श्रद्धांजली

भारतीय सियासत के हरफन मौला सियासतदार- अमर सिंह

साभार सोशल मीडिया

श्रद्धांजलि-
डॉ.बचन सिंह सिकरवार

साभार सोशल मीडिया

इसी एक अगस्त को अपने को ‘टाइगर’बताने वाले राज्यसभा के सांसद अमर सिंह का 64 वर्षीय की अवस्था में सिंगापुर में निधन हो गया, जहाँ गुदा प्रत्यारोपित कराने के बाद उनकी तबीयत खराब हो गई थी। मार्च, 2020 में भी कुछ दिल जलों ने अमर सिंह की मौत की झूठी खबर उड़ा दी थी, तब उन्होंने फिल्मी अन्दाज में एक वीडियो सन्देश के माध्यम से कहा था कि ‘‘ मैं बीमार जरूर हूँ, लेकिन डरा हुआ नहीं हूँ। मेरे कुछ शुभेच्छु और मित्रों ने अफवाह फैला दी कि यमराज मेरे प्राण ले गए ,यह सही नहीं है। टाइगर अभी जिन्दा है।’’ सम्भवतः अब यमराज को भी अमर सिंह से अपना कोई खास काम को करने की जरूरत पड़ गई होगी, इसलिए वह उन्हें अपने साथ ले गए होंगे।
अमर सिंह भारतीय राजनीति के ऐसे अनूठे नेता थे, जिन्हें आम लोगों ने भले ही किसी चुनाव के जरिए कभी नहीं चुना हो, फिर भी वह कई बार संसद के उच्च सदन में पहुँचने में सफल रहे। उनकी वाक्पटुता, प्रत्युत्पन्नमति यानी हाजिर जवाबी अपने विरोधियों पर व्यंग्यपूर्ण प्रहार, उनका बेजोड़ शब्द चयन, उक्तियाँ, उनका जुझारूपन और असीम जिजीविषा, हर किसी को अपना बना लेने की अद्भुत अपूर्व सम्मोहनीय क्षमता, असम्भव को सम्भव बना देने की कला में उन्हें खास महारत हासिल थी, यह अलग बात है कि यह सब वे कैसे कर पाने में कामयाब होते थे। जाहिर है कि अमर सिंह व्यक्ति विशेष की कोई न कोई ऐसी कमजोरी को पकड़ लेते थे, जिसके जरिए वह उससे साम, दाम, दण्ड, भेद से अपना काम निकलवा लेते थे। वैसे वह जिसके हो गए, उसके लिए कुछ भी यानी आसमान के तारे तोड़ कर भी ला सकते थे। अगर ऐसा नहीं होता, तो क्या वह दुनिया की सबसे बड़ी शख्सियत अमेरिका के राष्ट्रपति बिल क्लिण्टन को लखनऊ ला सकते थे ? जो नेता, अभिनेता, कारोबारी, मीडिया मालिक अच्छे-अच्छों से सीधे मुँह बात तक नहीं करते, उन्हें भी अमर सिंह ने अपना मुरीद बना लिया। वे उनके काम आते थे और खुद वह उनसे अपने और दूसरों के काम कराते थे। वह बड़ों बड़ों के संकट मोचक थे। उन्होंने उनकी डूबती कश्ती तब पार लगायी, जब कोई भी नाविक उसे सम्हाने को तैयार नहीं था।वह यारों के यार,दुश्मनों के जानी दुश्मन थे। अमर की पहचान राजनीतिक नेताओं के रूप में सबसे मजबूत थी। उनकी सबसे बड़ी खासियत यह थी कि वह पार्टी विशेष में रहने के बाद भी उनका सभी सियासी पार्टियों के नेता ओं से आत्मीयता ,सम्बन्ध और सम्पर्क बना रहता था। एक समय था जब अमर सिंह देश की सत्ता की धुरी हुआ करते थे। उनके इर्द-गिर्द कभी-कभार सियासत, कारोबार और फिल्मों की समूची दुनिया घूमती दिखायी देती थी। समाजवादी पार्टी में अमर सिंह की हैसियत ऐसी थी कि उनके चलते आज़म ख़ान, बेनी प्रसाद वर्मा जैसे मुलायम सिंह के दिग्गज नज़दीकी नेता नाराज़ होकर पार्टी छोड़ गए।
