देश-दुनिया

पाक की गिलगिट-बाल्टिस्तान को लेकर नई चाल

डॉ.बचन सिंह सिकरवार

साभार सोशल मीडिया

गत दिनों पाकिस्तान के सर्वोच्च न्यायालय के सामरिक रूप से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण गिलगिट-बाल्टिस्तान में इन्तखाब (चुनाव) कराने की मंजूरी दिये जाने वाले फैसले के तुरन्त बाद भारत का उसके उच्चायुक्त आयोग को बुलाकर सख्त लहजे में जैसा विरोध जताया है, वह सर्वथा उचित और सामयिक है। भारत का यह कहना सही है कि यह इलाका उसका अभिन्न अंग और अपरिवर्तनीय भाग है, जिस पर उसने अवैध/नाजायज रूप से कब्जा किया हुआ है। यह क्षेत्र पाकिस्तान के सर्वोच्च न्यायालय की न्यायिक व्यवस्था के अधिकार में नहीं आता, ऐसे में इस इलाके में चुनाव को लेकर उसका किसी भी तरह का फैसला लेना बेमानी है। भारत को पाकिस्तान को इस ़क्षेत्र को तत्काल खाली कराने कहा जाना भी पूर्णतः उचित है। इधर अब गिलगिट-बाल्टिस्तान के लोग भी पाकिस्तान के सर्वोच्च न्यायालय के फैसले की खुलकर मुखालफत कर रहे हैं, क्योंकि वे भी पाकिस्तान के असल इरादों से अनजान नहीं हैं।
दरअसल, पाकिस्तान ने यह कदम सोची-समझी रणनीति के तहत अपने सर्वोच्च न्यायालय के जरिया उठाया है, ताकि इस इलाकों पर अपने कब्जे का जायज ठहराया जा सके। ऐसा करने के पीछे पाक सरकार का इरादा गिलगिट -बाल्टिस्तान को अपने दूसरे सूबों की तरह दिखाना है। पाकिस्तान के इस नए कदम के पीछे उसका इरादा चीन की सहायता करना भी हो सकता है, जिसका कोई 20,000 वर्ग किलोमीटर भू-भाग वह चीन को सन् 1963 में ही दे चुका है, जिस पर उसने सामरिक महत्त्व का ‘काराकोरम राजमार्ग’ बनाया हुआ है। अब इस इलाके में चीन अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार हेतु ‘चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा’ (सीपीईसी) का निर्माण करा रहा है, जिसमें वह अरबों डॉलर का निवेश कर चुका है। इसका भारत और अमेरिका घोर विरोध करते आए हैं। भारत का कहना है कि चीन जिस इलाके में आर्थिक गलियारा बना रहा है, वह भारत का है। इस कारण चीन भी गिलगिट-बाल्टिस्तान पर पाकिस्तान का हक साबित कराने की कोशिश में जुटा है। इसके विपरीत अब गत 5 मई से भारत ने इस इलाके को अपना दावा प्रमाणित करने को मौसम विभाग से पाक के कब्जाए हिस्से को अपने बुलेटिन में शामिल कर मौसम सम्बन्धी आंकड़े और जानकारी प्रसारित करना शुरू करा दिया है, जो कुछ साल पहले बन्द कर दिया था। यह गलियारा चीन केशिनजियांग से लेकर पाकिस्तान के ग्वादर बन्दरगाह को जोड़ता है, लेकिन इसे लेकर गिलगिट-बाल्टिस्तान के लोग बेहद नाराज हैं, क्योंकि इसके लिए पाकिस्तान सरकार ने न उनसे सहमति ली थी और न इससे उन्हें अपना कोई फायदा ही नजर आ रहा है। इस गलियारे को बनाने के लिए उन्हें बड़ी संख्या में विस्थापित किया गया है। इसलिए वे इसके निर्माण का खुलकर विरोध कर रहे हैं। वैसे पाकिस्तान अब जिस गिलगिट-बाल्टिस्तान को अपना इलाका/सूबा साबित करने की कोशिश कर रहा है, एक समय जब खुद गिलगिट-बाल्टिस्तान के लोगों ने इसे पाकिस्तान का आधिकारिक प्रान्त बनाने की माँग की, तब पाकिस्तान ने खुद ऐसा करने मना कर दिया था। तब उसका मनाना था कि ऐसा करने पूरा जम्मू-कश्मीर के मामले को लेकर चल रहे विवाद में उसकी माँग पर विपरीत असर पड़ेगा। लगभग 73 हजार वर्ग किलोमीटर में विस्तृत गिलगिट-बाल्टिस्तान प्रचुर मात्रा में प्राकृतिक संसाधनों से सम्पन्न है। इसकी आबादी कोई 20 लाख से ज्यादा है।

