12 अप्रैल जन्म दिवस पर विशेश
डॉ. बचन सिंह सिकरवार
गत दिनों समाजवादी पार्टी के राज्यसभा के सदस्य रामजीलाल सुमन ने अपने बयान में आरोप लगाया कि राणा सांगा ने अपने प्रतिद्वन्द्वी दिल्ली के सुल्तान इब्राहिम लोदी को पराजित करने के लिए मुगल हमलावर बाबर को भारत आने का न्योता भेजा था,उनके इस बयान को देशभर में तीव्र विरोध हुआ।यहाँ तक कि इसके विरोध में करणी सेना ने आगरा स्थित उनके आवास का घिराव किया,जो हिंसक हो गया। इस स्थिति में देश के लोगों को सही ऐतिहासिक तथ्यों की जानकारी होना आवश्यक है,क्योंकि जहाँ सन् 1526 में पानीपत के प्रथम युद्ध में मुगल शासन की नींव रखी गई,वहीं सन् 1527 के ‘खानवा युद्ध‘/विजयपुर सीकरी/फतेहपुरसीकरी युद्ध में मेवाड़ नरेश राणा सांगा के नेतृत्व राजपूतों/हिन्दू राजाओं के संघ की पराजय ने देश में उसके सबसे बड़े प्रतिरोध पर विराम लगा दिया। ऐसे मे राणा सांगा पर लगे आरोप की सच्चाई का पता लगाने आवश्यक है। समाजवादी पार्टी के सांसद सुमन के समर्थन में जिस ‘बाबरनामा’ का हवाला दे रहे हैं। उसकी तथ्यात्मक पुश्टि/प्रमाण/सुबूत बाबर द्वारा लिखित ‘बाबरनामा’(आत्मकथा) से भी नहीं होती। उनके अनुसार -राणा सांगा ने बाबर को इब्राहिम लोदी को हराने के लिए उससे मदद माँगी थी। बाबरनामा में लिखा है कि राणा सांगा ने उनके पास अपने दूत भेजकर कहा था कि अगर वह दिल्ली पर हमला करेंगे,तो वह आगरा से हमला करेंगे। इसमें ‘अगर‘ शामिल है,यानी यह बात तो तय हो चुकी थी। बाबर चिनाब नदी पर पहुँच चुका था। वह दिल्ली पर हमला करने वाला था, तो इसमें राणा सांगा ने उन्हें कैसे न्योता दे दिया? अगर बाबरनामा की बात सच होती राणा सांगा आगरा पर हमला करते,लेकिन ऐसा तो नहीं हुआ। जहाँ तक सपा सांसद रामजीलाल सुमन का राणा सांगा को गद्दार बताने/साबित करने का प्रश्न है तो उनकी पार्टी की मुस्लिम तुश्टिकरण और हिन्दुओं को नीचा दिखाना है। सपा का इरादा हिन्दुओं के बढ़ते मनोबल और उनकी एकजुटता को तोड़ना है।
कुछ इतिहासकारों का मानना है कि अगर राणा सांगा ने रणनीतिक सन्देश भेजा होगा, तो राणा सांगा इब्राहिम लोदी को हरा कर पूरे उत्तर भारत में हिन्दू राज्य स्थापित करना था। इसके लिए उन्होंने सभी हिन्दू राजाओं को एकजुट किया था। राणा सांगा को उम्मीद रही होगी कि तैमूर लंग की तरह बाबर भी वापस लौट जाएगा। इसके बाद उत्तर भारत में हिन्दू राज्य स्थापित हो जाएगा। सांसद रामजीलाल सुमन द्वारा राणा सांगा का अपमान को लेकर आगरा के न्यायालय में वाद दायर करने वाले अधिवक्ता अजय प्रताप सिंह के अनुसार ब्रिटिश अधिकारी ए.एस.बेवरज द्वारा अँग्रेजी में अनूदित ‘बाबरनामा’ में लिखा है कि बाबर का इब्राहिम लोदी पर आक्रमण के लिए उसके पंजाब के गवर्नर दौलत खान ने आमंत्रित किया गया था। लाहौर गजेटियर-1884 के पृश्ठ-20 पर भी यही उल्लेख मिलता है। ब्रिटिश सरकार के पुराने अभिलेखों में दर्ज है कि बाबर और राणा सांगा के मध्य 11फरवरी, 1527 से 17 मार्च,1527 को अन्तिम निर्णायक युद्ध सीकरी के किले पर लड़ा गया, जिनमें राणा सांगा घायल हो गए थे। फतेहपुर सीकरी के कामारव्या मन्दिर परिसर (जामा मस्जिद) में बनी कब्रें, उन्हीं मुगल सैनिकों की हैं, जो इस युद्ध में मारे गए थे।