यह कहना भी अतिश्योक्ति नहीं होगा कि अमर सिंह रसूखदारों के रसूखदार थे। यह मुकाम उन्होंने अपनी खास खूबियों की बदौलत बनाया था। उन्होंने भी दूसरे लोगों की तरह ही राजनीति को खुद को आगे बढ़ाने की सीढ़ी बनाया। यही कारण है कि काँग्रेस में सालों रह कर भी अमर सिंह ने काँग्रेस के कथित नीति -सिद्धान्तों से ज्यादा नाता नहीं रखा, ठीक वैसे ही समाजवादी पार्टी के महासचिव और सांसद रहने के बावजूद समाजवादी नीतियों से वास्ता जोड़ने की उन्होंने कभी जरूरत महसूस नहीं की। यही वजह है कि उनका नाता आम आदमी से कहीं ज्यादा खास लोगों यानी पूँजीपतियों, उद्योगपतियों, कारोबारियों, चर्चित अभिनेताओं, अभिनेत्रियों, बिचौंलियों से रहा। अमर सिंह भले ही अपनी जोड़ तोड़ की कला के जरिए केन्द्र में संप्रग -1 बचाने और सपा का कायाकल्प करने में कामयाब रहे, पर न वह खुद कभी न चुनाव जीतने सफल रहे और न ही खुद की राजनीतिक पार्टी ‘राष्ट्रीय लोकमंच’ को चलाने में। वह मीडियाकर्मियों के मददगार ही नहीं, मीडियाकर्मी भी उन्हें अपना मानते थे। यहाँ तक कि देश की एक बड़े मीडिया संस्थान ने उन्हें मीडिया सलाहकार तक बना लिया।
अमर सिंह के आलोचकों की भी कमी नहीं है, जो उन्हें मीडियेटर, दलाल, घोर अवसरवादी, बिचौलिया, भ्रष्ट,सीडी अंकल पुकारने के साथ उनके बारे में तमाम नकारात्मक बातें करते नहीं थकते। जहाँ अमर सिंह कुछ की जरूरत थे, तो कई लोग उनसे बेहद नफरत भी करते थे उन्हें ‘दलाल’ और ‘नटवरलाल’ बोलते थे। हालाँकि अमर सिंह ने इसे कभी बुरा नहीं माना और एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में डंके की चोट पर कहा था, ‘‘हाँ, वे मुलायम सिंह यादव के लिए एक दलाल हैं।’’ अमर सिंह के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले लम्बित भी हैं। अमर सिंह के बारे में यह भी कहा जाता है कि वह राजनीति, फिल्म और बिजनेस का कॉकटेल हैं,इसमें कुछ भी गलत नहीं है। वह क्षत्रिय महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रहे थे।
अमर सिंह के गुण -अवगुण की चर्चा तब तक पूरी नहीं होगी, जब तक अमर सिंह की जिन्दगी के सफर के बारे में न जान लें। उनका जन्म 27 जनवरी, सन् 1956 को अलीगढ़ के ताले बनाने का छोटा-सा कारखाना चलाने वाले कारोबारी हरिश्चन्द्र सिंह बैस राजपूत के परिवार में हुआ, जो मूलतः उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले की तहसील लालगंज के गाँव तरगवां के रहने वाले थे। बाद में अमर का पूरा परिवार कलकत्ता(कोलकाता) के बड़ा बाजार में जाकर बस गया। अमर सिंह शुरु से ही ऐसी शख्सियत रहे हैं , जिन्हें उनके पिता भी सही से समझ नहीं पाए। उन्होंने ही अमर सिंह पर यह संदेह किया था कि उनके