देश-दुनिया

यूँ नही बदले हैं मालदीव के तेवर

डॉ.बचन सिंह सिकरवार

गत दिनों पड़ोसी देश मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू द्वारा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का हवाई अड्डे पर उपस्थित होकर स्वयं ंऔर अपने मंत्रिमण्डल के शीर्ष मंत्रियों के साथ जिस तरह से लाल कालीन बिछाकर स्वागत किया गया, निश्चय ही उससे उसके मित्र चीन और तुर्किये को गहरा आघात लगा होगा, क्योंकि वह चीन के बहुत करीबी दोस्त और भारत के घोर विरोधी रहे हैं। उन्होंने राष्ट्रपति का चुनाव ही भारत विरोध का नारा/‘इण्डिया आउट’ लगा कर जीता है, वहीं मुइज्जू अब यह कह रहे हैं ,‘‘भारत मालदीव का सबसे करीब पड़ोसी और भरोसेमन्द मित्र है,जो संकटों में हमेशा साथ खड़ा रहा है। मोहम्मद मुइज्जू की तुर्किय से नजदीकियों की असल वजह उनकी इस्लामिक कट्टरपंथी विचारधारा रही है, जो एक बार फिर इस्लामिक जगत् का खलीफा बनने की चाहत रखता है। सम्भवत :इसी मजहबी नफरत के कारण उन्होंने चीन से दोस्ती गाँठी थी, ताकि उसके जरिए भारत को नीचा दिखाने के साथ -साथ परेशान किया जा सके। इधर चीन भी उसके जरिए हिन्द महासागर में भारत को घेरे कर उसकी सामुद्रिक सुरक्षा को खतरा पैदा करना चाहता था। लेकिन वह मालदीव की मदद के बहाने उसे श्रीलंका की तरह अपने कर्ज के जाल में फँसाना चाह रहा था और एक हद कामयाब भी हो गया था। पाकिस्तान-बांग्लादेश से लेकर अफ्रीका तक चीन ऐसे ही तमाम मुल्कों में अपना प्रभाव बढ़ाने को प्रयासरत है।अब वह मालदीव के आर्थिक संकट से उबारने को लेकर तमाशबीन बन रहा।इससे मालदीव के नेताओं चीन से मोहभंग हो गया। चीन के कर्ज के जाल में फाँसने के असल इरादे को भांप कर ही मालदीव के राष्ट्रपति के तेवर और रुख बदला है। भारत ने मालदीव की सत्तारूढ़ पीपुल्स नेशनल काँग्रेस की इण्डिया आउट तथा इसके नेताओं भारत विरोधी रवैये के बावजूद मालदीव के प्रति अपना व्यवहार नहीं बदला। अन्ततः भारत ने अपनी संयत और सहयोगपरक कूटनीति के माध्यम से इन दोनां के मन्सूबे नाकाम कर दिये, तभी तो उसने प्रधानमंत्री मोदी को अपनी देश की स्वतंत्रता की 60वीं वर्षगाँठ पर मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया है। अब जहाँ तक प्रधानमंत्री मोदी की मालदीव यात्रा का प्रश्न है, तो यह उनकी तीसरी और मुइज्जू के शासन काल में पहली यात्रा है। सितम्बर,सन् 2023 में राष्ट्रपति मुइज्जू अपने पद की शपथ ली, उस समारोह में भारत के केन्द्रीय मंत्री किरण रिजिजू सम्मिलित हुए थे।

