डॉ.बचन सिंह सिकरवार
गत दिनों तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.स्टालिन द्वारा केन्द्र सरकार पर नई शिक्षा नीति (एनईपी)-2020 के तहत त्रिभाशा सूत्र (फार्मूले)) के माध्यम से हिन्दी और संस्कृत भाशा थोपने का जो आरोप लगाया है, वह सर्वथा अनुचित, मिथ्या, जनहित विरोधी, लोगों को गुमराह-भड़काने और राजनीतिक फायदों के इरादे से लगाया गया है,जो निश्चित रूप से आगामी विधासभा चुनाव और सूबे में भाजपा के लगातार बढ़ते प्रभाव को थामने की पेशबन्दी में लगाया जा रहा है। वैसे सच यह है कि नई शिक्षा नीति सही माने में राश्ट्रीय है। इसे तैयार करने वाली समिति के अध्यक्ष के.कस्तूरीरंगन रहे हैं,जो तमिल मूल के हैं। वास्तविकता यह है कि एनईपी भारतीय भाशाओं और बहुभाशावाद को बढ़ावा देने वाली है। इसमें संविधान की आठवीं अनुसूची की सभी 22 भाशाएँ सम्मिलित हैं। नया त्रिभाशा सूत्र 1968, 1986 की त्रिभाशा नीतियों की अपेक्षा अधिक लचकदार और समावेशी है। उनका कहना है कि हिन्दी एक मुखौटा है और उसके पीछे का चेहरा संस्कृत है। उनका यह आरोप इसलिए असत्य और भ्रामक है, क्यों कि त्रिभाशा नीति में कहीं भी मातृभाशा के अलावा हिन्दी और संस्कृत को लेना, पढ़ना/सीखना अनिवार्य नहीं है, बल्कि मातृभाशा के साथ कोई-सी दो भाशाएँ लेने/पढ़ने का विकल्प है। इसके तहत तमिलनाडु में विद्यार्थी अपनी मातृभाशा तमिल के साथ कोई-सी भी दो भाशाएँ ले सकते हैं। वैसे भी वर्तमान में यहाँ के छात्र मातृभाशा के साथ-साथ दूसरी भाशा के रूप में अँग्रेजी लेते आए है या फिर अँग्रेजी माध्यम स्कूल में पढ़ते हुए वे सभी विशय अँग्रेजी भाशा में पढ़ते हैं और तमिल को सिर्फ एक विशय के रूप पढ़ते हैं। अब नई शिक्षा नीति के तहत त्रिभाशा के फार्मूले के जरिए मातृभाशा तमिल, अँग्रेजी के साथ स्वेच्छा से तीसरी भाशा के रूप में तेलुगू, कन्नड़, मलयालम कोई-सी दक्षिण भारतीय भाशा का चयन कर सकते हैं, इसमें हिन्दी और संस्कृत थोपना कैसे हो गया? इस बीच हिन्दी विरोधी द्रमुक के रवैये का विरोध करते हुए केन्द्रीय सूचना एवं प्रसारण तथा रेलमंत्री अश्विनी वैश्णव ने काँग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और सांसद राहुल गाँधी ने तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.स्टालिन के हिन्दी विरोधी बयानों को आधार बनाकर जवाब माँगा है। क्या वह लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष एवं हिन्दी भाशी क्षेत्र रायबरेली से सांसद होने के नाते मुख्यमंत्री स्टालिन के ऐसे बयानों से सहमत हैं? दुर्भाग्य यह है कि इस मुद्दे पर राश्ट्र हित से सत्ता को महŸव देने वाले राजनीतिक दलों के नेता एक बार फिर हमेशा की तरह खामोश बने हुए हैं
मुख्यमंत्री एम.स्टालिन का यह भी कहना है कि वह हर हाल में तमिल तथा उसकी संस्कृति की रक्षा करेंगे, ऐसा कह कर उन्होंने अपने राज्य के लोगों को भरमाने की कोशिश रहे हैं, जैसे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और केन्द्र सरकार तमिल भाशा और संस्कृति का कमजोर/बर्बाद/नश्ट करने का षड्यंत्र कर रही है, जबकि सच्चाई इसके विपरीत है कि नरेन्द्र मोदी पहले प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने तमिल भाशा तथा संस्कृति के प्रचार-प्रसार और बढ़ावा देने के सबसे अधिक प्रयास