डॉ.बचन सिंह सिकरवार
हाल में इण्डोनेशिया के राश्ट्रपति प्रबोवो सुबियांतो का गणतंत्र दिवस समारोह में राजकीय अतिथि के रूप में सम्मिलित होने से पड़ोसी चीन ही नहीं, कई दूसरे देशों के साथ-साथ अपने देश के एक खास मजहब के लोगों को इस देश से घनिश्ठ होते सम्बन्ध अपने हितों के विपरीत दिखायी दे रहे हैं। वैसे इण्डोनेशिया और भारत की मैत्री/दोस्ती न तो नई है और न हीं इसके राश्ट्रपति पहली बार राजकीय अतिथि बने हैं। अपने देश के प्रथम गणतंत्र दिवस(26जनवरी,1950) पर इण्डोनेशिया के प्रथम राश्ट्रपति सुकर्णो मुख्य अतिथि थे। इण्डोनेशिया दुनिया का सबसे बड़ा मुस्लिम मुल्क जरूर है, लेकिन उसके साथ सांस्कृतिक सम्बन्ध सदियों पर पुराने हैं। यहाँ के लोगों ने विभिन्न कारणों से इस्लाम अंगीकार/कुबूल करने के बाद भी अपनी संस्कृति का परित्याग नहीं किया है, यही वजह है कि अब भी कई इण्डोनेशियाई लोगों के नाम भी संस्कृत में होते हैं। उनकी भाशा में एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा संस्कृत से ही आता है। इस तथ्य की पुश्टि अब स्वय राश्ट्रपति प्रबोवो सुबियांतो ने की है। उन्होंने तो यहाँ तक कह दिया उनमें भारतीय डीएनए है। निश्चय ही उनके इस कथन से उन इस्लामिक कट्टरपंथियों को गहरा आघात लगा होगा, जो स्वयं को मुहम्मद गजनी, मुहम्मद गौरी, मुहम्मद तुगलक, अलाउद्दीन खिलजी, तैमूल लंग,सिकन्दर लोदी, बाबर, औरंगजेब, अहमद शाह अब्दाली जैसे आक्राताओं से अपना रिश्ता/ वंशज होने का दावा करते आए हैं। उनकी इसी मानसिकता पर तंज कसते हुए अब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा है कि दुनिया के सबसे बड़े मुस्लिम देश के राश्ट्रपति अपने भारतीय डीएनए पर गर्व करते हैं। उनका नाम भी संस्कृत से प्रेरित है। इण्डोनेशिया में राम को पूर्वज माना जाता है। इसके विपरीत भारत में रहकर इस धरती का उपभोग करने वाली अल्पसंख्यकों की बड़ी आबादी, जो दुर्भाग्य से केवल वोट बैंक बनकर रह गई है,क्या वे स्वीकार कर पाएँगे कि उनके पूर्वज राम थे। वैसे भी जहाँ तक भारत -इण्डोनेशिया के सदियों पुराने धार्मिक ,सभ्यतागत और सांस्कृतिक रिश्तों की बात है, तो उनकी कोई सीमा नहीं है। वहाँ की राश्ट्रीय वायु सेवा/एयर लाइन्स का प्रतीक चिन्ह ‘गरुड़’ है। इण्डोनेशिया में जगह-जगह रामलीला का आयोजन भी किया जाता है, जो उनका राश्ट्रीय उत्सव है। गणपति उनकी मुद्रा पर अंकित है।यह सब दर्शात है कि मजहब बदलने से न पूर्वज बदलते हैं और न ही सभ्यता-संस्कृति, जो अटूट और प्रगाढ़ सम्बन्धों का मूलाधार है।क्या भारतीय मुसलमान और भारत से अलग हुए पाकिस्तान तथा बांग्लादेश के लोग समझ पाएँगे, जो सोते-जागते उसके विनाश का सपना देखते रहते हैं।
