डॉ.बचन सिंह सिकरवार
हाल में मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में इस्लामिक कट्टरपंथी मुस्लिम युवकों के एक गिरोह द्वारा अपनी असली पहचान छुपा कर हिन्दू किशोरियों/ युवतियों को मिथ्या प्रेम जाल में फँसाकर/लव जिहाद के जरिये उनके साथ दुश्कर्म कर उनके जिन्दगी बर्बाद करने के उनके नफरती मजहबी मकसद के खुलासे और उस गिरोह के सरगना फरहान खान के इसे मजहबी नजरिये से शबाब/पुण्य कर्म बताने से सकल हिन्दू समाज बेहद हैरान-परेशान है,यह सब करके भी उसे कोई पछतावा नहीं है, बल्कि खुद पर फक्र है। वैसे तो देशभर में ऐसे ही मामलों में इस समुदाय के पहले भी तमाम युवक पकड़े जा चुके हैं,पर उनमें से किसी ने भी फरहान खान की तरह अपने मजहबी मकसद का खुलासा नहीं किया है। लेकिन केरल उच्च न्यायालय ने इस समुदाय के युवाओं की तादाद और एक जैसी हरकतों को भांपते हुए एक मामले में अपने निर्णय में ‘लव जिहाद’ शब्द का प्रयोग अवश्य किया था। इनकी ऐसी बेजां हरकतों से केरल का ईसाई समुदाय भी बेहद त्रस्त बना हुआ है।इसे विशय पर ‘द केरल स्टोरी’शीर्शक से फिल्म भी बनी है। देश के विभिन्न राज्यों को अपनी पहचान/मजहब छुपा कर फर्जी मुहब्बत करने वालों के खिलाफ कानून बनाने को मजबूर होना पड़ा है। इसके बावजूद आज तक देश के मुल्ला, मौलाना, मौलवी, इस्लामिक विद्वान, इस्लामिक सियासी रहनुमा लव जिहाद के जरिए मतान्तरण कराने के तरीके से इनकार करते आए है,लेकिन इनमें से कभी किसी ने ऐसे लोगों की खुलकर मजम्मत तक नहीं की है।
अब सबसे ज्यादा हैरानी बात यह है कि भोपाल में ये हैवान अपने मजहबी मकसद को हासिल करने को कई साल से हिन्दू किशोरियों की जिन्दगियाँ बर्बाद करने में जुटा है,पता लगा है कि इसकी कुछ लड़कियों द्वारा शिकायत पुलिस-प्रशासनिक अधिकारियों से भी की थी,पर किसी ने उनका संज्ञान तक नहीं लिया। ऐसे घोर संवेदनहीन, निकृश्ट, अकर्मण्य /कामचोर अधिकारियों को नमूने की सजा दी जानी चाहिए,जिन्होंने इतने संवेदनशील मामले पर आँखें मूंदी हुई थीं।
निश्चय उसके इस मजहबी नफरती खुलासे उन कथित पंथनिरपेक्ष/वामपंथी राजनीतिक दलों नेताओं, बुद्धिजीवियों, साहित्यकारों, पत्रकारों को गहरा आघात लगा होगा,जो ऐसे इस्लामिक कट्टरपंथियों का तरह-तरह के मिथ्या/ फर्जी तर्क/तथ्य देकर उनके असल चरित्र और इरादों को छुपाने तथा बचाव करते आए हैं। यहाँ तक कि ये लोग मतान्तरण और लव जिहाद को रोकने के लिए बने कानून का सड़क से सर्वोच्च न्यायालय तक विरोध करते आए हैं। ये ही लोग हर आतंकवादी हमले के बाद यह कहना नहीं भूलते कि आतंकवाद का कोई धर्म/मजहब नहीं होता,उनसे यह सवाल मौजू है कि हर मुसलमान दहशतगर्द/आतंकवादी नहीं होता, पर ऐसी वारदातों के पीछे ज्यादातर इस समुदाय के लोग ही होते हैं। भोपाल में सकल हिन्दू समाज अपना गुस्सा और आक्रोश व्यक्त करने सड़कों पर उतर आया। शहर के 26 स्थानों पर महिलाओं ने जबरदस्त प्रदर्शन करते हुए सरकार से हिन्दू बेटियों की जीवन से खिलवाड़ करने वाले इन जिहादियों को सख्त से सख्ती कार्रवाई/फाँसी दिये जाने की माँग कर रही थीं। उन्होंने बेटियों को ऐसे जिहादियों से प्रतिकार के लिए जागृत करने का संकल्प लिया।
