कार्यक्रम

बसंत पंचमी से समूचे ब्रज मण्डल में शुरू हो गई 40 दिवसीय होरा महोत्सव की धूम

 

वर्ष भर आयोजित पर्वोत्सवों में बिहारीजी मंदिर का अनुसरण करता है ब्रजधाम

(डॉ. गोपाल चतुर्वेदी)

वृन्दावन। समूचे ब्रज मण्डल में बसंत पंचमी के पर्व से 40 दिवसीय होरा महोत्सव की धूम शुरू हो गई।मदनोत्सव अथवा फागोत्सव के नाम से विश्वविख्यात इस महामहोत्सव का शुभारम्भ ब्रजाराध्य देवों के अग्रज स्वरूप में प्रसिद्ध जन-जन के आराध्य ठाकुर श्रीबाँकेबिहारी जी महाराज ने गुलाल उड़ाकर किया। इसी के साथ ब्रजमण्डल में आयोजित होने वाली रससिक्त रंगीली होली के विभिन्न मनोहारी सरस समारोह आरम्भ हो गये, जो बलदेवप्रभु की नगरी दाऊजी के हुरंगा के साथ सम्पन्न होंगे।
विश्वप्रसिद्ध ठाकुर बांके बिहारी मन्दिर के सेवायत, श्रीहरिदास पीठाधीश्वर, इतिहासकार आचार्य प्रहलाद वल्लभ गोस्वामी महाराज ब्रज की होली के विभिन्न पहलुओं पर तथ्यपरक प्रकाश डालते हुये बताते हैं कि प्राचीन ग्रन्थों के हवाले से स्पष्ट होता है कि लगभग पाँच शताब्दी पूर्व भक्तिकाल में सक्रिय रहे अनेक महान आचार्य व संत रसिक सम्राट श्री स्वामी हरिदास जी महाराज के प्रति अगाध श्रद्धाभाव रखते थे। इसी के चलते अपने आराध्य देवों के मंदिर में मनाये जाने वाली उत्सव श्रृंखला में भी तमाम भक्तजन श्रीस्वामीहरिदास जी के आराध्य ठाकुर श्रीबाँकेबिहारीजी महाराज का अनुसरण करते थे।
उसी पुरातन परम्परा का निर्बाह करते हुये ब्रजधाम में आज भी बसंतोत्सव, होली महोत्सव, दीपावली, फूल बंगला श्रृंखला, चंदन दर्शन यात्रा, झूलनोत्सव, शरदोत्सव, शीतकालीन व ग्रीष्मकालीन सेवाक्रम इत्यादि प्रायः समस्त उत्सव – महोत्सवों की शुरुआत भगवान श्री बाँकेबिहारी जी महाराज के द्वारा ही की जाती है, उसके बाद अन्य स्थान उत्सव मनाते हैं। इन सेवाक्रमों से संबंधित अनेक पद – पदावली पुराने समय से ही मंदिर – देवालयों में अस्तित्वरत रही समाज गायन विधा परम्परा में उपलब्ध हैं।
आचार्य प्रहलाद वल्लभ गोस्वामी महाराज ने कहा कि परस्पर प्रेम, अलौकिक आनन्द एवं भक्तराज प्रहलादजी की इष्टभक्ति के संगम स्वरूप में प्रतिष्ठापित रंगों का महापर्व होली, वैसे तो सर्वत्र अपनी-अपनी परम्परा के तहत मनाया जाता है। परन्तु ब्रजमण्डल प्रदेश में इसका जो स्वरूप विद्यमान है, वह निराला ही है। इस तीर्थ क्षेत्र को पूर्व में जहाँ लीलापुरुषोत्तम भगवान श्रीकृष्ण एवं आल्हादिनी शक्ति श्रीराधा द्वारा खेली गई रंगो की होली के दर्शन करने का शौभाग्य प्राप्त है, वहीं वर्तमान में जन – जन के आराध्य ठाकुर श्रीबाँकेबिहारी जी महाराज की सरस रंगीली होली आयोजनों की निरंतर अग्रसरित हो रही विकास यात्रा का साक्षी बनने का गौरव भी हासिल है।
ब्रजधाम के आँगन में आयोजित रंगीले – रसीले – छबीले होली समारोहों के अनौखे आयोजनों के दर्शन हेतु मनुष्य ही नहीं, देवी – देवता भी लालायित रहते हैं। भूतभावन भोलेनाथ से संबंधित ब्रज की होली का पावन प्रसंग तो अत्यधिक चर्चित है। जिसके उपरांत सभी तीज – त्योहारों में सर्वाधिक लोकप्रिय होली के संदर्भ में समूचे सांस्कृतिक संसार ने उदघोषित कर दिया कि ब्रज मंडलीय रंगीली होली सनातन पर्व श्रँखला की मुकुटमणि है।
उन्होंने बताया कि रसीली नगरी बरसाना एवं नन्दगाँव की प्रसिद्ध लठामार होली, ब्रज के राजा दाऊदयाल महाराज की नगरी बल्देव का हुरंगा, फालैन की अग्नि होली, श्रीकृष्णचन्द्र की लीलाभूमि गोकुल, महावन, गोवर्धन, आन्यौर, जतीपुरा, मथुरा, जाव, बठैन इत्यादि स्थलों के विभिन्न होली समारोहों को संजोये इस रसीले समारोह के संदर्भ में एक बड़े रोचक प्रसंग में उल्लेखित है कि करीबन पाँच सदी पूर्व रसिकेश्वर श्री स्वामी हरिदास जी महाराज के समक्ष कन्नौज के एक इत्र व्यवसायी ने प्रभु सेवार्थ उत्तम प्रकार का बहुमूल्य इत्र लाकर श्री हरिदास जी को अर्पण किया। स्वामी जी उस समय संगीत आराधना के द्वारा प्रभु को रिझा रहे थे, उन्होंने इत्र की शीशी लेकर लेकर रज में उढ़ेल दी। यह देख भक्त को अपार दुख हुआ, तब स्वामी जी ने उसे बिहारी जी के दर्शन करने भेज दिया।भक्त ने जाकर ज्योंही श्रीबिहारीजी के दर्शन किये, त्यौं ही वह आश्चर्यचकित हो गया। क्योंकि उसे सर्वत्र अपने लाये हुये इत्र की सुगंध आ रही थी। भावविभोर हो वह पुनः स्वामी जी के पास जाकर इस लीला का कारण पूछने लगा। श्री हरिदास जी ने कहा- प्रभु प्रेमी ! आप सही समय पर सेवा लाये। इस समय ठाकुरजी भरी हुयी पिचकारी लेकर श्रीजी के सम्मुख खड़े थे, किन्तु श्रीजी की पिचकारी खाली थी। सो हमने इस इत्र को उनकी पिचकारी में डलवा दिया, फलत:- दोनों रंग से सराबोर हो गये। ये है ब्रज की होली का वास्तविक स्वरूप।

Live News

Advertisments

Advertisements

Advertisments

Our Visitors

0106300
This Month : 1621
This Year : 43593

Follow Me