डॉ.बचन सिंह सिकरवार

गत दिनों दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष जफरूल इस्लाम का अपनी फेसबुक पोस्ट के जरिए धमकी भरे लहजे में यह लिखना कि जिस दिन भारत के मुसलमानों ने अरब देशों से अपने खिलाफ हो रहे जुल्म की शिकायत कर दी, तो सैलाब आ जाएगा, वह एक संवैधानिक पद पर बैठे हुए शख्स का निहायत ही झूठा इल्जाम और गैरजिम्मेदाराना बयान है,जो उनकी फिरकापरस्त जहनियत का भी खुलासा करता है। उनके इस फर्जी बयान की जितनी भी सख्त मजम्मत की जाए, वह कम ही होगी। कायदे से ऐसे शख्स से बगैर सफाई माँगे तथा कोई वक्त गंवाए इस्तीफा ले लेना/या उसे बर्खास्त कर देना चाहिए। हालाँकि मुल्क की मौजूदा सियासत से एक अलग तरह की सियासत का वादा कर सत्ता में आयी ,अब वैसी ही मौकापरस्त और फिरकापस्त सियासत कर रही ‘आम आदमी पार्टी’(आप)के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल से ऐसी उम्मीद करना ही बेमानी है, जिन्होंने उन्हें तैनाती दी है।

वैसे दिल्ली अल्पसंख्यक के अध्यक्ष जफरूल इस्लाम ने अपनी फेस बुक पोस्ट में कुवैत के भारतीय मुसलमानों के साथ खड़े होने की जो बात की,उसकी हकीकत भी भरोसे के लायक नहीं है, क्यों कि इससे पहले ऐसी ही एक पोस्ट को यूएई की शाहीखानदान की शहजादी की पोस्ट कहकर प्रचारित किया गया ,जो बाद में फर्जी निकली। उसका खण्डन खुद शहजादी ने किया है।जहाँ तक अरब मुल्कों से कारोबारी रिश्तों की बात है,तो इससे सिर्फ भारत को ही फायदा नहीं है,उन्हें भी है। भारत उनसे अपनी जरूरत के 80 फीसद पेट्रोलियम पदार्थ खरीदता है, किन्तु खास मुसीबत मे भारत अमेरिका, रूस समेत दुनिया के दूसरे मुल्कों से उन्हें आयात कर सकता है। यदि भारत उन्हें खाद्य पदार्थों , दूसरी आवश्यक वस्तुओं का निर्यात बन्द करने के साथ अपने श्रमिकों-अन्य विशेषज्ञों को वापस बुला ले,तो उनकी व्यवस्था भंग अवश्य हो जाएगी।
जहाँ तक जफरूल इस्लाम सरीखे मुसलमानों की शिकायत पर उनके भारत के खिलाफ किसी कार्रवाई का सवाल है, तो वे ऐसा करने से पहले सौ बार नहीं,हजार बार सोचेंगे। अब 711ईस्वी का भारत नहीं,जब मुहम्मद बिन कासिम के बाद से वहाँ से हमलावर आकर यहाँ जंग जीतते रहे। अब भारतीय सेना विश्व की सबसे बड़ी, अत्याधुनिक हथियारों से सुसज्जित ताकतवर सेनाओं में से एक है। जहाँ तक इस्लामिक मुल्कों की सैन्य शक्ति की बात है, तो कुछ लाख की आबादी वाला एक छोटा-सा मुल्क इजरायल उन्हें एकसाथ और एक-एक कर कई बार हरा चुका है। फिर अरब मुल्कों के मुसलमान हिन्दुस्तानी मुसलमानों को पूरा मुसलमान तक नहीं मानते, जिन्हें ये अपनी खैरख्बाह समझते/मानते आए हैं। फिर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के पाकिस्तान, तुर्की, इण्डोनेशिया को छोड़कर इस्लामिक मुल्कों से खास रिश्ते हैं, इनमें से कई मुल्कों के शासक मोदी को सम्मानित भी कर चुके हैं और उन्हें खास तवज्जो भी देते हैं।