जहाँ तक इण्डोनेशिया के भारत से घनिश्ठ होते रिश्तों से चीन की परेशानी/चिन्ता का सम्बन्ध है तो उसकी वजह चीन की हिन्द-प्रशान्त क्षेत्र/दक्षिण चीन सागर में विस्तारवादी नीति है और इस पूरे क्षेत्र पर उसका अपना दावा जताना है। दक्षिण चीन सागर 13 लाख वर्ग मील क्षेत्र में फैला हुआ है जिसे अपना बताता है। इस क्षेत्र में उनके कई कृतिम द्वीपों पर अपने सैन्य अड्डे भी बना लिए हैं।इस क्षेत्र के सामुद्रिक मार्ग से दुनियाभर के अधिकांश व्यापारिक जहाज गुजरते हैं।कोई 80फीसदी व्यापार इसी मार्ग से होता है। इस क्षेत्र पर ब्रुनेई,मलेशिया, फिलीपीन्स, ताइवान और वियतनाम है। चीन से खतरे को देखते हुए अमेरिका, आस्ट्रेलिया, भारत और जापान ने मिलकर ‘क्वाड’ का गठन किया हुआ है, जिसका घोशित इस क्षेत्र में अन्तरराश्ट्रीय विधियों/कानून सम्मत ढंग से शान्तिपूर्ण ढंग से स्वतंत्र नौवाहन किया जाना है। इस संगठन से इस क्षेत्र के दूसरे देश भी अब जुड़ना चाहते हैं। भारत सरकार द्वारा गणतंत्र दिवस पर इण्डोनेशिया के राश्ट्र्रपति को राजकीय अतिथि बनने की पीछे यही कूटनीति रही है। इण्डोनेशिया भी चीन के आसन्न संकट को देखते हुए भारत से ब्रह्मोस मिसाइल खरीदने का इच्छुक है। गणतंत्र दिवस की परेड में ब्रह्मोस समेत कई दूसरे अत्याधुनिक तकनीक से युक्त आचूक और घातक हथियार प्रदर्शित किये गए। निश्चय इन्हें इण्डोनेशिया के राश्ट्रपति ने गौर से देखा होगा। यह सब देखकर चीन को अच्छा नहीं लगा होगा। वस्तुतः वह नहीं चाहता कि दक्षिण चीन सागर या हिन्द-प्रशान्त क्षेत्र के देश सैन्य रूप से सशक्त और एकजुट हों, किन्तु अब भारत यही सब कर रहा है,ताकि चीन की विस्तारवादी नीति पर लगाम लगायी जा सके।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और राश्ट्रपति प्रबोवो सुबियांतो के नेतृत्व में आयोजित द्विपक्षीय बैठकों के दौरान रक्षा, व्यापार और सांस्कृतिक सम्बन्धों के विभिन्न आयामों पर विस्तार से चर्चाएँ हुई हैं। दोनों नेताओं के मध्य हिन्द-प्रशान्त क्षेत्र की स्थिति पर भी चर्चा हुई है। उन्होंने कहा है कि भारत इस क्षेत्र में शान्ति बने रखने, समान अवसर प्रदान करने और वैश्विक कानूनों का पालन करने के लिए प्रतिबद्ध है। यह बयान इसलिए महŸवपूर्ण है,क्योंकि हाल ही में मलेशिया के बाद इण्डोनेशिया दूसरा देश है जिसके साथ भारत उच्च स्तरीय वार्ता हुई है। इन दोनों वार्ताओं में हिन्द प्रशान्त क्षेत्र का मुद्दा उठा है। हिन्द-प्रशान्त क्षेत्र में चीन की बढ़ती गतिविधियों से सभी चिन्तित हैं। भारत ओर इण्डोनेशिया के बीच रक्षा सहयोग पर हुई चर्चाएँ दोनों देशों के बीच बढ़ते सहयोग को दर्शाती हैं। इस बैठक मे भारत ने इण्डोनेशिया के प्रम्बानन मन्दिर के जीर्णोद्धार का भी प्रस्ताव रखा, जिस पर आगे विस्तार से वार्ता हुई। सदियों पुराना यह मन्दिर इण्डोनेशिया का सबसे बड़ा मन्दिर है। मुस्लिम बहुल देश इण्डोनेशिया के योग्यकार्ता शहर के बाहरी इलाके में स्थित प्रम्बानन मन्दिर कुल 240 मन्दिरों से सुसज्जित है। यह मन्दिर तीन मुख्य हिन्दू देवताओं त्रिमूर्ति- ब्रह्मा, विश्णु और महेश(शिव) को समर्पित है। यह यूनेस्को के विश्व धरोहर स्थल में भी शामिल है। नौवीं सदी का यह मन्दिर इण्डोनेशिया का सबसे बड़ा मन्दिर माना जाता है। इससे दोनों देशों के बीच धार्मिक और सांस्कृतिक सम्बन्धों में बढ़ोत्तरी होगी। अब इण्डोनेशिया के बारे में भी जान लेते हैं।