इनके विपरीत इतिहासकार रवि भट्ट के अनुसार राणा सांगा ने बाबर को बुलाया या नहीं, इसे लेकर मतभेद हैं। राणा सांगा ने बाबर को बुलाया इसका उल्लेख ‘बाबरनामा’ में है,वहीं कुछ इतिहासकार लिखते हैं कि बाबर ने राणा सांगा से सिर्फ सम्पर्क किया था। अलग-अलग इतिहासकार लिखते हैं कि दिल्ली के सुल्तान इब्राहिम लोदी के रिश्तेदार ही उसे सŸा से बेदखल/खदेड़ना चाहते थे। इसलिए सन् 1523 में इब्राहिम लोदी के आलम खान, चाचा अलाउद्दीन और पंजाब के दौलत खाँ ने बाबर से सम्पर्क किया था। इनके बुलावे पर ही बाबर को हराया और दिल्ली की सत्ता पर कब्जा किया।
इसी 1अप्रैल को गोरखपुर विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के आचार्य एव ‘भारतीय इतिहास अनुसन्धान परिशद्((आइसीएचआर)के सदस्य प्रोफेसर हिमांशु चतुर्वेदी ने स्पश्ट किया कि मालवा के शासक दौलत खान के पुत्र दिलावर खान ने तत्कालीन परिस्थितियों में इब्राहिम लोदी हराने के लिए बाबर को आमंत्रित किया। लगातार मिल रही पराजय से बाबर को अपने मूल स्थान मध्य एशिया से भागना चाहता था, इसलिए उसने दिलावर खान का आमंत्रण स्वीकार किया,जिसके परिणाम स्वरूप पानीपत का प्रथम युद्ध हुआ और मुगलों को भारत में पाँव जमाने का अवसर मिल गया। इतिहास क इस तथ्य को पुश्ट करते हुए प्रोफेसर हिमांशु चतुर्वेदी ने बताया कि बाबर के भारत आने के इतिहास की जानकारी का एकमात्र मूल ग्रन्थ ‘बाबरनामा’ है। इसमें इस बात का उल्लेख तो है कि राणा सांगा ने अपना दूत भेजा था, लेकिन वह आमंत्रण के लिए गया था। मूल रूप से चगातिया भाशा में लिखी गई बाबरनामा के कई बार अनुवाद के क्रम में सम्भावनाओं के आधार पर यह तथ्य स्थापित कर दिया गया कि बाबर को आमंत्रित करने वालों में मेवाड़ के तत्कालीन राजा राणा सांगा भी शामिल थे। इतिहास के मानक पर यह तथ्य पूरी तरह गलत है, क्योंकि इतिहास का आधार सम्भावना नहीं,साक्ष्य होता है। प्रोफेसर हिमांशु ने बताया कि राणा सांगा ने बाबर को भारत आमंत्रित नहीं किया था। यह इस आधार पर भी स्थापित होता है कि उन्होंने पानीपत के प्रथम युद्ध से पहले दो बार इब्राहिम लोदी को पराजित किया था और ऐसे में उन्हें इस कार्य के लिए बाबर को आमंत्रित करने की जरूरत पड़ने की बात बेमानी है। प्रसिद्ध इतिहासकार मार्क जासन गिल्बर्ट ने अपनी पुस्तक ‘साउथ वर्ल्ड हिस्ट्री’ में लिखा है,बाबर को एक बात समझ आ गई थी कि मध्य एशिया में उसकी दाल नहीं गलेगी। इसलिए उसे भारत की तरफ आगे बढ़ाना चाहिए। बाबर की नजर दक्षिण-पूर्व पंजाब पर थी। यह बात सन् 1519 की है कि बाबर चिनाब नदी पर पहुँच गया, इससे स्पश्ट है कि बाबर ने मध्य एशिया का ख्वाब/सपना छोड़ दिया था। अपने लक्ष्य भारत को साध लिया। दो साल सन् 1517 में इब्राहिम लोदी की गद्दी पर बैठा था।एक जिद्दी शहजादा अपने सरदारों को साथ लेकर नही चल सका। ‘मध्यकालीन भारत’शीर्शक के लेखक इतिहासकार सतीश चन्द्र ने लिखा है कि सन् 1517 में दक्षिणी राजस्थान के हाड़ौती में इब्राहिम लोदी तथा राणा सांगा के बीच युद्ध हुआ,जिसमें इबाहिम लोदी हार गया। इसके बाद सन् 1518में राणा सांगा ने इब्राहिम लोदी की सेना को बाड़ी,धौलपुर में हराया। राणा का एक हाथ तलवार से कट गया और पैर में भी तीर लगा था,लेकिन उन्होंने इब्राहिम लोदी के खिलाफ अपनी सेना का नेतृत्व जारी रखा और जीत हासिल की। इब्राहिम लोदी की स्थिति काफी कमजोर हो गई,क्यों कि सारे क्षत्रप उनके खिलाफ हो गए थे 23सामन्त ने इब्राहिम लोदी के खिलाफ बगावत कर दी।
