डाॅ.बचन सिंह सिकरवार

अन्ततः इजरायल में आपसी अन्तर्विरोधों के चलते प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की सात माह पुरानी गठबन्धन सरकार गिर ही गई। इसके साथ ही इस देश में एक बार फिर राजनीतिक अस्थिरता के दौर शुरु हो गया। वैसे सरकार गिरने के लिए अब लिकुड पार्टी और ब्ल्यू एण्ड व्हाइट पार्टी के के नेता एक-दूसरे पर समझौते के उल्लंघन का आरोप लगा रहे हैं। इसके बाद अब आम 23 आगामी मार्च में आम चुनाव कराने की घोषणा की गई है। हालाँकि इसका तात्कालिक कारण आम बजट पर सहमति न होना जरूर बताया जा रहा है, लेकिन एक सर्वे में 43 प्रतिशत जनता देश में पुनः चुनाव कराने के लिए नेतन्याहू को, तो 18 फीसदी लोग ब्ल्यू एण्ड व्हाइट पार्टी के नेता बेन्नी गेण्ट्ज को जिम्मेदार मान रही है। सम्भवतः इसका असल कारण इन दोनों के मध्य अविश्वास है। अब चैंकाने की एक बात यह है कि एक टी.वी.चैनल के सर्वे में अगले प्रधानमंत्री के रूप में 43 प्रतिशत ने नेतन्याहू को पसन्द किया है, जिन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगने की वजह से एक अर्से से लोग उन्हें हटाने के लिए आन्दोलन करते आए हैं। इनमें हजारों लोगों की भीड़ जुटती रही है। इजरायल के 36 प्रतिशत लोग पूर्व गृहमंत्री गिडिओन सार तथा 23 फीसदी ने पूर्व रक्षामंत्री तथा यमीना पार्टी के नेता नेफाली बेनेट को प्रधानमंत्री बनाना चाहते हैं।
मध्य-पूर्व(पश्चिम एशिया) में इजरायल अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण वैसे ही अत्यन्त असुरक्षित देश है,जो तीन ओर से अपने जन्मजात शत्रु अरब मुस्लिम मुल्कों से घिरा हुआ है। इतना ही नहीं,दुनिया के ज्यादातर मुल्क उसे नफरत की निगाहों से देखते हैं,क्योंकि यह विश्व का एकमात्र ‘यहूदी’ देश है, जिन्हें कभी उनके पूर्वजों ने फिलीस्तीन जीत कर उन्हें दुनियाभर में भटकने का मजबूर किया था। लेकिन 29नवम्बर,सन् 1947 को राष्ट्र संघ ने फिलीस्तीन का विभाजन करके एक भाग ज्यूज (यहूदियों)को और एक भाग अरबों को दे दिया। यह देश 14 मई,सन् 1948 को हुआ। 15मई,1948 को यहूदियों ने अपने भाग को इजरायल राज्य के नाम से घोषित कर दिया।
पड़ोसी अरब देशों ने इजरायल पर आक्रमण कर दिया। सन् 1949 में युद्ध विराम। इजरायल के क्षेत्र में एक तिहाई की वृद्धि हो चुकी थी। मिस्र के साथ इजरायल की अनेक लड़ाइयाँ हुईं। सन् 1956 में स्वेज संकट , 1967 में 6दिवसीय युद्ध में गाजा पट्टी,पश्चिम किनारा(जाॅर्डन की नदी) और सिनाई प्रायद्वीप पर इजरायल का कब्जा हो गया। सन् 1973 में फिर युद्ध हुआ। सन् 1978 में मिस्र और इजरायल में समझौता वार्ता संयुक्त राज्य अमेरिका के ‘कैम्प डेविड’ में शुरू हुई और मार्च,सन् 1979 में शान्ति सन्धि पर हस्ताक्षर हुए। अब तक अरब देश एक साथ मिलकर और एक-एक इजरायल से युद्ध कर चुके हैं, लेकिन इन सभी में उन्हें पराजय ही मिली है। अप्रैल,सन् 1992 में इजरायल सिनाई पट्टी से हट गया।
