-हमेशा के लिए सत्ता हासिल कर सुख भोगने की उम्मीद और उनका इस सूबे में शरिया लागू होने या फिर पाकिस्तान को सौंपने का ख्वाब टूट जाना है। उनके इस देशद्रोहपूर्ण बयान की जितनी मजम्मत की जाए वह कम ही होगी। कायदे से तो उनके खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई की जानी चाहिए। महबूबा मुफ्ती भी उन सियासती नेताओं में से एक है,जो सियासत का मुखौटा लगाए इस सूबे में जिहाद चला रहे थे।ये लोग इस्लामिक संगठन ‘आइ.एस.’ और पाकिस्तान के झण्डे लहराते हुए हिन्दुस्तान मुर्दाबाद,पाकिस्तान जिन्दाबाद के नारे लगाते हुए भारतीय सुरक्षा बलों पर पत्थरबाजों के संरक्षक बने हुए थे।वैसे महबूबा इससे पहले भी कई अपने मुल्क के खिलाफ ऐसा जहर उगलती आयी हैं।उनका कहना था कि अनुच्छेद 370हटाने के बाद कश्मीर में झण्डा उठाने वाला नहीं बचेगा,लेकिन पिछले दो साल में कितने कश्मीरी तिरंगा उठाये हुए हैं,क्या उन्हें नजर नहीं आ रहा है?
महबूबा मुफ्ती ने अफगानिस्तान की मिसाल देते हुए यह कहना कि जब दिल और दिमाग नहीं जीतेंगे,तो फौज काम नहीं आएँगीं। आखिर में तालिबान ने अमेरिका को अफगानिस्तान ने भागने पर मजबूर कर दिया। दरअसल, उनकी यह मिसाल ही गलत है। इस्लाम के उद्भव के पहले से जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा धर्म , सभ्यता, संस्कृति, शिक्षा का केन्द्र रहा है। यह सूबा मुसलमानों से पहले हिन्दुओं और बौद्धों का था। यहाँ महज कोई चार सौ साल पहले इस्लाम आया था।इस सूबे के मुसलमानों के पूर्वज भी हिन्दू रहे हैं। अब भी सिर्फ मुसलमानों का नहीं है। ऐसे में भारत की अमेरिका से तुलना ही बेमानी है। भारतीय सुरक्षा बल किसी भी सामान्य नागरिक का उत्पीड़न नहीं करते। अलगाववादियों और आतंकवादियों को भी पहले आत्मसमर्पण करने को कहते है। उसके बाद गोली चलाते हैं, क्योंकि वे बेकसूरों की जान लेने के साथ इस मुल्क को तोड़ना चाहते हैं। महबूबा भारत को तालिबान का डर दिखा रही हैं, जिसकी फौज ने सन् 1971में पाकिस्तान को बुरी तरह पराजित कर उसे न सिर्फ दो मुल्कों में बाँट दिया था, बल्कि उसके 93 हजारो से ज्यादा सैनिकों हथियार डालकर आत्मसमर्पण करने को मजबूर कर दिया। भारतीय सेना पाकिस्तान को अब तक हुए युद्धों मंे हरा चुकी है। वर्तमान में भारतीय सेना विश्व की गिनीचुनी श्रेष्ठ सेनाओं मंे एक है,जो आज दुनिया की महाशक्ति होने का दम्भ भरने वाले चीन से टकराने का तैयार हैं।
हमेशा की तरह महबूबा मुफ्ती अब भी इस बयान में यह सलाह देने से नहीं चूकीं कि जिस तरह वाजपेयी जी ने कश्मीरियों और पाकिस्तान से बातचीत का सिलासिला शुरू किया था, उसी तरह मोदी सरकार भी शुरू करे। वे किसी तरह की बातचीत चाहती हैं?यह उन्होंने कभी खुलकर नहीं बताया।फिर कश्मीरियों से वह किसी तरह की बातचीत की अपेक्षा करती हैं,क्या वर्तमान में उपराज्य और दूसरे अधिकारी कश्मीरी जनता संवाद नहीं करते? वह बातचीत में पाकिस्तान को क्यों शामिल करने की ख्वाहिशमन्द हैं,यह भी नहीं बताती? वह भारतीय कश्मीर को उसे खास दर्जा बनाये रखने की वकालत तो करती हैं,पर पाकिस्तान और चीन के नाजायज कब्जे वाले कश्मीर तथा आक्साईचिन को वापस कराने की बात कभी अपनी जुबान पर नहीं लाती हैं।इससे जम्मू-कश्मीर को लेकर फर्जी फिक्र साबित होती है।उन्हें तकलीफ यह है कि पाकिस्तान के कब्जे वाले एक तिहाई कश्मीरी इलाके में तो शरियत का शासन कायम हो गया,बाकी में किया जाना है,जो भारत के कारण नहीं हो पा रहा है। चूँकि भारत से शत्रुता रखता है,इसलिए चीन से आक्साईचिन कैसे वापस माँगे,फिर वहाँ उनकी हममजहबी भी नहीं हैं। महबूबा मुफ्ती का यह कहना कि अगर सन् 1947में भारत में भाजपा की सरकार होती ,तो जम्मू-कश्मीर का भारतीय संघ में विलय नहीं होता। तत्कालीन प्रधानमंत्री पण्डित जवाहर लाल नेहरू ने जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन नेतृत्व को यकीन दिलाते हुए कश्मीर के लोगों से वादा किया था कि वह उनकी विशिष्ट राजनीतिक,सामाजिक, सांस्कृतिक पहचान का सरंक्षण करेंगे, पूरी असत्य और नितान्त मूर्खतापूर्ण है। सच्चाई यह है कि जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन शासक राजा हरिसिंह ने तत्कालीन प्रधानमंत्री पण्डित जवाहरलाल नेहरू की उदार नीतियों कारण, बल्कि अपने राज्य पर पाकिस्तान के कब्जा होने के खतरे को देखते हुए स्वेच्छा से और बगैर किसी शर्त के भारतीय संघ में विलय किया था। अगर तब भाजपा की सरकार होती, तो पाकिस्तान उसके किसी हिस्से पर कब्जा करने का साहस ही नहीं करता।वैसे विशिष्ट राजनीतिक,सामाजिक,सांस्कृतिक पहचान कुछ और नहीं,पूरे सूबे का इस्लामीकरण एजेण्डा पूरा करना रहा है,जो अभी तक कश्मीर घाटी के विभिन्न सियासती पार्टियों के मुसलमान मुख्यमंत्री करते आए थे।
वस्तुतः पड़ोसी मुल्क अफगानिस्तान में तालिबान की कामयाबी से अपने देश में इस्लामिक कट्टरपन्थियों के हौसले कुछ ज्यादा ही बढ़ गए है,वह ये जानते हुए भी तालिबान का रुख-रवैया शत्रुतापूर्ण रहा है,फिर खुलकर अपनी खुशी का इजहार करते हुए उसका खैरमखदम कर रहे हैं। सपा सांसद शफीकुर्रहमान,शायर मुनव्वर राणा, असम में एक पुलिस कान्सटेबिल समेत 15लोगों ने इण्टरनेट तालिबानो की तरफदारी की है।इनमें से कुछ पर मुकद्में दर्ज हुए हैं,तो कुछ को गिरफ्तार भी किया जा चुका है।ऐसे लोगों के साथ सरकार को सख्ती से पेश आना चाहिए,जिन्हें मुल्क के दुश्मनों से मुहब्बत दिखाते शर्म नहीं आती। सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार, 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003 मो.न.9411684054

 

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