पानीपत जिले की वेबासाइट में पानीपत के प्रथम युद्ध का विवरण के अनुसार, समकालीन लेखक निमत्ल्ला के हवाले से लिखा है -इब्राहिम लोदी का महत्त्वाकांक्षी चाचा आलम खान दिल्ली से भाग गया। इब्राहिम लोदी का दूसरा चाचा दौलत खान ने दिल्ली की गद्दी पर दावा ठोंक दिया,जिसका कुछ सरदारों ने समर्थन कर दिया। जब इब्राहिम लोदी ने दौलत खान को नियंत्रित करने का प्रयास किया,तो उसने बाबर से हाथ मिला लिया। इब्राहिम लोदी ने दौलत खान के बेटे दिलावर खान को गिरफ्तार कर लिया,पर वह कैद से भागने में कामयाब हो गया। दौलत खान ने अपने बेटे दिलावर खान को बाबर के पास भेज कर उसे इब्राहिम लोदी को हराने में मदद माँगी। जो लोग बाबर के पास गए थे,वे राणा सांगा के दूत नहीं थे,बल्कि इब्राहिम लोदी का चचेरा भाई दिलावर खान और चाचा आलम खान थे। इतिहासकार लिखते हैं कि इब्राहिम लोदी के रिश्तेदारों ने ही बाबर से इल्तिजा/आग्रह की थी कि वह इब्राहिम लोदी की सŸा को उखाड़ फेंके।वे दिल्ली के बदले बाबर को पंजाब देने को तैयार थे।कालान्तर बाबर ने पंजाब को ही दौलत खान,दिलावर खान, आलम खान में बाँट दिया और खुद दिल्ली का शासक बन गया। इस तरह लोदी वंश का अन्त अपने वंश के भीतरघात से हो गया। जहरुद्दीन बाबर ने लोदी वंश का खात्मा का मुगलकाल की शुरुआत की।
राणा सांगा एक अत्यन्त शक्तिशाली सेना के सेनापति थे। उन्होंने महमूद खिलजी द्वितीय को भी हराया था और मालवा के एक बड़े हिस्से पर कब्जा करके अपने जागीरदार मेदिनी राय को पूर्वी मालवा के एक बड़े हिस्से का शासक बना दिया,क्योंकि िएक समय चन्देरी के शासक ने लोदी सुल्तान के प्रति निश्ठा प्रकट की थी। सभी इतिहासकार यह नहीं मानते हैं कि राणा सांगा ने बाबर को न्योता दिया,वरन् कुछ इतिहासकारों का विचार है कि बाबर ने राणा सागा से सहायता माँगी थी। इतिहासकार सतीशचन्द्र का भी कहना है कि राणा सांगा ने कोई आमंत्रण नहीं दिया था, वरन् उन्हें लोदियों के साथ संघर्श का लाभ उठाने की उम्मीद की थी। अन्य शब्दों में उन्होंने रणनीति बनायी थी मुगल शासन के इतिहास जदुनाथ सरकार जिन्होंने बाबर की डायरी का अनुवाद भी किया था। उन्होंने भी लिखा है कि बाबर का आक्रमण इब्राहिम लोदी के विद्रोहियों के साथ गठबन्धन से प्रेरित था। राणा सांगा का बाबर का कोई गठबन्धन नहीं हुआ था। ‘राश्ट्रीय राजनीति में मेवाड़ का प्रभाव’ के इतिहासकार डॉ. मोहनलाल गुप्त लिखते हैं कि राणा सांगा भी इब्राहिम लोदी से युद्ध करना चाहते हैं, आपको सन्धि पत्र भेजा गया है। बाबर ने जवाब में लिखा था कि मैं उधर से दिल्ली पर आक्रमण करूँगा,उधर आप आगरा पर आक्रमण करें।यानी आगरा से युद्ध की बात राणा सांगा ने नहीं,बाबर ने कही थी। राजस्थान का इतिहास लिखने वाले गौरी शंकर हीरा चन्द ओझा ने लिखा है- बाबर ने राणा सांगा से सहायता माँगी थी। बाबर ने भारत पर आक्रमण का मन बहुत पहले बना लिया था। ऐसे में सपा सांसद रामजीलाल सुमन द्वारा ऐतिहासिक तथ्यों की पुश्टि किये बिना ही महापराक्रमी योद्धा को देश का गद्दार बताकर अपनी क्षुद्र बुद्धि और अपरिपक्व राजनीति का परिचय दिया। यह सबकर उन्होंने समाज/ हिन्दू/देशद्रोही जैसा आचरण किया है। उनका यह अपराध क्षमा करने योग्य नहीं है। हकीकत यह है कि देश का कोई भी इतिहासकार इस तथ्य की पुश्टि नहीं करता कि राणा सांगा ने इब्राहिम लोदी को हराने के लिए बाबर का न्योता दिया था। डॉ.बचन सिंह सिकरवार वरिश्ठ पत्रकार एवं स्तम्भकार 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003मोबाइल नम्बर-9411684054
राणा सांगा ने नहीं बुलाया था बाबर को

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