त्यौहार

वर्ष भर की सभी एकादशियों के बराबर फल प्रदान करती है निर्जला एकादशी : डॉ. राधाकांत शर्मा

निर्जला एकादशी (06 जून 2025) पर विशेष

भारतीय वैदिक सनातन धर्माबलंबियों में एकादशी के व्रत की बड़ी महिमा है।यह सर्वाधिक लोकप्रिय व्रत है, यों तो स्त्री और पुरुष दोनों ही इस व्रत को करते हैं किंतु पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों में इसका अधिक प्रचलन है। आयुर्वेद विज्ञान की दृष्टि से हर 15 दिनों में पढ़ने वाले इस व्रत का स्वास्थ्य के हित में भी बड़ा महत्व है।14 दिनों तक लगातार खाते पीते रहने से शांत आमाशय को एक दिन यह विश्राम बड़ा ही शक्ति दायक सिद्ध होता है और फिर वह कुछ दिनों के लिए विशुद्ध हो जाता है।हमारे ऋषियों-मुनियों ने इसलिए प्रत्येक मास में दो-दो एकादशियों के व्रत का धर्म शास्त्रों में विशेष महत्व बतलाया है।यह देखा जा चुका है, कि प्राय: एकादशी के व्रत का पालन करने वाले कभी बीमार नहीं होते और उन्हें दीर्घायु भी प्राप्त होती है।
एकादशी महीने में दो बार आती है। एक कृष्ण एकादशी और दूसरी शुक्ल एकादशी। जिस प्रकार शिव और विष्णु दोनों आराध्य देव है। उसी प्रकार महीने के दोनों पक्षों की यह दोनों एकादशियां भी उपोष है। विशेषता केवल यही है कि पुत्रवान ग्रस्त के लिए शुक्ल एकादशी और वानप्रस्थ सन्यासी तथा विधवा स्त्रियों के लिए कृष्ण एकादशी का विशेष फल है। पुराणों एवं धर्म शास्त्रों में एकादशी व्रत की अपार महिमा वर्णित है। पद्म पुराण, स्कन्द पुराण और विष्णु पुराण आदि धर्म ग्रंथों में एकादशी व्रत का सर्वाधिक महत्व और फल बताया गया है।धार्मिक ग्रंथों के अनुसार वर्ष भर में 24 एकादशियां होती हैं,जिनमें 1 – उत्पन्ना एकादशी, 2 – मोक्षदा एकादशी, 3 – सफला एकादशी, 4 – पौष पुत्रदा एकादशी, 5 – षटतिला एकादशी, 6 – जया एकादशी, 7 – विजया एकादशी, 8 – आमलकी एकादशी, 9 – पापमोचिनी एकादशी, 10 – कामदा एकादशी, 11 – वरूथिनी एकादशी, 12 – मोहिनी एकादशी, 13 – अपरा एकादशी, 14 – निर्जला एकादशी,
15 – योगिनी एकादशी, 16 – देव शयनी एकादशी, 17 – कामिका एकादशी, 18 – श्रावण पुत्रदा एकादशी, 19 – अजा एकादशी, 20 – परिवर्तिनी एकादशी, 21 – इंदिरा एकादशी, 22 – पापांकुशा एकादशी, 23 – रमा एकादशी और 24 – देव प्रबोधिनी एकादशी (देव उठनी)। वर्ष भर की इन चौबीस एकादशियों का व्रत करने से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्त होती है।साथ ही उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। कुछ ग्रंथों में एक वर्ष में 26 एकादशी होने का वर्णन आता है। एक वर्ष में बारह मास होते हैं और एक मास में दो एकादशी होती हैं, इस तरह एक वर्ष में चौबीस (24) एकादशी आती हैं और सभी एकादशी अपने नाम के अनुसार फल देती हैं। वहीं जिस वर्ष में अधिक मास यानी पुरुषोत्तम मास पड़ता है, उस वर्ष में दो एकादशी बढ़ जाती हैं। जिन्हें पद्मा एकादशी और पद्मा अन्नदा एकादशी कहा जाता है।इस तरह इन दो एकादशियों को मिलाकर एक वर्ष में कुल छब्बीस (26) एकादशी होती हैं। इन एकादशियों के व्रत के प्रभाव से व्यक्ति को संसार के सभी सुख प्रात होते हैं। धन वैभव प्राप्त होता है, संतान की तरक्की होती है और मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है।
