देश-दुनिया

मोदी की कूटनीतिक सफलता है जापान से प्रगाढ़ होते सम्बन्ध

डॉ.बचन सिंह सिकरवार
हाल में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की चीन के तियानजिन नगर में आयोजित ‘शंघाई सहयोग संगठन’(एससीओ) के वार्षिक शिखर सम्मेलन भाग लेने से ठीक पहले जापान यात्रा और भारत-जापान के मध्य 10लाख करोड़ येन के निवेश, कुछ दूसरे क्षेत्रों में सहयोग समझौतों के साथ-साथ पहली बार रक्षा सहयोग समझौते की घोषणा के पीछे सुविचारित कूटनीति रही है,जिसे माध्यम से उन्होंने अमेरिका,चीन समेत दुनियाभर के देशों को यह स्पष्ट संदेश देने का प्रयास किया है कि वर्तमान में अमेरिका की राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की अनुचित टैरिफ नीति से उत्पन्न विषम वैश्विक आर्थिक-व्यापारिक परिस्थितियों से घबरा कर भारत न उससे और न किसी दूसरे देश के साथ नतमस्तक होकर अपने राष्ट्रीय हितों से समझौते को तैयार नहीं है। इतना नहीं, प्रधानमंत्री मोदी ने जापान की दिग्गज कम्पनियों के बीच जिस तरह भारतीय अर्थव्यवस्था की सुदृढ़ स्थिति को प्रस्तुत किया ,वह एक तरह से उनका अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प को जवाब है ,जिन्होंने भारतीय अर्थव्यवस्था को मृत(डेड) बताकर तंज कसा था । प्रधानमंत्री मोदी ने जापानी कम्पनियों को भारत को वैश्विक दक्षिण(विकासशील तथा कम विकसित ) के देशों के लिए भारत प्रवेश द्वार के रूप में न सिर्फ उपयोग का प्रस्ताव दिया है,वरन् उन्होंने दोनों देशों के बीच रणनीतिक और आर्थिक साझेदारी को और मजबूत करने का आह्वान भी किया है। इससे चीन को भारत के इरादों और यह समझने में मुश्किल नहीं होगी कि अब भारत उसकी किसी भी तरह की धौंस और दबाव में आने वाला नहीं है।भले ही जापान के साथ रक्षा सहयोग समझौते को कुछ भी सोचता रहे,उसे इसकी कोई परवाह नहीं है।
भारत और जापान ने पहली बार रक्षा सहयोग पर एक ऐतिहासिक साझा घोषण पत्र जारी किया ,जो दोनों देशों को एशिया में एक-दूसरे का सबसे करीब रक्षा सहयोगी बनने की तरफ संकेत करता है। निश्चय ही भारत के इस कदम से चीन को परेशानी हुई होगी,जो भारत के साथ-साथ जापान से भी अमेरिका के बिगड़ते सम्बन्धों के कारण ‘क्वाड’ कमजोर/टूटने उम्मीद लगाए हुए है, जो प्रशान्त महासागर में उसकी मनमानी और विस्तारवाद का सामना करने को अमेरिका ने अपनी अगुवाई में जापान, आस्ट्रेलिया, भारत के साथ गठित किया हुआ है। सम्भवतः अमेरिका की स्वार्थपरक और अस्थिर विदेश नीति के कारण जापान को भी अपनी सुरक्षा-रक्षा के लिए अमेरिका की अपेक्षा भारत एक विश्वासनीय मित्र लगा हो,जिसकी परिणति अब रक्षा सहयोग समझौते के रूप में हुई है। अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रम्प की टैरिफ नीति से जापान भी भारत की तरह परेशान हैं। एक दिन पहले जापान का एक दल कारोबारी समझौते पर वार्ता के लिए अमेरिका जाने वाला था, किन्तु उनकी यात्रा स्थागित हो गई।अब प्रधानमंत्री मोदी से वार्ता के बाद इन जापानी कारोबारियों की अमेरिका जाने में पहले जैसी दिलचस्पी बची होगी या नहीं ,यह कहना अभी मुश्किल है।
इधर प्रधानमंत्री मोदी के स्वागत के लिए पूरा जापानी उद्योग जगत् उपस्थित था। शिखर सम्मेलन के पश्चात् परस्पर सहयोग के जितने प्रपत्र जारी किये गए हैं,वे दोनों देशों की सरकारों की ओर से की जाने वाली कोशिशों को दर्शाते हैं। साझा बयान के अलावा मानव संसाधन आदान-प्रदान के क्षेत्र में कार्ययोजना, अगले 10वर्षों के आर्थिक सहयोग विजन डाक्यूमेण्ट, सुरक्षा सहयोग पर साझा बयान विज्ञान तथा तकनीक क्षेत्र में सहयोग को लेकर साझा वक्तव्य अलग से जारी किया गया है। उधर वैश्विक साझेदारी को दिशा देने