बेटा उतनी काबलियत का दिखावा करता है, उतनी योग्यता उसमें है नहीं। उन्हें लगता था कि उनका बेटा सेण्ट जेवियर्स या प्रेसिडेंसी सरीखे अच्छे कॉलेज में दाखिले की सोचकर अपनी अहमियत को कुछ ज्यादा ही आक रहा है। अमर सिंह का बचपन बड़ा बाज़ार कलकत्ता में गुजरा. परिवार हार्डवेयर का बिज़नेस करता था। कलकत्ता में अमर सिंह पढ़ने के लिए सेण्ट ज़ेवियर कॉलेज में प्रवेश लिया। वहाँ पर फोको, डेरिडा, सार्त्र पढ़ने वाली छात्राओं के सामने शर्माता है, झिझकता है, हिचकता है और पढ़ाई पूरी करता है। देखते-देखते वह बंगाली युवा सरीखा बन जाता है। अमर सिंह ने बंगला पर भी अपनी पकड़ बना ली। उन्हें बंगला बहुत अच्छी तरह से आती है। फिर अचानक पता चलता है कि वह बंगलौर में बिज़नेस चला रहा है। वर्तमान में अमर सिंह ईडीसीएल कम्पनी का मालिक थे , जो इन्फ्रास्ट्रक्चर और पॉवर सेक्टर में है। अमर सिंह के और भी कई बिज़नेस थे, पर अब उनके बिज़नेस के बारे में ज्यादा कुछ कहना अप्रसांगिक होगा।
अमर सिंह की स्मरण शक्ति प्रारम्भ से बहुत अच्छी थी। सेण्ट जेवियर्स में उनकी भेंट तत्कालीन काँग्रेस के नेता सुब्रत मुखर्जी और प्रियरंजन दासमुंशी से हुई। इनके सम्पर्क में आने के बाद अमर सिंह को जल्द ही समझ आ गया कि वह सिर्फ एक राज्य पश्चिम बंगाल तक सीमित नहीं रहना चाहते। वह राष्ट्रीय स्तर अपनी पहचान बनाना चाहते थे। इसके लिए उन्हें यह अवसर तब मिला, जब सन् 1985 में लखनऊ में क्षत्रिय समाज कलकत्ता की ओर से आयोजित एक बैठक में उनकी मुलाकात उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरबहादुर सिंह से हुई। जातिगत सम्बन्धों के आधार पर अमर सिंह को उनसे निकट सम्पर्क आने का अवसर मिला। तब वीर बहादुर सिंह ने अपने सजातीय युवक की वाक्पटुता को देखकर अमर सिंह को कलकत्ता से लखनऊ आकर पार्टी में सक्रिय भूमिका निभाने का न्योता दिया।
कालान्तर में अमर सिंह की भेंट माधवराव सिंधिया से हुई। 1990 और 1991 के बीच कई महीनों में वे प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर के भी अति निकट आ गये। अमर सिंह मेजबानी के लिए अलग पहचान रखते थे. अपने घर पर बड़े और रसूखदारों को आमंत्रित कर पार्टी देते थे।
सन् 1996 में जब सिंधिया ने काँग्रेस छोड़ी, उस समय अमर सिंह लगा कि वे भी ऐसा ही करने के लिए स्वतंत्र हैं। सन् 1996 में वायुयान यात्रा के दौरान अमर सिंह की तत्कालीन रक्षामंत्री मुलायम सिंह यादव से भेंट हुई। यद्यपि अमर सिंह इससे पहले भी मुलायम सिंह से मिल चुके थे,तथापि यह भेंट विशेष थी,क्योंकि इसके बाद ही मुलायम सिंह ने उन्हें पार्टी का महासचिव बना दिया। फिर समाजवादी पार्टी द्वारा उन्हें राज्यसभा के सांसद बनवाया गया। उसके बाद मुलायम के साथ उनकी बढ़ती दोस्ती एक मशहूर सियासी भागीदारी तक ले गई। समाजवादी