साभार सोशल मीडिया

वैसे इस इलाके में पहले भी कई दफा चुनाव हुए हैं और मुख्यमंत्री भी बन चुके हैं, पर इस दफा चुनाव अन्तरिम सरकार की निगरानी में होंगे। सामान्यतः पाकिस्तान में नए चुनाव से पहले एक अन्तरिम सरकार का गठन किया जाता है, जो अपनी निगरानी में चुनाव कराती है। इसी लिए अब पाकिस्तान सरकार की पहल पर गत 30 अप्रैल को वहाँ के सर्वोच्च न्यायालय ने पहली बार गिलगित बाल्टिस्तान पर अपना फैसला दिया है। इसमें उसने गिलगिट-बाल्टिस्तान में चुनाव कराने से पहले अन्तरिम सरकार को गठन किये जाने का आदेश दिया है। इस मुद्दे पर पाकिस्तान में बी.बी.सी. उर्दू सेवा के न्यूज एडिटर जीशान हैदर का यह खुलासा बहुत महत्त्वपूर्ण है कि अभी तक गिलगिट-बाल्टिस्तान इलाके के लिए ऐसा नहीं होता था। ऐसा पहली बार हुआ है कि वहाँ एक अन्तरिम सरकार की अगुवाई में सितम्बर, 2020 में चुनाव होंगे।