इण्डोनेशिया बहुलद्वीपीय राज्य है, जिसमें 1,3,000से अधिक द्वीप हैं जिसमें 6,000द्वीपों में आबादी है। पाँच मुख्य द्वीप जावा, सुमात्रा, कालीमर्तन (इण्डोनेशियाई बोर्नियो),सुलवेसी और इरियन जाया(वेस्ट न्यू गिनी) है और इनके साथ 30छोटे द्वीप समूह हैं। ईसा पूर्व चौथी शताब्दी से ही इण्डोनेशिया द्वीप समूह एक महŸवपूर्ण व्यापारिक क्षेत्र रहा है। बुनी या मुनि सभ्यता इण्डोनेशिया की सबसे पुरानी सभ्यता है। चौथी शताब्दी ईसा पूर्व तक ये सभ्यता काफी उन्नति कर चुकी है। ये हिन्दू और बौद्ध धर्म मानते थे और ऋशि परम्परा का अनुकरण करते थे। लेकिन आठवीं शताब्दी में मुस्लिम व्यापारियों के प्रवेश करने के प्रमाण प्राप्त होते हैं। यद्यपि तेरहवीं शताब्दी से अब तक इस्लाम का प्रसार शुरू नहीं हुआ था,तथापि सबसे पहले इस्लाम का प्रसार अरब मुस्लिम व्यापारियां और फिर विद्वानों द्वारा मिशनरी गतिविधियों के माध्यम से हुआ।
इण्डोनेशिया का क्षेत्रफल- 1,904,569वर्ग किलोमीटर और इसकी राजधानी-जकार्ता,जिसका पुराना नाम बराविया है। इण्डोनेशिया की जनसंख्या-237,556,363 से अधिक है।यहाँ के लोग इस्लाम, ईसाई, हिन्दू, बौद्ध हैं,जो बहासा इण्डोनेशियन, डच,अँग्रेजी, अन्य आस्ट्रोनेशियन भाशाएँ बोलते-समझते हैं। नीदरलैण्ड/हालैण्ड की सेना के समर्पण के बाद जापानी सेना का इण्डोनेशिया पर 1942 से 1945 तक कब्जा रहा। इण्डोनेशिया ने लोगों ने 17 अगस्त, 1945 की अपनी स्वाधीनता की घोशणा कर दी। स्वाधीनता की लड़ाई के बाद हालैण्ड ने 27दिसम्बर, 1949को इण्डोनेशिया को सत्ता सौंप दी। 17अगस्त,1950 को यह एक गणतंत्र देश बना और डॉ.सुकार्नो राश्ट्रपति बने। 1968 में सेना प्रमुख जनरल सुहार्तो राश्ट्रपति पद के लिए नामांकित किये गए। 1996 में डॉ.सुकर्णो की पुत्री मेघावती सुकर्णा पुत्री प्रमुख विपक्षी नेता के रूप में उभरीं।एल निनो प्रभाव के कारण 1997 में यहाँ पड़े भीशण सूखे ने लगातार दो वर्शों तक कृशि को नश्ट कर दिया। मुद्रा का भारी अवमूल्यन हो गया। आर्थिक अफरातफरी मच गई। आर्थिक बदहाली के कारण दंगा फसाद शुरू हो गए। जनवरी में सरकार ने जबर्दस्त आर्थिक सुधारों का आश्वासन देते हुए ‘अन्तरराश्ट्रीय मुद्रा कोश‘( आइ.एम.एफ.) से सहायता की माँग की। जुलाई, 1997 में जनरल सुहार्तो को अपना पद से छोड़ना पड़ा, जो सातवीं बार राश्ट्रपति बने थे । इण्डोनेशिया ने 1998 में पूर्वी तिमोर पर कब्जा कर लिया था। 