पार्टी में रहते हुए अमर सिंह ने सपा को एक क्षेत्रीय, ग्रामीण परिवेश और यादव जाति आधारित पार्टी में दूसरी जातियों के लोगों समेत फिल्मी कलाकारों ,उद्योगपतियों को जोड़ कर उसका कायाकल्प कर यह दिखा दिया कि राजनीति में भी वह बहुत करने की काबलियत रखते हैं। जया बच्चन को राजनीति में लाने और सपा से जोड़ने का काम अमर सिंह ने ही किया था, लेकिन पार्टी से निष्कासन के समय बच्चन परिवार से इनकी दूरियाँ बढ़ गईं ,जो आज भी बनी हुई हैं। इस बारे में कहा जाता है कि अमिताभ बच्चन के बुरे वक्त में अमर सिहं ने उनका साथ बहुत निभाया ।

सन् 2002 में धीरूभाई अम्बानी का निधन हो गया। उस समय धीरुभाई अम्बानी ने 80 हजार करोड़ का टर्न ओवर करने वाली रिलायंस इंडस्ट्रीज के बँटवारे को लेकर कोई वसीयत नहीं लिखी थी। तब मुकेश और अनिल अम्बानी के बीच सम्पत्ति को लेकर विवाद उत्पन्न गया। अनिल अम्बानी ने इस मामले में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से भी सहायता का अनुरोध किया था। अनिल अम्बानी अपने मित्र अमर सिंह के कारण तत्कालीन सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह के निकटस्थ भी रहे। हालाँकि इस वजह से मुकेश अम्बानी अपने छोटे भाई से नाराज भी हुए थे, जिससे उनके बीच की दूरी और बढ़ गई थी। बाद में समाजवादी पार्टी ने अनिल अम्बानी को राज्यसभा का प्रत्याशी बनने का प्रस्ताव दिया था, लेकिन उन्होंने इसके लिए मना कर दिया था। हर क्षेत्र में अमर सिंह के दोस्त थे। वह सुपर स्टार अमिताभ बच्चन के साथ भी खडे़ हुए जिनकी कभी मुश्किल परिस्थितियों में अमर सिंह ने सहायता की। उनके बच्चन परिवार, अनिल धीरूभाई अम्बानी, मुलायम सिंह यादव और राष्ट्रीय राजनीति के मध्य बहुत अच्छे रिश्ते थे। अमर सिंह ने समाजवाद या सोशलिज्म को ग्लैमर, पावर, बिजनेस एलिट और यहाँ तक कि पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिण्टन से जोड़ा। क्लिण्टन सन् 2005 में लखनऊ में एक भोज में सम्मिलित हुए थे। मुलायम सिंह और उनके परिवार के खिलाफ आय से अधिक सम्पत्ति मामले में अमर सिंह ने यूपीए सरकार पर दबाव देकर राहत दिलाने में मदद की थी।सन् 2006 में अमर सिंह और कई बड़ी हस्तियों के बीच फोन कॉल की रिकॉर्डिंग्स सामने आयी थीं। इसमें डील की कई बातें थीं। तत्कालीन समाजवादी पार्टी नेता राज बब्बर ने मुलायम सिंह यादव से इस विषय में शिकायत भी की थी। मुलायम सिंह यादव ने उस वक्त राज बब्बर को बाहर का रास्ता दिखा दिया था। अमर सिंह ने उन रिकॉर्डिंग्स को एयर होने पर रोक लगवा दी थी।