वस्तुतः देशभर के हिन्दुओं में जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में इस्लामिक कट्टरपंथियों द्वारा 26हिन्दू पर्यटकों से उनका धर्म पूछ कर उनकी नृशंस हत्याओं को लेकर पहले ही आक्रोश व्याप्त था, उस पर भोपाल में1992 अजमेर जैसे काण्ड को अंजाम देने वाले मुस्लिम युवक जिहादी मानसिकता से हिन्दू किशोरियों/युवतियों से दुश्कर्म करने वाले गिरोह और उसके सरगना फरहान खान ने यह कह कर पुलिस को हैरान कर दिया कि वह यह सब कई साल से करता आ रहा है। उसका और उसके गिरोह से जुड़े युवकों का मकसद ज्यादा से ज्यादा हिन्दू लड़कियों से दुश्कर्म कर उनके जीवन को बर्बाद करके शबाब का काम करना है। अपने इस मकसद को हासिल करने के लिए फरहान खान ने हममजहबी हमउम्र युवकों को पूरा गिरोह बनाया हुआ है। इस गिरोह के सदस्य अपना हिन्दू नाम और हाथ में कलावा बाँध कर मौका लगते हिन्दू किशोरियों को प्रेम के झांसे में फँसाते आए हैं। इन्होंने भोपाल के टीआइटी कॉलेज में पढ़ने वाली हिन्दू छात्राओें को लव जिहाद में फँसाने की मुहिम चलायी हुई थी। ये लोग विशेश रूप से उन छात्राओं पर डोरे डालते थे,जो दूसरे शहरों या गाँवों से आकर किराये के घरों में रहकर अपनी पढाई करती हों,क्यांकि उनसे मिलना-जुलना अपेक्षाकृत आसान होता है। इस मामले में अब तक आठ छात्राओं ने पुलिस मेंशिकायत दर्ज करायी है और पाँच एफआइआर दर्ज की गई हैं। इनमें मुख्य सरगना फरहान खान,उसकी बहन जोया और उसके पति समेत 12 युवकों को आरोपित बनाया गया है जिनमें से 11आरोपियों को गिरफ्तार किये जा चुका है।ऐसे मामलों में कट्टरपंथी मजहबी संगठनों द्वारा ऐसे जिहादियो को धन मुहैया कराये जाने का आरोप लगाये जाते रहे हैं,पर हर बार इस्लामिक संगठनों द्वारा उन्हें खारिज किया जाता रहा है,किन्तु हकीकत इससे उलट है। अगर ऐसा नहीं है तो भोपाल के इन लव जिहादियों को महँगी जीवन शैली/स्टाइल जीने के लिए धन कौन मुहैया करा रहा था? भोपाल लव जिहाद काण्ड का सरगना फरहान खान 3 लाख रुपए की स्पोर्टस बाइक चलाने के साथ महँगी घड़ियाँ पहनता है।वह हिन्दू युवतियों को महँगे होटलों में ले जाया करता था। यह सब देखते हुए अब सकल हिन्दू समाज की माँग है कि इन जिहादियों को धन उपलब्ध कराने वालों की भी जाँच कराके उन्हें भी दण्डित किया जाए।
अब अपने देश में इस्लामिक कट्टरपंथियों द्वारा किये जा रहे लव जिहाद की समस्या नई नहीं है। मध्य प्रदेश में ही भोपाल काण्ड के उजागर होने के बाद सागर में गोलू बनकर फरहान मकरानी द्वारा हिन्दू युवती के साथ दुश्कर्म किये जाने का मामला प्रकाश में आया है। इस मामले में मतान्तरण का दबाव बनाने के पश्चात् पुलिस थाने में वाद दर्ज हुआ। इसके बाद हिन्दूवादी संगठनों द्वारा प्रदर्शन किया गया। इसी तरह शहडोल नगर में सामूहिक दुश्कर्म कर प्रकरण भी ‘लव जिहाद’ जुड़ा मामला बताया जा रहा है। इससे पहले इन्दौर, ग्वालियर, राजगढ़,दमोह, उज्जैन, छतरपुर जिलों में भी लव जिहाद की घटनाएँ दर्ज की गई हैं। आम तौर पर इस्लाम मजहब के जानकार अपने मजहब को अमन, मुहब्बत और भाईचारे का पैगाम देने वाला बताते आए हैं,पर प्रश्न यह है कि यदि सच है तो फिर कुछ मुस्लिमों में इतनी मजहबी नफरत कहाँ से आती है,जो मामूली से विवाद या बगैर विवाद के गैर मुस्लिम का गला रेतने,गोली मार कर हत्या करने या दुश्कर्म को शबाब का काम समझ या मान कर करते आए हैं? दरअसल, इस्लाम के जानकार अपने मजहब की खूबियाँ या समझाने के लिए अक्सर अपने सबसे बड़े पाक ग्रन्थ ‘ कुरआन‘ की इस आयत का हवाला दिया करते हैं-‘‘लकुम दीनोकुम वले यदीन’’ । इसका अर्थ है-आपका मजहब आपके साथ और मेरा मजहब मेरे साथ। यह सुनकर विपक्षी भी खामोश बैठ जाता है। लेकिन गैर मजहबियों से नफरत की असल वजह ‘कुफ्र’ और ‘काफिर’ की अवधारणा है,जिसके अनुसार ‘जो मुसलमान नहीं,वह काफिर हैं। आगे कहा गया है कि जो काफिरों को काफिर नहीं मानता,वह खुद काफिर है। इस विशय पर प्रख्यात पत्रकार और पूर्व