डॉ.बचन सिंह सिकरवार
विश्वभर के कथाकार, उपन्यासकार, कवि, साहित्यकार आपबीत और जगबीती के साथ कुछ कल्पना के सहारे अपने साहित्य की रचना करते आए हैं, जनसाहित्यकार प्रेमचन्द भी उनके अपवाद नहीं हैं,फिर भी कुछ माने में वे इन सभी से अलग हैं। इसका कारण उनका अपने काल के सामाजिक व्यवस्था/जीवन और ,आर्थिक ,धार्मिक, राजनीतिक परिस्थितियों का विशद अवलोकन और गहन ज्ञान तथा समझ होना है। उनकी कहानियों और उपन्यासों में उस दौर का सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक,राजनीतिक का यथार्थपरक वर्णन है। उनके अधिकांश पात्रों का आमजन, होना और उनके सपने, उनकी वेदना,पीड़ा,उनकी भावनाएँ, आकांक्षाएँ,जीवन और मानवीय मूल्य, बाधाएँ समस्याएँ और उनसे पार पाने का अथक तथा सतत् संघर्ष का सही सजीव चित्रण है। वह भी उनकी सहज, सरल, बोली-भाषा-बोली, मुहावरों, लोकोक्तियों का उपयोग है। इससे उनके पात्रों और उनकी समस्याओं और उनके संघर्ष के साथ पाठक स्वयं को जुड़ा हुआ पाता है।उनके उठाये ज्वन्त मुद्दों के कारण उनकी रचनाएँ वर्तमान प्रासांगिक बनी हुई है। यही गुण प्रेमचन्द की रचनाओं का लोकप्रियता मुख्य कारण है। उनकी समय की सभी रचनाओं में उनके काल का इतिहास समाहित है।यह सब देखते यह कहना अतिश्योक्ति न होगा,कि वे अपने समय के प्रवक्ता हैं। प्रेमचन्द सामान्य धोती,कुर्ता, चेहरे पर बड़ी -बड़ी मूछें, निश्छल भावपूर्ण आँखें प्रशस्त मस्तिष्क स्वयं सरलता,सौजन्यता और उदारता की प्रतिमूर्ति थे। उनके हृदय में मित्रों के लिए उदार भाव था,वही उनके हृदय में गरीबों एवं पीड़ितों के लिए सहानुभूति का अथाह सागर था। प्रेमचन्द की ईश्वर के प्रति आस्था नहीं थी। जीवन के प्रति उनकी अगाढ़ आस्था थी। प्रेमचन्द भारत के विख्यात साहित्यकारों में से एक हैं ,जिन्होंने हिन्दी साहित्य को एक नयी दिशा दी थी ।उनकी कहानी और उपन्यास केवल मनोरंजन नहीं करती थी,बल्कि उनका कोई न कोई सन्देश होता है,जो मनुष्य को जीवन में सन्मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता हैै। वे आदर्शवादी और यथार्थवादी विचारधारा के समर्थक थे। प्रेमचन्द द्वारा लिखित, उपन्यासों, कहानियों और नाटकों में समाज, राजनीत, धर्म ,नैतिकता और मानवता जैसे मुद्दों को बहुत संवेदनशीलता से दिखाया है। प्रेमचन्द हिन्दी साहित्य में महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं। विशेष रूप से उपन्यासकार और कहानीकार के रूप में हैं। उन्होंने भारतीय समाज के विभिन्न पहलुओं ,विशेष रूप से ग्रामीण जीवन, गरीब और सामाजिक मुद्दों को अपनी रचनाओं में चित्रित किया है। उन्हें ‘उपन्यास सम्राट’ और हिन्दी साहित्य का मुर्शिद’ भी कहा जाता है।
प्रेमचन्द का वास्तविक/असली नाम धनपत राय श्रीवास्तव था। इसी नाम से सरकार के शिक्षा विभाग में नौकरी करते हुए उनका प्रथम कहानी संग्रह ‘सोजे वतन’(देश का दर्द)श्शीर्षक से उर्दू भाषा में प्रकाशित हुआ, लेकिन इसमें ज्यादातर कहानियाँ देशप्रेम से ओतप्रोत थीं। इस कारण तत्कालीन ब्रिटिश सरकार को उनमें उनकी सत्ता के खिलाफ विद्रोह की कोशिश नजर आयी। इस कारण सरकार ने उनके इस संग्रह को प्रतिबन्धित कर दिया। ऐसी स्थिति में प्रेमचन्द के शुभचिन्तकों ने उन्हें सुझाव दिया कि ब्रिटिश सरकार के कोप से बचने के लिए वह अपने असली नाम के स्थान पर छद्म नाम ‘प्रेमचन्द’ और उर्दू के स्थान पर हिन्दी में लिखें। इसके बाद उन्होंने कभी भी अपने वास्तविक नाम से नहीं लिखा। सन् 1906 से 1936 के मध्य सृजित प्रेमचनद का साहित्य इन तीस सालों का सामाजिक सुधार आन्दोलन, स्वाधीनता संग्राम तथा प्रगतिवादी आन्दोलनों के सामाजिक प्रभावों का स्पष्ट चित्रण है। उनमें दहेज, अनमेल विवाह, पराधीनता, लगान, छूआछूत, जातिभेद, विधवा विवाह, साम्प्रदायिकता, आधुनिकता, स्त्री-पुरुष समानता आदि उस दौर की सभी प्रमख समस्याएँ का चित्रण प्राप्त होता है। आदर्शोन्मुख यथार्थ उनके साहित्य की मुख्य विशेषता है। हिन्दी कहानी और उपन्यास के क्षेत्र में 1918 से 1936 तक के कालखण्ड को ‘प्रेमचन्द युग’कहा जाता है।