30 अगस्त,1999 को लोकमत(संयुक्त राश्ट्र संघ इसे जनता की राय मानता है)कराया गया और 90 प्रतिशत लोगों ने इण्डोनेशिया से अलग होने के लिए मतदान किया। परिणाम की घोशणा होते ही पूर्वी तिमोर में हिंसा और रक्तपात का दौर शुरू हो गया। जकार्ता के समर्थन वाले लोगों ने अलग होने वालों पर धावा बोल दिया। हजारों बेघर हो गए। प्राकृतिक संसाधनों की दृश्टि से इण्डोनेशिया ससार के सबसे धनी देशों में से एक है। यहाँ टिन और तेल बहुतायत से निकाला जाता है और बाक्साइट, तांबे, निकल,सोने और चाँदी के विशाल भण्डार हैं। यहाँ का प्रमुख उद्यम कृशि है। चावल, तम्बाकू, काफी, रबर, काली, मिर्च,सेमल की रुई, नारियल, ताड़ तेल, चाय और गन्ना यहाँ की मुख्य फसलें हैं। इण्डोनेशिया का वन उत्पादन विदेशी मुद्रा अर्जित करने का प्रमुख साधन है 100बिलयन डालर से अधिक विदेशी कर्ज के कारण इण्डोनेशिया विश्व का सबसे बड़ा कर्जदार देश है। भारत और इण्डोनेशिया के मध्य सदैव से मधुर सम्बन्ध रहे हैं। इण्डोनेशिया भारत से कभी अलग नहीं हुआ। इण्डोनेशिया को 17अगस्त, 1945को नीदरलैण्ड की दसता से स्वतंत्रता प्राप्त हुई। भारत ने इण्डोनेशिया को 2सितम्बर, 1946को मान्यता दे दी थी,जब वह स्वयं स्वतंत्र नहीं हुआ था। भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पण्डित जवाहर लाल नेहरू के साथ यूगोस्लाविया के राश्ट्रपति मार्शल टीटो, मिस्र के राश्ट्रपति नासिर और इण्डोनेशिया के तत्कालीन राश्ट्रपति सुकर्णो ने गुटनिरपेक्ष आन्दोलन को सुदृढ़ करने में भरपूर योगदान दिया था,जब दुनिया के देश के सोवियत संघ/रूस के साम्यवादी और अमेरिका के पूँजीवादी खेमे/गुटों में बँटे हुए थे । भारत और इण्डोनेशिया दोनों जी-20,ई-7(देशों), ब्रिक्स, गुटनिरपेक्ष आन्दोलन और संयुक्त राश्ट्र संघ के सदस्य देश हैं।
भारत के हिन्द-प्रशान्त क्षेत्र के देशों से प्रगाढ़ होते सम्बन्धों का प्रभाव चीन की विस्तारवादी नीति पर अवश्य पड़ेगा। उसके लिए इन देशों को धमकाना-डराना आसान नहीं रहेगा। इसलिए भारत इण्डोनेशिया समेत इस क्षेत्र के दूसरे देशों से भी व्यापारिक और रक्षा सम्बन्धों को बढ़ा रहा है। वह इन देशों से व्यापार और विभिन्न क्षेत्रों में आपूर्ति बढ़ा कर उनकी चीन पर से निर्भरता को कम कर रहा है। इसके साथ ही उनके सैनिकों को अपने यहाँ प्रशिक्षण देने के साथ-साथ आवश्यकता अनुसार उन्हें हथियार भी उपलब्ध करा रहा है। इससे चीन को आर्थिक,व्यापारिक और कूटनीति क्षेत्र में झटका लगना स्वाभाविक है। अब देखना यह है कि राश्ट्रपति प्रबोवो सुबियांतो की भारत इस यात्रा के उपरान्त इन दोनों देशों समेत इस इलाके दूसरे मुल्कों के बीच रिश्तों में कितनी बढ़ोत्तरी होती है?
सम्पर्क-डॉ. बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003 मो. नम्बर-9411684054
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