साभार सोशल मीडिया

अब गिलगिट-बााल्टिस्तान के मुद्दे पर पाकिस्तान ने भारत के विरोध का जवाब देते हुए कहा कि हिन्दुस्तान को इस पर अपना दावा जताने का कोई हक नहीं है, क्यों जम्मू-कश्मीर एक विवादित इलाका है। ऐसा वह ही नहीं, अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय भी मानता है। इस विवाद का फैसला संयुक्त राष्ट्रसंघ (यू.एन.ओ.) के प्रस्तावों के तहत होना चाहिए, जिसमें कश्मीरी अवाम को राय शुमारी (आत्म निर्णय) का हक दिया गया है। इसका फैसला स्वतंत्र और निष्पक्ष जनमंत्र संग्रह से ही हो सकता है। इतना ही नहीं, उसने उल्टे हिन्दुस्तान पर यह इल्जाम लगाया है कि पिछले साल 5 अगस्त को भारत की तरफ से जम्मू-कश्मीर की आबादी के साथ जो छेड़छाड़ की गई है, वह जिनेवा सन्धि का सरासर उल्लंघन है। उसने गत साल 5 अगस्त को जम्मू-कश्मीर की स्वायत्ता देने वाले अनुच्छेद 370 को खत्म कर इसे दो केन्द्र शासित प्रदेशांे-जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में तब्दील कर दिया है। पाकिस्तान ने यह इल्जाम भी लगाया है कि हिन्दुस्तान गिलगिट-बाल्टिस्तान का मुद्दा उठाकर अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय का ध्यान इससे नहीं भटका सकता कि उसकी सेना कश्मीरी लोगों को कैसे प्रताड़ित करती है ?
इस घटना बाद से इन दोनों मुल्कों के बीच कभी जंग छिड़ जाने की आसार नजर आने लगा है, क्योंकि पाकिस्तान के हुकूमरान इस बात को समझ गए हैं कि हिन्दुस्तान अब पहले जैसा नहीं है। मौजूदा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार जो कहती है, वह करके दिखाती भी है। वैसे जहाँ जब पूरी दुनिया के मुल्क कोरोना विषाणु से फैली महामारी से अपने लोगों को बचाने की पुरजोर कोशिश कर रहे हैं, वहीं तब पाकिस्तानी सरकार अपने लोगों को अल्लाहताला के रहम/भरोसे छोड़कर अपनी फौज से जम्मू-कश्मीर सरहद पर लगातार युद्धविराम का उल्लंघन करा रहा है। पाक सेना गोलीबारी की आड़ में अपने दहशतगर्द भारत की सरहद में घुसाने मंे लगी, ताकि वे वहाँ जाकर तबाही मचाकर इस्लामी राज कायम करने का रास्ता साफ कर सकें।
वैसे भी पाकिस्तान छल और मजहबी बिना पर बना है। पाकिस्तानी सेना ने देश विभाजन के बाद सन् 1947 में कबाइलों को आगे कर जम्मू-कश्मीर एक बड़े क्षेत्र पर गैर कानूनी कब्जा कर लिया था। इस इलाके को भारत में पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पी.ओ.के.) कहा जाता है। सन् 1947-48 में भारत-पाक युद्ध के पश्चात् 27 जुलाई, सन् 1949 को ‘कराची समझौता’ के जरिए युद्धविराम पर हस्ताक्षर किये। उसके बाद तत्कालीन भारत सरकार ने पाकिस्तान के कब्जे वाले जम्मू-कश्मीर के उस भूभाग को फिर से हासिल करने की कभी कोशिश नहीं की। पाक अधिकृत जम्मू-कश्मीर का यह इलाका पाकिस्तान का कोई आधिकारिक प्रान्त नहीं है। इस इलाके के बारे में शासकीय अधिकारों को लेकर पाकिस्तान का संविधान मौन है। पाकिस्तान ने अपने कब्जे वाले जम्मू-कश्मीर के इलाके को दो हिस्सों ‘आजाद कश्मीर’ तथा ‘नॉर्दन एरिया’ में बाँट दिया। तथाकथित ‘आजाद कश्मीर’ वर्तमान नियंत्रण रेखा के पश्चिम में मीरपुर मुजफ्फराबाद का क्षेत्र है, जिसकी सरहद जम्मू और कश्मीर घाटी के थोड़ा ऊपर तक लगती है। यह पाक अधिकृत जम्मू-कश्मीर का छोटा हिस्सा है, जो उस जमीन का सिर्फ 15 फीसद हिस्सा है। पाकिस्तान ने बड़ी चालाकी से इस इलाके को फर्जी आजादी (छद्म स्वतंत्रता) प्रदान की है। आजाद कश्मीर में अपना वजीर-ए-आजम, सुप्रीम कोर्ट, कुछ संस्थाएँ कायम की गयी हैं। मीरपुर मुजफ्फराबाद का इलाका रावलपिण्डी के पास है, जहाँ पाकिस्तानी फौज का मुख्यालय (जनरल हैड क्वार्टर) है। इस क्षेत्र को आजाद कश्मीर घोषित कर यहाँ से पाकिस्तानी फौज बड़ी आसानी से भारत विरोधी गतिविधियाँ चलाती आयी हैं।
