डॉ. बचन सिंह सिकरवार

जब भारत समेत दुनियाभर के देश कोरोना विषाणु से फैली महामारी से अपने लोगों की जान बचाने में लगे हैं, तब चीन अपने सैनिक और हेलीकॉप्टर भारतीय सीमा में बार-बार भेजकर उसे युद्ध करने को उकसा रहा है, जो इस महामारी को पैदा करने और विश्व भर में फैलाने के लिए अब जिम्मेदार बताया जा रहा है। चीन भारत के साथ ये हरकतें/हिमाकत अनजाने में नहीं, वरन् सोची-समझी रणनीति के तहत कर रहा है। उसका इरादा अपने मित्र पाकिस्तान की सहायता और हौसला अफजाई के साथ-साथ भारत को पाक अधिकृत कश्मीर (पी.ओ.के.) पर किसी भी हालत में कब्जा न करने देना है, क्यों कि गिलगिट-बाल्टिस्तान होकर ही तो उसका ‘चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा’ (सीपीइसी) गुजर रहा है। इस पर उसने अरबों डॉलर का निवेश किया हुआ है। इसके जरिए चीन ‘वन बेल्ट वन रोड’ बनाकर विश्वभर के व्यापार पर अपना कब्जा जमाने की सोच रहा है, लेकिन भारत इसमें आड़े आ रहा है। अब वह अपनी इन हरकतों से लद्दाख, हिमाचल, उत्तराखण्ड, अरुणाचल, सिक्किम पर दावा जताने के साथ ही नेपाल को भी लिपुलेख मार्ग को लेकर भारत के खिलाफ भड़का रहा है, जबकि उसका नेपाल से कोई लेना-देना नहीं है।

सच्चाई यह है कि चीन अब लिपुलेख तक सड़क और इससे पहले ब्रह्मपुत्र पर अरुणाचल को जोड़ने वाला पुल बनने और उनके चालू होने से बेहद परेशान है,इनकी वजह से भारत की सुरक्षा व्यवस्था बहुत सुदृढ़ हो गई है। चीन यह सब भारत को भयभीत करने के लिए कर रहा है, ताकि वह न हिन्द महासागर में उसका रास्ता रोके और न ही दक्षिण चीन सागर में वियतनाम समेत दूसरे मुल्कों की हिमायत में आगे आए। भारत और दूसरे मुल्कों के साथ विवाद पैदा कर चीन कोरोना महामारी फैलाने को लेकर अपने खिलाफ हो रहे दुष्प्रचार से बचना और अपने खिलाफ बने माहौल से दुनिया का ध्यान हटाना चाहता है। इसकी वजह से जहाँ कई देशों ने चीन से न सिर्फ आयात कम या बन्द कर दिया है,वहीं कई बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ चीन से अपना कारोबार समेटने में लगी हैं। इतना ही नहीं, इनमें से कुछ भारत में उन्हें

लगाने पर विचार भी कर रही हैं। इधर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ‘आत्मनिर्भर भारत’ का नारा लगा कर चीन को डरा दिया है। वैसे भी पिछले सालों की तुलना में भारत ने चीन से कोई 10 अरब डॉलर के आयात कम किये हैं, जिसके अब और घटने के पूरे आसार बने हुए हैं।
अब कुछ जानकारों का विचार है कि चीन की भारतीय सीमा घुसपैठ के पीछे आगामी 22मई को भारत को ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’(डब्ल्यू.एच.ओ.) की कार्यकारिणी परिषद् का नेतृत्व मिलना है, इसे लेकर चीन उससे बहुत संशक्ति और परेशान है। यह 34सदस्यीय बोर्ड ही इस संगठन की नीतियाँ बनाता और निर्णय लेता है। इसे ही कोरोना महामारी को लेकर चीन पर लग रहे आरोपों की जाँच करनी है। साथ ही ‘विश्व स्वास्थ्य एसेम्बली में ताइवान को स्वतंत्र देश के रूप में भाग लेने पर फैसला करना है, जिसे चीन अपना ही भू-भाग मानता आ रहा है। इसलिए चीन भारत को आतंकित कर रहा है, ताकि वह उसके विरुद्ध निर्णय लेने से बचे।