अब मोहम्मद मुइज्जू के सत्ता सम्हालने के पश्चात् मालदीव की नीति में बड़ा बदलाव माना-समझा जा रहा है। इसकी वजह यह है कि इस देश के शासक अक्सर सत्ता पर बैठने के बाद सबसे पहले अपने पड़ोसी मुल्क भारत की यात्रा करते थे,पर इसके विपरीत राष्ट्रपति मुइज्जू ने सबसे पहले नवम्बर, 2023 को तुर्किये का दौरा किया और भारत पर अपने देश की निर्भरता को कम करने के लिए कई निर्णय लिए थे। जनवरी, 2024 उन्होंने चीन की यात्रा की। मालदीव सरकार से भारत से अपने सैनिकों के मालदीव से वापस बुलाने का अनुरोध किया था।इसके बाद जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लक्षदीप की सैर के दौरान पर्यटन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से उसकी खूबसूरती कुछ चित्र इण्टरनेट पर डाल कर इस द्वीप पर आने की अपील की, तब उनके इस कदम से नाराज होकर मालदीव के कुछ मंत्रियों ने प्रधानमंत्री मोदी पर कुछ ओछी टिप्पणियाँ कीं। इस मामले की गम्भीरता को देखते हुए तब मुइज्जू ने अपने सरकार ने तीन उपमंत्रियों को निलम्बित कर दिया था। अब दोनों देशों के नेताओं के मध्य शीघ्र ही द्विपक्षीय निवेश समझौता(बीआइटी)के साथ-साथ मुक्त व्यापार समझौता(एफटीए)करने के लिए वार्ता शुरू कर दी गई है। वैसे मुइज्जू सरकार पिछले साल चीन के साथ एफटीए कर चुका है,जो एक जनवरी,2025 से लागू कर दिया गया है।इसके अलावा तुर्किये के साथ भी एफटीए किया है। और वस्तुतः हिन्द-प्रशान्त क्षेत्र में चीन की बढ़ती गतिविधियों को देखते हुए मालदीव जैसे छोटे द्वीपीय देश का महत्त्व बढ़ गया है। हिन्द महासागर इस छोटे द्वीप राष्ट्र को प्रलोभन देकर चीन उसे अपने पक्ष में करने में लगा हुआ है। यह सब देखते हुए भारत ने मालदीव को कई तरह से सहायता देने की घोषणाएँ की हैं। इसमें बहुत ब्याज पर 4.850करोड़ रुपए की आर्थिक सहायता( लाइन ऑफ क्रेडिट-एलओसी) देने की घोषणा की है। इतना ही नहीं, मालदीव की वार्षिक ऋण वापसी को 40 प्रतिशत (5.1करोड़ डालर से 2.9 करोड़ डालर)घटा दिया। इससे मालदीव सरकार का आर्थिक बोझ बहुत कम हो जाएगा। प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति मुइज्जू के मध्य परस्पर सहयोग के सभी आयामों पर बहुत ही विस्तार से वार्ता हुई,जिसमें समुद्री सुरक्षा और रक्षा क्षेत्र में सहयोग से जुड़े मुद्दे अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं। अब दोनों नेताओं ने मालदीव के रक्षा मंत्रालय ने भारत के सहयोग से निर्मित 11 मंजिला नए भवन का उद्घाटन किया है,जिस पर नरेन्द्र मोदी का बहुत बड़ा चित्र लगा हुआ है,मालदीव के परिवर्तित रवैये कां संकेत है।