इन सभी एकादशियों में सर्वाधिक महत्व निर्जला एकादशी का बताया गया है। निर्जला एकादशी जेष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को कहा जाता है,इसे भीमसेनी और पांडव एकादशी भी कहा जाता है।
निर्जला एकादशी व्रत कथा के संदर्भ में पुराणों में वर्णन आता है, कि द्वापर युग में एक बार पांडुपुत्र भीमसेन महर्षि वेदव्यास जी महाराज से बोले हे पितामह भ्राता युधिष्ठिर माता कुंती, द्रौपदी, अर्जुन, नकुल और सहदेव आदि सब एकादशी का व्रत करने को मुझसे कहते हैं परंतु गुरुदेव मैं उनसे कहता हूं कि मैं भगवान की भक्ति कर सकता हूं,दान दे सकता हूं तथा शक्ति के अनुसार उनका पूजन कर सकता हूं, परंतु बिना भोजन के नहीं रह सकता हूं|
ऐसा सुनकर व्यास जी कहने लगे हे भीम यदि तुम नरक को बुरा और स्वर्ग को अच्छा समझते हो और नरक नहीं भोगना चाहते, तो प्रत्येक महीने की दोनों एकादशियों को अन्न का त्याग किया करो।
महर्षि वेदव्यासजी के वचन सुनकर भीमसेन नर्क में जाने के नाम से भय से कांपने लगे और कहने लगे अब मैं क्या करूं।भूख मुझसे सहन नहीं होती, क्योंकि मेरे पेट में बृक नाम की अग्नि का निवास है, इसीलिए मुझसे बिना भोजन के सहन नहीं होता और बृक नाम की अग्नि जलने के कारण मुझे बहुत पीड़ा होती है। भूखे रहने में और बिना भोजन के वह अग्नि शांत नहीं होती है, इसलिए पूरा उपवास तो क्या एक समय भी बिना भोजन के रहना मेरे लिए बहुत कठिन है। मास में दो व्रत मुझसे नहीं रहा जाएगा। परन्तु मैं नरक नहीं भोगना चाहता, अच्छा हो यदि आप मुझे ऐसा कोई व्रत बताएं जो वर्ष में एक बार ही मैं करूं,जिससे मुझे उस व्रत के प्रभाव के कारण नरक न भोगना पड़े और स्वर्ग की प्राप्ति हो जाए।
ऐसा सुनकर वेदव्यास जी कहने लगे हे भीम बड़े-बड़े ऋषियों-मुनियों ने स्वर्ग प्राप्ति के बहुत से उपाय बताए हैं,जिनमें बिना धन के थोड़ी शारीरिक परिश्रम से ही स्वर्ग सुख की प्राप्ति हो सकती है।इसी प्रकार शास्त्रों में दोनों पक्ष की एकादशी का व्रत मोक्ष के लिए रखा जाता है।
वेदव्यास जी बोले वृषभ और मिथुन के संक्रांति के बीच जेष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी आती है| उसका नाम निर्जला एकादशी है। इस एकादशी के व्रत में स्नान और आचमन के सिवा जल का प्रयोग वर्जित है।आचमन में 6 मासे से अधिक जल नहीं होना चाहिए अन्यथा वह जल मद्यपान के समान हो जाता है। इस दिन भोजन नहीं करना चाहिए क्योंकि भोजन करने से व्रत नष्ट हो जाता है। यदि निर्जला एकादशी को सूर्योदय से लेकर द्वादशी तिथि के सूर्योदय तक जल ग्रहण ना करें तो उसे वर्ष भर की सभी एकादशियों का फल प्राप्त हो जाता है। द्वादशी को सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नानादि करके वेदपाठी ब्राह्मण को कुछ दान दक्षिणा देकर और भूखे ब्राह्मण को भोजन कराकर ही अन्न ग्रहण करना चाहिए। इसका फल पूरे 1 वर्षीय संपूर्ण एकादशियों के बराबर होता है।इसीलिए तुम निर्जला एकादशी का व्रत करो।
