(डॉ. गोपाल चतुर्वेदी)
वृन्दावन।रतन छतरी-कालीदह रोड़ स्थित गीता विज्ञान कुटीर में वेदांत उपदेशक, श्रीमद्भगवद गीता को प्रकांड विद्वान, 112 वर्षीय वयोवृद्ध व प्रख्यात संत गीता विज्ञान पीठाधीश्वर महामंडलेश्वर स्वामी विज्ञानानंद सरस्वती महाराज (हरिद्वार) अपनी धार्मिक यात्रा पर इन दिनों श्रीधाम वृन्दावन आए हुए हैं।उन्होंने यहां के कई प्रख्यात संतों, धर्माचार्यों व प्रतिष्ठित व्यक्तियों से मुलाकात कर धर्म- अध्यात्म व अन्य विषयों पर विचार-मंथन किया।
महामंडलेश्वर स्वामी विज्ञानानंद सरस्वती महाराज ने कहा कि वर्तमान की परिस्थिति बहुत ही भयावह होती जा रही है।ये राष्ट्र व समाज दोनों के लिए ही चिंता का विषय है।यदि हमें एक सभ्य, उन्नत और प्रगतिशील राष्ट्र चाहिए,तो सबसे पहले मनुष्यों को अपना शारीरिक, मानसिक और बौद्धिक विकास करना होगा।शारीरिक विकास योग से, मानसिक विकास ईश्वरीय ध्यान से और बौद्धिक विकास वेद अध्ययन से।जब मनुष्य इन तीनों गुणों से परिपूर्ण होगा,तभी राष्ट्र निर्माण में सहभागी बन पाएगा।
उन्होंने कहा कि संत और ब्राह्मण देश व समाज के निर्माता और मार्ग दर्शक होते हैं।परंतु इनकी पहचान कैसे की जाय?जिसमें समता विद्यमान हो वही संत हैं। ज्ञान प्रधान ही सच्चे संत होते हैं और विद्या प्रधान ब्राह्मण होते हैं, जो प्रत्येक जीव में ब्रह्म का दर्शन करे, वही सच्चे ब्राह्मण हैं।
पूज्य महाराजश्री ने कहा कि निष्कामता परमार्थ के सभी साधनों की जननी है।अत: हम सभी को अपने कार्य निष्काम भाव से करने चाहिए।साथ ही जगत से समता व परमात्मा से ममता रखनी चाहिए।संसार व शरीर को अपना मानना सभी पापों का मूल है।अत: संसार के सभी प्राणियों की सेवा, ईश्वर से प्रेम तथा स्वयं को त्याग करना चाहिए।साथ ही हम सभी को संयम, सेवा, सुमिरन और सादगी का पंचामृत सदैव पान करते रहना चाहिए।
कार्यक्रम के अंर्तगत ब्रज सेवा संस्थान के अध्यक्ष डॉ. गोपाल चतुर्वेदी, एडवोकेट एवं मुक्तानंद चित्र वीथि के संस्थापक चित्रकार द्वारिका आनंद ने स्वामी विज्ञानानंद सरस्वती महाराज को ठाकुरजी का प्रसादी पटुका ओढ़ाकर सम्मानित किया।साथ ही अंगवस्त्र और सत्साहित्य भेंट किया।
उन्होंने कहा कि महाराजश्री अपनी 112 वर्ष की आयु में भी समूचे विश्व में श्रीमद्भगवद्गीता का सघन प्रचार-प्रसार कर असंख्य व्यक्तियों को सद्मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित कर रहे हैं।
इस अवसर पर पूज्य महाराजश्री के परम् कृपापात्र शिष्य स्वामी हरिकेश ब्रह्मचारी महाराज, आश्रम के व्यवस्थापक स्वामी लोकेशानंद महाराज, डॉ. राधाकांत शर्मा, आचार्य ईश्वरचन्द्र रावत, अशोक अग्रवाल (नारनौल, हरियाणा), मुनीराम जापक, मदन मोहन आदि की उपस्थिति विशेष रही।
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