भारतीय राजनीति में ‘चाणक्य’ माने और कहे जाने वाले अमर सिंह की उत्तर प्रदेश की मुलायम सरकार में तूती बोलती थी। कहा जाता है कि तब उनकी सहमति के बगैर कोई भी बड़ा निर्णय सम्भव नहीं था। केंद्र की संप्रग (यूपीए)-1 सरकार को बचाने में भी अमर सिंह ंने अति महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी थी। तब अमर सिंह का नाम यूपीए- 1 के समय अमेरिका के साथ प्रस्तावित परमाणु समझौते को लेकर भाजपा द्वारा लाए गए अविश्वास प्रस्ताव में सांसदों को कथित रूप से घूस देने के मामले में आया।यूपीए-1 के पक्ष में समाजवादी पार्टी का समर्थन जुटाकर अमर सिंह ने मनमोहन सिंह की सरकार बचायी थी। उस समय अमेरिका के साथ परमाणु समझौते के विरोध में 60 से अधिक वामपंथी सांसदों ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया था। इस काम में अमर सिंह आगे आए और उन्होंने समाजवादी पार्टी के सहयोग से सरकार बचायी। इस सम्बन्ध में जब अमर सिंह से पूछा गया कि क्या समाजवादी पार्टी परमाणु समझौते का समर्थन करेगी? इस पर अमर सिंह ने एक फिल्मी गाने के साथ जवाब दिया-‘‘कोई जब तुम्हारा ह्रदय तोड़ दे, तड़पता हुआ जब कोई छोड़ दे, तब तुम मेरे पास आना प्रिये, मेरा दर खुला है खुला ही रहेगा….’’ फिर कुछ दिनों बाद मुलायम सिंह यादव और अमर सिंह दिल्ली में जामा मस्जिद के शाही इमाम से मिले। इनकी भेंट पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम से भी हुई थी। दोनों बैठकों के बाद मुलायम सिंह यादव और अमर सिंह इस नतीजे पर पहुँचे कि बड़ी मुस्लिम हस्तियों ने परमाणु समझौते पर समर्थन व्यक्त किया है, इसलिए इसे बुरा नहीं मान सकते। बाद में 39 समाजवादी पार्टी सांसदों ने संप्रग-1 को बाहर से समर्थन दिया। परमाणु समझौता बच गया तथा समाजवादी पार्टी सरकार के साथ आ गई। 22 जुलाई,सन् 2008 को लोकसभा में यूपीए-1 ने विश्वास मत का सामना किया। सभी सांसदों को संसद पहुँचने के लिए कहा गया। भाजपा के तीन सांसद संसद बेल में पहुँचे और नोटों की गड्डी लहराते हुए विरोध जताना शुरू कर दिया। तब लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी थे। आरोप यह था कि उन्हें सरकार को समर्थन देने के लिए पैसे दिए गए। इसमें आरोप अमर सिंह पर लगे और उन्हें संसदीय जाँच समिति के सामने हाजिर होना पड़ा।
उस समय भाजपा के सांसद फग्गन सिंह कुलस्ते, महावीर भगौरा और एक और सांसद ने संसद में नोटों के बण्डल लहराए अपने फोटो खिंचवाये थे। अमर सिंह पर सांसदों के खरीद-फरोख्त करने के आरोप लगे थे। यद्यपि बाद में वह इन आरोपों से बरी हो गए। बाद में एक टेप और सामने आया जिसमे वह एक न्यायाधीश(जज) को सेट करने की बात कर रहे थे। मतलब लोकतंत्र (डेमोक्रेसी )को उन्होंने कहीं का नहीं छोड़ा. अपनी तरफ से पूरी कोशिश की। तिहाड़ में भी कुछ समय बिताना पड़ा था। अमर सिंह राज्य सभा के सांसद रहते हुए संसद की कई सारी समितियों यथा- विजिलेंस, मनी लॉन्डरिंग की रोक वगैरह पर काम कर चुके थे। सन् 2009 अमर सिंह को सपा ने उन्हें और उनकी साथी अदाकारा जया प्रदा को पार्टी से निकाल दिया। सन् 2011 में वे उस समय पतन के गर्त में चले गए।
