देश-दुनिया

कोई गुनाह नहीं किया है, वोलादिमीर जेलेंस्की ?

डॉ.बचन सिंह सिकरवार
गत दिनों अमेरिका की राजधानी के राश्ट्रपति भवन वाशिंगटन हाउस स्थित ओवल ऑफिस राश्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प और यूक्रेन राश्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की के मध्य रूस और यूक्रेन की बीच चले युद्ध को बन्द करने को लेकर मीडिया के समक्ष जो तीखी बहस हुई थी, उसे दुनियाभर के लोगों ने देखा। इस बहस के दौरान दोनों देशों के राश्ट्राध्यक्षों के बयानों लेकर आज दुनिया दो भागों में बँटी दिखायी दे रही है। इसने भू-राजनीति और वैश्विक समीकरणों में परिवर्तन होता नजर आ रहा है। जहाँ कुछ देश और लोग अमेरिकी के राश्ट्रपति ट्रम्प के यूक्रेन के राश्ट्रपति जेलेंस्की साथ हुक्ुमरान की तरह तेवर दिखाने/डॉटने, हर हाल में/जबरदस्ती जंग बन्द कराने/अपनी सैन्य शक्ति, हथियारों, आर्थिक रूप से सम्पन्नता/युद्ध में उसे दी आर्थिक सहायता का रौब दिखाने/धमकाने को जायज ठहराते और राश्ट्रपति जेलेंस्की को आर्थिक मजबूरी के बावजूद निर्भीक होकर रूस से सम्बन्धित अपनी शिकायतों/समस्याओं उल्लेख करने को अनुचित बता रहे हैं। ये देश/लोग चाहते हैं कि महाबली अमेरिका जो कहें उसे बगैर ना-नाकुर के मंजूर कर लेना चाहिए, वहीं कुछ मुल्क और लोग अमेरिका के राश्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के यूक्रेन के राश्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की के साथ किये बर्ताव को कूटनीतिक और अतिथि के साथ व्यवहार को सर्वथा, अमर्यादित, अपमानजनक मानते है और जेलेंस्की के साथ सहानुभूति व्यक्त रहे हैं। उनकी दृश्टि में राश्ट्रपति जेलेंस्की ने निर्भीकता तथा आत्मसम्मान के साथ रूस के कब्जे वाली अपने देश की जमीन वापसी और भविश्य में रूस से यूक्रेन की सुरक्षा की गारण्टी की बात कह कर कुछ भी गलत नहीं कहा। कोई भी देशभक्त यही करता है। जंग बन्द करने से पहले हमलावार रूस से अपनी मातृभूमि की रक्षा/सुरक्षा की गारण्टी माँग कर राश्ट्रपति जेलेंस्की ने कोई गुनाह नहीं किया है। इस बहस का अन्त यूक्रेन के राश्ट्रपति जेलेंस्की को बगैर किसी समझौते के खाली हाथ अमेरिका से लौटना पड़ा है। इस विवाद ने दुनिया के देशों में विशेश रूप से यूरोपीय देशों में हलचल मचा दी,क्योंकि रूस से यूक्रेन पराजय से शेश यूरोपीय देशों को रूस अपनी सुरक्षा को खतरा उत्पन्न हो गया, क्यों कि वे रूस की विस्तारवादी नीति से आतंकित होकर अमेरिका के नेतृत्व वाले सैन्य संगठन ‘उŸार अटलाण्टिक सन्धि संगठन’(नाटो)में शामिल हुए हैं। अब तक यूक्रेन बफर स्टेट के रूप से रूस का प्रतिरोध कर रहा है। उसके बाद उनकी सीमा रूस से जुड़ जाएँगी। खैर ,परिस्थिति देखते हुए अब यूक्रेन के राश्ट्रपति जेलेंस्की अमेरिकी राश्ट्रपति ट्रम्प से अपने व्यवहार खेद व्यक्त करते हुए खनिज समझौते पर हस्ताक्षर करने की बात कही है।
यही कारण है उक्त घटना के तुरन्त बाद यूरोप के अधिकांश देशों के राजनेताओं एक बैठक आहूत कर यूक्रेन के साथ एकजुटता प्रदर्शित करते हुए उसके राश्ट्रपति जेलेंस्की को हर सम्भव सहायता देने की घोशणा की है,भले ही इससे इनसे अमेरिका के बराबर यूक्रेन की आवश्यकताओं की पूर्ति न हो, पर उसे कमजोर क्षणों सहारा तो मिला तथा यूरोपीय देशों के इस कदम से अमेरिका को भी झटका जरूर लगा होगा। इस मामले की शुरुआत कुछ ऐसे हुई- यूक्रेन के राश्ट्रपति जेलेंस्की अमेरिका राश्ट्रपति ट्रम्प के साथ अपने देश में दुर्लभ खनिजों के बदले उनसे निरन्तर आर्थिक सहायता जारी रखने के उद्देश्य से समझौता करने आए हुए थे, लेकिन इस खनन समझौते से पहले अमेरिका के उपराश्ट्रपति जे डी वेंस ने उसने रूस-यूक्रेन युद्ध की चर्चा छेड़ दी। शान्ति और तरक्की का रास्ता कूटनीति को जोड़ता है। अमेरिका राश्ट्रपति ट्रम्प यही काम कर रहे हैं। इस पर राश्ट्रपति जेलेंस्की ने कहा, ‘तीन साल पहले रूस ने हमला करने से पहले 20फरवरी, 2014 में भी उसने बहुत बड़े इलाके (क्रीमिया) का हमसे छीन लिया था, तब किसी ने राश्ट्रपति पुतिन को नहीं रोका। अब किसी तरह की डिप्लोमेसी की बात कह रहे हैं?