के लिए ‘आठ दिशा निर्देश’ नाम से अलग से एक प्रपत्र जारी किया गया,जिसमें अगली पीढ़ी की आर्थिक साझेदारी, आर्थिक सुरक्षा साझेदारी,पेशेवरों और कामगारों की मोबिलिटी, पर्यावरण सुरक्षा के क्षेत्र में सहयोग, तकनीक,अन्वेषण में साझेदारी ,स्वास्थ्य क्षेत्र निवेश तथा सहयोग, दोनों देशों की जनता के बीच साझेदारी को बढ़ाना और सरकारों के बीच बेहतर सामंजस्य बनाने का सम्मिलित किया गया है। अगले पाँच वर्षों में पाँच लाख से अधिक व्यक्तियों ,जिनमें 50,000कुशल भारतीय पेशेवर शामिल हैं, उनका जापान जाने का मार्ग प्रशस्त होगा। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा,‘विश्व की दो बड़ी अर्थव्यवस्थाओं और जीवन्त लोकतंत्रों के रूप में,हमारी साझेदारी केवल दो देशों के लिए नहीं, बल्कि वैश्विक शान्ति और स्थिरता के लिए भी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। इसके प्रत्युत्तर में जापान के प्रधानमंत्री इशिबा ने भी कहा,‘‘जापान की आधुनिक तकनीक और भारत की बेहतरीन प्रतिभा एक-दूसरे की पूरक हैं। इस कारण से दोनों देशों के आर्थिक सम्बन्धों बेहतर हो रहे हैं। भारत और जापान के बढ़ते रिश्तों से अमेरिका से कहीं ज्यादा चीन की चिन्ता बढ़ी होगी,जो भारत की बढ़ती आर्थिक और सैन्य शक्ति को लेकर पहले से चिन्तित और परेशान है। गत मई माह में भारत के पाकिस्तान के विरुद्ध चलाए‘ ऑपरेशन सिन्दूर‘ ने दुनियाभर में चीन के बने अस्त्र-शस्त्र और उसके सुरक्षा तंत्र की पोल खोल दी,जिनके बूते चीन दुनिया को धमकाता और गरजात फिरता था।अब उसके हथियारों,लड़ाकू विमानों का कोई खरीदार नहीं बचा है।
इस दौरे में 29अगस्त को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और जापान के प्रधानमंत्री शिगेरू इशिबा के नेतृत्व में पन्द्रहवें जापान-भारत वार्षिक शिखर सम्मेलन के बाद जारी घोषणा पत्र में स्वतंत्र, खुला, शान्तिपूर्ण और समृद्ध हिन्द-प्रशान्त क्षेत्र सुनिश्चत करने का संकल्प दोहराया है। साथ ही पूर्वी चीन सागर और दक्षिण चीन सागर में मौजूदा हालात पर गम्भीर चिन्ता व्यक्त की है ,जिसके लिए सीधे-सीधे चीन जिम्मेदार है।इस सामुद्रिक क्षेत्र में चीन की आक्रामक नीतियों से जापान के साथ फिलीपीन्स, ताइवान, लाओस, वियतनाम, इण्डोनेशिया आदि मुल्क भी त्रस्त हैं। इनमें से कोई भी सीधे तौर पर कोई भी देश की चीन को चुनौती देने की स्थिति है। इसलिए जापान अपनी सैन्य शक्ति को बढ़ाने में लगा और भारत उसकी तीनों सेना को प्रशिक्षित करने हेतु पिछले कई साल से उसके साथ साझा सैन्य अभ्यास करता आ रहा है वास्तविकता यह है इन दोनों देशों के संयुक्त घोषणा पत्र में रक्षा सहयोग के लिए उठाये जाने वाले ठोस कदमों का व्यापक एजेण्डा है। दोनों देश इस बात पर सहमत है कि वे आपस में संसाधनों और तकनीकी क्षमताओं का साझा उपयोग करेंगे। दोनों देशों की तीन सेनाओं के बीच बेहतर सामंजस्य स्थापित किया जाएगा। अत्याधुनिक युद्ध रणनीति को लेकर एक-दूसरे की क्षमता बढ़ाने के लिए व्यावहारिक सहयोग किया जाएगा। दोनों देशों की सेनाओं के बीच तालमेल बढ़ाया जाएगा,तीन सेनाओं के बीच सैन्य अभ्यास किया जाएगा।सूचनाओं के आदान-प्रदान के लिए संयुक्त कर्मचारी स्तर पर नए संवाद ढाँचे की स्थापना की जाएगी।