वैसे जफरूल इस्लाम कोई पहले ऐसे शख्स नहीं हैं, जो संवैधानिक पद बैठे रहते हुए कर या फिर बैठे रह चुके शख्सों द्वारा इस मुल्क में अपनी हममजहबियों पर जुल्म, नाइन्साफी, गैर बराबरी का इल्जाम लगाया है। देश के दो बार उपराष्ट्रपति समेत कई उच्च पदों पर रहे मुहम्मद हामिद अंसारी तथा केन्द्रीय सूचना आयुक्त रहे वजाहत उल्लाह खाँ, सीएए के विरोध में नौकरी छोड़ने वाले महाराष्ट्र के एक आइ.ए.ए.अधिकारी समेत कुछ दूसरे इस्लामिक मजहबी और सियासी रहनुमा इल्जाम लगाने में पीछे नहीं रहे हैं,ऐसी जहनियत की वजह से कश्मीरी मुसलमान आइ.ए.एस इस्तीफा देकर सियासत के मैदान में उतरे हैं,जिन्होंने एक-साल पहले आइ.ए.एस.की परीक्षा टॉप की थी, पर इनमें से किसी ने अपने उन हममजहबियों की उस जहनियत पर कभी उंगली नहीं उठायी, जो इस मुल्क में रहते हुए पाकिस्तान समेत दुनिया के सबसे खंूखार दहशतगर्द संगठन‘ आई.एस.आई.एस. के झण्डे लहराते हुए हिन्दुस्तान मुर्दाबाद, पाकिस्तान जिन्दाबाद के नारे लगाते हुए सुरक्षा बलों पर पत्थर बरसाते रहे हैं। उनके हममजहबियों ने किस बर्बरता से कश्मीर घाटी को कश्मीरी पण्डित विहीन कर उनके घरों, दुकानों, खेतो, बागों, मन्दिरों पर कब्जा कर लिया। उन्हें देश के अलग-अलग जगहों से पाकपरस्त हममजहबियों के पाक के झण्डे और उसके जिन्दाबाद के नारे लगाने से भी कोई ऐतराज नहीं हैं। उन्हें अपने हममजहबियों के बड़ी तादाद में अलगाववादी और आतंकवादी होने या पकड़े जाने से भी कोई मतलब/दिक्कत नहीं है, पर जब उनके खिलाफ सरकार कोई कार्रवाई करती है, तो उन पर जुल्म नजर आता है या फिर तत्काल तीन तलाक निषेध अधिनियम, जम्मू-कश्मीर से सम्बन्धित अनुच्छेद 370 और 35ए हटाये जाने , श्रीरामजन्म भूमि/बाबरी मस्जिद विवाद का फैसला आने को, जम्मू-कश्मीर समेत देश के दूसरे मदरसों ,मस्जिदों और दूसरी पाक जगहों को इबादत के बजाय दहशतगर्दी और गैर मजहबियों के खिलाफ नफरत फैलाने के अड्डे बनाये जाने से रोकने के लिए उनका पंजीकरण, विदेशों से मिलने वाले धन की जाँच कराने को क्या जफरूल इस्लाम मुसलमानों पर जुल्म मान रहे हैं?
गत दिसम्बर से लेकर फरवरी माह तक उनके हममजहबयों ने ‘नागरिकता संशोधन अधिनियम-2019 (सीएए) की मुखालफत के बहाने पूरे देश में हिंसा और आगजनी की थी, जिनमें बड़ी संख्या में लोग मारे गए और करोड़ों रुपए का माली नुकसान भी हुआ। उत्तर-पूर्वी दिल्ली में ही फरवरी, 23से 26 को हुए भीषण साम्प्रदायिक दंगे की आगजनी और हिंसा में गुप्तचर एजेन्सी आई.बी.के सिपाही अंकित शर्मा और एक पुलिस हवलदार समेत 53लोगों की जानें गई और कई करोड़ की सम्पत्ति बर्बाद हुई थी। हैरानी की बात यह है कि जफरूल इस्लाम के हममजहबी जिस सीएए कानून का इतना विरोध कर रहे थे, उससे उनका कोई वास्ता ही नहीं था। वैसे भी यह कानून नागरिकता देता है, किसी की नागरिकता छीनता नहीं है। इसी मार्च माह में जिन तारीखों पर कोरोना महामारी के चलते जब दिल्ली में एक साथ 20 लोगों के एकत्र होने पर रोक थी,उसी समय निजामुद्दीन स्थित तब्लीगीी जमात के मरकज में कई हजार देसी-विदेशी जमाती इकट्ठे कर कानून को ठंेगा दिखाया गया, फिर उन जमातियों को बिना मेडिकल जाँच के गायब होने में मदद की गई। इस कारण ये कोरोना विषाणु से संक्रमित जमातियों की वजह से अपने मुल्क के 20 से ज्यादा सूबों में यह महामारी फैल गई। इस कारण आज मुल्क में कुल कोरोना संक्रमितों में से 30फीसदी के करीब संक्रमित निजामुद्दीन तब्लीगी जमात के मरकज से निकले जमातियों की वजह से है। देश में जहाँ कहीं इन जमातियों को अस्पताल या क्वारण्टाइन केन्द्रो में रखा गया, वहीं उन्होंने चिकित्सकों, नर्साें, पुलिस