पाकिस्तान के नाजायज कब्जे वाले इलाकों को कायदे से ‘पाक अधिकृत कश्मीर’ कहना सही होगा, क्योंकि यह क्षेत्र भारत के संवैधानिक रूप से स्वीकृत जम्मू-कश्मीर राज्य का हिस्सा है। दूसरा तथाकथित ‘आजाद कश्मीर’ में असल कश्मीर की एक इंच जमीन भी शामिल नहीं है। इसके बावजूद इसे ‘आजाद कश्मीर’ कहने के पीछे पाकिस्तान की मंशा और इरादा ऐसा वाक्या तैयार/नैरेटिव सेट किया जाना है, वह कश्मीर के नाम से। भारत के जम्मू-कश्मीर राज्य के नाम से नहीं। पाक के कब्जे वाले जम्मू-कश्मीर का दूसरा सबसे बड़ा 85 फीसदी हिस्सा गिलगिट-बाल्टिस्तान है। इसे सन् 2009से पहले तक ‘नॉर्दन एरिया’कहा जाता था, जिसकी सरहद दक्षिण में मीरपुर मुजफ्फराबाद इलाके, कश्मीर घाटी तथा कारगिल से जुड़ती है।
पूर्व में गिलगिट-बाल्टिस्तान की सीमा पॉइण्ट एनजे 9842 तक लेह से लगती है। पॉइण्ट एनजे 9842 के ऊपर सियाचिन ग्लेशियर स्थित है। उसके ऊपर से ‘काराकोरम दर्रा’ है। सियाचिन के ठीक ऊपर ‘शक्सगाम’ घाटी है, जो गिलगिट-बाल्टिस्तान की अंग है। सन् 1970 में पाकिस्तान ने गिलगिट-बाल्टिस्तान को अलग प्रशासनिक इकाई का दर्जा दिया था। फिर सन् 2009 के इस आदेश को सन् 2018 में संशोधित कर दिया गया था। हालाँकि सन् 2018 में पाकिस्तान ने कई तरह के विशेष अधिकार गिलगिट-बाल्टिस्तान विधानसभा को दिये थे,लेकिन उसमें भी पाकिस्तान के प्रधानमंत्री की भूमिका बहुत महत्त्वपूर्ण रखी। इससे पहले भी गिलगिट-बाल्टिस्तान पर कोई फैसला करने के लिए एक समिति होती थी, जिसके प्रमुख पाकिस्तान के प्रधानमंत्री होते थे, पर सन् 2009 के आदेश को सन् 2018 में संशोधित कर दिया गया था। अब पाकिस्तान सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश गुलजार अहमद के नेतृत्व वाली सात सदस्यीय खण्डपीठ ने सन् 2018 में गिलगिट-बाल्टिस्तान सरकार के आदेश को संशोधित करते हुए चुनाव कराने की मंजूरी दी है। गिलगिट-बाल्टिस्तान सरकार का वर्तमान कार्यकाल आगामी जून माह में समाप्त होने जा रहा है। इसके 30दिनों के भीतर आम चुनाव होने चाहिए।
यद्यपि गिलगिट-बाल्टिस्तान ऐतिहासिक रूप से शुरुआत में अलग-अलग राजनीतिक इकाइयाँ थीं। गिलगिट को ‘दर्दिस्तान’ के नाम से जाना जाता था, क्योंकि यहाँ के बाशिन्दे ‘दरर्दी जुबान’ बोलते थे। इसी तरह मध्य काल में ‘बाल्टिस्तान’ को ‘छोटा तिब्बत’ कहा जाता था, तथापि कालान्तर में डोगरा शासन में इनका एकीकरण ‘गिलगिट-बाल्टिस्तान’ सूबे के रूप में हो गया। प्राचीन काल में गिलगिल्ट मौर्य शासन के आधिपत्य में भी रहा। इसका प्रमाण काराकोरम मार्ग पर सम्राट अशोक के 14 शिलालेखों का होना है। फिर 724-761ईस्वी ललितादित्य और तदोपरान्त कार्कोट वंश के काल में ‘गिलगिल्ट-बाल्टिस्तान’ कश्मीर साम्राज्य का अटूट हिस्सा रहा। ललितादित्य ने अपने शासन काल में बाकी हिन्दुस्तान के कश्मीर से ऐतिहासिक सम्बन्धों को सुदृढ़ किया। बाद में गिलगिट -बाल्टिस्तान मुगल शासन का हिस्सा रहा। इसके कमजोर होने पर साठ सालों तक कश्मीर पर अफगानों का शासन रहा। उस दौरान भी गिलगिट-बाल्टिस्तान कश्मीर साम्राज्य का हिस्सा रहा। उस वक्त अफगानों के अत्याचारों से परेशान होकर कश्मीरी पण्डित बीरबल धर की अगुवाई में कश्मीर की जनता ने सिख महाराजा रणजीत सिंह से उनसे छुटकारा दिलाने की प्रार्थना की। इस पर 15 जून, सन् 1819 में महाराजा रणजीत सिंह ने कश्मीर पर हमला कर अफगान शासक को युद्ध में हरा कर कश्मीरियों को अफगानों के अत्याचारों से मुक्ति दिलायी।