संप्रग-2 से पहले अमर सिंह अत्यन्त सशक्त व्यक्ति हुआ करते थे। नौकरशाहों का कहना है कि मंत्रालयों में अमर सिंह फाइल के साथ आते थे और अपने दोस्तों के काम करा कर आसानी से चले जाते थे। हर क्षेत्र में अमर सिंह के दोस्त थे। अमर सिंह के बच्चन परिवार, अनिल धीरूभाई अम्बानी, मुलायम सिंह यादव और राष्ट्रीय राजनीति के बीच बहुत अच्छे सम्पर्क थे।
कई बार ऐसे अवसर आए जब पार्टी को उन्होंने अपने राजनीतिक समझदारी से परेशानी से उबारा। 6 जनवरी, सन् 2010 को अमर सिंह ने समाजवादी पार्टी के सभी पदों से त्यागपत्र दे दिया। इसके उपरान्त पार्टी प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने उन्हें 2 फ़रवरी, सन् 2010 को पार्टी से निष्कासित कर दिया। सन् 2011 में इनका कुछ समय न्यायिक हिरासत में भी बीता। अन्ततः इन्होंने राजनीति से संन्यास ले लिया। उस समय इन्होंने कहा था,‘‘-मैं अपनी पत्नी और अपने परिवार को अधिक समय देना चाहता हूँ। अतः चुनावों की अन्तिम तिथि (13 मई) के बाद, मैं राजनीति से संन्यास ले लूँगा।’’ अमर सिंह ने ‘‘राष्ट्रीय लोकमंच’ नाम से पार्टी भी बनायी और प्रदेश में चुनाव भी लड़ा। लेकिन पार्टी को एक भी सीट पर सफलता नहीं मिली। समाजवादी पार्टी में वापसी से पहले वह छह साल तक सक्रिय राजनीति से दूर रहे। इसके कई कारण थे जिसमें सबसे अहम थी उनकी बीमारी. अमर सिंह राजनीति से दूर नहीं जाना चाहते थे। इसलिए उन्होंने राजनीतिक पार्टी भी बनाई, लेकिन ‘राष्ट्रीय लोक मंच’ के उम्मीदवारों की सन् 2012 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान उनके अधिकांश प्रत्याशियों की जमानतें जब्त हो गयीं। सन् 2014 में ‘राष्ट्रीय लोक दल’ से लोकसभा के चुनाव लड़े और जमानत तक नहीं बचा पाए,जबकि तपती धूप और धूलभरे रास्तों पर अभिनेत्री जयाप्रदा, श्रीदेवी, उनके पति बोनी कपूर, असरानी आदि कई अभिनेताओं-अभिनेत्रियों ने उनके पक्ष में जमकर प्रचार किया था। उन्होंने काँग्रेस में सम्मिलित होने की पूरी कोशिश की, पर नाकाम रहे।. अमर सिंह अच्छी तरह जानते थे कि उन्हें अपनी सेहत की वजह से राजनीति में पूरी तरह सक्रिय होने में समस्या हो रही है, इस हकीकत को कई बार अनौपचारिक बातचीत में उन्होंने खुद मंजूर किया था।
सन् 2016 में अमर सिंह की समाजवादी पार्टी में पुनः वापसी हुई और राज्य सभा के लिए चुने गये। फ़िलहाल, अमर सिंह समाजवादी से अलग होकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी के समर्थन में आए दिन बयान दे रहे हैं। उन्होंने अखिलेश यादव को ‘नमाज़वादी’ भी घोषित कर दिया है। कभी जब अमिताभ बच्चन और अमर सिंह की दोस्ती बहुत मशहूर हुआ करती थी, पर बीच में किसी मतभेद के कारण दोनों के रिश्ते में दरार