वैसे तो कोई चौदह देशों से घिरा चीन अपने पड़ोसियों के भू-भाग और उनके सागरों को हरदम हड़पने की फिराक लगे रहने को बदनाम है, उसकी इस फितरत से पूरी दुनिया भी अच्छी तरह वाकिफ है। पाकिस्तान के सिवाय उसके सभी पड़ोसी देश उसे शक नजर से देखते हैं। पड़ोसी मुल्कों की जमीन हथियाने को चीन कभी अजदह (डैगन) की तरह आग उगल कर डराने की कोशिश करता है, तो कभी उनके भू-भाग पर झूठे दावे कर या फिर चूहे की तरह कुतर-कुतर कर अपना बनाने में लगा रहता है। गत 16 मई को हिमाचल प्रदेश की सीमा में चीनी हेलीकॉप्टर घुस आए। इससे पहले उसने लद्दाख में अपने हेलीकॉप्टर भेजे थे, जिन्हें भारत के सुखोई लड़ाकू विमानों ने खदेड़ दिया था। इससे पहले 9 मई को उत्तरी सिक्किम के नाथु ला में चीनी सैनिकों और भारतीय सैनिकों के बीच झड़प हुई, जिसमें दोनों पक्षों के सैनिकों को हल्की चोटें आयीं। बाद में चीन और भारत के उच्च अधिकारियों ने इन विवादों को सुलझा लिया। इसी 5 मई को पूर्वी लद्दाख की पेंगोंग झील के पास चीन की ‘पीपुल्स लिबरेन आर्मी‘(पीएलए) सैनिक घुस आए, जहाँ वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी)। तब चीन और भारतीय सैनिकों की बीच हाथापई हुई। जहाँ विगत वर्षों में अनेक बार चीन और भारतीय सैनिकों के मध्य झड़पों की घटनाएँ होती आयीं हैं। इनमें चीन और भारतीय सैनिकों द्वारा एक-दूसरे पर पत्थर फेंके गए। उसके बाद चीन सैनिक लौट गए। चीन ने पेंगोंग के पूर्वी दो-तिहाई हिस्से पर कब्जा किया हुआ है, जबकि भारत का एक- तिहाई पश्चिमी हिस्से पर आधिपत्य है। हाल में चीन की नौसेना के जहाज हिन्द महासागर में भी घुसे, जिसका भारत ने अपने विमानवाहक युद्धपोत भेजकर उनके घुसने पर विरोध जताया।
इन घटनाओं के कारण भारत-चीन के बीच तनातनी को देखते हुए कुछ लोग युद्ध होने की आशंका भी जताने लगे हैं, गत दिनों भारतीय थलसेनाध्यक्ष मनोज मुकन्द नरवाने ने स्पष्ट किया कि उत्तरी सिक्किम और पूर्वी लद्दाख की घटनाओं को चीन के साथ विवाद को सुलझा लिया गया है। इन दोनों घटनाओं का न तो आपस में कोई सम्बन्ध है और न ही किसी वैश्विक और स्थानीय गतिविधियों से ही उनका कोई लेना-देना है।
भारत और चीन के बीच 2,167 मील लम्बी सरहद है, जो वर्तमान में विश्व की सबसे लम्बी विवादित सीमा है। भारत अपने और चीन के बीच अँग्रेजों द्वारा बनायी गई ‘मेकमोहन रेखा’ को सीमा मानता है, जबकि चीन इसे मानने से इन्कार करता है। आजकल इन दोनों के बीच ‘वास्तविक नियंत्रण रेखा’(एलएसी) को मान्यता दी गई और विवादित क्षेत्रों -लद्दाख का अक्साईचिन, पेंगोंग, अरुणाचल के कुछ इलाके पर चीन अपना दावा जताता आया है। इसे वह दक्षिण तिब्बत बताता आया है। इसका कारण चीन का गश्ती दल और भारतीय सैनिकों के बीच अक्सर किसी-किसी भू-भाग पर अपने-अपने दावे को लेकर कभी आमने-सामने की बैठकें और ध्वजारोहण कार्यक्रम में मिलन,तो कभी इन्हीं सीमा विवादों को लेकर आक्रमक हिंसक झड़पें होती रहती हैं। भारत चीन सरकार को उसके सैनिकों द्वारा सीमा उल्लंघन किये जाने की घटनाओं को लेकर हर साल अपनी आपत्ति दर्ज कराता आया है। भारत ने पेंगोंग समेत दूसरी सीमा इलाके में चीनी घुसपैठ की सन् 2016 में 273, सन् 2017 में 426 और 326 सन् 2018 में शिकायतें दर्ज करायी हैं। सन् 2018 में ऐसी घटनाओं में कमी के बाद 2019 में चीन सैनिकों की घुसपैठ की 50 प्रतिशत तक वारदातें बढ़ी हैं। चीन सार्वजनिक रूप से भारत की ओर से घुसपैठ की कहीं शिकायत नहीं करता। 18 जून, 2017 को भारत, चीन भूटान के मिलन स्थल पर ‘डोकलाम’ पर भारत और चीन के सैनिकों के बीच हाथापई के साथ उग्र विवाद हुआ, जो एक पठार है। यह भारत के पूर्व सिक्किम जिला, भूटान के हा घाटी तथा चीन के यदोंग काउण्टी के मध्य अवस्थित है। इसे जहाँ भारत ‘डोकलाम’ कहता है,तो भूटान ‘डोक ला’, वही चीन इसे ‘डोकलांक’ कहता है। सामरिक दृष्टि से यह स्थान अत्यन्त महŸवपूर्ण है। इसे ध्यान में रखकर चीन यहाँ पर सड़क बनाने जा रहा था,जो भारत की सुरक्षा को खतरा में डालने वाली थी। इस स्थान से भारत इस 20 किलोमीटर