इस पर उपराश्ट्रपति वेंस ने कहा ,‘‘मैं उस डिप्लोमेसी की बात कर रहा हूँ जो आपके देश को विनाश से बचाये ।तब जेलेंस्की ने कहा,‘आप हमारी बेइज्जती कर रहे हैं। अमेरिकी मीडिया के सामने आप हमें दोशी ठहरा रहे हैं। इस पर वेंस न कहा कि राश्ट्रपति ट्रम्प ने रूस के राश्ट्रपति पुतिन से बातचीत कर रास्ता खोला है और तुरन्त युद्धविराम लागू करने की कोशिश कर रहे हैं। युद्ध से परेशानी हो रही होगी। तब जेलेंस्की ने कहा,‘युद्ध में हर किसी को परेशानी होती है,’इसमें कौन-सी बात है?’ युद्ध की शुरुआत से हम अकेल ही लड़ रहे हैं। इस पर हमें गर्व है।इस पर राश्ट्रपति ट्रम्प भड़क गए। हमने आपको( पूर्व राश्ट्रपति जो बाइडन)के जरिए 350करोड़ डॉलर की थी।आप अकेले नहीं थे। क्या आपने कभी अमेरिका का आभार जताया? आपने अपने देश का बड़े संकट में डाल दिया। वर्तमान रूस-यूक्रेन युद्ध के लिए कौन जिम्मेदार /दोशी/गुनाहगार है,इसके लिए जरूरी तथ्यों पर ध्यान और विचार करना आवश्यक है। जब सन् 1991मे सोवियत संघ का विघटन हुआ, तब उसके पास जो परमाणु हथियार थे,उनमें से हजारों हथियार यूक्रेन के नियंत्रण में आ गए थे। उस समय परमाणु हथियारों का विश्व में तीसरा सबसे बड़ा भण्डार यूक्रेन के पास था, हालाँकि उन्हें इस्तेमाल करने का उसे अधिकार नहीं था। वामपंथी सोवियत संघ के चंगुल में दशकों तक रहने के बाद सन्1991में यूक्रेन स्वतंत्र हुआ। तब यह एक निर्धन देश था।उसे आर्थिक सहायता के बदले अमेरिका, रूस, ब्रिटेन और दूसरे यूरोपीय देशों ने उस पर दबाव डाला कि वह अपने सभी परमाणु हथियार रूस को सौंप दे। वे उसकी स्वतंत्रता और सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध रहेंगे। इससे पूर्व 5दिसम्बर, 1984को हंगरी की राजधानी बुडापेस्ट में ‘यूरोपीय सुरक्षा और सहयोग सम्मेलन’में अमेरिका, रूस, ब्रिटेन और यूक्रेन ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किये थे।
रूस ने 2019में युद्ध विराम समझौते पर हस्ताक्षर किये थे,जिसके बाद रूस ने युद्ध विराम तोड़ते हुए यूक्रेनी लोगों का मार डाला और कैदियों की अदला-बदला भी नहीं की।ऐसे में आप किस तरह की कूटनीति की बात कर रहे हैं?पर रूस-यूक्रेन युद्ध 20 फरवरी, 2014में शुरू हुआ था यूक्रेन की ऐवोल्यूशन ऑफ डिग्निटी के बाद रूस ने क्रीमिया पर कब्जा कर उसे अपने देश में मिला लिया। इसके अलावा यूक्रेन के डोनबास क्षेत्रों में यूक्रेनी क्षेत्र के खिलाफ लड़ रहे रूस समर्थक विद्रोहियों की सहायता की थी।पहले आठ वर्शों मे इस संघर्श में समुद्री झड़पें और साइबर हमले थे। 24 फरवरी,2022 में रूस यूक्रेन पर बड़ा हमला किया और उसके तथा अधिक इलाके पर कब्जा कर लिया, जिससे द्वितीय विश्व युद्ध के बाद यूरोप के सबसे बड़ा युद्ध शुरू हो गया। उस समय अमेरिका संसद ने यूक्रेन के लिए 175 अरब डॉलर की सहायता स्वीकार की थी। इस युद्ध के कारण बड़ी संख्या शरणार्थी बन गए और हजारों जानें चली गईं। अक्टूबर, 2024 में एक अमेरिका अधिकारी के अनुमान के अनुसार रूस के साथ युद्ध में यूक्रेन में 57,000 से अधिक लोग मारे गए और 2,50,000से ज्यादा घायल हुए हैं। इन तथ्यों से स्पश्ट है कि