किये हैं। वह तमिल को देश के सबसे प्राचीन, प्रमुख और महŸवपूर्ण बताते आए हैं, तमिल कवि-दार्शनिक तिरुवल्लुवर के नाम पर विश्वभर में सांस्कृतिक केन्द्र स्थापित करने की योजना,तमिल साहित्य को बढ़ावा देने के लिए तिरुक्कुरल तथा अनेक प्राचीन तमिल ग्रन्थों का विभिन्न भाशाओं में अनुवाद करा कर उन्हें प्रसारित करना, वाराणसी और ‘काशी-तमिल संगमम’, सौराश्ट्र-तमिल संगमम’ के माध्यम से उŸार भारत में तमिल कवि सुब्रह्मणयम भारती की जयन्ती पर देशभर में भारतीय भाशा उत्सव मानना या तमिल भाशा में विभिन्न अखिल भारतीय परीक्षाओं का आयोजन कराना।केन्द्र सरकार ने अँग्रेजी के स्थान पर कई प्रादेशिक भाशाओं में चिकित्सा,इंजीनियरिंग,तकनीकी शिक्षा के शिक्षण व्यवस्था की।इस कारण तमिल छात्र भी उच्च और तकनीकी शिक्षा आसानी प्राप्त कर सकता है। ये सभी कार्य प्रधानमंत्री मोदी की तमिल भाशा,संस्कृति पर गहरी प्रतिबद्धता प्रदर्शित और प्रमाणित करती है।
वैसे भी अपने देश के ज्यादातर राजनीतिक दल सुशासन/बेहतर और न्यायपूर्ण व्यवस्था देने के बजाय धर्म/मजहब, सम्प्रदाय, जाति, क्षेत्र, भाशा-बोली की बिना पर अपनी सियासत करते आए है, इनमें तमिलनाडु की द्रमुक पार्टी उत्तर-दक्षिण, सवर्ण/ब्राह्मण,आर्य-अनार्य ,हिन्दी विरोध की राजनीति करती आयी है। इसी नीति पर चलते अब मुख्यमंत्री एम.स्टालिन ने अपने हिन्दी और संस्कृत भाशा विरोधी एजेण्डे को आगे बढ़ाते हुए उसके विरुद्ध दुश्प्रचार पर उतर आए हैं। उन्होंने द्रमुक कार्यकर्ताओं के साथ-साथ हिन्दी भाशी राज्यों के लोगों को सम्बोन्धित करते हुए पत्र जारी किया है जिसमें अपनी हिन्दी विरोधी राजनीति के तहत हिन्दी पर अन्य भारतीय भाशाओं का निगलने का आरोप लगाया है। अगर ऐसा है तो वर्तमान में विश्व में ऐसी कौन-सी भाशा है,जिसमें अन्य भाशाओं के शब्दों का समावेश नहीं है। इससे उनकी अपनी भाशा तमिल भी अछूती नहीं है,उसमें बड़ी संख्या में संस्कृत के शब्द नहीं हैं? भारत में ऐसी कितनी भाशाएँ हैं, जिनमें संस्कृत के शब्द नहीं हैं? वह जिस औपनिवेशिक भाशा अँग्रेजी के हिमायती बने हुए है, क्या उसमें दूसरी भाशाओं के शब्द नहीं हैं, वह भारत समेत दुनिया की कई भाशाओं की बर्बादी का कारण बनी हुई है।
इसी मामले में तमिलनाडु के राज्यपाल आर.एन.रवि द्वारा दक्षिणी तूतीकोरन और तिरुनेलवेली के दौरे के समय राज्य सरकार की दो भाशा वाली ‘कठोर नीति का प्रतिरोध करते हुए दक्षिण हिस्सो में युवाओं को अवसरों से वंचित करने तथा इस इलाके उपेक्षित और पिछड़ा रखने का जो आरोप लगाया है,वह सर्वथा सत्य, उचित, और विचारणीय है। लेकिन उनके सही, सामयिक और जनहितकारी आलोचना पर विचार उल्टे दूसरी ओर सŸारूढ़ द्रमुक ने राज्यपाल की टिप्पणियों पर निशाना साधते हुए उन पर तमिलनाडु के खिलाफ घृणा फैलाने का आरोप लगाया है। इसी सन्दर्भ में केन्द्रीय गृहमंत्री जी किशन रेड्डी ने मुख्यमंत्री एम. स्टालिन सरकार पर जनता को गुमराह करने के लिए भाशा के मुद्दे पर राजनीति स्टण्ट के रूप इस्तेमाल किये जाने का आरोप लगाया है। अब बड़ी सूचना प्रौद्योगिक(आ.टी.कम्पनी ) ‘जोहो’ के संस्थापक श्रीधर बेंवू ने भी इण्टरनेट मीडिया के एक्स हेण्डिल पर अँग्रेजी में ‘आइए हिन्दी सीखें’ लिखकर हिन्दी पढ़ाये जाने का खुलकर समर्थन किया है।