डॉ.बचनसिंह सिकरवार
हाल में चीन द्वारा भारत के खिलाफ अपने मनोवैज्ञानिक युद्ध को जारी रखते हुए एक बार फिर जिस तरह अरुणाचल प्रदेश के 27 स्थानों के चीनी नाम रखे गए हैं,उससे भारत को कोई-हैरानी परेशानी होना तो दूर, उसे तो चीन से ऐसी किसी कार्रवाई किये जाने का पूरा अन्देशा था। इसकी ताजा वजह भारत का चीन के दोस्त पाकिस्तान के दहशतगर्दों के खिलाफ ‘ऑपरेशन सिन्दूर’ तहत सैन्य कार्रवाई में न केवल धूल चटाना है,बल्कि उसमें पाकिस्तान द्वारा प्रयुक्त चीन के हथियारों ( डिफेन्स सिस्टम, मिसाइल आदि) की पोल खुल/निश्प्रभावी साबित हो जाना है। इससे उसकी हथियारों की बड़ी बदनामी हो रही है और विश्व के हथियारों के बाजार में चीन के हथियारों की माँग घट गई है।इस कारण उसकी अस्त्र बनाने वाली कम्पनियों के शेयर लुड़क रहे हैं। इससे चीन को भारी आर्थिक क्षति उठानी पड़ रही है। इस आपॅरेशन के जरिए चीन को भारत का पाकिस्तान को हराना भी रास नहीं आया,जहाँ उसने गुलाम कश्मीर और बलूचिस्तान में सीपैक परियोजना में अरबों डालर का निवेश किया हुआ है, इन जगहों पर उसे अपनी सुरक्षा के लिए विकट खतरा पैदा हो गया है। चीन करे गिलगिट बाल्टिस्तान और बलूचिस्तान में विरोध का सामना करना पड़ रहा है।इधर अमेरिका में डोनाल्ड ट्रम्प के पुनः राष्ट्रपति चुने जाने के बाद चीन से शुरू हुए टैरिफ वार के बाद उसके यहाँ कार्यरत बहुराश्ट्रीय कम्पनियाँ भारत आना चाहती हैं,जिन्हें वह हाल में रोकना चाहता है। भारत उन्हें अपने यहाँ आने का न्योता दे रहा है। इससे चीन भारत से बहुत कुपित है। ऐसे में वह अपनी खीझ मिटाने/भड़ास निकालने को कुछ नहीं मिला,तो उसने अरुणाचल प्रदेश के पुनः आवासीय क्षेत्रो से लेकर पहाड़ और नादियाँ के नाम बदल कर चीनी नाम रख दिये, उसके प्रत्युत्तर भारत ने उसकी इस कोशिश को खारिज करते हुए खोखला और निरर्थक बताया गया है। उसका यह कहना भी सर्वथा उचित है कि इस प्रकार के प्रयास इस अखण्ड सच्चाई को नहीं बदल सकते कि यह राज्य भारत का अभिन्न हिस्सा था, है और हमेशा रहेगा। भारत का यह कहना अपने स्थान पर सही है,पर इतने भर से दुष्ट चीन का रवैया बदलने वाला नहीं है,उसके लिए नीति शस्त्र के सूत्र ‘शठे शठ्यं समाचरेत ’ यानी ‘जैसे को तैसा’ नीति अपनानी होगी। भारत को भी चीन की ‘वन चाइना’ और तिब्बत नीति समेत उसकी दूसरे नीतियों पर पुनः विचार करना चाहिए। यदि आवश्यकता हो तो उनका खुलकर अन्तरराश्ट्रीय स्तर पर विरोध करे। चीन अरुणाचल और जम्मू-कश्मीर विशेष रूप से लद्दाख के लोगों को नत्थी वीजा देता आया है,इसका भारत समय-समय पर विरोध भी करता रहा है। इसके बजाय भारत को भी तिब्बत,शिनजियांग ,हांगकांग क्षेत्र के रहने वालों को भी नत्थी वीजा देना चाहिए। जैसे चीन खुलकर पाकिस्तानी दहशतगर्दों का बचाव करने के साथ पाकिस्तान का साथ देता आया है,भारत को भी चीन के शत्रु/प्रतिद्वन्द्वी मुल्कों खासकर ताइवान, वियतनाम, जापान आदि की हिमायत में खुलकर आना होगा। हालाँकि भारत ‘क्वाड’ के माध्यम से अमेरिका, आस्ट्रेलिया, जापान से मिलकर उसकी आक्रामकता रोकने को प्रयासरत है।उसने दक्षिण चीन सागर ,हिन्द महासागर, हिन्द प्रशान्त स्वतंत्र नौवहन का समर्थन करते हुए अन्तरराष्ट्रीय सामुद्रिक कानून,सन्धियों के पालन करने के प्रतिबद्धता भी दर्शायी है। भारत चीन से पीड़ित/आतंकित देशों से व्यापारिक और सैन्य सहयोग बढ़ा रहा है। लेकिन उसकी कोशिशों के अभी वांछित परिणाम दिखायी नहीं दे रहे है। भारत को चीन अधिकृत तिब्बती स्थानों को उसके पुराने नामों से पुकारना चाहिए। शिनजियांग को उसके पुराने नाम ईस्ट तुर्की नाम से पुकारे। यहाँ तक कि भारत को दक्षिण चीन सागर की जगह उसका नाम ‘दक्षिण पूर्व एशिया सागर’ रखना होगा। चीन ने पिछले साल भी अरुणाचल प्रदेश के 30शहरों के नाम अपनी भाषा में रखे थे। चीन ने यह काम वर्श 2017 में डोकलाम विवाद के समाधान के शीघ्र बाद शुरू किया था। अरुणाचल प्रदेश को दक्षिणी तिब्बत का हिस्सा बताते हुए चीन इनके नाम तय करता है। 