कर्मियों के साथ अभद्र व्यवहार, गाली-गलौज, मारपीट, थूकना, गन्दगी फैलाना, शौच करना आदि कर उनके इस महामारी से लोगों की जान बचाने के महती कार्य में बाधा डाली है। जब कोरोना संक्रमण रोकने के लिए हिन्दुओं,जैनों के मन्दिर,सिखों के गुरुद्वारें,ईसाइयों के गिरजाघर,बौद्धों के मन्दिरों/मठों,पारसियों के अग्नि मन्दिरों,मस्जिदों को बन्द रखने का आदेश है,तो सामूहिक रूप से मस्जिद में नमाज पढने की जिद् करना और पढना। उन्हें नमाज से रोकना क्या जुल्म है? इसके अलावा मस्जिदों में अब जफरूल इस्लाम जैसे शख्स दंगाइयों से निजी-सरकारी सम्पत्ति के नष्ट करने का दण्ड वसूलने या पुलिस, चिकित्सकों, नर्सों से दुर्व्यवहार करने, उन पर थूकने पर सख्त सजा दिये जाने को जुल्म मानते हैं। फिर इनका और इनके हिमायती फर्जी सेक्यूलर पार्टियों और कुछ पत्रकार तथा उसी मानसिकता के टी.वी.चैनलों का यह इल्जाम कि कुछ जमातियों के बुरे बर्ताव की वजह से पूरी मुसलमान कौम को बेवजह बदनाम किया जा रहा है।ऐसे हिमायतियों की बदौलत जफरूल इस्लाम, असदुद्दीन औवेसी,उनका छोटा भाई अकबररूद्दीन ,उन्हीं की पार्टी का नेता वारिस पठान,नेकां के नेता डॉ.फारुक अब्दुल्ला,उमर अब्दुल्ला, पी.डी.पी.की नेता महबूबा मुफ्ती खुले आम इस्लामिक दहशतगर्दों की तरफदारी करने और अपरोक्ष रूप से पाकिस्तान की हिमायत करने के बावजूद खुद को सेक्यूलर कहते हैं तथा समुदाय विशेष के एकमुश्त वोटों के तलबगार भी उन्हें ऐसा ही कहे जा रहे हैं। देश के लोग यह भी जानते/मानते हैं कि सभी मुसलमान ऐसे नहीं है,लेकिन मुल्ला-मौलवियों के खौफ से सही बात कहने से डरते हैं,इससे जफरूल इस्लाम जैसे लोग पूरे मुल्क के मुसलमानों के नुमाइन्दे दिखाते रहते है।
कुछ माह पहले हैदराबाद में ‘एआइएमआइएम’ के नेता वारिस पठान ने भी जफरूल इस्लाम की तरह भारतीयों को धमकी के लहजे में कहा था कि अगर हिन्दुस्तान में मुसलमानों को कुछ होता है, तो अरब मुल्कों में कार्यरत 15 लाख के करीब भारतीयों पर क्या गुजरेगी,उसका अन्दाज भी यहाँ की सरकार/हिन्दू कर लंे। एक बार सपा के वरिष्ठ नेता आजम खान भी भारत की शिकायत ‘संयुक्त राष्ट्र संघ(यू.एन.ओ.)में करने की धमकी दे चुके हैं।
दरअसल, जफरूल इस्लाम सरीखे लोग भारत में इस्लाम के मुजाहिद हैं, जो एक बार फिर पूरे देश को इस्लामिक मुल्क और उसके सारे वाशिन्दों को मतान्तरित कर इसे ‘दारूल इस्लाम’ बनाने में जुटे हैं। लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जैसे नेता उसमें बाधक और केजरीवाल की आप , काँग्रेस, सपा, बसपा, वामपंथी सियासी पार्टियाँ, फारूक अब्दुल्ला ,महबूबा मुफ्ती मददगार बने हुए हैं।
ऐसे में अब जरूरत इस बात की है कि जफरूल इस्लाम जैसे लोगों की शिनाख्त कर उनकी असल जगह दिखायी जाए, जो देश की सुरक्षा, स्वतंत्रता, अखण्डता को खतरा बने हुए है,ं ऐसे लोगों को दण्डित करने में मजहब को बाधा नहीं समझा जाना चाहिए।देश के मुसलमानों को भी वतनफरोशों के खिलाफ अपनी आवाज उठानी होगी,ताकि इस्लाम और वतनपरस्त मुसलमानों की सूरत और सीरत पर किसी तरह का दाग न लगे।
सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार,63 ब,गाँधी नगर,आगरा-282003,मो.नम्बर-9411684054
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