30अगस्त,सन् 1993 को इजरायल ने सीमित फिलीस्तीनी स्वायत्ता को सहमति दी। यह 26वर्षों से साथ के क्षेत्रों से सेना के आधिपत्य की समाप्ति का पहला कदम था।फिलीस्तीन मुक्ति मोर्चा (पी.एल.ओ.) और इजरायल के मध्य 13सितम्बर को ऐतिहासिक समझौता हुआ। इजरायल और जाॅर्डन ने जुलाई,सन् 1994 में एक घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर करके 46वर्षीय युद्ध की समाप्ति की। अगस्त,सन् 1995 में इजरायल और फिलीस्तीन मोर्चे के बीच एक समझौते से पश्चिमी किनारा/तट में फिलीस्तीन स्वशासन की स्थापना हुई।
जून,सन् 1996में इजरायल के राइट विंग लिकुड पार्टी के नये नेता नेतन्याहू ने कहा कि वे कभी भी अलग फिलीस्तीन राज्य को समर्थन नहीं देंगे। इजरायल ने जून,सन् 1997में येरुशलम में फिलीस्तीनियों द्वारा सुसाइडल बाम्बिंग के बाद शान्ति वार्ता बन्द कर दी। 13 अगस्त,2020 को इजरायल तथा संयुक्त अरब अमीरात(यू.ए.ई.)के बीच, फिर 11सितम्बर,2020को बहरीन और इजरायल के मध्य शान्ति सन्धि हुई हैं। वर्तमान मंे भी फिलीस्तीनियों का उग्रवादी संगठन ‘हमास’जब तब इजरायल पर हमला करता रहता है, इसके बदले में वह भी इस इलाके में स्थित हमास के अड्डों पर तोपों से या फिर हवाई जहाज बमबारी करता है।
यद्यपि अब कई मुस्लिम देशों ने परिस्थितिवश इजरायल से राजनयिक सम्बन्ध स्थापित कर लिए है,तथापि कुछ इस्लामिक कट्टरपन्थी मुल्क तुर्की,कतर,ईरान इजरायल को नेस्तनाबूद करने की कोशिशों में लगे हुए हैं। ऐसे में इस देश के लिए राजनीतिक अस्थिरता बेहद खतरनाक साबित हो सकती है।
इजरायल में दो साल से किसी भी पार्टी का बहुमत न मिलने के कारण अस्थिरता का दौर चल रहा है, ऐसी स्थिति लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए खतरनाक है। फिर इजरायल जैसे देश के लिए और भी खतरा है,जो हर तरफ से शत्रु देशों से घिरा है। वैसे इस देश में अस्थिरता की शुरुआत 2019 में हुई,जब आम चुनाव में लिकुड पार्टी और ब्ल्यू एण्ड व्हाइट पार्टी दोनों को ही 35 -35सीटें मिलीं। बहुमत के लिए जरूरी 61सीटें किसी को भी प्राप्त नहीं हो सकी। इसके बाद सितम्बर, सन् 2019 में ही फिर आम चुनाव हुए और लिकुड पार्टी को 32 और ब्ल्यू एण्ड व्हाइट पार्टी को 33 सीटें मिलीं। दूसरी बार भी बहुमत न होने के बाद तीसरी बार 2मार्च, 2020 को राष्ट्रपति ने आम चुनाव कराए और इस बाद भी किसी क्ी बहुमत नहीं मिला। लिकुड पार्टी को 36 और ब्ल्यू एण्ड व्हाइट पार्टी को 33 सीटें मिलीं। ब्ल्यू एण्ड व्हाइट पार्टी के