21अप्रैल,2017को अरुणाचल के छह स्थानों ,फिर 30दिसम्बर,2021को 12स्थानों के, इसके बाद 2अप्रैल, 2023 को 11स्थानों के नाम बदल चुका है। भारत और चीन के रिश्ते अप्रैल, 2020 से ही काफी तनावपूर्ण थें। तनाव की समाप्त करने के लिए अक्टूबर, 2024 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और राष्ट्रपति चिनफिंग के बीच बैठक हुई थी। इससे भी जरूरी बात यह है कि चीनी वस्तुओं पर निर्भरता घटानी होगी। यह क्षोभ की बात है कि ‘मेक इन इण्डिया‘ अभियान और भारत को आत्मनिर्भर बनाने की पहल के बाद भी चीनी वस्तुओं के आयात में कमी नहीं लाई जा पा रही है।हमारा उसके साथ व्यापार घाटा लगातार बढ़ता ही जा रहा है,जबकि भारत ने उसके बहुत-सी वस्तुओं का निर्यात बन्द किया हुआ। उसकी कम्पनियों के नए निवेश पर रोक लगायी हुई है। औषधि निर्माण में प्रयुक्त कच्चे माल को कम करते हुए फिर से कच्चा अपने यहाँ बनाना शुरू कर दिया। कुछ चीनी ऐप बन्द कर दिये हैं।फिर भी व्यापारी वर्ग निजी मुनाफा के लिए चीन से आयात कम नहीं कर रहा है,उनकी इस अनुचित नीति पर केन्द्र को निगाह रखनी होगी। ऐसा क्यों नहीं हो पा रहा है,इस पर सरकार के साथ हमारे उद्योग जगत् को भी गम्भीरता सोचना होगा। इसलिए और भी ,क्योंकि विश्व के अनेक देश कोविड महामारी के बाद से ही चीन प्लस वन नीति को बढ़ावा दे रहे हैं। इसके तहत वे चीन पर अपनी निर्भरता कम करना चाहते हैं। वर्तमान में चीन भारत का सबसे बड़ा शत्रु है, वह भारत को अपना प्रतिद्वन्द्वी मानता/समझता है,इसलिए हर हाल में उसे नीचा दिखाना/यह आर्थिक,सैन्य रूप से कमजोर बनाये रखना चाहता है। इस खतरे को भांपते हुए भारत ने चीन से जुड़ी सीमा पर सड़कों,पुलों,हवाई पट्टियों,बंकरों आदि सैन्य सुविधाओं का बड़े पैमाने पर निर्माण कराया है और उससे जूझने को सैन्य संगठन तैयार करने के साथ अत्याधुनिक हथियारों,सुरक्षा तंत्र खड़ा किया है,इससे चीन की घुसपैठ पर एक सीमा तक रोक लगी है। सन् 1962 में चीन भारत के लद्दाख के अक्षयचिन क्षेत्र का 38,000वर्ग किलोमीटर भूमि पर अवैध कब्जा किये हुए है,जहाँ उसने सामरिक दृश्टि से अत्यन्त महŸवपूर्ण काराकोरम मार्ग बना लिया है,जो शक्सगम घाटी से गुजरता है।यह क्षेत्र जम्मू-कश्मीर का हिस्सा है। पाकिस्तान अपने अवैध कब्जे वाले इलाके में से इस 5,180वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को चीन को भेंट कर चुका है। वस्तुतः चीन तिब्बत को अपनी हथेली मानते हुए लद्दाख, नेपाल, भूटान,्र्रहै।इसे पहले नार्थ-ईस्ट फ्राण्टियर एजेन्सी/नेफा कहा जाता था। इसके पश्चिम में भूटान,उत्तर मे चीन,पूर्व में म्यांमार और दक्षिण में असम है। यह पूरा पहाड़ी राज्य है। केवल असम में के निकटवर्ती भाग में समतल मैदान की संकरी-सी पट्टी है। इस राज्य के दो-तिहाई भाग पर घने वन हैं। इसका तावांग नगर बौद्ध तीर्थ स्थल है।इस क्षेत्र पर चीन अपना दावा करता है उसने इस क्षेत्र का चीनी भाशा में ‘जांगनन’ रखा हुआ है। 13हजार फीट से अधिक ऊँचाई पर भारत ने ‘सेला सुरंग’ का निर्माण किया है,जिससे माध्यम से भारत का सम्पर्क भारत का सम्पर्क सालभर तवांग क्षेत्र बना रहता है। इसकी राजधानी ईटा नगर है। फिलहाल,भारत चीन की आँखों में बहुत खटक रहा है। अमेरिका भी चीन को नीचा दिखाना चाहता है।इसके लिए वह भारत का कन्धा चाहता है,पर भारत के लिए अमेरिका का भरोसा करना मुश्किल है,क्योंकि उसके लिए आत्मसम्मान और राश्ट्रीय स्वाभिमान से बढ़कर व्यापारिक मुनाफा है। इसके लिए वह कभी पलटी मार सकता है। इसलिए भारत को चीन को सबक सिखाने को स्वयं तैयार होना होगा,तभी वह चीन की उसे आतंकित करने राजनीति पर रोक लगेगी।
सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार वरिश्ठ पत्रकार,स्तम्भकार, 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003 मोबाइल नम्बर‘9411684054
ऐसे खात्मा होगा, चीन की नाम बदलने की सियासत का

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