वैसे भी इन दोनों देशों के बीच लम्बे समय से सैन्य सहयोग रहा है। हिन्द महासागर में भारत के मालदीव के महत्त्व की अनदेखी करने की स्थिति में नहीं है। मालदीव में हर वर्ष बड़ी संख्या में भारतीय पर्यटक अवकाश मनाने जाते हैं। भारत की नीति कभी किसी पड़ोसी देश पर हावी होने की नहीं रही है। वहीं, मालदीव भी भारत की मुख्यभूमि से सिर्फ 1,200किलोमीटर दूर है। ऐसे में मालदीव हिन्द महासागर में भारत के रणनीतिक हिंतों के दृष्टि से महत्त्वपूर्ण देश है। मालदीव हिन्द महासागर में भारत के दक्षिण-पश्चिम में और श्रीलंका के पश्चिम में एक द्वीपसमूह है।इस द्वीप समूह मे ं12प्रवाल द्वीप तथा 2000छोटे-छोटे ,,द्वीप हैं। उत्तर से दक्षिण तक 300मील लम्बा है। इसका क्षेत्रफल 298वर्ग किलोमीटर और इसकी राजधानी माले है। इसकी जनसंख्या -3,17,280से अधिक है।ये भारतीय मूल के नाविक हैं,जो मछली पकड़ने का कार्य करते हैं। यहाँ के लोग इस्लाम मजहब मानते है और रूफिया मुद्रा है। यह देश 26जुलाई, 1965 को स्वतंत्र तथा 1968 में गणराज्य बना। भारत ने उसके जल संकट के समय पानी भेजकर और सैन्य विद्रोह के वक्त सैनिक भेज उसका दमन में सहयोग किया था। भारत की पड़ोसी देशों को प्राथमिकता देने की नीति का यह सकारात्मक असर है। भारत अपनी साफ्ट पावर/ नरम देश से पड़ोसी देशों में आधारभूत संरचनाओं/ढाँचे से सम्बन्धित परियोजनाओं में सहयोग करता है। वैसे अक्टूबर,2024 में भारत और मालदीव ने ‘व्यापक आर्थिक और समुद्री सुरक्षा साझेदारी ’का दृष्टिकोण प्रस्तुत किया और उसके अन्तर्गत रक्षा सहयोग का विस्तार हुआह। वर्तमान में संयुक्त नौसैनिक अभ्यास, समुद्री क्षेत्र जागरूकता, भारत द्वारा मालदीव के सैनिकों का प्रशिक्षण और मालदीव को जहाज उपलब्ध कराना इत्यादि सक्रिय रूप में जारी है मालदीव की अर्थव्यवस्था मुख्यतः पर्यटन पर निर्भऱ है । उसकी 60 प्रतिशत विदेशी मुद्रा इसी आती है,पर वह चीन और अन्य देशों के कर्ज के बोझ तले दबता जा रहा है। उसे दो सालों में करोड़ों डालर के कर्ज का भुगतान करना है। अर्थव्यवस्था में सुस्ती उसे परेशान कर रही है। ऐसे में मालदीव को अहसास हो गया है कि सिर्फ चीन पर निर्भरता उसके लिए आत्मघाती हो सकती है। उसका चीन के भरोसे आँख मूँद कर बैठना भारी भूल साबित होगी।वह हर छोटी-बड़ी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए भारत पर आश्रित है। ऐसे में उसे भारत से बैर भारी पड़ेगा। ऐसा उसने कुछ ही दिनों में देख भी लिया। अब मालदीव से सम्पर्क और संवाद बनाये रखने की भारत की नीति रंग लाई। गत वर्ष गुट निरपेक्ष सम्मेलन में विदेश मंत्री एस.जयशंकर की मालदीव के विदेश मंत्री मुलाकात हुई थी। आम बजट में भारत ने मालदीव की सहायता बढ़ाकर 400से 600 करोड़ रुपए कर दिया। इसके बाद वर्ष मई, 2024 में मालदीव के विदेश मंत्री मूसा जमीर भारत आए। वहीं, अक्टूबर में खुद राष्ट्रपति मुइज्जू पाँच दिनों के दौरे पर भारत पहुँचे। इस दौरान व्यापक आर्थिक एवं मैरीटाइम सिक्योरिटी पार्टनरशिप विजन को आगे बढ़ाने पर सहमति बनी। मुइज्जी का यह बयान काफी अहम माना गया कि मालदीव ऐसा कुछ नहीं करेगा, जिसमें भारत के सुरक्षा हितों को नुकसान पहुँचे।

अब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भारत-मालदीव सम्बन्धों के प्रमुख स्तम्भों जैसे इन्फ्रास्ट्रक्चर,प्रौद्योगिकी और ऊर्जा के सहयोग पर बातचीत की। उन्होंने कहा,‘‘हमारे देश की अवसंरचना, जलवायु परिवर्तन, ऊर्जा और अन्य क्षेत्रों में निकटता से काम कर रहे हैं। अपने पड़ोसियों के साथ रिश्ते प्रगाढ़ और सहयोगपरक रखना अच्छी बात है,पर यह भी ध्यान रहे कि कुछ के लिए रिश्तों से बढ़कर मजहब है। अपने मजहब के चलते ही मालदीव के नेता तुर्किये और चीन से रिश्ते की चाहत रख रहे थे,अब ये कब मजहबी हो जाएँ,इसका भारत को ख्याल रखना होगा।अन्यथा भारत की सुरक्षा को खतरे पड़ जाएगी।

सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार

63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003

मो.नम्बर-9411684054

 

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