महाराजा रणजीत सिंह ने जम्मू का इलाका राजा गुलाब सिंह को जागीर के तौर पर दिया। तदोपरान्त कई लड़ाइयाँ हुईं और राजनीतिक व्यवस्थाएँ बदलीं। अँग्रेजों ने सिखों को युद्ध में हरा दिया। 9 मार्च, सन् 1846 में ‘लाहौर सन्धि’ के बाद पूरे जम्मू-कश्मीर राज्य पर गुलाब सिंह राज कायम हो गया। बीसवीं सदी के पूर्वार्द्ध सन् 1917 की रूसी क्रान्ति और सत्ता बदलने की वजह से नए शक्ति सन्तुलन से परेशान अँग्रेजों ने डोगरा महाराजा गुलाब सिंह से गिलगिट एजेन्सी 60 साल के पट्टे पर ले लिया, ताकि रूस को इस इलाके में घुसने से रोक जा सके। सन् 1934 में रूस ने चीन के शिनजियांग सूबे पर कब्जा कर लिया।
अँग्रेजों ने गिलगिट एजेन्सी गठित की और गिलगिट स्काउट्स नामक सैन्य टुकड़ी की बनायी। इसके ज्यादातर अधिकारी अँग्रेज थे। 3 जून, सन् 1947 में लार्ड माउण्ट बेटन योजना की घोषणा के पश्चात् गिलगिट को फिर से महाराजा हरि सिंह को सौंप दिया गया। इसके बाद गिलगिट स्काउट्स भी महाराजा हरि सिंह को अधीन हो गयी। फिर 30 जुलाई, सन् 1947 करे गवर्नर और चीफ ऑफ स्टॉफ को गिलगिट को भेजा, तो उन्हें मालूम हुआ कि गिलगिट स्काउट्स ने पाकिस्तानी सेना शामिल होने का फैसला कर लिया है। 31 अक्टूबर, सन् 1947 को गिलगिट ने गवर्नर निवास को घेर कर अन्तरिम सरकार बनाने का ऐलान कर दिया है। 4 नवम्बर, सन् 1947 को मेजर ब्राउन ने पाकिस्तान का झण्डा फहरा दिया और 31नवम्बर का खुद को एक पॉलिटिकल एजेण्ट बताने वाले एक पाकिस्तानी ने आकर अड्डा जमा लिया। गिलगिट -बाल्टिस्तान में पाकिस्तान सरकार के अत्याचारों तथा मानवाधिकार उल्लंघन पर ब्रिटिश बैरोनेस एम्मा निकोलसन ने यूरोपियन पार्लियामेण्ट में एक रपट पेश की थी। गिलगिट -बाल्टिस्तान का कोई बाशिन्दा वहाँ कोई रोजगार नहीं प्राप्त नहीं कर सकता। उसे रोजगार/नौकरी के लिए पाकिस्तान के किसी शहर में जाना होगा। पाकिस्तान गिलगिट-बाल्टिस्तान में बाँध का निर्माण कर रहा है, जिसका जल, विद्युत या स्वत्व -शुल्क/रॉयल्टी कुछ भी इस क्षेत्र को नहीं मिलने वाला। इस इलाके के ऊपर से चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (सीपीइसी) होकर गुजरता है और शक्सगम घाटी से निकटता के चलते चीन बड़ी आसानी से यहाँ अपने कर्मचारी भेजकर निर्माण करा रहा है।
गिलगिट -बाल्टिस्तान में कई प्राचीन भाषाएँ विलुप्त होने के स्थिति में हैं। यहाँ सांस्कृतिक इस्लामी जरूरी है, पर कई इस्लामिक फिरके के लोग रहते हैं, इनमें नूरबक्शी, घुमक्कड़ शिया, सुन्नी मुसलमान भी हैं। यहाँ गैर इस्लामिक लोगों को जबरदस्ती मतान्तरण होता रहा है। यहाँ के लोगों को बुनियादी सुविधाओं भी हासिल नहीं है। स्कर्दू के आसपास के गाँवों में लोग आज भी जब भी खाना बनाते हैं तो वे हर घर में 10 रोटी अधिक बनाते हैं। उन्हें इस बात की प्रतीक्षा की है कि जब भारतीय सेनाएँ उन्हें पाकिस्तान से छुटकारा दिलाने आएगी, उस समय वह भूखी न रहे।
फिलहाल,पाकिस्तान ने गिलगिट-बाल्टिस्तान पर अपना कब्जा जायज साबित करने को जो कदम उठाया,उससे विश्व समुदाय पर कितना असर पड़ेगा,यह तो आने वक्त बताएगा। लेकिन अब भारत ने गिलगिट-बाल्टिस्तान को अपना बताते हुए उसे खाली करने की जो चेतावनी दी है,उससे निश्चय ही उसकी रातों की नींद जरूरी हराम हो गयी होगी।
सम्पर्क-डॉ.बचनसिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003
मो.नम्बर-9411684054

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