आ गयी।. सपा से रिश्ता बिगड़ने के बाद अमर सिंह ने अमिताभ बच्चन को लेकर कई जुबानी हमले किए थे। सन् 2016 में ही अखिलेश यादव और शिवपाल यादव के बीच पार्टी को लेकर चल रही खींचतान के बीच रामगोपाल ने जिस कथित बाहरी व्यक्ति को बार-बार जिम्मेदार बताया। वह कोई और नहीं, बल्कि अमर सिंह ही थे। यद्यपि इस विवाद से मुलायम ने खुद को दूर रखा,तथापि बाद में अमर सिंह को फिर से पार्टी से निकाल दिया गया। इस तरह अमर सिंह को कथित रूप से पारिवारिक विवाद के बाद समाजवादी पार्टी से निकाल दिया गया। कहा जाता है कि उनको पार्टी से निकाले जाने में आजम खान और अखिलेश यादव की प्रमुख भूमिका रही। उस समय अमर सिंह पर यह भी आरोप लगे थे कि उन्होंने मुलायम और अखिलेश को शाहजहाँ और औरंगजेब के रूप में प्रचारित कराया।अमर सिंह ने हिन्दी फ़िल्म ‘हमारा दिल आपके पास’ है में अतिथि कलाकार के रूप कार्य किया है।
सिंगापुर के अस्पताल से अमिताभ बच्चन और उनके परिवार से एक वीडियो जारी कर क्षमा माँगी है। वीडियो जारी करते हुए अमर सिंह ने कहा,‘‘ तल्खी के बावजूद यदि अमिताभ बच्चन उन्हें जन्म दिवस पर, उनके पिता की पुण्य तिथि पर मैसेज करते हैं, तो मुझे अपने बयान पर खेद प्रकट कर देना चाहिए।
लालगंज तहसील के उप निबंधक सुनील कुमार के अनुसार अमर सिंह की सम्पत्ति की सरकारी मालियत 2 करोड़ 91 लाख 55 हजार है,जो उनकी पुश्तैनी है। अमर सिंह ने एक बार कहा था कि वह अपनी सम्पत्ति अपने पिता के याद में समर्पित कर रहे हैं। दान की गई सम्पत्ति में 10 बीघा खेत और मकान शामिल हैं। सम्पत्ति दान करने के बाद अमर सिंह ने कहा कि आजमगढ़ की धरती मौलाना शिबली, राहुल सांकृत्यायन और कैफी आजमी जैसे लोगों की धरती रही है, लेकिन अब यहाँ मजहबी, जातिवादी और गन्दी राजनीति हो रही है। अमर सिंह के फार्म हाउस में ताला लगा रहता था। दो मंजिला संगमरमर मोजेक लगा हुआ अतिथिगृह है,जहाँ वह रुकते थे, जो एसी, फ्रीज, कूलर, हाई पावर जनरेटर, शानदार फर्नीचर, बेड आदि से सुसज्जित है।
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ(आर.एस.एस.) से सम्बद्ध ‘राष्ट्रीय सेवा भारती’ की शाखा ‘सेवा भारती गोरक्ष प्रान्त’ को उन्होंने समाज सेवा के लिए दान कर दिया। अमर सिंह सेवा भारती के कार्यों से बहुत ही प्रभावित थे। अमरसिंह पत्नी और दो बेटियों को छोड़कर गए हैं।

अब अमर सिंह के निधन के बाद भारतीय सियासत के इस हरफन मौला सियासतदार के न रहने से जो खालीपन पैदा हुआ है, उसकी निकट भविष्य में भरपाई आसान नहीं है। परमप्रभु परमेश्वर उनकी आत्मा को शान्ति और उनके परिवार को इस असीम दुःख को सहने की शक्ति तथा धैर्य प्रदान करें।
सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003मो.नम्बर-9411684054

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