डॉ.बचन सिंह सिकरवार

गत दिनों सेना प्रमुख जनरल मनोज मुकन्द नरवाने ने पड़ोसी नेपाल के भारत के लिए सामरिक महत्व के लिपुलेख- धारचुला मार्ग निर्माण पर आपत्ति जताने के पीछे किसी और इशारे होने की जो बात कहीं है, वह पूर्णतः है। ऐसा कह कर उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि यह विरोध और आपत्ति स्वयं नेपाल नहीं कर रहा है, बल्कि उसके पीछे चीन है। वैसे भी जिस भू-भाग पर इस सड़क का निर्माण वह भारत का है। नेपाल और भारत के बीच काली नदी विभाजक सीमा रेखा है। इसके पश्चिम में भारत तथा पूरब में नेपाल है। यह सड़क काली नदी के पश्चिम में बनी है,जो भारतीय भू-भाग है।
यह सब होने के बाद भी नेपाल अपना नया मानचित्र बनाकर इस इलाके अपना सिद्ध करने का प्रयास कर रहा है। उसका झूठ इसी से प्रमाणित होता है कि यह सड़क के साल से बन रही है, पर नेपाल ने इतने वर्षों में कभी इस जमीन पर अपना अधिकार नहीं जताया। फिर यकायक उसे इस पर हक जताने की याद कैसे आ गई ?
जहाँ तक भारत के लिए सामरिक दृष्टि से अत्यन्त महŸवपूर्ण लिपुलेख मार्ग बात है तो वह उत्तराखण्ड के पिथौरागढ़ जिला मुख्यालय से लिपुलेख तक सड़क मार्ग की दूरी 216 किलोमीटर है। इस गत 8 मई को रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने राष्ट्र को समर्पित किया है। यह मार्ग जिला मुख्यालय से गर्बाधार तक सड़क पहले से थी, लेकिन गर्बाधार से चीन सीमा पर अन्तिम पड़ाव लिपुलेख तक सड़क अभाव हमेशा खलता रहा है। इससे भारतीय सेना को साजो-सामान के साथ चीन सीमा तक तीन दिन नहीं अब तीन से चार घण्टे में पहुँचा जा सकता है। इस सड़क से कैलास मानसरोवर यात्रा, आदि कैलास, भारत-चीन व्यापार भी आसान हो गया है। इससे आइटीबीपी और एसएसबी और मजबूत होगी।

वैसे भी चीन एक अर्से से एक-एक भारत के पड़ोसी देशों को भारत से अलग कर उसे घेरने में जुटा है। चीन नहीं चाहता कि दक्षिण एशिया ही नहीं, पूरे एशिया में भारत किसी भी रूप में उसका प्रतिद्वन्द्वी बने हुए है। चीन भारत के पड़ोसी देशों को नाना प्रकार की सहायता – सहयोग के माध्यम से उन्हें अपने चंगुल फँसाने में लगा है। अब जहाँ तक भारत के नेपाल से रिश्तों का सम्बन्ध है तो नेपाल से भारत के विशेष धार्मिक, सांस्कृतिक, ऐतिहासिक सम्बन्ध है, वैसे किसी अन्य पड़ोसी देश से नहीं है। दूसरे देशों की तरह भारत और नेपाल के लोगों को एक – दूसरे के यहाँ आने – जाने के लिए पासपोर्ट, वीजा की आवश्यकता नहीं पड़ती। नेपाल की कोई 2 करोड़ 80 लाख की आबादी में से लगभग 80 लाख लोग भारत में रहकर तरह – तरह से अपनी जीविकोपार्जन करते हैं। यहाँ तक कि नेपाली युवक भारतीय सेना में भी सेवाएँ देते आये हैं। भारत और नेपाल के बीच मैत्री सन्धि है, जिसके अन्तर्गत को कई विशेषाधिकार प्राप्त रहे हैं। विश्व में नेपाल एकमात्र हिन्दू राष्ट्र था, जहाँ राजशाही थी। इसके विरुद्ध लोकतंत्रवादियों ने आन्दोलन किये, जिसमें भारत के कई समाजवादियों और लोकतत्रवादियों ने नेपाली नेताओं की सहायता की। परिणामतः यहाँ पंचायती व्यवस्था लागू हुई। उसके पश्चात् यहाँ पर नेपाली काँग्रेस तो राजशाही समर्थक दल सत्ता में आते रहे। बाद में कुछ विदेशी शक्तियाँ विशेष रूप से चीन के षड्यंत्र से राजशाही का अन्त हो गया। उसके बाद नेपाल हिन्दू राष्ट्र नहीं रहा। नेपाल काँग्रेस अन्तर्कलह से गुटों में बँट कर कमजोर हो गई। चीन बहुत पहले से नेपाल के लोगों साम्यवादी विचारधारा की आड़ में उन्हें आर्थिक सहायता देकर राजनीति रूप से सशक्त बनाया। साम्यवादी मजबूत होते चले गए और सत्ता में आ गए।

जब से साम्यवादी नेपाल की सत्ता पर काबिज हुए हैं, तब से नेपाल भारत के विरोधियों का अड्डा बन गया है। नेपाल की अर्थव्यवस्था में अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए उसने विभिन्न परियोजनाओं में बहुत अधिक धन का निवेश किया हुआ है जिनमें कई महŸवपूर्ण राजमार्ग और रेलमार्ग, बिजलीघर, दूसरे कारखाने हैं। चीन ने अपने दोस्त पाकिस्तान को भारत के खिलाफ गतिविधियाँ चलाने के लिए कई तरह की छूटें हासिल की हुई हैं। इसी कारण आज पाकिस्तानी गुप्तचर एजेन्सी ‘इण्टरसर्विसेज इण्टेलिजेन्स’ (आइ.एस.आइ.) साथ-साथ इस्लामिक दहशतगर्दो का अड्डा बना हुआ है। नेपाल की राजनीति में चीन का बोलबाला है। नेपाल ने अपनी विभिन्न परियोजनाओं में चीन के साथ भारत को जोड़ने का प्रस्ताव रखा, लेकिन उसने चीन की फितरत जानने की वजह से उनमें भागीदार बनने से इन्कार कर दिया। तब नेपाल अपनी निर्भरता भारत से कम कर चीन से हर तरह के सम्बन्ध प्रगाढ़ बनाने में लगा है, इस तरह चीन अपने मकसद में कामयाब हो गया है। वर्तमान में भारत के साथ तो बस दिखावे के सम्बन्ध रह गए हैं। लिपुलेख सड़क के मामले में अपनी स्थिति स्पष्ट किये जाने के बाद भी अब नेपाल जैसे तेवर दिखा रहा है,उससे यह छुपा नहीं रहा गया है कि वह किस की शह पर झूठा आरोप लगा रहा है। इसलिए उसने भी नेपाल को सबक सिखाने के लिए कुछ कदम उठाए हैं। इसलिए उसने नेपाल से आने वाले पाम ऑयल पर रोक लगा दी है, जो वह मलेशिया से आयात करता था। मलेशिया के पाक के अन्ध समर्थन की वजह से भारत ने उससे पाम आयल का आयात बन्द कर किया हुआ है। इससे नेपाल फायदा उठा रहा था। अब चीन के इशारे पर नेपाल जो कुछ कर रहा है, उससे भारत से ज्यादा उसे ही नुकसान होगा, यह नेपाल की समझ में जितनी जल्दी आए,उतना ही उसके हित में होगा।
सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार 63 ब,गाँधी नगर,आगरा-282003,मो.नम्बर-9411684054
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