महर्षि वेदव्यास जी भीमसेन को समझाते हुए बोले, हे भीमसेन यह व्रत मुझको स्वयं भगवान नारायण ने बताया है। वर्ष में 1 दिन मनुष्य निर्जल रहने से सभी पापों से मुक्त होकर भगवान विष्णु के परमधाम को प्राप्त करता है। जो मनुष्य निर्जला एकादशी का व्रत करते हैं उनकी मृत्यु के समय यमदूत उन्हें नहीं ले जाते, बल्कि भगवान विष्णु के पार्षद पुष्पक विमान में बैठाकर स्वर्ग ले जाते हैं।
निर्जला एकादशी संसार में सबसे श्रेष्ठ एकादशी का व्रत है। इसलिए पूर्ण निष्ठा और विश्वाश के साथ इस दिन व्रत करना चाहिए।निर्जला एकादशी का व्रत करने से मनुष्य सभी पापों से मुक्त हो जाता है। इस दिन भगवान विष्णु के द्वादशाक्षर मंत्र “ओम नमो भगवते वासुदेवाय” का यथासंभव उच्चारण करना चाहिए और निर्जला एकादशी व्रत की कथा श्रवण करके सद्पात्र ब्राह्मण को वस्त्र और गौ का दान करना चाहिए।
महर्षि वेदव्यास ने कहा हे कुंती पुत्र जो स्त्री या पुरुष इस व्रत को श्रद्धा पूर्वक धारण करते हैं, उन्हें कुछ विशेष ध्यान अवश्य करना चाहिए।निर्जला एकादशी के दिन प्रातः काल प्रसन्नचित उठकर नित्य कर्म से निवृत होकर इस वृत्त का संकल्प करके, समूचे दिन मन को सदाचार, परोपकार, भगवद् चिंतन और ग्रंथों के स्वाध्याय में लगाना चाहिए।साथ ही इस बात का ध्यान रहे कि निर्जला एकादशी वाले दिन किसी भी पतित, चोर, पाखंडी, दुराचारी आदि से संपर्क ना रखें।तथा क्रोध, लोभ, झूठ, पराई निंदा, धर्म निंदा व तंबाकू भक्षण आदि से बचना चाहिए।रात्रि में भी यदि हरि कथा कीर्तन आदि के द्वारा जागरण कर सके तो अति उत्तम है।
महर्षि वेदव्यास बोले हे भीमसेन निर्जला एकादशी का व्रत करने वाले व्यक्ति को वेदपाठी ब्राह्मण को अन्न, भोजन, दान, मिष्ठान, फल व दक्षिणा आदि दान देना चाहिए।साथ ही मीठे जल से भरा हुआ मिट्टी का कलश, खड़ाऊं, छाता आदि वस्तुएं (जिससे ग्रीष्म ऋतु में शीतलता प्राप्त हो सके) इसका दान करने से मनुष्य के जीवन में सुख की प्राप्ति होती है तथा मृत्यु पर्यंत भगवान विष्णु की अनन्त कृपा प्राप्त होती है।
वेदव्यासजी के मुख से एकादशी व्रत का महत्व सुनने के बाद भीमसेन ने उसी प्रकार निर्जला एकादशी व्रत धारण किया इसी कारण इस निर्जला एकादशी को भीमसेनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है।इस व्रत का पालन करने से भीमसेन को मोक्ष की प्राप्ति हुई।

(लेखक युवा साहित्यकार एवं आध्यात्मिक पत्रकार हैं)

डॉ. राधाकांत शर्मा
वृन्दावन

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