उन्होंने तमिलनाडु के युवाओं से हिन्दी सीखने की अपील की है। श्री वेंबू ने लिखा है कि तमिलनाडु अब हिन्दी विरोध की राजनीति से बहुत आगे निकल चुका है। उनकी कम्पनी देश के कई राज्य में कार्यरत है जिसमें में काम करने वाले तमिल युवा हिन्दी न जानने के कारण कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं। हिन्दी के ज्ञान के अभाव में यहाँ के युवाओं की भर्ती न कर पा रहे हैं। इस बीच हिन्दी विरोध को सन् 1968 की तरह मुख्यमंत्री स्टालिन के सुर भी बदलने लगे हैं। अब वह हिन्दी विरोध को संस्कृत विरोध से जोड़ रहे हैं। उनके अनुसार केन्द्र सरकार हिन्दी की आड़ में संस्कृत थोपने की साजिश कर रही है। वैसे तमिलनाडु की द्रमुक सरकार हिन्दी का घोर विरोध अवश्य करती है, पर हिन्दी के व्यापक प्रसार, लोकप्रियता, रोजगारपरक होने के चलते हिन्दी पढ़ने वालों की संख्या में उत्तरोत्तर बढ़ोतरी हो रही है। तमिलनाडु में सीबीएसई स्कूलों में 60 लाख छात्र हिन्दी पढ़ रहे हैं । इस सूबे में 43 प्रतिशत छात्र हिन्दी पढ़ना जानते हैं। तमिलनाडु में 5लाख छात्रों ने‘दक्षिण हिन्दी प्रचार सभा‘ द्वारा आयोजित परीक्षा दी है।
दरअसल, तमिलनाडु की द्रमुक राजनीति की पृश्ठभूमि में ब्राह्मणवाद,सनातन, आर्य-अनार्य,संस्कृत-अनार्य भाशाएँ ,उŸार-दक्षिण के घोर विरोध तक सीमित नहीं रहा है। कई बार ये विरोध अलगाववाद और राश्ट्र विरोध तक विस्तृत होती रही है। तभी तो कुछ समय पहले तमिलनाडु विधानसभा में राश्ट्रगान के स्थान पर राज्यगीत गा कर एक बार फिर संविधान और राश्ट्रगान का सुनियोजित ढंग से अपमान किया गया । उस समय सदन में अभिभाशण हेतु पधारे राज्यपाल आर.एन.रवि द्वारा सदन के संवैधानिक कर्त्तव्य होने का स्मरण कराते हुए मुख्यमंत्री एम. के. स्टालिन, सदन के नेता दुरईमुरुगन तथा विधानसभा अध्यक्ष एम. अप्पायु से बार-बार ऐसा न करने न सिर्फ आग्रह भी किया गया, बल्कि विरोध स्वरूप और क्षुब्ध होकर अपना पारम्परिक अभिभाशण दिये बगैर वापस राजभवन लौट गए। संवैधानिक परम्परा के प्रति मुख्यमंत्री स्टालिन के दुराग्रह की हद यह है कि अपने इस संविधान विरोधी आचरण पर खेद व्यक्त करने की जगह उन्होंने राज्यपाल की आलोचना करते हुए उनके व्यवहार को न सिर्फ बचकाना हरकत बताया, वरन् उन पर इस राज्य के लोगों का लगातार अपमान करने का आरोप भी लगाया है। इससे स्पश्ट है कि उन्होंने यह सब तब अपनी पार्टी द्रमुक की अलगाववादी/ विघटनकारी/हिन्दू/सनातन धर्म विरोधी षड्यंत्र के तहत किया है।
वैसे भी सच यह है कि द्रमुक का गठन ही हिन्दू/सनातन धर्म , जाति-विभेदी, अलगावादी/हिन्दी विरोध को लेकर हुआ है। इन्हीं की बिना पर द्रमुक सियासत चलती आ रही है। कालान्तर में इसके नेता कभी हिन्दू देवी-देवताओं की प्रतिमाओं, तो कभी हिन्दू पुरोहितों और हिन्दी के मुखर विरोध के साथ-साथ देश विरोधी शक्तियों जैसे श्रीलंका के दहशतगर्द संगठन लिट्टे का समर्थन और उनके दहशतगर्दों की सहायता तक करते आए हैं। द्रमुक नेता अपने कई अनुचित और असंवैधानिक व्यवहार से अपने राज्य को राज्य नहीं, बल्कि अलग देश होना दर्शाने की कोशिश भी करते रहे हैं। यही कारण है कि उन्होंने विधानसभा में राश्ट्रगान ’जन मन गण’ की जगह तमिलनाडु के राज्य गीत-‘तमिल थाई वाझथु‘ गाया। ऐसा नहीं है कि मुख्यमंत्री एम. के. स्टालिन को यह पता नहीं था कि राश्ट्रगान