प्रमुख बेन्नी गेण्ट्ज ने मई,2020 नेतन्याहू के साथ आपात कालीन गठबन्धन करते हुए सरकार चलाने का निर्णय लिया। समझौता के अनुसार दोनों ही पार्टी ने तय किया कि 18-18महीने सरकार चलायेंगे। गेण्ट्ज ने नेतन्याहू पर समझौते के उल्लंघन का आरोप लगाते हुए बजट को पारित कराने में सहयोग नहीं किया और सरकार गिर गई। दरअसल, गेण्ट्ज चाहते थे कि 2020 और 2021 दोनों के बजट को एक साथ स्वीकृत कर लिया जाए।
इजरायल में में प्राचीन फिलीस्तीन का थोड़ा-सा भाग है। इसका क्षेत्रफल 20,772 वर्ग किलोमीटर तथा इस देश की राजधानी येरुशलम है। यहाँ की जनसंख्या- 7,708,400से अधिक है,जिनमें अधिकांश यहूदी तथा थोड़े इस्लाम को मानने वाले हैं। इजरायल की हिब्रू (शासकीय भाषा)तथा अरबी है। इस देश की मुद्रा न्यू शेकेल है। इजरायल ने अपने छोटे से भू-भाग में बड़े कौशल और कार्य कुशलता से कृषि तथा उद्योग दोनों का विकास किया है। उन्होंने रेगिस्तान को हरा-भरा बना दिया । कृषि विकास की प्रमुख विशेषताएँ है-सामूहिक कृषि ,सिंचाई की योजनाएँ और रेगिस्तानी भूमि को खेती योग्य बनाना है। इस देश के प्रमुख निर्यात की मदें हैं-रसीले फल। शराब बनाने का उद्योग भी व्यापक स्तर पर है। हीरा-तराशने के उद्योग में इजरायल का स्थान बेल्जियम के बाद दूसरे स्थान पर है। जाॅर्डन की घाटी तथा मृत सागर से नमक,गन्धक और पोटाश प्राप्त होता है। गाजा पट्टी का क्षेत्रफल 363वर्ग किलोमीटर तथा जनसंख्या- 10,54,200से अधिक है। इजरायल और पी.एल.ओ.के बीच 1993-1994के समझौते के तहत यह क्षेत्र स्वायत्तशासी क्षेत्र होगा। रक्षा का कार्य इजरायल का होगा और नागरिक प्रशासन फिलीस्तीनी अधिकारियों के पास होगा। यहाँ पर रहने वाले अधिकतर शरणार्थी अरब हैं।पश्चिमी तट का क्षेत्रफल 5,879वर्ग किलोमीटर है तथा जनसंख्या- 15,57,000से अधिक है। यहाँ के अधिकांश शहरों का प्रशासन फिलीस्तीनी अधिकारियों के पास है। लेकिन एक बड़े भू-भाग पर इजरायल का कब्जा है। सन् 1994 में जेरिको को फिलीस्तीनियों को दिया गया। सन् 1995 में यहाँ स्वायत्ता दी गई। सन् 1997में आंशिक तौर पर हेब्रोन से हटने पर समझौता हुआ।अब दुनिया की निगाहें इजरायल पर तब तक लगी रहेंगी, जब तक यहाँ पर आम चुनाव नहीं हो जाते है।इस देश में लोकतंात्रिक व्यवस्था को सुदृढ़ करने के लिए यह आवश्यक है कि लोग उस राजनीतिक दल को पूर्ण समर्थन देकर जिताया, जिसे वह अपने और देश हित के लिए सबसे बेहतर समझते हों।ऐसा किये बगैर इजरायल में राजनीतिक स्थिरता सम्भव नहीं है।उन्हें यह भी समझना होगा कि राजनीतिक स्थिरता से ही देश का विकास,सुरक्षा और सुशासन सम्भव है। इसलिए आगामी चुनाव में अपना मत सोच-समझ कर दें, ताकि अस्थिरता को खत्म किया जा सके।
Add Comment