विगत वर्शों में रूस के साथ यूक्रेन युद्ध में बहुत अधिक क्षति हुई है। इस लड़ाई में सबसे ज्यादा नुकसान यूक्रेन के लोगों का हुआ है। रूस ने भी बड़ी संख्या में सैन्य अधिकारी तथा सैनिक को खोए है, किन्तु यूक्रेन की हानि कहीं अधिक है। कई यूरोपीय देश इस युद्ध का समर्थन कर रहे हैं ,पर असली नुकसान सिर्फ यूक्रेन को उठाना पड़ रहा है। अमेरिका अब तक यूक्रेन का सबसे बड़ा सहयोगी था,पर हाल ही में अमेरिका और यूक्रेन के बीच बढ़ता तनाव जेलेंस्की के लिए इस सबसे बड़ी बुरी खबर है। जेलेंस्की का यह समझना चाहिए कि युद्ध किसी भी समस्या का आखिरी समाधान नहीं हो सकता । यह सच है कि रूस ने इस लड़ाई की शुरुआत की थी ,लेकिन यूक्रेन भी दुनिया के सबसे बड़े ताकतवर देशो में से एक के खिलाफ बहुत आगे तक चला गया। सबसे अहम बात यह है कि इस पूरे युद्ध में यूक्रेन पूरी तरह से अपने विदेशी सहयोगियों पर निर्भर रहा है,जिसमें अमेरिका सबसे महत्त्वपूर्ण था। मौजूदा स्थित में राश्ट्रपति ट्रम्प ने सही कहा कि इस संकट से बाहर निकालने के लिए अमेरिका ही यूक्रेन का सबसे बड़ा सहारा हो सकता है। जेलेंस्की को यह समझना चाहिए कि किसी भी लड़ाई को जीतने के लिए समझना चाहिए कि किसी भी लड़ाई को जीतने के लिए अपनी ताकत जरूरी होती है न कि दूसरो की मदद । उनकी पहली प्राथमिकता यूक्रेन के लोग और उनका देश होना चाहिए उन्हें जल्द से जल्द ही अपनी रणनीति पर दो बार विचार करना चाहिए,ताकि समय रहते अपने लोगो और देश के हित में सही निर्णय ले सके।
वैसे रूस-यूक्रेन विवाद पर कोई निर्णय करने से पहले सभी स्थितियों पर विचार करना जरूरी है। इस मामले में कुछ का विचार है कि यदि यूक्रेन नाटो में सम्मिलित होने की हठ न करता, तो उस दशा में रूस पर हमला नहींं करता। सच यह है कि रूस यूक्रेन का पुनः अपने में विलय के बराबर प्रयास कर रहा था।उसके इरादे भांप कर अपनी स्वतंत्रता तथा सुरक्षा हेतु यूक्रेन सैन्य संगठन नाटो का सदस्य बनना चाहता था। कुछ लोगों को लगता है कि अमेरिका ने यूक्रेन को नाटो का सदस्य बना कर सही किया,ऐसे लोगों को इस सच्चाई का पता नहीं,कि सोवियत संघ के समय ‘वरसा समझौता‘ समाप्त होने के बाद रूस स्वयं नाटो में सम्मिलित होने का इच्छुक था।लेकिन अमेरिका ने उसे नाटो सदस्य नहीं बनाया,क्योंकि उस स्थिति में दुनिया में कहीं युद्ध न होने पर अपने अस्त्र-शस्त्र कहाँ-किसे बेचता? इसलिए यह कहना गलत नहीं होगा कि रूस-यूक्रेन युद्ध में कहीं न कहीं अमेरिका भूमिका ही महत्त्वपूर्ण रही है, अब अमेरिका वियतनाम और अफगानिस्तान की तरह यूक्रेन की पराजय देखकर युद्ध से बाहर आने जुगत कर रहा है।इससे उसके सबसे निकट सहयोगी यूरोपीय देश आसन्न संकट से घिर गए हैं उनकी सुरक्षा खतरे में पड़ गई है। भले ही अमेरिका के राश्ट्रपति ट्रम्प यूक्रेन के राश्ट्रपति जेलेंस्की के साथ अपने दम्भपूर्ण/दादागीरी पर कितना ही इतरा रहा है,किन्तु इससे अमेरिका का मतलबी,भीरू,अवसरवादी,अविश्वासनीय चरित्र दुनिया के सामने फिर से आ गया है,जो अपने स्वार्थ के कितना ही गिर सकता है।इस विश्व के स्वतंत्रता और देश प्रेमी दूसरे देशों को भी सबक लेना चाहिए। उन्हें कभी अपनी सुरक्षा-रक्षा के लिए अमेरिका जैसे देशों पर कभी विश्वास नहीं करना चाहिए। इस स्थिति का भारत भी शिकार हुआ है,जब उसे भी 1965 और 1971के भारत-पाकिस्तान युद्ध में प्राप्त जीत से प्राप्त उपलब्धियों को महाशक्तियों के दबाव में पाकिस्तान को लौटा कर गंवा दिया था।
सम्पर्क-डॉ. बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003 मो. नम्बर-9411684054

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