गायन भारतीय संविधान में निहित मौलिक कŸार्व्यों में से एक है,जो विधानसभा/सदन में राज्यपाल के अभिभाशण से पूर्व और अन्त में देश की सभी विधानसभाओं में गाया जाता है। दरअसल, वह चाहते थे कि यह संदेश सारे देश को जाए कि तमिलनाडु की सरकार भारतीय संविधान से बँधी नहीं है या उसे नहीं मानती है। अभी कुछ समय पहले उसने भारतीय वायुसेना से सम्बन्धित विभाग के हिन्दी नाम को लेकर तमिलनाडु के लोगों पर हिन्दी थोपे जाने का आरोप लगाया। इससे पहले द्रमुक सरकार ने ‘इण्डियन पीनल कोड‘/आइपीसी के नए नाम ‘भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस)) और ‘इण्डियन एविडेशन्स एक्ट’/आइइए का ‘भारतीय साक्ष्य अधिनियम’ (बीएसए), ‘क्रिमिनल प्रोसिजर कोड‘/सीआरपीसी का नाम‘ भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता’(बीएनएसएस) हिन्दी में रखे जाने को लेकर भारी विरोध जताया। यह तब है कि देश के स्वतंत्र होने के बाद से किसी भी पार्टी की केन्द्र सरकार ने गैर हिन्दी भाशी राज्यों पर कभी भी हिन्दी थोपने की कोशिश नहीं की है। हिन्दी अपनी सरलता, लोकप्रियता, उपयोगिता के कारण देश में ही नहीं, विश्व भर में फैलती ही जा रही है। जहाँ तक कि तमिलनाडु की प्रादेशिक भाशा तमिल के प्रश्न है तो यह भी संस्कृत की भाँति प्राचीन भारतीय भाशा है, जिसका विपुल और समृद्ध साहित्य है। इसके जानने वाले कई देशों में है। हिन्दी इसकी कभी भी विरोधी नहीं रही है, बल्कि हिन्दी और तमिल भाशा में बड़ी संख्या में संस्कृत के शब्द समाहित हैं।इसका साक्षात प्रमाण तमिलनाडु के लोगों के नाम हैं,यथा-करुणानिधि,उदयनिधि,जयललिता, शिवाजी गणेशन,मुरलीधरन, निर्मला सीतारमण,एस जयशंकर आदि। तमिल भी देश के अनेकानेक भाशाओं की तरह भारतीय भाशा है। इसके प्रसार और उपयोगिता बढ़ाने की दृश्टि से केन्द्र सरकार ने तमिल भाशा में चिकित्सा, इंजीनियरिंग, प्रौद्योगिकी, विधि की शिक्षा तमिल भाशा में कराये जाने के साथ-साथ कई सरकारी सेवाओं में तमिल भाशा में परीक्षा देने का प्रावधान किया है। जहाँ तक तमिलनाडु में हिन्दी के शिक्षण और प्रसार का प्रश्न है तो राज्य सरकार के हिन्दी विरोधी तमाम प्रयासों के बाद उसके सिखाने वालों की संख्या लगातार तेजी से बढ़ रही है। इसकी वजह यह है कि राज्य लोग यह अच्छी तरह से जानते है कि बगैर हिन्दी ज्ञान के उनकी राश्ट्रीय स्तर पर प्रगति सम्भव नहीं है। जहाँ तक हिन्दू विरोध का सवाल है तो उसका सवर्ण हिन्दुओं/ब्राह्मण विरोध रवैया जगजाहिर है। सितम्बर, 2023 में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम. के. स्टालिन के पुत्र और राज्य सरकार में मंत्री उदयनिधि स्टालिन ने एक सनातन विरोधी संस्था के कार्यक्रम में खुलेआम सनातन धर्म की तुलना डेंगू, मलेरिया, और कोरोना जैसी महामारियों से करते हुए इसका समूल नाश करने का आह्वान किया था। इससे तमिलनाडु समेत देशभर के हिन्दुओं की धार्मिक भावनाओं को गहरा आघात लगा था। अब फिर द्रमुक सरकार हिन्दी विरोध के बहाने अलगाव को हवा दे रही है और देश के सŸा लोलुप नेता मूकदर्शक बने हुए है।देश ऐसे स्वार्थी नेताओं को कभी क्षमा नहीं करेगा।
सम्पर्क-डॉ. बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003 मो. नम्बर-9411684054
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