यह सच है कि मौजूदा हालात में अमेरिका की अनुचित और द्वेषपूर्ण व्यापारिक नीतियों का सामना करने के लिए भारत रूस,चीन समेत तमाम देशों में अपना निर्यात बढ़ाने को प्रयासरत है। कमोबेश यही स्थिति चीन की है,वह भी भारत की भाँति अमेरिकी नीतियों से त्रस्त है। वह भी भारत से अपने सभी तरह के सम्बन्ध सुधारना चाहता है और इस दिशा में निरन्तर आगे बढ़ भी रहा है। परिस्थितयों को देखते हुए भारत को भी इसमें गुरेज नहीं है,लेकिन वह उसे यह भी जताना-बताना चाहता है कि अपने विगत अनुभवों को देखते हुए उसे अपनी सीमाओं की सुरक्षा से लेकर उसके किसी भी समझौते/कहे पर पूर्ण विश्वास नहीं है। वह सीमओां की सुरक्षा की कीमत पर उससे सम्बन्ध सुधारने को भी विवश नहीं है।भारत अपनी सीमाओं की सुरक्षा की चाक-चौबन्ध करने में भी कोई कसर नहीं छोड़ रहा है। यही हाल जापान का भी है,जो प्रशान्त क्षेत्र में चीन की आक्रामक गीतिविधियों से निपटने के लिए अपनी पूरी रक्षा नीति बदलने में लगा है।
भारत और जापान पहली बार रक्षा सहयोग पर एक ऐतिहासिक साझा घोषण पत्र जारी किया ,जो दोनों देशों को एशिया में एक-दूसरे का सबसे करीब रक्षा सहयोगी बनने की तरफ संकेत करता है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और जापान के प्रधानमंत्री शिगेरू इशिबा के नेतृत्व में वार्षिक शिखर सम्मेलन के बाद जारी घोषणा पत्र में स्वतंत्र, खुला,शान्तिपूर्ण और समृद्ध हिन्द-प्रशान्त क्षेत्र सुनिश्चत करने का संकल्प दोहराया है। साथ ही पूर्वी चीन सागर और दक्षिण चीन सागर में मौजूदा हालात पर गम्भीर चिन्ता व्यक्त की है। संयुक्त घोषणा पत्र में रक्षा सहयोग के लिए उठाये जाने वाले ठोस कदमों को व्यापक एजेण्डा है।दोनों देश इस बात पर सहमत है कि वह आपस संसाधनों और तकनीकी क्षमताओं का साझा उपयोग करेंगे। दोनों देशों की तीन सेनाओं के बीच बेहतर सामंजस्य स्थापित किया जाएगा। अत्याधुनिक युद्ध रणनीति को लेकर एक-दूसरे की क्षमता बढ़ाने के लिए व्यावहारिक सहयोग किया जाएगा। दोनों देशों की सेनाओं के बीच तालमेल बढ़ाया जाएगा,तीन सेनाओं के बीच सैन्य अभ्यास किया जाएगा।सूचनाओं के आदान-प्रदान के लिए संयुक्त कर्मचारी स्तर पर नए संवाद ढाँचे की स्थापना की जाएगी। हिन्द-प्रशान्त क्षेत्र में मानवीय और आपदा राहत कार्यों के लिए सहयोग होगा। आतंकवाद के विरुद्ध भी सहयोग पर जोर दिया गया है,जबकि चीन कहता कुछ रहे,वह संयुक्त राष्ट्र संघ सुरक्षा परिषद् में पाकिस्तान के दहशतगर्दों का आतंकवादी सूची से बचाता आया है।
प्रधानमंत्री श्री मोदी ने जापान के उद्यमियों से भारतीय अर्थव्यवस्था के बारे में जो जानकारी उसमें कुछ असत्य नहीं है। उन्होंने हाल के महीनों में बड़े सुधार सम्बन्धी कदमों का गिनाया और कर/टैक्स व्यवस्था में होने वाले सम्भावित बदलावों का उल्लेख किया। प्रधानमंत्री श्री मोदी ने कहा,‘‘ भारत ने सुधारों के पीछे हमारा विकसित भारत बनाने का संकल्प है,रणनीति हैं।’ भारत की आर्थिक स्थिरता, नीतिगत पारदर्शिता और तेज विकास पर जोर देते हुए बताया,अब विश्व केवल भारत को देख नहीं रहा,बल्कि भारत पर भरोसा कर रहा है।’’ जापान के निवेशकों द्वारा भारत में निवेश में बढ़ती रुचि और उनका बढ़ती निवेश राशि इसका प्रमाण है। इसमें कुछ अतिश्योक्ति नहीं किभारत जल्दी ही विश्व की तीसरी अर्थव्यवस्था बनने की राह पर है और वैश्विक विकास में 18 प्रतिशत का योगदान दे रहा है। मेट्रो, विनिर्माण,सेमीकण्डक्टर और स्टार्टअप जैसे क्षेत्रों में यह साझेदारी आपसी विश्वास का प्रतीक है। जापानी कम्पनियों में भारत में 40अरब डालर से अधिक का निवेश किया है,जिसमें विगत दो वर्षों में 13अरब डालर का निजी निवेश सम्मिलित है। वैसे तो भारत के जापान से धार्मिक,सांस्कृतिक, राजनीतक,व्यापारिक सम्बन्ध सदियों पुराने हैं,लेकिन वर्तमान में इन देशों के बीच हर क्षेत्र में प्रगाढ़ सम्बन्धों के पीछे वैश्विक परिस्थितियों के साथ-साथ प्रधानमंत्री मोदी की सफल कूटनीतिक भी है,जिन्होंने इस उगते सूरज के देश के रणनीतिक/सामरिक और आर्थिक महत्त्व को जाना-समझा है।

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