केन्द्रीय मंत्री अरुण शौरी की पुस्तक ‘फतवे, उलेमा और उनकी दुनिया’ के पृश्ठ संख्या-162 पर काफिरों के प्रति रवैये को लेकर इस प्रकार लिखा है-‘अल्लाह ने बार-बार काफिरों के मूल स्वभाव की रूपरेखा प्रस्तुत की है और उतनी ही बार उसने वह बुनियादी रवैया नियत किया है जो कि मौमिनों को, मौमिनों के बजाय काफिरों को दोस्त/मित्र/सहायक नहीं बनाना चाहिए। अल्लाह चेतावनी देता है-अगर वे ऐसा करेंगे, जो उन्हें अल्लाह से किसी चीज में मदद नहीं मिलेगी़़़़़़़’-(3.28) और फिर आगे कहा है,‘ऐ ईमान लाने वालो ! अपनों के सिवा दूसरों को अपना भेदी मत बनाओ, ये तुम्हें भ्रश्ट करने में कुछ भी उठा कर नहीं रखेंगे। वे तुम्हें सिर्फ बर्बाद ही करना चाहते हैं। इनका घोर द्वेश तो उने मुँह से व्यक्त हो चुका है और जो कुछ उनके दिल में छिपा है वह उससे भी बुरा है। यदि तुम बुद्धि/अक्ल से काम लो तो हमने तुम्हारे लिए निशानियाँ भी खोल कर बयान कर दी हैं। यह तुम्हीं हो, जो उनसे प्रेम/मुहब्बत करते हो और वे तुमसे प्रेम नहीं करते हैं, जबकि समूची किताब पर ईमान रखते हो और जब वे तुमसे मिलते है तो कहते हैं कि हम तो ईमान लाए हुए हैं और जब वे अकेले में होते हैं तो तुम पर क्रोध के मारे उँगालियाँ तानते हैं। कह दो’ तुम अपने क्रोध में मरे रहो।’’निःसन्देह अल्लाह दिलों को भेदां को अच्छी तरह जानता है। अगर तुम्हारा कोई भला होता है, तो तुम्हें बुरा लगता है और जब तुम्हारा दुर्भाग्य हावी हो जाता है तो वे खुशी मनाते हैं। लेकिन यदि स्थितिप्रज्ञ बने रहो और सही काम करते रहो तो उनकी कोई भी चालाकी तुम्हें नुकसान/क्षति नहीं पहुँचा सकती है। वे जो कुछ कर रहे हैं। अल्लाह उसे अपने घेरे में लिए हुए है।’’(3.118-20)कुरआन की आयतें और हदीस से उद्धृत करते हुए ‘फतवा -ए-रिजाविया’ में घोशित किया गया हैः मशरिक बुरे होते हैं। काफिर की कौम चाहे कितनी ही नेक हो, उसका परिवार भी चाहे कितना नेक हो, वह किसी गुलाम मुसलमान से भी बेहतर नहीं होता। मुसलमानों और काफिरो का नस्ब(कुल)बिल्कुल अलग-अलग है-फतवे में कहा गया है-इन दोनों के बीच कोई रिश्ता बचा नहीं रह गया है। आगे इसमें घोशणा की गई है -निःसन्देह /बेशक सभी काफिर चाहे वे किताबिए हो या मुशरिक-दोजख की आग में निवास करते हैं और वे हमेशा हारेंगे। वे सारी कायनात/सृश्टि से बदतर है,जो ईमान-यानी इस्लाम पर ईमान लाता है और अच्छे काम करता है,
वह पूरी दुनिया से बेहतर है।’ काफिरों के प्रति कितनी नफरत है यह उलेमाओं के इस ऐलान से साफ/स्पश्ट होती है।’ एक काफिर किसी भी हालात में मुसलमान से बेहतर हो ही नहीं सकता।’ एक मुसलमान हर हालत में काफिरों से बेहतर होता है।काफिर का सम्मान करना कुफ्र है। इस विचार/अवधारणा के कारण ही इस्लामिक कट्टरपंथियों को हिन्दू किशोरियों/युवतियों/महिलाओं से दुश्कर्म/पहलगाम में हिन्दुओं की हत्या या फिर हिन्दुओं के पर्व-त्योहारों पर पत्थरबाजी ,लवजिहाद, मतान्तरण, अपमानित, हर तरह से उत्पीड़न उन्हें अपना घर-द्वार छोड़ने को मजबूर करना शबाब/पुण्य काम लगता है। इस हकीकत का जानते-समझते/मानते हुए देश के नेताओं को मुल्ला,मौलवियों,उलेमाओं को समझाना होगा हम आपने मजहब की असलियत से वाकिफ है,इसलिए उन चीजों को पढ़ना/पढ़ाना/प्रचार करना बन्द करना होगा, जो इस्लाम मानने वालों को गैर मुसलमानों से नफरत और उसे खत्म करने का सबक सिखाती है। इसी में उनके मजहब और दुनिया के दूसरे मजहबों को मानने वालों की भलाई के साथ दुनिया में अमन का रास्ता खोलती है।
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