चौड़े क्षेत्र के जरिए अपने पूर्वोत्तर इलाके से जुड़ता है, जिसे ‘मुर्गे की गर्दन‘ (चिकन नेक) कहा जाता है। उस समय 73 दिन तक भारतीय और चीन सैनिक आमने-सामने डटे रहे। तब चीन ने काफी गदड़ी भभकी दीं, किन्तु भारत ने उसे प्रत्युत्तर में समझा दिया कि अब वह सन् 1962 का भारत नहीं रहा, जब उसने धोखे से आक्रमण कर जम्मू-कश्मीर के लद्दाख क्षेत्र के 43,000 वर्ग किलोमीटर के अक्सई चिन के इलाके को हड़प लिया था। अक्साई चिन को चीन तिब्बत का हिस्सा बताकर उसे अपना बता रहा है, जबकि यह जम्मू-कश्मीर का अभिन्न हिस्सा रहा है। इसके राजा ने अपने इस क्षेत्र से तिब्बत और चीन को शिनजियांग आने-जाने की सुविधा दी थी। अक्सई चिन का इलाके का क्षेत्रफल स्विट्जर लैण्ड के बराबर है। इसके पश्चात् चीन ने सन् 1967 में सिक्किम के नाथु ला पर हमला किया,जिसमें भारतीय सेना उसे बुरी तरह पराजित कर दिया, जिसकी चर्चा उसने कहीं किसी से नहीं की। इसमें चीन के 400 सैनिक मारे गए थे। डोकलाम के विवाद के उपरान्त चीन ने कुछ दूर हटकर सड़क बना ली है।यहाँ से 30किलोमीटर हटकर बंकर तथा भूमिगत सुविधाओं का निर्माण कर लिया है। दिलचस्प बात यह है कि सन् 2014में चीन भारतीय सेना पर अतिक्रमण करने का आरोप लगाया था।
सन् 1913 में जब भारत उत्तरी लद्दाख में देसपांग घाटी में एलएसी के निकट अपनी निगरानी सैन्य चौकी का निर्माण कर रहा था,तब चीनी सैनिकों ने उस पर सख्त आपत्ति की। 21दिन तक चले विवाद कोई परिणाम नहीं निकला। इसके बाद चीनी सैनिकों ने दक्षिण लद्दाख के चूमर में सिंचाई के नाली बनाने से रोकने की कोशिश की। जब सितम्बर,सन् 2014को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के आमंत्रण पर चीन के राष्ट्रपति शी चिनपिंग भारत के अहमदाबाद आए हुए थे,तब चीन के कोई 1000 सैनिक पहाड़ी से जम्मू-कश्मीर के चुमार क्षेत्र में घुस आए। उस समय भारत ने उनसे अपनी आपत्ति जतायी थी। बाद में ये चीन सैनिक अपनी सीमा में लौट गए।इसके बाद भी चीन सैनिक कभी पेंगोंग तो कभी उत्तरखण्ड आदि में घुसपैठ करते आए है। इस बीच भारत एलएसी पर लगातार सामरिक महŸवपूर्ण के 60 नए मार्गों और पुरानों का आधुनिकीकरण करने में जुटा है, जो 2022 तक पूर्ण हो जाएँगे।चीन ने सन् 1962 के युद्ध में भारत को युद्ध सामग्री और नेफा(अरुणाचल) पर भारत के दावे को समर्थन दिया था।अगर अरुणाचल में चीनी सैनिकों की घुसपैठ कर भारतीय सैनिकों से भिड़ता है,उस दशा में अमेरिका इसे सीमा विवाद नहीं, भारत के खिलाफ हमला मानेगा। इस कारण अरुणाचल पर आक्रमण करने से बचता आया है। अमेरिका भारत को उसके चीन से जुड़ी सीमाओं उसकी सभी हरकतों की गोपनीय सूचनाएँ और उन्हें प्राप्त करने के उपकरण उपलब्ध कराता है,इस बारे में सन् 2018में अमेरिका ने भारत के साथ ‘संचार अनुरूपता एवं सुरक्षा समझौता’( सीओसीएएसए) समझौता किया हुआ है। वह इस इलाके में चीन के बढ़ती शक्ति और प्रभाव को रोकने के लिए भारत का साथ लेना चाहता है,ताकि दक्षिण चीन, इण्डो-पैसिफिक में चीन को रोका जा सके। इसके लिए उसने भारत को विश्वस्तरीय युद्धक हेलीकॉप्टर, तोपें, अधिक भार के टैंक,तोपे युद्धस्थल पर ले जाने के लिए हवाई जहाज दिये हैं। विश्व राजनीति में भारत भी उससे राजनयिक, कूटनीतिक, गोपनीय सहायोग की अपेक्षा रखता है। इससे चीन भी बेखबर नहीं है,लेकिन वह अपने विरुद्ध भारत की निर्णय लेने की इच्छाशक्ति तथा सामर्थ्य को आजमाना चाहता है।
सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार 63ब गाँधी नगर,आगरा-282003मो.नम्बर-9411684054
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