ख्16रू43ए 31ध्7ध्2025, क्त ।दनर ज्ञनउंत ैपांतूंतरू वह हिन्दी और उर्दू के सर्वाधिक लोकप्रिय कथाकार, उपन्यासकार और विचारक थे। उन्होंने ‘सेवासदन’, ‘प्रेमाश्रय, ‘रंगभूमि, ‘निर्मला’, ‘गबन’, ‘कर्मभूमि’, ‘गोदान’ आदि कोई डेढ़ दर्जन उपन्यास तथा कफन, पूस की रात, पंच परमेश्वर, बड़े घर की बेटी, दो बैलों की कथा, ईदगाह आदि तीन सौ से अधिक कहानियाँ लिखी ।उनमें से अधिकांश हिन्दी और उर्दू भाषाओं में प्रकाशित हुई। उन्हें अपने दौर की सभी प्रमुख उर्दू और हिन्दी पत्रिकाओं जमाना, सरस्वती, माधुरी, मर्यादा, चाँद, सुधा आदि में लिखा। उन्हें हिन्दी समाचार पत्र जागरण, साहित्यिक पत्रिका ‘हंस’, का सम्पादन और प्रकाशन भी किया। इसके लिए उन्होंने सरस्वती प्रेस खरीदा,जो बाद में घाटे में रहा और बाद में उसे बन्द करना पड़। प्रेमचन्द फिल्मों की पटकथा लिखने मुम्बई और लगभग तीन साल तक रहे।लेकिन वहाँ लेखन की स्वतंत्रता में हस्तक्षेप उन्हें रास नहीं आया और वापस वाराणासी आ गए।
प्रेमचन्द का जन्म तत्कालीन संयुक्त प्रान्त(उत्तर प्रदेश) वाराणासी के ग्राम लमही में 31जुलाई,सन्1880 को हुआ था। उनके पिता का नाम मुंशी अजायब राय और उनकी माँ का नाम आनन्दी देवी था।उनकी प्रारम्भिक शिक्षा गाँव में ही हुआ।इनका 15वर्ष की अवस्था में विवाह हुआ,पर वह असफल रहा। बाद में प्रेमचन्द ने विधवा से शादी की।
प्रेमचन्द मान्यता है कि साहित्य का चाहे जो भी रूप या विधा हो, उसका उद्देश्य हमारे जीवन की आलोचना और व्याख्या करना चाहिए।वे की अपने पूर्ववर्ती युग की आलोचना करते हैं,जिससे कथा-साहित्य का एकमात्र लक्ष्य ‘ केवल मनोरंजन’ और’ अद्भुत प्रेम’ की तृप्ति था। कविता भी व्यक्तिवाद के रंग से रंजित थी। साहित्यकार का उद्देश्य है कि वह समाज में स्नेह,करुणा ,सहयोग और सहानुभूति के विस्तार साहित्य की रचना करे।
वह अपनी कलम की नैतिकता को जिन्दा बनाए रखना है। कहना होगा कि मुंशी प्रेमचन्द कर्म को महत्त्व देने वाला रचनाकार है,वे निठल्लेपन को पसन्द नहीं करते। प्रेमचन्द साहित्य की मुख्य विशषताएँ-सरल, व्यावहारिक, भाषा,सामाजिक यथार्थ का चित्रण, गरीबी,श्शोषण ,सामाजिक यथार्थ का चित्रण, पात्रों का सजीव चित्रण और मानवतावादी दृष्टिकोण।
उन्होंने अपने साहित्य में तत्कालीन भारतीय समाज की वास्तविकताओं-गरीबी,शोषण, सामाजिक असमानता, को उजागर किया। प्रेमचन्द के पात्र वास्तविक जीवन से प्रेरित हैं और उनके संघर्ष, भावनाओं और आकांक्षाओं का बहुत ही स्वाभाविक रूप से चित्रित की गई है। उनकी ष्शैली आकर्षक ,मार्मिक और चित्रात्मक है,जो पाठकों को कहानी में पूरी तरह डूबो देती है। विषयों की विविधता- प्रेमचन्द ने अपने साहित्य में विभिन्न विषयों का सम्मिलित किया है, जैसे ग्रामीण जीवन, शहरी जीवन, राजनीति,धर्म और शिक्षा प्रेमचन्द के साहित्य में तत्कालीन समाज और इतिहास बोलता है और उनकी रचनाएँ आज भी प्रासांगिक हैं,क्यों कि वे मानव स्वभाव की आधारभूत महत्व पर बल देते हैं।जीवन के अन्तिम दिनों तक साहित्य सृजन में जुटे रहे। महाजनी सम्यता, अन्तिम निबन्ध, साहित्य का उद्देंश्य ,अन्तिम उपन्यास और मंगलसूत्र अन्तिम अपूर्ण उपन्यास माना जाता है। भारतीय जनजीवन के चितेरे मुंशी प्रेमचन्द का निधन 56साल की अवस्था में 8अक्टूबर,सन् 1936को वाराणासी में हुआ था।
सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003 मो.नम्बर-9411684054र
अपने काल के प्रवक्ता हैं मुंशी प्रेमचन्द

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